संस्कार के बीज  – पुष्पा जोशी

वसुधा जी ने कहॉ – ‘बेटा नील मुझे बाहर बगीचे में ले चलो। बगीचा क्या था घर के बाहर लान में, शैला ने रंग बिरंगे फूलों की फुलवारी लगा रखी थी, माँ इसे बगीचा कहती थी। रोज शाम को नियम से नील और शैला माँ को बगीचे में ले जाते। नील ने कहॉ – ‘माँ आज मौसम ठंडा है, तेज हवा चल रही है, आज अंदर ही बैठते हैं। मगर बच्चों और बड़ों की जिद एक सी होती है।

८२ वर्षीय वसुधा जी ने जिद पकड़ ली। शैला ने कहॉ – ‘ठीक है मम्मी जी, उसने उन्हें शाल उड़ाई, नील ने उन्हें व्हील चेयर पर बिठाया, और वे तीनों बगीचे में आ गए। नील और शैला नीचे हरी घास पर बैठ गए शैला वसुधा जी के पैरों पर, धीरे-धीरे सरसों के तेल की मालिश करने लगी।

        कई दिनों से वसुधा जी इन्हें कुछ समझाने की कोशिश कर रही थी,या यूं कहें कि आने वाले कल के लिए सशक्त बनाना चाह रही थी। वे सोच रही थी कि उसके जाने के बाद बच्चे कैसे  रहेंगे। उन्होंने  कहा – ‘शैला तूने एक  दिन कहा था ना, कि पौधों से पुराने पत्ते, सुखी टहनियों को हटाते रहने से पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है।’

       ‘हाँ मम्मी जी ! कहा तो था।’ 

    वसुधा जी बोली –  ‘मेरी बात ध्यान से सुनो, तू सही कह रही थी। अब इस गुड़हल के पौधे को ही  देख कितनी कलियाँ खिली है, अब यह अपनी सारी शक्ति इसे पल्लवित और पुष्पित करने में लगाएगा। वे कुछ रुक कर बोली…. ‘बेटा यह जीवन का क्रम है।आज ये पत्ते हरे दिख रहे हैं, कल ये पीले पड़ जाऐंगे।’ तभी एक पत्ता टूट कर मिट्टी में गिरा। वह बोली – ‘देखो अभी यह पत्ता टूट कर गिरा है, पर क्या इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा ? यह खाद बन कर पौधे को पोषण देगा । बेटा ! मैंने अपने संस्कारों को तुम्हारे अंदर रोंपा है,सींचा है, वे हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे।’ तभी पम्मी और राजू दौड़ते हुए आए और दादी से लिपट गए, वे बाहर से खेल कर आए थे। वसुधा ने उनके सिर पर हाथ फेरा और प्यार किया, फिर नील और शैला से बोली- ‘ये नन्हे – नन्हे फूल है, इनमें अच्छे संस्कार के बीज डालना. उन्हें पल्लवित और पुष्पित करने में बच्चों की मदद करना, इन्हें जीवन के सही रंगों का ज्ञान देना, तभी तो मेरी  बगिया ऐसे ही हँसेगी,  खिल खिलाएगी।’ कहते – कहते वसुधा जी थक गई। नील और शैला उन्हें घर के अंदर ले गए। सब ने साथ में खाना खाया वसुधा जी ने दवा ली और सब सो गए।

सुबह वे दोनों माँ को प्रणाम करने आए, तो देखा माँ के शरीर में कोई हरकत नहीं थी, उन्होंने आवाज दी,मगर  आवाज कहाँ से आती, माँ उन्हें छोड़कर जा चुकी थी। वसुधा जी के चेहरे पर मुस्कान थी, और आँखें चमक रही थी।

               कुछ देर बाद फुलवारी में, कल जहाँ व्हील चेयर पर वसुधा जी बैठी थी,वहाँ उनका पार्थिव शरीर रखा हुआ था। नील और शैला के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वे कभी उस पत्ते को देख रहे थे,जो कल ही गिरा था, उस पर मिट्टी की परत चढ़ गई थी, और कभी माँ को। सोच रहे थे माँ ने इतनी गूढ़ बात कितनी आसानी से समझा दी।

         दोनों ने पूरी श्रद्धा भाव से उनके अंतिम संस्कार की सारी विधि की, और यह प्रतिज्ञा ली, कि वे उन संस्कारों जो उन्हें माँ से मिले हैं, पम्मी और राजू को देंगे ताकि माँ की ये  बगियाँ हमेशा फलती – फूलती रहै।

 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक

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