सम्मान की रोटी – मधु वशिष्ठ  : Moral Stories in Hindi

जब से शीला जी के बेटे रवि ने बताया कि अब हम दिल्ली चलेंगे तो वह अपनी पुरानी यादों में खो गई। शीला जी दिल्ली के बड़े से चौधरी परिवार की बहू और उससे भी बड़े चौधरी परिवार की सबसे छोटी बेटी थी।  परिस्थितियों और सम्मान की सूखी रोटी की चाहत ने उन्हें उड़ीसा में ला पटका था। मायके के परिवार में चार भाई और तीन बहने थी।

शीला के ससुराल मे रजत चौधरी और उनकी बहन निशा थी जिसका विवाह दिल्ली में ही हुआ था। अमीर परिवार का इकलौता लाडला रजत केवल आवारागर्दी के कुछ भी नहीं करता था। शाही शौकों के कारण उसके बहुत से आवारा दोस्त बने हुए थे। इसी फिक्र में ही रजत के विवाह के दूसरे ही साल हार्ट अटैक होने से उनकी मृत्यु  हो गई थी।

पिता की मृत्यु के बाद तो रजत चौधरी पैसे को पानी की तरह बहाने लगा था। गुंडागर्दी करते हुए कभी थाना कचहरी हो जाता तो पैसा और भी पानी की तरह बहता। वह उसके मायके में भी चारों भाइयों एवं बहनों से उधार ले चुका था। 

      समय के साथ शीला भी दो बेटों रवि और मयंक की मां बन चुकी थी। सासू मां भी रजत की हरकतों से बहुत परेशान थी उन्होंने संपत्ति का बंटवारा करके आधी संपत्ति बहन निशा को दे दी। कुछ समय बाद सासूजी की मृत्यु हो गई थी। रजत धीरे-धीरे घर का सब कुछ बेचने लगा था।  

 मुझे अधिकार आता है लेना – डॉ बीना कुण्डलिया  : Moral Stories in Hindi

      मायके में भी अब माता-पिता की निर्भरता  पूर्णतया भाइयों और भाभी पर हो गई थी। उसके मायके के इतने बड़े घर के भी टुकड़े होकर चार हिस्सों में बंट चुके था।  रजत से उसके घर के सब लोग बहुत चिढ़ते थे।

   मायके में भाभी भाभियों के डाइनिंग टेबल पर सजे हुए व्यंजन देखकर रवि और मयंक ललचाते तो थे। भाभियों ने अपने बच्चों के साथ शीला के बच्चों के खेलने की बिल्कुल मनाही कर दी थी।

       वह वापस अपने घर आई तो पाया रजत वह घर भी बेच चुका था और उस पर कोई पुलिस केस भी चल रहा था जिससे बचने का एकमात्र रास्ता यही था कि वह उड़ीसा चला जाए।

शीला और रजत दोनों बच्चों को लेकर उड़ीसा चले गए।  वहां एक कंपनी में काम मिल गया था। कुछ समय तो वह सही रहा परंतु बाद में वहां भी उसका यही हाल हो गया था ।रवि सात साल का हो गया था।  कुछ समय तक तो मोबाइल पर बहनों का फोन आता था परंतु धीरे-धीरे वह भी आना कम हो गया था। 

         शीला की  मां तो सब कुछ भूलने लगी थी। पिता पैरों से लाचार हो चुके थे। वहां उसकी फिक्र और उसे याद कौन करता? 2 महीने से रजत घर ही नहीं आया था।  पड़ोस वाली चाची एक्सपोर्ट कंपनी में काम करती थी जो कि कपड़ों में काज बटन और तुरपाई करने के एवज में शीला कुछ पैसे दे दिया करती थी।

इस तरह से ही चार पैसे कमा कर शीला घर का गुजारा चल रही थी। मायके में पिता के मरने और मां की तबीयत खराब की सूचना तो बड़ी दीदी ने दी थी परंतु वह जाती कैसे ? रवि तो सरकारी स्कूल में जाने लगा था।

