संकीर्ण मनोवृत्ति का ज़हर

मिश्रा जी का परिवार तीन पीढ़ियों के इर्द-गिर्द घूमता, रिश्तों की बारीकियों को समझता हुआ एक सामान्य परिवार था। जिसमें सब कुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा आम तौर पर होता है। लड़ना-झगड़ना, प्यार सब कुछ था। सास-बहू के बीच तकरार भी वैसी ही थी जैसी अधिकांश परिवारों में रोजमर्रा की जिंदगी में होती रहती है। इस परिवार में लाजवंती के साथ उनका बेटा राम स्वरूप और बहू लक्ष्मी रहते थे। उनके पति धर्म पाल मिश्रा की कुछ वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी थी। लाजवंती के अपनी बहू लक्ष्मी के साथ बहुत ही प्यार भरे संबंध थे। यदि उनके बीच यदा-कदा नोक-झोंक हो भी तो वह प्यार से ही सुलझ जाती थी।

 इसके अलावा लाजवंती के परिवार में उनका पोता प्रमोद और उसकी पत्नी रमा भी रहते थे। जिस समय प्रमोद का विवाह हुआ, घर में लक्ष्मी का स्थान काफी महत्वपूर्ण हो गया। अब वह बहू से सासू माँ बन चुकी थी। आने वाली नई बहू के लिए उनके मन में प्यार और बहुत सारे अरमान थे। अपने अरमानों को संग लेकर उन्होंने प्रमोद का विवाह किया था किंतु उनके अरमान वहीं धरे के धरे रह गए जहां थे। उन्होंने तो पूरी जिंदगी अपनी सासू माँ की बहुत सेवा की थी। बस वैसा ही वह अपने लिए भी चाहती थीं। लेकिन इंसान की हर इच्छा पूरी हो, ऐसा जरूरी नहीं होता। 

नई बहू रमा जब आई तो वह अपने साथ नाज़ो-नखरे के अलावा अपना अहं और अलग रहने की अभिलाषा भी लेकर आई। उसने आते ही अपनी अभिलाषा पूरी करने के पैतरे भी आजमाना शुरू कर दिए। जहां पहले घर में शांति का माहौल रहता था, वहीं अब धीरे-धीरे शांति की विदाई होती नजर आ रही थी। बदतमीजी और स्वार्थ इन दिनों मिश्रा जी के परिवार के खास मेहमान बन चुके थे। रमा आए दिन अपनी सास लक्ष्मी की उपेक्षा करती रहती थी। उनका अपमान करना तो मानो वह अपना अधिकार समझती थी। 

लक्ष्मी बहुत ही समझदार महिला थीं। उन्हें लगता था कि रमा अभी-अभी नए माहौल में आई है, धीरे-धीरे सब सीख जाएगी किंतु वैसा होने की उम्मीद कम ही थी। रोज सुबह आराम से उठना, रसोई में बिना स्नान किए आ जाना, उसके लिए एकदम सामान्य बात थी। जबकि लक्ष्मी के परिवार में पूजा-पाठ का बड़ा ही महत्व था। रमा के ऐसे व्यवहार को लक्ष्मी नजरअंदाज कर दिया करती थीं। 

रमा को अपने सास-ससुर बिल्कुल पसंद नहीं थे। इसलिए वह आए दिन कुछ न कुछ हंगामा करने की योजना बनाती ही रहती थी। 

एक दिन राम स्वरूप ने उससे कहा, “रमा बिटिया, जरा एक गिलास पानी तो पिला दे?” 

रमा ने तुनक कर कहा, “अरे क्या पापा जी, आप पानी तो खुद भी लेकर पी सकते हैं। आपको अपना काम खुद करना चाहिए।” 

लक्ष्मी ने जब देखा कि उसके पति को रमा ने इस तरह का जवाब दिया तो उनके धैर्य का बांध टूट गया। उन्होंने कहा, “रमा, तुम्हें शर्म आनी चाहिए अपने ससुर से इस तरह बात करते हुए। क्या तुम उन्हें एक गिलास पानी तक नहीं पिला सकतीं? कम से कम रिश्ते की इतनी मर्यादा तो रखो, उनकी उम्र का तो ख्याल कर लेती। क्या तुम अपने पिताजी के साथ ऐसा ही व्यवहार करती हो?” 

