समय की मार – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  ” माँ, मैं चलती हूँ…।” कहते हुए नीता ने कंधे पर अपना हैंडबैग टाँगा और बाहर निकल गई।विमला जी उसे जाते हुए देख रहीं थीं तभी उन्होंने देखा कि मोहल्ले के कुछ लड़के नीता को देखकर गाना गाने लगे,” ओ नीले दुपट्टे वाली..अपना नाम तो बता..।” उनका जी तो किया कि अभी जाकर उन

लड़कों के गाल पर तमाचा जड़ दे लेकिन अब वो पहले वाली विमला जी तो रहीं नहीं..।दरवाजा बंद करके वो मेज पर रखी अपने पति की तस्वीर को देखने लगी और बोलीं,” आप मुझसे कहते रहे कि # वक्त से डरो लेकिन मैंने नहीं सुनी और आज…।

       कभी हँसता-खेलता परिवार था विमला जी का।पति द्वारिका प्रसाद समय पर दफ़्तर जाते और महीने की पहली तारीख को तनख्वाह लाकर उनकी हथेली पर रख देते थे।बेटा प्रशांत और बेटी नीता देखने में जितने सुंदर थे, पढ़ाई में उतने ही होशियार भी थे।इंजीनियरिंग पास करके प्रशांत जब एक प्राइवेट कंपनी में ज़ाॅब करने लगा तब आसपास वाले उनसे कहने लगे,” प्रशांत की माँ..बेटा नौकरी

करने लगा है..अब आपको मोटा दहेज़ मिलेगा..।” तो दूसरी महिला कहती,” आजकल तो चपरासी को भी मोटरसाइकिल मिल जाता है..प्रशांत तो अफ़सर है…उसको तो गाड़ी के साथ-साथ फ़्लैट भी मिलेगा..।” यही बातें जब बार-बार उनके कानों में पड़ने लगी तो वो सपने देखने लगीं।अपने संपर्क से

वो अमीर घराने वाले रिश्ते तलाश ही रहीं थीं कि एक दिन दफ़्तर से आकर द्वारिका बाबू ने उनसे कह दिया कि मैंने प्रशांत के लिए लड़की देख ली।शिक्षित, सुंदर और सुशील है।कल रविवार है..सब लोग रमाकांत जी के यहाँ चलते हैं, प्रशांत राधा से मिल लेगा और तुम भी तसल्ली कर लेना।

     ” कौन रमाकांत?” विमला जी ने आश्चर्य-से पूछा।तब वो बोले,” मेरा सहपाठी था।कुछ दिनों पहले उससे मुलाकात हुई थी।उसके घर गया..उसकी बेटी राधा से मिलकर मन खुश हो गया।तुम भी मिलोगी तो..।”

     ” और दहेज़ में क्या देगा..।” 

  ” दे देगा..हमारे पास भला किस चीज़ की कमी है..।” 

        विमला जी का मन खटका और जब वो रमाकांत जी के घर गईं तो उनकी सादगी तथा घर में रखे सामान से समझ गईं कि ये तो खाली हाथ हैं।अतः वो ना कहने वाली थी लेकिन प्रशांत राधा की खूबसूरती पर रीझ गया।मजबूरन उन्हें भी हाँ कहनी ही पड़ी और एक शुभ-मुहूर्त में प्रशांत की शादी राधा के साथ हो गई।

       विवाह में आये गहने-कपड़े देखकर तो विमला जी का दिमाग गरम हो गया।उन्होंने पहले तो बहू को जी भर कर सुनाया कि तेरे बाप ने ठग लिया..।फिर पति पर गुस्सा उतारा कि लड़कियों का अकाल पड़ा था जो कंगले की बेटी उठा लाए.. लोग तो यही कहेंगे ना…कि मेरे बेटे में ही कोई दोष है,

तभी तो कुछ नहीं मिला।तब द्वारिका बाबू उन्हें शांत करते हुए बोले कि भाग्यवान!राधा के स्वभाव से तुम इतनी खुश हो जाओगी कि दहेज़-वहेज को भूल जाओगी।विमला जी उस समय तो चुप रह गई लेकिन वो अंदर ही अंदर सुलगती रहीं।

