“झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती। सूझबूझ और संघर्ष का नाम जिंदगी है। जो जीवन में इतिहास रचते हैं वह लोगों की परवाह नहीं किया करते। वह तो बस अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।…….”
नीरज ने अभी इतना ही कहा था कि रोहित वहाँ से नाराज हो उससे दूर चला गया। नीरज ने उसे लाख रोकने की कोशिश की पर रोहित कहाँ रुकने वाला था?
नीरज और रोहित दोनों अच्छे दोस्त थे। नीरज के पिता श्री अशोक कुमार शहर के एक बड़े कारोबारी थे तो वहीं दूसरी तरफ रोहित के पिता श्री रमाकांत मिश्रा सरकारी दफ़्तर में एक मामूली से क्लर्क। पर रोहित की जीवनशैली किसी रईस व्यक्ति से कम न थी जबकि नीरज की जीवनशैली बहुत ही सादा और सिम्पल।
नीरज हमेशा नॉर्मल कपड़ो में ही रहता था। उसे देख कोई यह नहीं कह सकता था कि वह किसी रईस बाप की इकलौती औलाद है।
रोहित अपने स्टेटस को मेन्टेन रखने के लिए अक्सर अपने पड़ोसियों, दुकानदारों और रिश्तेदारों से झूठ बोलता और उनसे पैसे और सामान उधार ले आता लेकिन उनके उधार या पैसे कभी भी वक्त पर न लौटाता। वह सभी लोग रोहित के घर पहुँचकर अक्सर हंगामा किया करते। जिससे रोहित के माँ बाप काफ़ी परेशान रहते थे। अगर वह रोहित को कुछ बोलते तो वह उन्हें घर छोड़ने की धमकी दे देता। माँ-बाप सोचते जवान बेटा है कहीं कुछ गलत कर बैठा तो हम क्या करेंगे? इसलिए वह कुछ न बोलते और उसकी मनमानी को चुपचाप सहते।
हद तो तब हो गई जब रोहित एक दिन एक कार अपने घर ले आया। जब रोहित के पिता रमाकांत मिश्रा ने घर के बाहर कार देखा तो रोहित से पूछा – यह कार किसकी है और हमारे दरवाजे पर क्या कर रही है???
रोहित : क्या मतलब है किसकी है?
रामाकांत (गुस्से में चिल्लाते हुए) : तुझसे जितना पूछूँ उतना ही जवाब दे। यह कार किसकी है??
रोहित : पिता जी यह कार मेरी है।
रमाकांत : अच्छा तो अब बात यहाँ तक पहुँच गई। अब तू चोरी चकारी भी करने लगा।
रोहित : मैंने कोई चोरी नहीं की है। मैंने इसे ख़रीदा है।
रमाकांत : अच्छा तूने ख़रीदा है तो बता तेरे पास इतने पैसे कहाँ से आये???
रोहित : अभी 60 हज़ार रुपए दिये हैं बाकी धीरे-धीरे चुका दूँगा। कोई शो रुम से थोड़े ना ख़रीदा है मैंने। राहुल अपनी कार बेच रहा था तो ले लिया। बस 3 लाख रुपये और देने हैं।
रमाकांत ने आश्चर्य के साथ पूछा : 60 हज़ार रुपये तेरे पास कहाँ से आये??
रोहित : आपकी अलमीरा में पड़े थे। मैंने राहुल को दे दिया।
रामकांत अपना सिर पकड़कर बैठ गया और चिल्लाते हुए बोला – अरे, वो पैसे मैंने सुनार को देने के लिए रखे थे। तेरी बहन के शादी के लिए तेरी माँ ने एक गहना पसंद किया था। तू मुझे बर्बाद करके ही छोड़ेगा।
रोहित : अब बस भी करो। जब देखो माँ और बेटी, माँ और बेटी ही करते रहते हो। कभी मेरे बारे में भी सोच लिया करो।
रोहित की इस हरकत ने तो रामकांत का दिल ही तोड़ दिया था। वह कुछ बोल न सका। लेकिन रोहित से एक बात उसने साफ-साफ कह दिया कि कार की बाकी की रकम उसे ही लौटना होगा इसमें रमाकांत उसकी एक रुपए की भी मदद नहीं करेगा।
रामकांत ने जैसा कहा था। उसने वैसा ही किया। रमाकांत ने रोहित को एक रुपये न दिये। उधर राहुल बार-बार आकर रोहित से पैसे मांगता और पैसों को लेकर दोनों में एक दिन बहस भी हो गई। राहुल ने गुस्से में आकर रोहित को बोला कि मैं तुम्हें हफ्ते दिन का वक्त देता हूँ। मुझे कम से कम एक लाख रूपये चाहिए और बाकी पैसे अगले हफ्ते में।
रोहित ने रामकांत से पैसे मांगे तो उसने मना कर दिया। रोहित ने गुस्से में बोला ठीक है तो मैं भी घर छोड़कर जा रहा हूँ। आज से मैं तुम्हारा बेटा नहीं और तुम मेरे बाप नहीं। इस बार रमाकांत ने रोहित को नहीं रोका और रोहित घर के बाहर निकल गया।
रोहित ने सोचा पिता जी ने पैसे नहीं दिये तो क्या हो गया?? अपना दोस्त नीरज तो है ना। उसे कौन सी पैसो की कमी है। वह जरुर मेरी मदद कर देगा। आखिर वह अपना जिगरी दोस्त जो है।
पर सब कुछ रोहित की सोच से बिल्कुल विपरीत हुआ। नीरज ने तो पैसे देने से ही इनकार कर दिया और उल्टा भाषण देने लगा कि “झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती। सूझबूझ और संघर्ष का नाम जिंदगी है। जो जीवन में इतिहास रचते हैं वह लोगों की परवाह नहीं किया करते। वह तो बस अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।…….”