रमा ने तुरंत पलट कर जवाब दिया, “देखो मम्मी जी, मुझे भाषणों से सख्त नफरत है। आप अपने लेक्चर अपने ही पास रखें तो अच्छा होगा।” 

लक्ष्मी इस समय रमा के तेवर देखकर शांत हो गईं। उन्हें लगा कि यदि रमा से बहस करेंगी तो अपमान ही मिलेगा। इसी तरह जब भी मौका मिलता, रमा अपनी मनमानी करती। वह कई बार शाम के वक्त अपनी सहेलियों को घर पर बुलाकर पार्टी करती। इस पार्टी में बाहर से नॉन-वेज के साथ ड्रिंक भी होती। यह सब मिश्रा परिवार के संस्कार नहीं थे। लक्ष्मी को पार्टी से समस्या नहीं थी, लेकिन इस तरह की पार्टी से समस्या थी जो रमा करती थी।

 रमा अपने पति प्रमोद के आने तक सभी सहेलियों को वापस भी भेज देती ताकि प्रमोद को पार्टी का पता न चल सके। प्रमोद अपने ऑफिस से रात 9:30 बजे तक ही वापस आ पाता था। लक्ष्मी कई बार सोचती भी कि प्रमोद को सब कुछ बता दे। लेकिन पति-पत्नी के बीच कलह करवाना उनके उसूलों के खिलाफ था। इसलिए वह अक्सर खून का घूंट पीकर रह जाती थीं। रमा ड्रिंक्स भी ज्यादा नहीं लेती ताकि प्रमोद को पता न चल पाए। उसकी इस तरह की हरकतों से राम स्वरूप और लक्ष्मी बहुत परेशान हो चुके थे। 

एक दिन तो रमा ने हद ही कर दी। उसने अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया था। दोपहर को उसने अपनी एक सहेली को फोन करके कहा, “रूपल, तू आएगी तो एक पैकेट सिगरेट का लेती आना।” 

रूपल ने दंग होते हुए उससे पूछा, “सिगरेट…? ये तू क्या कह रही है रमा? हम लोग थोड़ी बहुत ड्रिंक ले लेते हैं किंतु सिगरेट को तो हमने आज तक हाथ भी नहीं लगाया है।” 

“अरे रूपल, तू लेकर तो आ।” 

“ठीक है, तू कहती है तो मैं ले आऊंगी, पर प्लीज तू मुझे पीने के लिए मत कहना।” 

“हाँ-हाँ, नहीं कहूंगी।” 

यह बात लाजवंती जी ने सुन ली और आज उन्होंने पक्का मन बना लिया कि अब पानी सिर के ऊपर निकल चुका है। आज प्रमोद के आते ही वह उसे सब कुछ बता देंगी। उनकी प्यारी बहू लक्ष्मी का रोज होता अपमान देखकर वह थक चुकी थीं। रमा की सहेलियों को दो-तीन बार में ही यह पता चल गया था कि रमा का व्यवहार उसके सास-ससुर के साथ बहुत खराब है। रमा का इस तरह का व्यवहार देखकर उन्हें दुख भी होने लगा था। 

रूपल ने तो लक्ष्मी को एक बार अकेले में अपने आंसू पोछते हुए भी देख लिया था। तब से उसका मन बहुत विचलित था। वह एक अच्छे परिवार की लड़की थी। वह समझती थी कि कभी-कभी छोटी-मोटी पार्टी करने में कोई बुराई नहीं है, पर अपने से बड़ों के साथ इस तरह का व्यवहार करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। 

आज शाम को पार्टी में जब रमा की सहेलियां निशा और मधु आईं, तब रूपल के हाथ में सिगरेट का पैकेट देखकर आश्चर्यचकित रह गईं। 

मधु ने आते ही रूपल से पूछा, “रूपल, ये क्या सिगरेट का पैकेट? तू ये क्यों लाई है?” 

रूपल ने इशारा करते हुए कहा, “रमा ने मंगवाई है, मैं खुद से नहीं लाई।” 

मधु ने कहा, “रमा, यह सब क्या है? सिगरेट…? हम थोड़ी बहुत ड्रिंक ले लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हम सिगरेट भी…?” 