     एक दिन रमाकांत जी बेटी से मिलने आये तो विमला जी ने उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई।पति और बेटे के सामने तो वो बहू को कुछ नहीं कहतीं लेकिन जब बहू अकेली होती तो वो उसके हर काम में कमियाँ निकालतीं..बात-बात पर कहतीं कि बाप ने तो कुछ दिया नहीं और माँ ने भी कुछ नहीं

सिखाया..तूने मेरे बेटे को फँसा लिया है..वगैरह-वगैरह।माँ के देखा-देखी नीता भी अपनी भाभी को सुना देती कि आपका कलर टेस्ट अच्छा नहीं है..आप बहुत ओल्ड फ़ैशन की हैं..।

          राधा सब चुपचाप सुन लेती..उसके लिए यही बहुत था कि पति प्यार करता है और सिर पर ससुर की छत्रछाया है।

      एक दिन प्रशांत ने ऑफ़िस से आकर राधा से कहा कि पार्टी में चलना है..तैयार हो जाओ।” राधा ने चटक रंग की कामदार साड़ी पहनकर हल्की-सी लिपिस्टक लगा ली जो प्रशांत को पसंद नहीं आया।पार्टी में सब ड्रिंक ले रहें थे..एक-दूसरे की बाँहों में बाँहें डालकर नाच रहे थे जो राधा को अच्छा

नहीं लगा।कुछ दिनों बाद प्रशांत फिर से राधा को एक पार्टी में चलने को कहा तो उसने मना कर दिया।ऐसा दो बार हुआ तो प्रशांत को उस पर बहुत गुस्सा आया।फिर एक दिन वो राधा के लिए डीप नेक वाली ड्रेस लाया और बोला कि इसे पहनकर तैयार हो जाओ..क्लब जाना है।

       ड्रेस देखकर राधा बोली,” मैं ऐसे कपड़े नहीं पहनती.. सभ्य घर की महिलाएँ…।” इतना सुनते ही प्रशांत उस पर चिल्लाया,” बहुत सुन चुका तुम्हारा सभ्यता पर भाषण…जाहिल-गँवार औरत..तुम सोसायटी में उठने-बैठने लायक हो ही नहीं..न जाने वो कौन-सी मनहूस घड़ी थी जो मैंने तुमसे..दूर हटो..।” राधा को धक्का देकर वो कमरे से बाहर निकल गया।

      उस दिन के बाद से प्रशांत पत्नी से खिंचा-खिंचा रहने लगा।वो घर भी देर से आने लगा।राधा कुछ पूछती तो उस पर चिल्लाने लगता।बेटे-बहू के बीच बढ़ती दूरियाँ देखकर विमला जी तो बहुत खुश हुई लेकिन ज़ाहिर नहीं किया।अब वो खुलकर राधा को प्रताड़ित करने लगीं।बात-बात पर उसे सुनाने लगतीं कि तेरी वजह से ही मेरा बेटा देर से घर लौट रहा है।

       अपनी अस्वस्थता के कारण द्वारिका बाबू दो महीने पहले ही सेवानिवृत होकर घर पर रहने लगे थे।तब उन्होंने देखा कि राधा के साथ सभी दुर्व्यवहार कर रहें हैं।उन्होंने बेटे को समझाना चाहा तो उसने पलटकर कह दिया कि आपने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी।

      एक दिन राधा अपने ससुर को दवा दे रही थी।तभी विमला जी ने चाय की डिमांड कर दी।दवा देकर राधा चाय लेकर गई तो विमला जी ने चाय फेंक दी और हाथ नचाकर अपने पति से बोली,” यही है आपकी गुणवती बहू..छह महीने भी पति को बाँधकर नहीं रख पाई..।” तब द्वारिका बाबू बोले,” प्रशांत की माँ..पराये घर की बेटी पर इतना ज़ुल्म मत करो…तुम्हारी भी बेटी है..कहीं समय की मार..।” 