नीरज की बात सुन रोहित को गुस्सा आ गया और वहाँ से वह तेजी के साथ भाग गया। रोहित घर तो जाना चाहता था पर वह घर किस मुँह से जाता।
रोहित गुस्से में था। इसलिए उसने लखनऊ की टिकट कटाई और अपने एक पुराने दोस्त रवि के पास जा पहुँचा। रवि ने दो चार दिन तक रोहित से कुछ न कहा लेकिन एक दिन रवि ने रोहित से कह दिया कि अगर तुम्हें मेरे साथ रहना है तो तुम्हें महीने का खर्च मुझे देना होगा क्योंकि मैं तुम्हारा खर्च नहीं उठा सकता।
रोहित : अरे यार मैं कहाँ से पैसे दूँगा?
रवि : मुझे कुछ पता नहीं यह तेरी समस्या है। इसे तू ही सुलझा। वरना घर वापस लौट जा।
रोहित : अरे यार यह कैसी बातें कर रहा है? मैं अगर घर गया तो वह राहुल मुझे मार डालेगा और पिता जी की तो मैं अब शक्ल भी देखना पसंद नहीं करता।
रवि : तो कोई काम कर। कब तक यूँ लोगों की उधारी पर जीता रहेगा।
रोहित : ठीक है तो कोई काम तू ही मेरे लिए देख दे।
रवि ने कुछ सोचा और बोला – ठीक है शाम को बात करते हैं। रोहित ने तो कभी काम किया ही नहीं था। इसलिए वह सोचा कि रवि के पास से भी भाग जाये लेकिन जाता तो कहाँ जाता?
शाम हो चुकी थी। स्ट्रीट लाइट्स भी जल उठे थे। तभी रवि ने घर के अंदर प्रवेश किया और रोहित को खुशखबरी दी की उसने अपने ही ऑफिस में उसके लिए कंप्यूटर ऑपरेटर जॉब के लिए बात कर ली है। रोहित एक फ्रेशर था। इसलिए उसकी तनख्वाह कुछ ज्यादा तो न थी लेकिन गुजर बसर के लिए काफ़ी थी।
इधर समय भी करवट लेने लगा
लगभग छह महीने बीत गये। पर रोहित वापस घर न गया। उसे घर की याद तो आती लेकिन गुस्से की वजह से वह कोई निर्णय न ले पाता। उधर रामकांत मिश्रा को रवि से रोहित का सारा हाल समाचार प्राप्त हो चुका था। इसलिए रमाकांत जी भी थोड़े निश्चिन्त हो गये। राहुल भी अपनी कार वापस ले जा चुका था। अत: रमाकांत मिश्रा ने रोहित को कभी कोई फोन भी न किया।
समय के साथ-साथ रोहित को अपने किये पर पछ्तावा होने लगा और वह अकेलापन का शिकार हो गया। वह मायूस रहने लगा। उसका रहन-सहन सब कुछ सामान्य हो चुका था। अब वह पहले वाला रोहित न था। रोहित को बचपन से पेंटिंग का बड़ा शौक था। वह शाम को जब खाली रहता तो अपने घर, गांव और दोस्तों को याद करता और उन्हें अपने पेंटिंग में उतारता।
एक दिन उसकी पेंटिंग रवि ने देखी तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। रवि, रोहित का दोस्त जरूर था लेकिन रोहित के इस टैलेंट के बारे में उसे कोई जानकारी ही न थी। रवि ने रोहित को समझाया कि वह अपने इस टैलेंट को अपना प्रोफेशन बना सकता है। पर रोहित कहता यह तो मैं अपने शौक के लिए करता हूँ।
रवि के बार-बार समझाने पर रोहित ने सोशल मीडिया के जरिये अपने पेंटिंग का प्रचार प्रसार शुरू किया। कुछ दिनों बाद रोहित को नये-नये पेंटिंग बनाने के लिए आर्डर भी आने लगे। रोहित की एक पेंटिंग की कीमत कम से कम 2 हज़ार रूपए होती। देखते-देखते रोहित की किस्मत चमक गई और वह मालामाल हो गया। लेकिन रोहित को अभी भी कुछ अधूरा लगता था। उसे अपने माँ-बाप और बहन की याद सताती।
