सपनों की दहलीज – सरिता सिंह : Moral Stories in Hindi

तुलसी अभी इंटर में है इंटर बायोलॉजी से पास किया है डॉक्टर बनने की चाहत है , लेकिन बड़े भाई और ताऊ नहीं चाहते कि वह ज्यादा पढ़ाई करें  , क्योंकि इस खानदान की लड़कियां , ज्यादा पढ़ाई नहीं करती तुलसी का भी सपना अधूरा रह जाएगा मां बार-बार यही समझ रही है कि बेटा घर का काम धाम सीख लो यही तुम्हारा काम आएगा ,

बड़ी बहन की शादी में नाचते गाते मुखिया की नजर तुलसी पर पड़ी और  अपने बेटे मानवेंद्र के लिए तुलसी के बाबा महेंद्र सिंह से उसका हाथ मांग लिया।

तुलसी भी मानवेंद्र को पसंद करती थी लेकिन उसने यह नहीं सोचा था कि यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा….

क्योंकि तुलसी डॉक्टर बनना चाहती थी..

शादी और तमाम जिम्मेदारियां उसके लिए बहुत मुश्किल का काम था… सपनों की दहलीज पर खड़ी इस पर और उसे पर फैसला करना मुश्किल था….

इस बात से थोड़ी राहत मिली कि गौना 3 साल बाद होगा ,बेटा पढ़ाई के लिए दिल्ली जा रहा.. तुलसी को राहत की सांस मिली कि चलो अब तो 3 साल में कुछ ना कुछ तो कर लेगी और जहां एक बार मेडिकल में एडमिशन हो गया तो फिर अपनी वाली तो कर ही लूंगी…

मेडिकल कॉलेज में कुछ नंबरों से दाखिला रह गया… तुलसी ने प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए बहुत हाथ पर मारा लेकिन दादाजी की, सख्त मनाही थी बाहर पढ़ने नहीं जाना है जो कुछ करना है इसी शहर में करो, अंत का तो उसने बीएससी में एडमिशन करा लिया।

बीएससी नर्सिंग डॉक्टर नहीं तो क्या हुआ नर्स ही सही।

अभी पढ़ाई पूरी ही हुई थी तब तक शहनाई की गूंज सुनाई दी गई।

तुलसी को लगा कोई बात नहीं मानवेंद्र मेरे जैसे व्यवहार का है और मैं तो उसे मना ही लूंगी एक बार इस घर से उसे घर जाने तो दो। लेकिन उसे क्या पता था कि स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं.. उसकी पहचान केवल रसोई और संस्कारो तक हीसीमित है..

महेंद्र जी ने तुलसी की शिक्षा की बात सबसे छुपा कर रखी क्योंकि उनका यह कहना था की पढ़ाई का हमारे घर में कोई जरूरत नहीं है  सुविधा है

केवल परिवार देखने वाली एक बहू चाहिए , क्योंकि मानवेंद्र और तुलसी साथ  माध्यमिक कक्षा में एक साथ पढ़ते थे , और दोनों एक दूसरे को पसंद भी करते थे इसीलिए तो इसीलिए बहुत ज्यादा सोच विचार नहीं किया क्योंकि उसे तो उसके सपनों की दुनिया मिल गई थी।

उसने सोचा भी नहीं था कि अब वह कितनी सारी जिम्मेदारियां में बधने वाली है । एक बीमार सास इकलौता बेटा, एक छोटी नंद और दादी बाबा सब की जिम्मेदारी चूल्हा चौकी सब एक साथ।

ससुराल में जाकर उसके सारे सपने टूट गए क्योंकि जिस आजादी का वह सपना देख रही थी दरअसल टिकट की जिंदगी बनकर रह गई सोने की पिंजरे में कैद हो गई चिड़िया ,,, धीरे-धीरे उसके सर से डॉक्टरी का भूत भी उतर गया

क्योंकि परिवार की जिम्मेदारी और रिश्तेदारों का आना-जाना अब तो वह सिर्फ मानवेंद्र की पत्नी ही थी,। कार मोटर सान शौकत सब कुछ तो था , थोड़ी सी चार दिवारी ज्यादा ऊंची थी ,, पता चला कि आपकी मानवेंद्र को पिताजी प्रधानी का चुनाव लड़ाने वाले हैं।

