दिव्या की बेटी प्रिया बहुत ही सुंदर और सुशील थी।पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ नृत्य में भी बहुत अच्छी थी। उसका चयन राज्य स्तर पर आयोजित एक प्रतियोगिता में हो गया।जिसकी तैयारी के लिए उसको कई बार लौटने में शाम को देर हो जाती थी। दिव्या ये सब समझती थी उसने अपने समय में सपनों से बहुत समझौता किया था।
अब वो बेटी को रूढ़ीवादिता की बेड़ियों में नहीं जकड़ना चाहती थी।एक दिन बेटी को घर आने में काफ़ी देर हो गई तब बेटी के साथ प्रतियोगिता की तैयारी में लगा लड़का उसको घर तक छोड़ गया।जब प्रिया की दादी सुमित्रा जी ने ये सब देखा तो हंगामा मचा दिया और कहा कि लड़की जात है इतनी छूट भी किस बात की,जो देर रात लड़कों के साथ उठे-बैठे और परिवार की शाख पर ही धब्बा लगा दे।
उन्होंने घोषणा कर दी कि कल से प्रिया नृत्य की तैयारी के लिए नहीं जाएगी। अगर प्रिया गई तो वो अन्न-जल त्याग देंगी। असल में पूरे घर में सुमित्रा जी की ही चलती थी। प्रिया के पापा भी उनके सामने कुछ नहीं बोल पाते थे।वैसे भी दिव्या के एक ही संतान वो भी लड़की पैदा होने से सुमित्रा जी खार खाए रहती थी।
उनका इस तरह चिल्लाना देख आज दिव्या चुप ना रह सकी।
आज एक मां के अंदर पता नहीं कहां से हिम्मत आ गई,वो बोली मांजी जब देवर जी का बेटे राघव को शराब के नशे में लड़कियों को छेड़ने के आरोप में पुलिस ने पकड़ लिया था और तो और कई बार वो शराब के नशे में चूर घर पर आधी रात को आता है तब क्या इस घर की इज्ज़त को धब्बा नहीं लगता?
इस कहानी को भी पढ़ें:
सफर (लिहाज से तल्ख लहजे तक का) – रचना कंडवाल : hindi stories with moral
क्यों,हर बार इज्ज़त के नाम पर एक लड़की को ही समझौता करना पड़ता है।फिर उसने ये भी कहा कि अगर किसी को मेरी बेटी से इतनी ही दिक्कत है तो वो आज ही उसके साथ घर से चली जायेगी पर उसके सपनों के साथ कोई समझौता नहीं होने देगी। उसका ये विकराल रूप देख सब कुछ ना बोल पाए।सुमित्रा जी भी ये कहकर कि जो मन में आए वो करो कहकर वहां से चली गई।
आखिर प्रतियोगिता का दिन भी आ गया। उस दिन राज्य के सभी प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे। प्रिया के पापा उसकी दादी को भी जबरदस्ती कार्यक्रम में ले गए। प्रिया के नृत्य ने सबका मन मोह लिया।प्रिया ने पूरे राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। जब पुरुस्कार की घोषणा हुई और उससे पूछा गया कि वो इसका श्रेय किसे देना चाहती है,तो उसने अपनी मां और दादी का नाम लिया।
उसने कहा कि मां ने हमेशा उसके सपने पूरा करने में साथ दिया तो वहीं दादी की सीख और चेतावनी ने उसका पूरा ध्यान अपना लक्ष्य प्राप्ति पर केंद्रित कर दिया। उसकी बात से आज दादी की आंखों में भी आंसू आ गए। प्रिया की वजह से आज उन्हें भी इतना सम्मान मिल रह था। उन्होंने दिव्या और प्रिया को गले लगा लिया और कहा संतान का लड़का या लड़की से ज्यादा संस्कारी होना ज्यादा आवश्यक है।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
#धब्बा लगना(कलंकित करना)
#मुहावरे आधारित लघुकथा प्रतियोगिता