प्रतीक मैं नौकरी करना चाहती हूं… थाली में गर्म रोटियां रखती हुई नेहा बोली।
नौकरी ऐसे अचानक, पर क्यों मैंने या मम्मी ने कभी किसी चीज के लिए रोका है तुम्हे।
वो बात नही है प्रतीक, मैं अब घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर अपनी एक पहचान बनाना चाहती हूं सुमि भी अब तीन साल की हो गयी है उसके स्कूल में एडमिशन के साथ ही मैं भी अपने लिए एक अच्छी सी नौकरी खोज लुंगी।
नेहा के सपाट स्वर सुनकर प्रतीक ने बहस करना ठीक नही समझा। फिर माहौल को हल्का बनाते हुए बोला- ठीक है भई जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो मैं कौन होता हूँ तुम्हे रोकने वाला, फिर भी मेरी किसी मदद की जरूरत हो, तो बंदा हाजिर है।
अगली सुबह नेहा ने फटाफट सारे घर के काम निपटाए और 10 बजे तैयार होकर चल दी नौकरी ढूंढने।
सारे दिन धूप में घूमने के बाद ये तो समझ आ गया कि बिना अनुभव और जान पहचान के नौकरी इतनी आसानी से मिलने वाली नही है।
कुछ दिन इसी तरह परेशान होने के बाद प्रतीक की मदद से एक प्राइमरी स्कूल से बुलावा आया। स्कूल की बस से आने जाने की बात तय हो गयी। नेहा की तो मुंह मांगी मुराद पूरी हो गयी थी।बेटी का एडमिशन भी अच्छे से स्कूल में कराकर अब वो बहुत खुश थी।
कुछ दिन तो उत्साह और उमंग में बीते, पर बहुत जल्दी नेहा को “दिन में तारे दिखाई देने” लगे। अलसुबह पांच बजे उठकर प्रतीक और बेटी का टिफ़िन तैयार करना, फिर घर के बाकी काम निपटाकर जैसे तैसे तैयार होकर नौ बजे बस स्टॉप पर पहुंचती। शाम को 6 बजे तक घर आती,
तो बेटी अपना स्कूल बैग बिखराये बैठी मिलती। शाम का खाना बनाकर घड़ी पर नजर डालती तो 11 बज चुके होते। अगली सुबह फिर जल्दी उठने की जद्दोजहद में ठीक से सो भी नही पा रही थी नेहा, धीरे धीरे शारीरिक और मानसिक थकान का असर उसके चेहरे पर भी पड़ने लगा।
प्रतीक भी अब पहले की तरह उससे खुलकर कुछ कह नही पाता, पहले हर वीकेंड पर बाप बेटी फरमाइश पर नेहा तरह तरह की डिशेज़ बनाती, फिर शाम को तीनों कंही घूमने जाते, वापिस आते समय आइसक्रीम, गुपचुप खाकर चले आते, पर अब इन छोटे छोटे पलों के लिए भी वक़्त नही मिल पा रहा था।
एक दिन जल्दबाजी में नेहा के हाथ से चाय का बर्तन उलट गया और सारी चाय हाथ पर गिर गयी।
प्रतीक ने ठंडे पानी से हाथ धुलाकर दवा लगाई, फिर किचन साफ कर खिचड़ी बनाई और बेटी को लेकर स्कूल चला गया।
शाम को जब वापिस लौटा तो उसके हाथ मे खाने जे पैकेट्स थे। सबने मिलकर खाना खाया, पर बीच मे एक चुप्पी सी पसरी थी रात तो जब प्रतीक नेहा के हाथ पर दवाई लगा रहा था तो नेहा फफककर रो पड़ी।
मैंने अपनी अच्छी खासी जिंदगी में हलचल मचा ली है, मुझसे नही होती ये नौकरी वौकरी, न बेटी को ठीक से देख पाती हूँ न घर को मुझे वापस से अपनी वही सुकून भरी लाइफ चाहिए। फिर तुम्हारी पहचान का क्या होगा, प्रतीक मुंह लटकाकर बोला
नही बनानी मुझे कोई पहचान, मैं मिसेज प्रतीक बनकर ही संतुष्ट हूं, समझे आप और अब जल्दी से मेरे लिए एक रिजाइन लेटर लिख दीजिए वरना,…
जो हुकुम मेरे आकां कहते हुए प्रतीक ने शरारती नजरों से देखा तो नेहा शरमा गयी।
मोनिका रघुवंशी
स्वरचित व अप्रकाशित
दिन में तारे दिखना