माता-पिता की सड़क दुर्घटना में असामयिक मृत्यु हो जाने के कारण दुर्गा और उसका बड़ा भाई अनाथ हो चुके थे।पिता दीनदयाल जी का भरा -पूरा संयुक्त परिवार था।घर के बड़े बेटे होने का फर्ज उन्होंने खूब निभाया था। दुर्गा की दो बहनों की शादी उन्होंने ही करवाई थी।अपने छोटे भाई को पुत्र समान स्नेह देकर बड़ा किया था। दुर्गा की अम्मा भी पूरे परिवार को जोड़े रखतीं थीं। देवर की शादी बड़े चाव से करवाई थी अम्मा ने।चाची के आते ही मानो उस परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग गया।
पिता-माता तुल्य जेठ-जिठानी पाकर भी दुर्गा की चाची नित नए क्लेष रचतीं और घर में अशांति छा जाती।अम्मा जब भी अपने पति से बात करने की कोशिश करतीं इस बारे में,वो एक ही जवाब देते”दुर्गा की अम्मा,तुम तो बड़ी हो,तुम्हीं समझदारी दिखाया करो।छुटके की बहू तुम्हारे प्रेम की भूखी है।उसकी बातों को मन से ना लगाया करो। छोटी-छोटी बातों में घर के पुरुषों को उलझाओगी,तो एकता खत्म हो जाएगी हमारे परिवार की।”
दुर्गा ने सदा यही देखा था अपनी अम्मा को आंसू पोंछकर चुपचाप बाबूजी के कमरे से निकलते।चाची मां बनने वाली थीं। अम्मा ने चाची की देखभाल बड़े जतन से की।उनका प्रसव भी ससुराल में ही करवाया।बेटा पाकर चाची के मानो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे। दुर्गा की अम्मा से अब उनका
रुतबा ज्यादा बड़ा हो गया था।बेटी तो पराई है,ब्याह के बाद चली जाएगी।कुल का वारिस तो उनका बेटा ही कहलाएगा।अम्मा को जब -तब ताने देखतीं रहतीं चाची।अम्मा और बाबूजी तो चाचा के बेटे दीपक को पाकर निहाल थे।उसे नहलाना ,मालिश करना सब अम्मा ने अपने जिम्मे ले लिया था।खाना बनाने पंडिताइन चाची आती ही थीं।चाची बिस्तर पर पड़े हुए मजे से बेटे की मां होने का सुख भोग रहीं थीं।
एक दिन दुर्गा ने अपनी मां को साड़ी के आंचल से आंखें पोंछते हुए देखा,तो रहा नहीं गया।पूछा ही लिया”अम्मा,ये लड़का कुल का नाम आगे ले जाता है। संपत्ति का वारिस बनता है,इसका मतलब क्या होता है? चाची पंडिताइन काकी से रोज इन सब बातों पर चर्चा करतीं हैं।तुम्हें भी जब देखो ताना देतीं रहतीं हैं।तुम जवाब क्यों नहीं देतीं?जब चाचा को तुम खाना परोसती हो,तब बता सकती हो ना उन्हें,कि
चाची क्या-क्या कहती हैं तुमसे।बस मौन रहकर रोती रहती हो।मेरी जगह तुम्हारा यदि मेरा भाई पैदा हुआ होता,तो शायद चाची तुम्हें बातें न सुना पातीं।अम्मा मैं मंदिर जाकर भोले बाबा से अपने लिए एक भाई मांगूंगी।उन्हें मेरी बिनती सुननी ही पड़ेगी।तुम चाचा से बात करो ना अम्मा।वो तुम्हें बहुत मानतें हैं।हमसे कहते हैं,तेरी अम्मा पहले मेरी अम्मा है।सच्ची अम्मा।”
दुर्गा की अम्मा (शांति देवी),नाम के अनुकूल ही आचरण भी था उनका।देवर को बेटे सा पाला था।उसके कान में बुराई का जहर कैसे डाल सकती थीं वो। धीरे-धीरे चाची का बेटा दीपक साल भर को होने आया।चाची ने सालगिरह मनाने तक की प्रतीक्षा नहीं की।एक सुबह ,जब दुर्गा के पिता,चाचा और अम्मा साथ में बैठे चाय पी रहे थे,।चाची भी रसोई में आकर बैठ गई मोंढे पर।अम्मा ने तुरंत चाय छानकर दी।चाय का घूंट गले से नीचे जाते ही चाची ने सिर पर पल्ला डालकर जेठ जी की ओर
