संदेह – विजय कुमार शर्मा   : Moral Stories in Hindi

 दिनेश मुंबई में रह कर सी.ए. की पढ़ाई कर रहा था।आज बहुत समय बाद वह घर जा रहा था।

दिनेश ने घर में घुसते ही अपना बेग सोफ़े पर पटका और ग़ुस्से में दनदनाता सीधा माँ के कमरे में पहुँच गया।

माँ शांति से आँखें मूँदे माला जप रही थी,उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।आहट सुन आँखें खोल माँ ने भाव विभोर होते हुए कहा “आ गया मेरा लाड़ला”।

वो भड़कते हुए बोला “इस बार फिर आपने मुझे नहीं बुलाया और सुरेश भैया,परिवार जन और मित्रों के साथ आपने शादी की पच्चीसवीं सालगिरह भी मनाई ।

आप और पिताजी ,भैया को मुझसे ज़्यादा चाहते हैं आपकी ज़ुबान पर रात दिन भैया का नाम रहता है.

मेरे स्थानीय दोस्तों ने मुझे फोन करके काफ़ी ताने मारे कि तु सौतेला है यह सगा,जो तुझे घरेलू कार्यक्रम में ही नहीं बुलाया ।

वे मुझे रामायण के भरत कैकेयी संवाद का दोहा सुना कर चिढ़ा रहे थे “भरत से सुत पर भी संदेह बुलाया तक न उसे जो गेह!

“। यह कहते हुए दिनेश ने अपनी दिल की सारी कड़वाहट माँ के सामने उड़ेल दी। बेचारी माँ तो हतप्रभ रह गई

और कमरे के बाहर दरवाज़े के पीछे खड़े सुरेश का तो हैरानी के मारे बुरा हाल था

कि छोटा भाई दिनेश अपने मन में कितनी कड़वाहट और गलतफहमियाँ पाले हुए हैं. माँ उसे समझाने की काफ़ी कोशिश कर रही थी।

माहौल अत्यंत तनावपूर्ण हो चला था।कुछ समय बाद पिताजी भी दफ़्तर से आ गए थे।सुरेश का उतरा हुआ चेहरा और कमरे के माहौल को देखकर उन्हें अंदेशा तो हो गया था

कि अभी अभी कुछ गर्मागर्म बहस हुई है,। उन्होंने शांत भाव से दिनेश को अपने पास बैठा कर औपचारिक बातचीत करते हुए उससे उसके हालचाल पूछे।

उसके स्वर में तल्ख़ी महसूस कर उन्होंने,उससे पूछा “कोई समस्या है क्या “? 

दिनेश ने उन्हें भी उलाहना देते हुए अपनी सारी शिकायत जो माँ से कर रहा था दोहरा दी.पिताजी ने उसकी पीठ को प्यार से सहलाते हुए

उसे समझाया “ देखो दिनेश हर माता पिता को अपने बच्चे जान से प्यारे होते है,चाहे वो रावण हो या राम। जिस तरह हमे अपनी दोनों आँखें प्यारी होती है

वैसे ही दोनों बच्चों को समान प्यार करते है,रहा सवाल तुम्हें बुलाने का तो दिनेश तुम्हारी सी.ए की पढ़ाई इन छोटे मोटे पारिवारिक समारोहों से बहुत प्रभावित हो सकती थी ,

तुम्हारे उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखते हुए मैंने ही सुरेश और तुम्हारी माँ को मना किया था कि उसे बार बार डिस्टर्ब करना ठीक नहीं है,

बच्चों के भविष्य के आगे माता पिता की हज़ार खुशियाँ कुरबान होती है ।हर समारोह में हम सब तुम्हें याद करते रहे हैं

और तुम्हारी माँ तो हर कार्यक्रम में ख़ुश होने से पहले तुम्हें याद करके रोती है।सुरेश ने तो मुझे कई बार कहा था

“थोड़े से समय के लिए ही सही छोटे को बुला लेते हैं “,पर मुंबई से कानपुर की दूरी को देखते हुए मैंने ही स्पष्ट इनकार कर दिया था

क्योंकि बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छोटी छोटी खुशियों को कुरबान करना पड़ता है।उम्मीद करता हूँ मेरी बात को तुम समझ गए होंगे”।

 नहीं बुलाने के यह सब कारण सुन दिनेश बहुत शर्मिंदा हुआ ।उसके मन की कड़वाहट ख़त्म हो गई थी

उसने माँ पिताजी और भैया से माफ़ी माँगते हुए कहा”मुझे दोस्तों की बातों से ग़लत फ़हमी हो गई थी मुझे क्षमा कर दें।

 अब घर में खुशी का वातावरण हो गया था। 

 विजय कुमार शर्मा 

 कोटा राजस्थान

#कड़वाहट 

 

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