“अरे-अरे मधु, निशा, तुम लोग व्यर्थ में डर रही हो। यह मैंने इसलिए नहीं मंगवाई है, देखना अभी मैं क्या करती हूं।”

उसकी तीनों सहेलियां एक-दूसरे की तरफ देखकर मुंह बना रही थीं कि रमा पता नहीं क्या करने वाली है। इसके बाद उनकी पार्टी शुरू हो गई। हंसना, बोलना, मजाक, मस्ती सब चल रहा था। तभी बाहर से रमा के ससुर आए। उनके आने की आहट सुनते ही रमा ने सिगरेट सुलगा ली। वह बरामदे में जूते उतारकर जैसे ही ड्राइंग रूम में आई, रमा ने सिगरेट का कश लिया और धुआं छोड़ने लगी।  

राम स्वरूप उसका यह रूप देखकर अचरज में खड़े के खड़े रह गए। उसकी तीनों सहेलियां भी यह दृश्य देखकर उठकर खड़ी हो गईं और गुस्से से रमा की तरफ देखने लगीं। तब तक लक्ष्मी भी उस कमरे में आ गईं। यहां का नजारा देखकर मानो उन्हें ही शर्म आ गई। उन्होंने तुरंत राम स्वरूप का हाथ पकड़ा और उन्हें अंदर लेकर चली गईं।  

आज ऑफिस में रमा के पति प्रमोद का सिर दर्द कर रहा था। इसलिए वह ऑफिस से जल्दी 6 बजे ही घर वापस आ गया। जब वह दरवाजे के बाहर जूते उतार रहा था, उसे कमरे से जोर-जोर से बोलने की आवाजें सुनाई दीं। प्रमोद ने दरवाजे के पीछे खड़े होकर कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो उसे मालूम पड़ा कि रमा की तीनों सहेलियां गुस्से में उसके ऊपर चिल्ला रही थीं।  

रूपल ने कहा, “रमा, मुझे शर्म आती है तुझे अपनी सहेली कहने में और आज तो मुझे खुद पर शर्म आ रही है कि तुझ जैसी को मैंने अपना दोस्त कैसे बना लिया?”  

मधु ने कहा, “बिल्कुल, जिसे रिश्तों की मर्यादा का जरा भी एहसास न हो, उससे तो दूरी बनाकर रखने में ही हम सबकी भलाई है।”  

निशा ने कहा, “मैं तो पहली बार से ही महसूस कर रही हूं कि रमा का व्यवहार उसके सास-ससुर के साथ बहुत खराब है।”  

रूपल ने कहा, “हां, निशा, तू बिल्कुल ठीक कह रही है। रमा तो दोस्त बनाने के काबिल है ही नहीं।”  

मधु ने पूछा, “अरे, क्या प्रमोद को यह सब नहीं मालूम होगा?”  

रूपल ने कहा, “शायद नहीं, क्योंकि कोई भी बेटा इस तरह अपने माता-पिता का अपमान होते नहीं देख सकता। आंटी तो बहुत अच्छी हैं, उन्होंने कभी इसकी शिकायत की ही नहीं होगी।”  

मधु ने कहा, “शक तो मुझे भी था कि रमा का उसके सास-ससुर के साथ व्यवहार ठीक नहीं है। लेकिन आज तो इसने हद ही कर दी। अंकल के सामने जानबूझकर सिगरेट का धुआं छोड़ा।”  

रूपल ने कहा, “मुझे नहीं मालूम था सिगरेट मंगाने के पीछे रमा की इतनी घटिया मंशा थी।”  

रमा के नजदीक आकर उसने कहा, “रमा, हम सब जा रहे हैं और इसके बाद अब कभी तेरे घर नहीं आएंगे। तू इतनी घटिया इंसान है, अगर हमें मालूम होता तो हम तुझसे दोस्ती ही नहीं करते। लेकिन जाने से पहले हम अंकल-आंटी से माफी ज़रूर मांगेंगे, क्योंकि तूने तो हम सभी को इस पाप का भागीदार बना दिया है।”  