   ” बस-बस..मैं अपनी बेटी को इतना दहेज़ दूँगी कि लोग देखते रह जाएँगे..आप भी…।” विमला जी बोलकर चली गई और उस रात द्वारिका बाबू जो सोये तो फिर कभी नहीं उठे।

        विमला जी इसी फ़िराक में रहतीं कि राधा चली जाये तो बेटे का दूसरा ब्याह कर दे और राधा को उम्मीद थी कि एक दिन प्रशांत अवश्य मेरे पास लौटेंगे।इसी आस में वो सब सह रही थी।

         उधर बेटी के दुख में रमाकांत जी ने बिस्तर पकड़ लिया और एक दिन उन्होंने भी अपनी आँखें सदा के लिए मूँद ली।विमला जी ने साफ़ कह दिया कि घर से कदम निकाली तो फिर कभी मत लौटना।राधा ने सोचा, ऐसे ही कह रहीं हैं..वो पिता के अंतिम-दर्शन के लिए चली गई।लौटकर आई तो

विमला जी कमर पर हाथ रखकर बोली,” जहाँ से आई है, वहीं चली जा..।” और दरवाज़ा बंद कर लिया।राधा रोती रही..दरवाज़ा पीटती रही लेकिन न तो प्रशांत आया न नीता और न ही विमला जी ने दरवाज़ा खोला।मोहल्ले वाले बोलते रहें,” प्रशांत की माँ..# वक्त से डरो..कहीं ऐसा न हो कि आपके किये की सज़ा आपकी बेटी को भुगतना पड़े..।” लेकिन विमला जी के कान पर जूँ नहीं रेंगी।

       अपने आँसू पोंछकर राधा माँ के पास चली आई।पिता के तेरहवीं के बाद उसकी सहेलियों ने पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज़ कराने को कहा तो वो बोली,” नहीं..पापा जी(ससुर) का नाम खराब नहीं होने दूँगी।आज मेरे दिन बुरे हैं तो क्या हुआ..वक्त सबको सबक सिखाता है..।” फिर अपनी माँ से बोली कि मैं कल से काम की तलाश में निकलूँगी..।

       इधर राधा दर ब दर भटक रही थी और उधर विमला जी प्रशांत की शादी एक अमीर घराने की माॅर्डन लड़की मोना के साथ करके जश्न मना रही थी।शादी में मिले दहेज़ को पड़ोसियों को दिखा-दिखाकर वाहवाही लूट रही थीं।देखते-देखते तीन महीने बीत गये।

       बहुत भाग-दौड़ करने के बाद राधा को महिला आयोग के ऑफ़िस में छोटी-सी काम मिल गया। उधर विमला जी ने नीता की शादी तय कर दी।जब विवाह की तिथि नज़दीक आने लगी तो उन्होंने बहू का दहेज़ नीता को देना चाहा तो मोना ने साफ़ इंकार कर दिया।प्रशांत तो पत्नी का गुलाम था, उसने

चुप्पी साध ली तो विमला जी के पैरों तले ज़मीन निकल गई।अब बेटी की शादी कैसे होगी..।मजबूरन उन्हें अपने गहने बेचने पड़े।समधी जी के आगे हाथ जोड़ने लगी तो वो विनम्र-स्वर में बोले,” हमें तो बस आपकी बेटी चाहिए।” सुनकर वो निहाल हो गई और बेटी को विदा कर दिया।

      बेटी के विदा होते ही मोना ने अपने रंग दिखाने शुरु कर दिये।विमला जी पर टोका-टोका तो कर ही रही थी, अब उन्हें एक कमरे में ही रहने का कह कर घर में देर रात तक पार्टियाँ करने लगी।प्रशांत तो उनसे मुँह मोड़ ही चुका था।उन्हें तसल्ली थी कि बेटी सुखी है।

       नीता अपने ससुराल के अत्याधुनिक परिवेश में खुद को ढ़ालने का प्रयास कर ही रही थी कि एक दिन उसका पति मनीष उसे एक क्लाइंट को खुश करने को बोला तो वो चकित रह गई।उसकी सास ने भी बेटे को सही ठहराया तो वो फिर एक पल भी वहाँ नहीं रुकी और रोती हुई अपनी माँ के पास आकर उस परिवार की सच्चाई बताने लगी।

