#ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान नहीं समझते –  प्रतिमा श्रीवास्तव :

 Moral Stories in Hindi

बड़ी बहू मतलब बहुत बड़ी जिम्मेदारी और बहुत बड़ा समर्पण।हे भगवान अगले जन्म में मोहे बड़ी बहू ना कीजो। गुड्डन अब सबकी इच्छाओं पर खरी उतरते – उतरते थक गई थी।घर क्या परिवार में भी कुछ हो तो यही सुनने को मिलता की तुम बड़ी बहू हो तो जो कुछ भी ऊपर नीचे होगा तुम्हारी जिम्मेदारी होगी गुड्डन क्यों कि तुमको ही देख कर तुम्हारी देवरानियां सीखेंगी।

उफ़!” दुनिया के सारे संस्कार का ढिंगरा मेरे ही सिर पर क्यों फोड़ा जाता है। शादी ना किया जैसे समस्याओं को निमंत्रण दे दिया है” गुड्डन सुबह से शाम तक इसी बोझ के तले दबी रहती थी। पहले तो था की देवरानी आएगी तो भार हल्का हो जाएगा कामकाज का लेकिन उसके बाद सब पलट गया था क्योंकि देवरानी गरिमा तो बड़ी आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेती की मुझे कुछ नहीं आता ।तब ये हो जाता की तुम तो जानती हो ना  गुड्डन इस घर का रीति रिवाज ना।वो तो नई – नई है सीख जाएगी धीरे धीरे।

“अरे भाई मैं भी तो आई थी नई – नई,तब तो सासू मां हर दिन एक नए टास्क के साथ हाजिर रहतीं थीं और परीक्षा ऐसे ली जाती थी जैसे मुझे सालों का अनुभव हो।” मन ही मन फुसफुसाती हुई गुड्डन रसोईघर में फिर से लग गई थी।

सुबह से शाम कब होती पता ही नहीं चलता था क्योंकि घर में एक नहीं कई सास थीं। अपनी सास कुंती देवी, चाची सास मनोरमा जी,और एक बुआ सास भी थीं जो पड़ोस में रहतीं थीं अक्सर आ जाया करतीं थीं और बची खुची कमी बड़ी सास यानि  मेरे पतिदेव थे वो पूरा कर दिया करते थे।

अरे!” बड़ी बहू दीपावली आने वाली है क्या सोचा है तुमने?

कुंती मां ने रसोई घर में प्रवेश करते हुए पूछा।

मां ” आप बताएं की कौन – कौन आएगा त्योहार पर और सबके लिए कपड़े कब लेने जाऊं? गुड्डन को अच्छा भी लगता मन ही मन जब घर में उसके राय की अहमियत होती पर ये खुशी बस यहीं तक सीमित रहती क्योंकि घर के रोजमर्रा के काम के साथ – साथ आने वाले तीज त्यौहार और शादी व्याह की सारी जिम्मेदारी उसके सिर पर होती।

पता ही है जब सबकुछ अच्छा होता तो कुंती मां सारी शाबाशी अपने ऊपर ले लिया करतीं की आखिर बहू किसकी है और कुछ कमी रह जाती तो ना जाने क्या सिखाया था मां ने।

सब दीपावली की तैयारी में लग गए थे। छोटी बहू ने बड़ी चालाकी से साज सज्जा की जिम्मेदारी ले लिया था। रंगोली बनाना दीपक सजाना और सबके साथ मुस्कुरा कर फोटो खिंचवाना।सबकी नजरों में सिर्फ वही थी चारों ओर चहकती सजी – संवरी टहल रही थी।

सबसे बड़ी बात तब थी जब दिनभर के काम से थकने के बाद बुआ सास की बात मेरे कानों में आई की बड़ी बहू तो कभी ऐसे हंसती मुस्कुराती दिखती ही नहीं है।

हे भगवान इतना काम करने के बाद जब पीठ अकड़ जाती है तो भला कौन मुस्कुराएगा? ये कौन समझाए की जो दुनिया भर की तैयारियां दिखाई दे रही है और जो पकवान का लुत्फ पूरा परिवार उठा रहा है ये सब बडी बहू ने ही किया है।

खैर इन सब बातों की आदत पड़ गई थी गुड्डन को। सभी के साथ जबरदस्ती का हंसना जरूरी हो जाता था।सच कहूं तो त्योहार का आंनद तो कभी आया ही नहीं था।वो भी क्या दिन थे जब मायके में थी। सुबह से शाम तक त्योहार का आंनद आता था और सही मायने में उसकी कीमत अब समझ में आने लगी थी।

दीपावली खूब अच्छी तरह निकल गई थी और दिन के काम काज थोड़े हल्के हो गए थे पर गुड्डन बीमार पड़ गई थी क्योंकि सुबह से लेकर शाम तक आराम नहीं मिला था।आज घर का माहौल देखने लायक था।सारा परिवार रसोई घर में मौजूद था फिर भी काम समेटे नहीं समेट  रहा था। यही काम गुड्डन अकेले ही करती थी।सभी ने उसे रोबोट समझ रखा था। जितने लोग उतनी फरमाइश, खुद की पसंद ना पसंद तो ना जाने कब का भूल गई थी।

नई – नई शादी हुई थी तो पति राजेश ने गुलाब जामुन लाया था उसके लिए क्यों कि उन्हें मां ने बताया था की मुझे बहुत पसंद है तो बहुत बड़ा हंगामा हो गया था कि अरे आते ही अपना चलाने लगी बहू तो और ननद जी बोल पड़ी कि भईया ने हमारे लिए तो आजतक कुछ नहीं लाया और शादी होते ही देखो कितना बदल गए।सच बताऊं नहीं खा पाई थी वो गुलाब जामुन और तभी से छोड़ दिया अपनी पसंद ना पसंद को।

भले ही बड़ी बहू को घर की लक्ष्मी का दर्जा दिया जाता हो लेकिन उसके ऊपर कर्तव्यों का इतना बड़ा बोझ डाला जाता है कि वो अपना अस्तित्व ही भुला बैठती है।

बड़ी बहू बनना खुशनसीबी तो होती है लेकिन अपने आपको भूलना भी पड़ता है।ये ऐसा ताज है जहां कांटे ही कांटे सजे होते हैं। गुड्डन मन ही मन सोच रही थी काश वो भी छोटी बहू होती जिसे नासमझ समझ कर सब कुछ माफ कर दिया जाता।

                                प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी

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