देखकर कहा”भाई जी,अब तो दीपक साल भर का हो रहा है।जमीन जायदाद आप दोनों भाईयों का है,मुझे आपत्ति नहीं है।पर मुझे मेरे बेटे के भविष्य की चिंता लगी रहती है।कल का क्या भरोसा? दुर्गा ब्याह के बाद आकर संपत्ति में दावा ठोकने लगे,तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे।मेरे बेटे का हिस्सा आप अलग कर दीजिए अभी से।जाने कब क्या अनहोनी हो जाए।”,
चाची की उद्दंडता का अंदाजा नहीं था चाचा को।पत्नी की बातें सुनकर लज्जित हो गए,अपने पिता तुल्य बड़े भाई के समक्ष।कुछ बोलने ही वाले थे,तभी बाबूजी ने छोटे भाई को डांटते हुए कहा,”अरे बोलने दे ना बहू को।हमसे नहीं कहेगी,तो किस से कहेगी।हां बोलो बहुरिया,दीपक के लिए कितना हिस्सा सोचा है तुमने।तुम निश्चिन्त रहो,इस परिवार में इसका हिस्सा कोई मार ही नहीं सकता।अरे ये तो हमारे खानदान का चिराग है।हमारा जो है सब इसी का तो है।”
बाबूजी की बातें सुनकर चाची संतुष्ट हो गईं।सच तो है,दीपक ही तो इकलौता वारिस हैं इस घर का।
चाची की बातें दुर्गा को अच्छी नहीं लगती थी।अब वह दीपक को छूने भी नहीं देतीं थीं।अम्मा की जगह कोई दूसरी मालिश वाली लगा दी गयी थी।वहीं नहलाती भी थी। दुर्गा देखतीं रहतीं कि कैसे उसकी अम्मा दीपक को अपनी गोद में लेने के लिए छटपटाती।उस छटपटाहट को देख दुर्गा सीधे भागती मंदिर,और रो-रो कर एक भाई मांगती। दुर्गा अब चार साल की हो चुकी थी।दुर्गा के जन्म के बाद
अम्मा फिर मां बन ही नहीं पाई। दुर्गा की विनती सुन ली थी भगवान ने।शांति देवी फिर पेट से थीं।गांव में जब डॉक्टर ने बताया,मानो सबके होश उड़ गए हों।पहले भी दो बार बच्चा रुक नहीं पाया था।इस बार तो मां की जान को खतरा भी था। दीनदयाल जी ने समझाया भी कि जान को खतरा है तुम्हारी,फिर क्यों कर रही हो इस बच्चे की ज़िद।है तो हमारे पास दुर्गा।”
इस बार मां की आंखों में चेतावनी स्वीकार करने वाला संतोष था।चाची पर तो जैसे वज्रपात हो गया।अगर बेटा हुआ तो ,दीपक का हिस्सा कम जाएगा।बेमन से जैसे -तैसे जिठानी के बच्चा होने की प्रतीक्षा की।जब नर्स ने बताया” बेटा हुआ है” तो एक ही कारण से दो अलग-अलग लोगों की मानसिकता दिखी।अम्मा तो रोने लगी, लल्ला को देखकर। बाबूजी भी खुशी के आंसू छिपा नहीं पाए।चाचा भागकर मिठाई ले आए और पूरे अस्पताल में बंटवाने लगे।चाची की आंखों में नफ़रत और क्रोध
दिख गया था दुर्गा को।थोड़ी देर रुककर जैसे ही वे घर आने की तैयारी करने लगीं, डॉक्टर ने एक सदमे वाली जानकारी दी।बच्चे को आपरेशन करके निकाला गया है,पर बच्चे के दोनो पैर कमजोर (अपुष्ट)हैं। मालिश और दवाइयों से अच्छा हो भी सकता है भविष्य में।अम्मा तो मानो चुप हो गईं। बाबूजी निढाल होकर कुर्सी पर बैठ गए।चाचा बाबूजी के साथ खड़े रहे। चाची की प्रतिक्रिया अनपेक्षित
थी। दहाड़ मारकर रोने लगीं”से भगवान,इतना बड़ा अनर्थ भाई जी के साथ क्यों किया?हमारे पिता जैसे भाई जी यह सदमा कैसे बर्दाश्त करेंगें?”उनके घड़ियाली आंसू, दुर्गा खूब समझती थी।अम्मा के घर आते ही उनके दुर्भाग्य का रोना रोती रहीं चाची।कभी कहतीं किसी अनाथ आश्रम में छोड़ आएं।कभी कहतीं दूसरे शहर जाकर वहीं रहकर इसका इलाज करवाओ।
बाबूजी को भी यही उचित लगा,वो दुर्गा,अम्मा और बेटे के साथ ने शहर चले आए।पैसे की कमी तो थी नहीं।गांव की खेती -बाड़ी से आमदनी अच्छी हो जाती थी। चाचा के हाथों सारी जमीन-जायदाद छोड़कर नए जगह आ तो गए,पर यहां सब कुछ नए सिरे से शुरू करना था। बाबूजी एक अनाथ की दुकान पर बैठने लगे।लल्ला को सीने से चिपका कर घूमती थी दुर्गा।स्कूल जाने से भी मना कर दिया