मायके तक ढिंढोरा पीट गया था अचानक से पता चला की सीट महिला कोटा की हो गई है।

अब तो स्थिति बड़ी दयनीय हो गई , महेंद्र प्रधान ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया लेकिन कोई हल नहीं निकला,

प्रधानी पर महिला सीट की घोषणा हुई, अब तो प्रधान जी का सपना टूट गया क्योंकि बेटा तो प्रधान हो नहीं सकता जिस बहू को घर के अंदर कैद रखते थे अपने दकिया नूसी विचार उस पर थोपते , अंत में यही एक रास्ता बचा था बहू को प्रधान बनाया जाए ,,, मानवेंद्र के पिता ने मानवेंद्र से कहा कि बहु को पर्चा दाखिल कर दो वह प्रधान का चुनाव लड़ेंगे सीट तो हमें ही मिलेगी राज हमारा होगा केवल नाम उसका होगा।

दरवाजे की चिपकी  तुलसी सब कुछ सुन रही थी जैसे ही मानवेंद्र उसके कमरे में दाखिल हुआ उसने साफ मना कर दिया कि देखो तुम्हारे खातिर मैंने अपनी पढ़ाई लिखाई सब छोड़ दी अपने सपनों को भुला दिया लेकिन अब फिर से ,, मैं उस दुनिया में नहीं जा सकती क्योंकि मैं पढ़ी-लिखी हूं पर मैं अब कुछ नहीं करना चाहती अब यही मेरी दुनिया है।

वही तो मैं भी कह रहा हूं कि तुम्हें कुछ नहीं करना है सब काम में और बाबूजी करेंगे केवल तुम्हें फार्म भरकर पर्चा दाखिला करना है प्रधानी का सीट मिलते हैं सर काम हम लोग के जिममें रहेगा।शुरू शुरू में तो यह अच्छा लगा।

बड़ी न नूकर के बाद तुलसी ने पर्चा दाखिला करा और जीत हुई , पर्चा दाखिला से लेकर प्रधानी के चुनाव तक कई बार जगह-जगह जनसभा को संबोधित करना था , महेंद्र जी खुद जाकर जनसभा को संबोधित कर रहे थे इस भीड़ में एक आदमी उठकर खड़ा हुआ और बोला कि दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक नहीं चलेगी अब , अनपढ़ बहु को गद्दी पर बिठाओगे ,

जो सभा के बीच बोल भी नहीं सकती , वह क्या प्रधान बनेगी , पोस्ट मास्टर की बहू बी ए पास है वह भी चुनाव में प्रधान प्रत्याशी के लिए खड़ी है और हमारा वोट तो उसी को जाएगा क्योंकि अब इस गांव को अंधकार की नहीं शिक्षा की जरूरत है।

पड़ा , गांव वाले अब तो वह प्रधान जी के घर के हाथों की कठपुतली बन गई थी जो चाहे जैसे।

तुलसी और भारती देवी प्रधान में जबरदस्त की टक्कर थी, तुलसी नहीं चाहती थी कि वह प्रधान बने , साक्षात्कार में बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर भी उसने नहीं दिया क्योंकि भारती देवी ने बताया कि वह महिलाओं के हक में काम करना चाहती है।

इसलिए तुलसी भी चाहती थी कि भारती ही प्रधान बने , महेंद्र सिंह के दबाव से वोट तुलसी को ही मिले ।

एक न एक दिन उसकी शिक्षा की पोल खोलने ही थी , महामारी फैल गई गांव में कोरोना चारों तरफ , एक-एक लोगों की जांच करना लोगों को अस्पताल तक पहुंचाना उनको सुख सुविधा मोहल्ला करना तुलसी ने बहुत काम किया ।

अब महेंद्र सिंह ने अपने अस्त्र डाल दिए वह समझ चुके थे कि हम जी तुलसी को जोर जबरदस्ती से अपने घर में कैद करके रखे हैं दरअसल वह इतनी होनहार है हमारे गांव हमारे देश को ऐसी बेटियों की जरूरत है।

महेंद्र सिंह ने भरी सभा में कहा कि आज से तुलसी हमारी बहु नहीं बेटी है और वह जीतना चाहेगी उतना पड़ेगी।

तुलसी ने अपने प्रधानी पद से इस्तीफा दे दिया और भारती देवी को सर्वसम्मति से प्रधान चुन लिया गया।

अब तुलसी का सफर शुरू हुआ डॉक्टर बनने का।

सरिता सिंह गोरखपुर

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