 सम्मान की सूखी रोटी  : Moral Stories in Hindi

मयंक एक दिन बाहर खेल रहा था कि एक गाड़ी से टकराकर उसकी भी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी। शीला बेहद अकेली रह गई थी रजत का फोन भी नहीं मिल रहा था। एक्सपोर्ट कंपनी की मालकिन की कृपा से ही किसी तरह से शीला के छोटे बेटे मयंक का क्रियाकर्म हुआ।

     रजत किसी केस के सिलसिले में जेल में था। एक्सपोर्ट कंपनी की मालकिन ने शीला के काम को देखते हुए अपनी कंपनी में ही उसे रहने की जगह और काम दे दिया था जहां कि वह लग्न से काम में ही लगी रहती थी। रजत अगर वहां कभी आता भी था तो वहां की चौकीदार और सिक्योरिटी के कारण शीला और रवि को कुछ कह नहीं पाता था। 

        मां की मृत्यु का समाचार सुना तो वह रवि को लेकर जब अपने मायके में गई तो वहां किसी की भी आंखें उसका स्वागत करने को तैयार नहीं थी। सब भाई उससे कटते  हुए ही घूम रहे थे कि कहीं अब उन्हें इन दोनों की जिम्मेदारी न संभालनी पड़े। इन 13 दिनों में ही अपमान की पराकाष्ठा क्या होती है यह शीला ने देख लिया था।

बड़ी जीजी जो अपनी सासू मां के साथ शोक मनाने आई थी उन्होंने जब शीला को अपने घर आने के लिए कहा तो जीजी कीकी सास ने जीजी से बोला अब मेरा बेटा क्या तेरे साथ इन्हें भी पालेगा?

मंझले जीजा जी की तो सहानुभूति ही खत्म नहीं हो रही थी। समझ नहीं आ रहा था वह मां के लिए शोक मनाने आए थे या कि शीला की दुर्दशा और अकेलेपन का। छोटे जीजा जी का तो उनके परिवार से तभी से बोलना बंद था जब से कि रजत ने उनसे पैसे ठगे थे। 

      बिना कोई कसूरवार हुए वह किस कसूर की सजा पा रही थी उसे नहीं पता। एक अमीर परिवार की बहू और बेटी इतनी गरीब कैसे हो सकती है उसे क्या पता? वह 13 दिन हर पल उसने अपमान का घूंट पिया और फिर अपनी सम्मान की रोटी की खातिर वह वापस उड़ीसा चली आई। कितने सालों से तो दिल्ली में उसकी किसी से बात ही नहीं हुई। 

        रजत में कोई सुधार की गुंजाइश तो थी नहीं परंतु फिर भी कभी कभी वह शीला से पैसे मांगने आ जाता था। सबके डर से अब वह फैक्ट्री में कोई उत्पात तो नहीं मचा पाता था। 

        शीला ने रवि की पढ़ाई में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। रवि पढ़ने में होशियार था और दसवीं क्लास के बाद से ही वह ट्यूशन पढ़ाने का काम करने लगा था। बीकॉम करने के बाद रवि उड़ीसा में काम करते हुए भी सरकारी पेपर की तैयारी कर रहा था और घर का खर्चा तो रवि ही उठता था।अब शीला जी के पास पैसों की कमी तो नहीं  थी। रवि भी सारे पैसे शीला जी के ही हाथ में रखता था।आज उसने अपना दिल्ली में ऑफिसर बनने का नियुक्ति पत्र शीला जी को दिखाया  और उन्हें दिल्ली चलने के लिए कहा। वह बोला आप सम्मान की रोटी खाने के लिए उड़ीसा आई थी ना? अब सम्मान से रोटी

खाने के लिए चलो हम वापस दिल्ली चलते हैं। शीला जी पुरानी यादों में खोई हुई दिल्ली जाने की तैयारी करने लगी और बेटे के सरकारी अफसर होने की मन ही मन परमात्मा को धन्यवाद करते हुए खुशी मना रही थी।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा

सम्मान की सूखी रोटी प्रतियोगिता के अंतर्गत

Leave a Comment

error: Content is protected !!