रमा इस समय सबका व्यवहार देखकर दंग थी। उसे आश्चर्य हो रहा था कि यह सब क्या हो गया। उसकी हम उम्र सहेलियां ऐसा कैसे कर सकती हैं? फिर उसने अपना मुंह खोला और कहा, “जाना है तो जाओ, परंतु यह तो तुम्हें तब पता चलेगा जब तुम्हें भी सास-ससुर के साथ रहना पड़ेगा।” 

 रूपल ने कहा, “नहीं, रमा, यह तेरी गलतफहमी है। सास-ससुर कोई हमारे दुश्मन नहीं होते। वे हमारे पति के माता-पिता होते हैं। उनका इस तरह अनादर करना तो हम सोच भी नहीं सकते। मेरी भी शादी होने वाली है और मेरे होने वाले पति अपने माता-पिता के साथ ही रहते हैं। मैं भी उन सबके साथ रहूंगी। अरे, परिवार में ऊंच-नीच हो जाती है या यूं कहो होती रहती है। वह तो हमारे जीवन का हिस्सा है। लेकिन बिना किसी वजह के सास-ससुर से दूरी बनाना या उसके लिए अपना व्यवहार इस हद तक खराब कर लेना और रिश्तों की मर्यादा को ताक पर रख देना, हमने नहीं सीखा।”  

बाहर खड़ा प्रमोद स्तब्ध था, मानो उसे सांप सूंघ गया हो। घर में इन पांच महीनों में कितना कुछ घट गया और उसे पता तक नहीं चला। माँ ने कभी कुछ नहीं बताया, कभी रमा के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला।  

गुस्से में तमतमाता चेहरा लेकर प्रमोद अंदर आया और बिना कुछ पूछे, बिना कुछ कहे रमा के गाल पर एक तमाचा लगाते हुए बोला, “तो यह है तेरी असलियत। अरे, मुझे तो आज तक यही लगता रहा कि मेरी पत्नी मेरे माता-पिता का अच्छी तरह ख्याल रख रही है क्योंकि माँ ने कभी भी तेरे खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला और तू…? रमा, तू यहां से चली जा, इस समय मेरा दिमाग ठीक नहीं है। मैं कुछ कर बैठूंगा।”  

रूपल, निशा और मधु यह सब देखते हुए चुपचाप खड़े थे।  

तभी रूपल ने कहा, “चलो, अंकल-आंटी को सॉरी कहकर जाते हैं।”  

जैसे ही वे तीनों अंदर कमरे में गईं, तो देखकर एकदम दंग रह गईं कि उन दोनों की आंखों में आंसू थे।  

लक्ष्मी कह रही थीं, “छोड़ो ना राम, यह आजकल के बच्चे हैं।”  

तभी उनकी नजर सामने खड़ी तीनों लड़कियों पर पड़ी, तो वह सकुचा गईं। वे तीनों हाथ जोड़कर लक्ष्मी और राम स्वरूप के सामने खड़ी हो गईं।  

तीनों ने एक साथ कहा, “अंकल-आंटी, हमें माफ कर दीजिए।”  

लक्ष्मी उन्हें कुछ जवाब देती, उससे पहले रूपल ने कहा, “आंटी, हमें नहीं मालूम था कि रमा आप लोगों को परेशान करने के लिए पार्टी करती है। हमें आज इस सच्चाई का पता चल गया है। अब से हम यहां कभी नहीं आएंगे। बस जाते-जाते आपसे माफी मांगने आए हैं।”  

लक्ष्मी ने कहा, “कोई बात नहीं बेटा, इसमें आप लोगों की कोई गलती नहीं है।”  

उसके बाद वे तीनों बाहर निकल गईं। जाते-जाते रमा को देखकर उन्होंने दूसरी तरफ मुंह फेर दिया।  

यह सब रात होने से पहले ही घट गया, तो लाजवंती जी को तो मुंह खोलना ही नहीं पड़ा। वह जो चाहती थीं, वो तो हो ही रहा था।  

उसके बाद प्रमोद अंदर कमरे में आया। अपने पापा और माँ को देखकर उनके आंसू पोछे और कहा, “पापा, मां, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। आप लोगों ने मुझे कुछ बताया क्यों नहीं?”  

