सारा हिसाब यहीं बराबर होता है… – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral stories in hindi

वैसे तो सास बहू के किस्से हमारे भारत में अत्यंत मशहूर हैं और हमेशा सास को ही दोषी बताया जाता है लेकिन इस मामले में बिल्कुल विपरीत स्थिति थी। 

कृतिका हर छोटी-छोटी बात पर मुँह फुला लेती थी और घर वालों से झगड़ने लगती थी। मुँह फुलाना और रूठना तक तो ठीक था लेकिन अकारण दुर्व्यवहार करती थी, यह किसी को बर्दाश्त नहीं होता था।

चाहे उसका पति, सास, ससुर या देवर कोई भी अच्छी बात कहता, पर वो हर बात का अलग अर्थ निकाल कर झगड़ा चालू कर देती थी। कई बार तो सास-ससुर आपस में बातें कर रहे होते थे, तब  भी वह पति को बुलाने जाती थी कि चलो ट्रांसलेट करके बताओ मम्मा-पप्पा क्या बात कर रहे हैं?

चूंकि वह हिंदी भाषी राज्य से नहीं थी, इसलिए एक समस्या भाषा की भी थी। वह कुछ का कुछ समझ बैठती थी।

लेकिन वह हिंदी समझना भी नहीं चाहती थी और ससुराल वालों की समस्या यह थी कि वे किस-किस को अपनी बहू की मातृभाषा या फिर इंग्लिश सिखाते?

नतीजतन कृतिका की सास ने उससे बातें करनी ही बंद कर दी थी क्योंकि अर्थ का अनर्थ लगाने से बेहतर है बातें ही ना की जाएं।

दूसरे यह  भी समस्या थी कि वह नासमझी के कारण किसी बात का वीडियो बनाती, जब तब पुलिस को बुलाने की धमकी देती।

जब भी बहस करती तो मोबाइल फोन चमका कर कहती कि हम पुलिस में रिपोर्ट करेगे। इसलिए उसकी सास ने सोचा कांटों से उलझने में अपने ही हाथ, पैर घायल होंगे, बेहतर है दूरी बनाकर रखें।

एक दिन तो हद ही हो गई जब सामान्य बात को इतना खींचा कि उसका तिल से ताड़ बना दिया और वीडियो बनाने लगी कि पुलिस को बताएगी।

तब उसकी सास ने कहा,,, “चल अब मैं भी तेरी हरकतों की वीडियो बना लेती हूँ और सुन इससे पहले भी तेरे हर नाटक की मैने रिकॉर्डिंग करके रखी है। 

जो मैं पुलिस को नहीं, बल्कि न्यायालय में, न्यायाधीश महोदय  को, देकर कहूंगी कि जज साहब ये देखिये सारी  रिकॉर्डिंग्स, जिसमें आपको भी सब कुछ समझ में आ जायेगा कि कौन गलत है और कौन सही? 

और हाँ  एक बात और कहना चाहूंगी… ऐसी बहू के साथ रहने से वैसे भी अच्छा है कि मैं जेल में ही रही आऊं।”  

वाकई में कृतिका की सास ने भी  हमेशा उसकी ऐसी हरकतें देखते हुए, हर झगड़े की रिकॉर्डिंग करके रख ली थी ताकि सनद रहे वक्त में काम आबे।

क्योंकि कृतिका का कोई भरोसा नहीं था कि  वह कब क्या कर बैठे!

इतना जरूर अच्छा हुआ था कि उस दिन के बाद से वह वीडियो बनाने की धमकी देना बंद कर चुकी थी।

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कुछ दिनों बाद समय ने करवट बदला, उसका बेटा, जो उसके द्वारा हर किसी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देख रहा था, उसने सब कुछ ब्याज सहित वसूल लिया।

अब यदि कृतिका कहती भी है कि मैने ऐसा कुछ नहीं किया तो उसका बेटा ही कहता है,,, “मैं अंधा, बहरा नहीं हूँ, बचपन से आपकी अच्छाईयां देखता आ रहा हूँ!”

कृतिका की बहू को भी आने के बाद, अति करने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि बेटे ने ही हिसाब-किताब  बराबर कर दिया। 

अब कृतिका भी अपने किए पर पछता रही है पर कहते हैं ना,,, “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए! टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ि जाए!”

भले ही कृतिका ठोकर खाकर सुधर गई हो लेकिन घर वालों का पल-पल में उसके द्वारा अपमानित होना कैसे इतना जल्दी भुलाया जा सकता है। 

हाँ घर वाले यही सोच कर खुश हैं कि सुबह, शाम की चिकचिक और झगड़े से शांति मिली हुई है। 

इसलिए इंसान, इंसान से कितना ही मुँह फुला ले, रूठ जाए लेकिन ऊपर वाले से किसी की नहीं चलती है।

हाँ कृतिका  के साथ उसके बेटे का किया दुर्व्यवहार भी उसके ससुराल वालों को पसंद नहीं आता था। 

कृतिका की सास अकेले में अपने पोते को समझाती थीं, तो वह कहता था,,, “दादी, सामने वाले को भी अहसास होना चाहिए कि जो खाना हम दूसरों को परोस रहे थे उसका स्वाद कैसा है?

मैं सब ये जानबूझकर ही कर रहा हूँ क्योंकि इस चैप्टर का अंत मेरी शादी से पहले करना चाहता हूँ ताकि दूसरी कृतिका मेरी माँ से दुर्व्यवहार ना करे।

जल्दी ही सब सही हो जाएगा, आप फिक्र ना करें।”

अपने बेटे का व्यवहार देखकर, कुछ ही दिनों में कृतिका को अपने किए पर बहुत ग्लानि होने लगी थी। वह सोच रही थी जो बोया है, वही तो वह काट रही है।

उसने अपने द्वारा की हुई गलतियों के लिए अपने ससुराल वालों से क्षमा मांगी। उन्होंने भी उसे माफ कर दिया। कृतिका का बेटा भी फिर धीरे-धीरे अपनी माँ से सही व्यवहार करने लगा था। एकबार फिर से सब कुछ सामान्य हो चला था।

 

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

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