गाँव में हमारा परिवार रहता था। परिवार में मैं, मेरे माता पिता, ताऊ जी ताई जी, उनका बेटा रोहन और दादा जी। मैं पढ़ाई में बहुत तेज था और रोहन औसत था। रोहन मुझसे 1 क्लास आगे था पर मैं उसका भी होमवर्क करता था। हम दोनो भाई से ज्यादा दोस्त थे।
दादा जी के गुजर जाने के कुछ साल बाद मेरे पिता जी भी गुजर गए। ताऊजी सारी खेती बाड़ी संभालते थे। ग्यारहवी पास करने के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी ओर रोहन बी.एस.सी. एग्रीकल्चर करने पास के शहर में चला गया। मेरे पढ़ाई छोड़ने पर मेरी माता जी बहुत ज्यादा नाराज रहने लगी क्योंकि मैं पढ़ाई में रोहन से तेज था परंतु मेरे ताऊ जी के आगे मजबूर थी।
मेरी माँ को इस बात का बहुत मलाल था कि मैं पढ़ नहीं पाया ओर रोहन ग्रेजुएट हो गया।
दादाजी की इच्छा थी कि हम दोनों भाइयों की शादी एक साथ एक ही घऱ में हो, इससे परिवार बना रहता हैं। ताऊ जी ने काफी प्रयास किया पर ऐसा परिवार मिला नहीं इसलिये दोनों की शादी अलग अलग परिवार में एक साथ कर दी। रोहन शहर से पढ़ कर आया था और उसकी पत्नी भी पढ़ी लिखी थी
पर तेज तर्रार थी। इसलिये उसका मन गाँव में नहीं लग रहा था। कुछ समय बाद ताऊ जी की हार्ट अटेक से मौत हो गई। अब रोहन खेत पर कम जाता और शहरके / बाहरके में सारे काम करता। जब भी शहर जाता अपनी पत्नी को भी ले जाता मैं सारा दिन खेतो में रहता ओर मेरी पत्नी घर संभालती।
फिर रोहन ने नोकरी पकड़ ली और शहर में शिफ्ट हो गया। अपने हिस्से की जमीन आधे में खेती पर मुझे दे दी। अब मैं अकेला ही सारी जमीन पर खेती भी करता और जरूरी सामान लेने शहर भी जाता। शहर जाने पर रोहन से भी मिल आता। रोहन भी कभी कभी आ जाता था। एक दिन मैं शहर गया और काम में रात हो गई।
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मैं रोहन के घर चला गया और माँ को फ़ोन कर दिया कि सवेरे आ जाऊँगा। रोहन के यहाँ ताई जी नहीं दिखी तो मैंने उनके बारे में पूछा। वो बोला मां तीर्थ पर गई है। ये बात मुझे हज़म नहीं हुई। खाना खाने के बाद हम दोनों बाहर टहलने निकले तो मैंने रोहन से पूछा, क्या बात है? रोहन बोला में अपनी पत्नी से परेशान हो गया हूं।
रोज रोज की किच किच, रोज रोज का झगडा, कभी बड़ा घर चाहिये, कभी साड़ी चाहिए, मां के साथ नहीं रहन, वगैरह वगैरहा। आखिर मां को किसके पास छोड़कर आऊ, तंग आकर मैं माँ को वृद आश्रम छोड़ आया, फिर भी चैन से जीने नहीं देती, समझ नहीं आता कि क्या करूँ? मैं बोला, मुझे बताया तो होता, तेरा भाई हू, कोई गैर नहीं, कुछ हल निकल लेते। चलो अंदर चलते हैं, कल बात करेगे।
अगले दिन जब मैं गांव के लिये निकला तो रोहन से बोला, आज शाम को वृद आश्रम आ जाना, ताई जी से मिलकर आते हैं। घऱ आकर मैंने अपनी पत्नि ओर मां से बात की, दोंनो ने कहा ताई जी को गाँव ले आओ। अपनों के बीच रहेंगी तो दिल लगा रहेगा। शाम को मैं अपनी पत्नी को लेकर वृद आश्रम गया,
रोहन इंतजार कर रहा था। मैं बोला, ताई जी हमारे साथ गाँव में रहेगी, सारी फॉर्मेलिटी पूरी कर दो और मैं ताई जी का सामान पैक करने लगा। रोहन ताई जी को लेकर आया ओर हम बाहर आकर बस में बैठ गए। रोहन भी हमारे साथ चल दिया। गांव पहुंच कर ताई जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई पर रोहन काफी गंभीर मुद्रा मैं बैठा रहा। रोहन, आ कर खाना खा लो, चाची ने आवाज लगाई। रोहन ओर मैं दोनों खाने बैठ गए पर रोहन का ध्यान कही ओर था।
अचानक रोहन उठा और फोन करने लगा। फिर फोन पर बोला, मैं माँ को लेकर गाँव आ गया हूँ ओर अब यही रहूँगा। तुम यहाँ आना चाहो तो आ जाना, ओर फ़ोन काट दिया। हम सब रोहन को देख रहे थे, वो बोला, मुझ से बहुत बडी गलती हो गई, मैंने अपनों को छोड़ कर गैरो पर भरोसा किया। मॉ जी, चाची जी मुझे माफ़ कर दो, अब हम सब साथ ही रहेंगे।
अगले दिन मैं फिर काम से शहर गया और शाम को भाभी को लेकर वापस आया। भाभी की आंखों में पशचाताप के आँसू थे।
बेटा पत्नी के दबाव में आकर मां बाप को अलग कर देता है और भूल जाता हैं कि एक दिन वो दोनों भी मॉ बाप बनेंगे ओर बूढ़े भी होंगे, तब??
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्राकृतिक