था।अम्मा अकेली नहीं संभाल पाएंगी।बड़ी मुश्किल से अम्मा ने स्कूल भेजा,पर वह आधे दिन में ही आ जाती वापस।पूरा समय अपने भाई की परछाई बनी रहती।बाबूजी को एक वैद्य के बारे में पता चला तो,वहीं लेकर जा रहे थे बेटे को दिखाने।रास्ते में बस दुर्घटना में अम्मा और बाबूजी तो चल बसे,बच गए दो अनाथ-दुर्गा और छोटा भाई।खबर मिलते ही चाचा आकर लिवा ले गए दोनों को अपने
साथ,बाबूजी के घर।वह घर अब चाची के अधिकार में था।क्या बनेगा,क्या देना है किसे,सब चाची ही निर्णय लेती थीं। दुर्गा और भाई को कभी अपनाया नहीं उन्होंने,हां ढिंड्ढोरा जरूर पीटतीं। दुर्गा को स्कूल भेजने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।सारा दिन घर का काम करवाती दुर्गा से,शाम को चाचा के आने के बाद ही खाने को मिलता दोनों भाई-बहन को।भाई की कमजोरी दुर्गा को दुर्बल बना रही थी। देखते-देखते साल बीत गए। दुर्गा और उसका भाई दोनों जवान हो चुके थे।चाचा का बेटा भी जवान हो गया था।
अब चाची की असली मंशा बाहर निकलनी शुरू हो गई।चाचा पर दवाब डालने लगीं, दुर्गा और दीपक की शादी का। दुर्गा के लिए रिश्ते भी आने लगे थे। दुर्गा तो मना कर देती सभी रिश्तों को। रक्षाबंधन में दुर्गा से राखी बंधवाकर लल्ला(लाल सिंह)ने बहन से वचन मांग लिया शादी का। दुर्गा भाई के वचन के आगे असहाय हो गई।अब कौन करेगा तेरी देखभाल ,मेरे जाने के बाद।लल्ला भइया मैं ही तेरी देखभाल कर सकती हूं,तू अकेले ख़ुद को नहीं संभाल पाएगा।”
भाई भी अब छोटा थोड़े था,तुरंत उत्तर दिया”दीदी,मैं बड़ा हो गया हूं।तुमने मुझे खुद के काम करना सिखा दिया है।फिर किस बात का डर है तुम्हें।मेरी प्यारी बहना हां कह दे शादी के लिए।”
दुर्गा ने चाची से तब शादी के लिए एक शर्त रखी।”पहले लल्ला की शादी होगी,तब मैं जाऊंगी इस घर से।उसको अकेला छोड़कर तो नहीं जाने वाली मैं।और चाची मुझ जैसी जाहिल ,गंवार से कौन शादी करेगा?”
चाची ने भी खिसियाकर कहा”मिल ही जाएगा कोई तुझ जैसा जाहिल।तुम लोगों को हमारे सीने में मूंग दलने के लिए छोड़कर चले गए ना तुम्हारे अम्मा -बाबूजी।”
चाची की माता जी आईं थीं कुछ दिनों के लिए घूमने।रात को पानी भरने रसोई जाते हुए दुर्गा को चाची और उनकी मां की बातें कानों पर पड़ीं। चाची कह रहीं थीं अपनी मां से”अरे मां!तू निश्चिंत रह।ये दुर्गा तो एक नंबर की गंवार और जाहिल है।जहां बांध दो चली जाएगी।कोई धन्ना सेठ तो मिलेगा नहीं।वो अपने गांव के गिरधारी काका हैं ना, उनसे चलवाओ ना इसकी बात।रही लाल की बात,तो उस
अपाहिज से कौन शादी करेगा।पड़ा रहेगा यहीं,काम करेगा , खाएगा।ना इसका ब्याह होगा,ना तो औलाद होगी।इस पूरे जायदाद में सिर्फ मेरा और दीपक का हक रहेगा। दुर्गा और लाल को तो मैं फूटी कौड़ी भी नहीं मिलने दूंगी।एक बार इस घर से निकली ,तो बस भाई -बहन तरस जाएंगे देखने एक दूसरे को।तू बस देखती जा मेरा त्रिया चरित्र।”
चाची और उनकी मां की बातें सुनकर दुर्गा का माथा ठनका।”मैं जाहिल इतनी तो नहीं हूं कि लोगों की बातों का मतलब ना समझूं।मेरे बाबूजी के हिस्से की तो बहुत जमीन जायदाद है।चाचा का हिस्सा तो पहले ही बाबूजी ने अलग कर रखा था।लल्ला अपाहिज है,तो क्या उसे जायदाद से दखल कर देंगे?”