      विमला जी पर तो जैसे व्रजपात हो गया।बेटे-बहू तो हाथ से निकल ही गये थे और अपनी पूँजी लुटाकर जिस बेटी की शादी की, उस पर ये दुख का पहाड़ टूट पड़ा..।समय की मार ऐसी पड़ेगी, उन्होंने कभी नहीं सोचा था।अब माँ-बेटी एक-दूसरे के गले लगकर रोती रहतीं।

      उधर राधा की कर्मनिष्ठा और लगन देखकर अध्यक्ष रीता देवी(काल्पनिक नाम) बोलीं,” राधा..तुम ग्रेजुएट हो..अगर तुम एक साल का कोर्स कर लेती हो तो तुम्हारी नौकरी पक्की हो जाएगी और एक ओहदा भी मिल जाएगा।बस उसी दिन से राधा तैयारी में जुट गई..परीक्षा दिया और उत्तीर्ण होकर उसे एक ओहदा भी मिल गया।उसने कई पीड़ित महिलाओं को उसका हक दिलवाया।अखबारों में उसके इंटरव्यू छपने लगे।

       एक दिन वो एक शाॅप में कुछ खरीद रही थी कि उसकी नज़र सड़क पार करती हुई नीता पर पड़ी।उसे फ़टेहाल में देखकर वो चौंक पड़ी और दौड़ कर उसे रोका।

     नीता ने रोते-रोते पूरा वृतांत सुनाया।फिर बोली,” हमने आपके साथ बुरा बर्ताव किया तो हमें…।” राधा ने उसे गले से लगा लिया।उसका तो काम ही दुखियों के दुख दूर करना, फिर वो तो..।

        अगले दिन राधा एक रेस्तरां में नीता और विमला जी मिली।विमला जी तो उसके पैरों पर गिर पड़ी थी।राधा ने अपनी टीम की मदद से नीता को उसका स्त्री-धन दिलाया।आसान तो नहीं था लेकिन इंसान चाहे तो सब कुछ संभव हो सकता है।नीता वापस ससुराल नहीं गई।राधा की मदद से उसने लाइब्रेरिन की पढ़ाई की।परीक्षा पास की तो उसे एक प्राइवेट पुस्तकालय में नौकरी मिल गई।वो अपनी माँ को लेकर एक किराये के कमरे में रहने लगी।

       इसी बीच विमला जी ने चाहा कि राधा प्रशांत को मोना से अलग करवा दे लेकिन उसने मना कर दिया और उनसे दूरी बना ली।माँ के देहांत के बाद उसने अपना पूरा समय अपने काम को समर्पित कर दिया।

      विमला जी रोज अपनी बेटी को नौकरी पर जाते हुए लोगों के ताने और मनचलों की फ़ब्तियाँ सुनते हुए देखती हैं पर कुछ कर नहीं सकतीं हैं।आज उन्हें समझ में आया कि क्यों लोग वक्त से डरते हैं।काशः वो राधा को बहू का अधिकार देती..उसके साथ अच्छा व्यवहार करती तो आज बेटा उसके साथ होता..वो भी दादी बन जाती और बेटी भी अपने ससुराल…।

     अचानक किसी ने दरवाज़ा खटखटाया तो उनकी तंद्रा टूटी।दरवाजा खोलकर देखा तो दो-तीन बच्चे खड़े थे,” आँटी जी..हमारी गेंद आपके घर में..।”

  ” हाँ-हाँ..अभी लाती हूँ..।” कहकर वो गेंद लाने चलीं गईं।

                                        विभा गुप्ता 

# वक्त से डरो                  स्वरचित, बैंगलुरु 

           किसी के साथ बुरा न करो और वक्त से डरो क्योंकि समय की मार से आज तक कोई नहीं बच पाया है तो भला विमला जी कैसे बच जातीं।

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