एक दिन रोहित ने निश्चय किया कि वह अपने घर वापस जायेगा और अपने पिता जी से मांफी माँग लेगा लेकिन अकेले नहीं रहेगा। बस क्या था एक दिन सुबह-सुबह वह अपने घर पहुँच गया।
बेटे को देख माँ की आँखें भर आई। रोहित की माँ ने उसे गले से लगा लिया। पर रमाकांत मिश्रा एक तरफ कुर्सी पर बैठे हुए अपनी चाय की चुस्की ले रहे थे। शायद वह रोहित से अभी भी नाराज थें। रोहित ने जाकर रमाकांत के पैरों को दोनों हाथों से जोर से पकड़ लिया और बोला – पापा मुझे माफ़ कर दीजिए। मेरे से बहुत बड़ी गलती हो गई।
रमाकांत : क्यों अक्ल ठिकाने आ गई??? तुने क्या कहा था कि मैं तुम्हारा बाप नहीं और तुम मेरे बेटे नहीं?? तो फिर क्यों आये हो यहाँ? जहाँ से आये हो वहीं वापस चले जाओ।
रमाकांत ने अभी इतना कहा ही था कि रोहित फुट-फुटकर रोने लगा और बोला – पापा मुझसे गलती हो गई? आप जो कहोगे मैं वहीं करूँगा लेकिन प्लीज मुझे अपने से दूर मत कीजिए।
आखिर रमाकांत एक पिता था। बेटे के आँसू देख पिता का दिल पसीज गया। रमाकांत ने रोहित को गले से लगा लिया और बोला – मैंने तुझे अपने से दूर नहीं किया बेटा बल्कि मैं तो चाहता था कि तू दुनिया को समझे और अपना रास्ता खुद बनाये। तू खुद देख अब तू पहले वाला रोहित नहीं रहा। तू चिंता मत कर मैं तेरे लिए कार भी खरीद दूँगा। बस मुझे कुछ वक़्त दे दे।
रोहित : पापा, अब मूझे कोई कार नहीं चाहिए। मुझे तो बस आप सबका साथ चाहिए।
रोहित और रमाकांत आपस में बात कर ही रहे थे कि रोहित की बहन मीना वहाँ चाय लेकर आ गई।
रोहित ने कहा – मीना, मैं अभी यह चाय नहीं पिऊंगा।
मीना : क्यों भैया, क्या हुआ???
रोहित : मुझे नीरज से मिलने जाना है। मुझे नीरज से भी तो मांफी मांगनी। मैंने उसे गलत समझा। लेकिन असली सीख तो उसने ही मुझे दी है। अगर वह मुझे पैसे देने से इंकार न करता तो शायद आज मैं इस काबिल भी न बनता।
नीरज सही कहता था – “झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती। सूझबूझ और संघर्ष का नाम जिंदगी है। जो जीवन में इतिहास रचते हैं वह लोगों की परवाह नहीं किया करते। वह तो बस अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।…….”
(पूर्णतः सुरक्षित, स्वरचित, अप्रकाशित एवं मौलिक रचना)
लेखक : नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार
सीख :
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि :
1. हमें अपनी संतानों को उतनी ही सुख सुविधाएं मुहैया करवानी चाहिए। जितनी उनको आवश्यकता हो क्योंकि आभाव और संघर्षों में पलकर ही कोई संतान कोयले से हीरा बनता है।
2. एक पिता के गुस्से में भी प्रेम और करुणा का भाव छुपा होता है। पिता कभी भी दिल से गुस्सा नहीं होता।
3. अगर हम अपने मित्र का साथ उसके गलत रास्तों में भी देते हैं तो हम एक स