अपने कमरे में आकर एक प्रतिज्ञा ली दुर्गा ने अपने भाई के माथे पर तिलक की प्रतिज्ञा ली कि उसकी शादी पहले करवाऊंगी,फिर मैं करूंगी।भाई तो शादी करना ही नहीं चाहता था,पर दुर्गा को अगले रक्षाबंधन पर अपने भाई को अनूठा उपहार देना ही था। खोजबीन करने पर एक लड़की का पता चला,जिसके पैर में पोलियो था।थोड़ा झुककर चलती थी। देखने में सामान्य परंतु पढ़ी-लिखी थी।अब तक शादी नहीं हुई थी। दुर्गा विशेष कारण से बाहर का काम निकालकर गीता (पोलियो वाली
लड़की)के घर गई।आधे घंटे रुककर दुर्गा ने उनसे अपने भाई की शारीरिक कमजोरी की बात की।गीता भी जमाने के ताने-उलाहने सुनकर थक चुकी थी।शादी नहीं करना चाहती थी।अगले ही दिन लल्ला से भेंट करवाई उसकी।पहली मुलाकात में ही भाई अपनी कमजोरियां गीता को बता रहा था।गीता ने भी अपनी असमर्थता जाहिर करी शादी के लिए।दोनों ने पहली बार में ही शादी ना करने का निर्णय लिया।
दुर्गा हार नहीं मान सकती थी।वह दूसरे दिन प्यासा बनकर कुंए के पास गई।गीता का हांथ पकड़कर दूर खेत में काम कर रहे अपने भाई को दिखाया और बोली “यदि तुम्हें शादी ही नहीं करनी,तो अलग बात है।पर मेरे इस भाई का मेरे अलावा और कोई सहारा नहीं।मेरे बाबूजी और अम्मा का सपना तुम ही पूरी कर सकती हो गीता।तुम बच्चे की तरह इसकी देखभाल करना,और यह यथासंभव तुम्हारी मदद करेगा।बस हमारे वंश को एक वारिस दे दो ।हम कृतज्ञ रहेंगे ।तुम्हारा भी एक परिवार हो जाएगा।”
लाल की सादगी और निष्ठा देखकर गीता प्रभावित तो हुई थी,आज दुर्गा की बातों ने उसे सब समझा दिया।एक अपंग लड़के से उसके माता-पिता की संपत्ति कैसे छीन सकता है कोई।
दुर्गा आज भाई के ब्याह के कार्ड बांट रही थी।लोग खुश भी हो रहे थे।शादी चाची की अनिच्छा से भी संपन्न हुई निर्विघ्न।
अब दुर्गा शादी कर सकती है। दुर्गा के बहुत सारे फोटो चाची पहले ही आस-पास,के गांव भेज चुकी थी।सो रिश्ता पक्का होने में देर नहीं लगी।शादी के मंडप में चाची लड़के के पिता से कहा रही थी”,भाई साहब,लड़की कम अक्ल है।गंवार है थोड़ी।लिहाज करना नहीं जानती,जाहिल है पूरी।आपको पूरी छूट है,अपने काबू में करके रखिएगा।हम लोगों को तो त्रस्त करके रखा था इसने।”
संयोगवश दुर्गा के ससुर अब भी वकालत करते थे,और अच्छी करते थे। उन्होंने समधिन के कान में कहा”दुर्गा को जाहिल या गंवार समझने की भूल मत करिएगा।यह बड़ी समझदारी से मुश्किलों का हल निकालना जानती है।तुम ही देखो,लाल का ब्याह करवा दिया इसने इतनी जल्दी।अब इनके पिता की जमीन -,,जायदाद का वारिस आने वाला है।इस घर का असल वारिस।इतनी समददार लड़की को आप जाहिल बोल रहीं हैं।मैंने तो इसकी सूझबूझ देखकर पसंद किया है।
अगली राखी में दुर्गा जोर-शोर से पहुंची भाई के घर।गीता ने स्वागत किया।कुछ दिनों में ही बच्चा आने वाला था। स्वर्गीय दीनदयाल और शांति देवी के वंश का वारिस। दुर्गा को रुकना होगा,बच्चे के आने तक,यहीं।यह उपहार उसे मिल रहा था भाई-भाभी की तरफ से।जाहिल लड़की ने चाची की मंशा पर पानी फेर दिया,अपनी समझ-बूझ से।
शुभ्रा बैनर्जी