लक्ष्मी कुछ बोलती, उससे पहले प्रमोद ने फिर कहा, “मैं रमा को उसके मायके भेज रहा हूं। ऐसी बदतमीज पत्नी की मुझे जरूरत नहीं है, जिसे अपनी मान-मर्यादा का जरा भी ध्यान न हो।”  

लक्ष्मी ने कहा, “नहीं बेटा, ऐसा मत करना। तुम्हारे साथ तो उसका व्यवहार अच्छा है, न फिर तुम क्यों?”  

“नहीं माँ, रिश्ता सिर्फ पति से नहीं, पूरे परिवार से जुड़ता है और उसे तो पति के अलावा और कोई चाहिए ही नहीं। लेकिन मुझे मेरा पूरा परिवार चाहिए। उसके घर से वह इतने बुरे संस्कार लेकर आएगी, ऐसा तो मैंने कभी नहीं सोचा था।”  

रमा कमरे में चल रही यह सब बातें सुन रही थी।  

लक्ष्मी ने फिर कहा, “प्रमोद बेटा, रिश्ते ऐसे नहीं तोड़े जाते। वह तुम्हारी धर्म पत्नी है, उसे माफ कर दो। उसे यदि केवल तुम्हारे साथ ही घर बसाना है, तो ठीक है, हम एक-दूसरे से मिलने आते-जाते रहेंगे।”  

प्रमोद ने कहा, “नहीं माँ, उसकी गलत बात मानना मेरे उसूलों और कर्तव्यों के खिलाफ है। उसने अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति का ज़हर हमारे घर में फैलाया है। माँ, आप किस मिट्टी की बनी हो, जो इतना सब कुछ सहने के बाद भी उसी के पक्ष में बात कर रही हो?”  

लक्ष्मी ने कहा, “प्रमोद बेटा, मान जा, रमा नासमझ है, बस एक बार उसे माफ कर दे।”  

रमा अपने सास-ससुर का आज भी ऐसा व्यवहार देखकर दुखी हो रही थी। अब उसे अपने किए का पश्चाताप भी हो रहा था। वह हिम्मत करके कमरे में आई और आते ही हाथ जोड़कर खड़ी हो गई।  

उसने कहा, “पापा, माँ, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने सच में बहुत कुछ गलत किया है। मैं शर्मिंदा हूं, पापा, बस मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगता था कि मुझे आप दोनों से दूर होना है। जबकि आप दोनों ने तो कभी भी मेरे साथ कोई खराब व्यवहार किया ही नहीं।”  

लक्ष्मी ने कहा, “कोई बात नहीं बेटा। यदि तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है, तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है?”  

रमा ने प्रमोद की तरफ देखकर कहा, “प्रमोद, वह मेरी गलत सोच थी कि मुझे केवल तुम्हारे साथ रहकर अपना घर बसाना है। बस यही सोच मेरे अंदर समाई हुई थी। इसीलिए मैं यह सब कुछ कर बैठी। मैं वादा करती हूं कि मैं जो गलती कर चुकी हूं, अब उसका पश्चाताप करूंगी। प्रमोद, प्लीज बोलो ना? क्या तुम मुझे माफ कर सकोगे?”  

प्रमोद ने मुंह फेर लिया और कहा, “रमा, मैं यह कड़वा सच कैसे भूल पाऊंगा? तुमने उन रिश्तों का अपमान किया है जिनकी मैं पूजा करता हूं। तुम जब भी मेरे सामने होगी, शायद मुझे तुम्हारा वही रूप याद आएगा।”  

राम स्वरूप ने कहा, “प्रमोद बेटा, ऐसा मत कह, माफ कर दे उसे।”  

प्रमोद ने अपने पापा के सीने से लगकर कहा, “पापा, कितना बड़ा दिल है आप दोनों का। ठीक है, लेकिन मुझे यह सब भूलने में कुछ समय लगेगा। आप दोनों कह रहे हैं, तो मैं यह कोशिश जरूर करूंगा। तब तक, रमा, तुम कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाओ। उसके बाद जब वापस आना, तो एक नए रूप में आना, जिसमें रिश्तों के लिए प्यार हो, मान-सम्मान हो और साथ ही मर्यादा भी हो।”

रत्ना पांडेवडोदरा (गुजरात)

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