Moral Stories in Hindi
“व्हाट ए सरप्राइस। इतने दिन बाद मुझसे मिलने की फुरसत मिली।” मनीषा ने नित्या से बनावटी गुस्से से कहा।
“नाराज मत हो, बस कुछ व्यस्त थी। आज सबकी छुट्टी थी तो सोचा, कुछ देर के लिए मिल आऊँ। तू बता जिंदगी कैसे चल रही है और दिव्यांश और दिव्या कैसे हैं?” सोफे पर बैठते हुए मनीषा की सहेली नित्या ने कहा।
“अरे, अरे, साँस तो ले ले। फिर बताती हूँ।”
“अब बता। कैसा चल रहा है?” प्लेट से काजू उठाते हुए नित्या ने पूछा।
“दिव्यांश अच्छा है। अपनी दादी के पास है।”
“मैं अभी उससे मिलकर आती हूँ, फिर आराम से बैठकर बातें करते हैं।”
“पहले चाय तो पी ले, फिर मिल लेना।”
“आकर पीती हूँ। वैसे भी ज्यादा गरम चाय मैं पी नहीं पाती।”
कुछ देर बाद•••
दिव्यांश से तो मिल ली, पर यह तो बता, दिव्या कैसी है? भाई के आने से बहुत खुश होगी।”
“ठीक ही है।” बुझे स्वर से मनीषा ने कहा।
“क्या बात है? कोई परेशानी है क्या?”
“दिव्या ने मुझे परेशान कर रखा है, समझ नहीं आ रहा, उसे क्या हो गया है?”
“क्यों क्या हुआ! दिव्या तो बहुत समझदार और प्यारी बच्ची है। ऐसे क्यों कह रही है।”
“जब से दिव्यांश हुआ है, वह बहुत चिड़चिड़ी हो गई है। जरा-जरा सी बात पर परेशान करने लगी है। मौका देखते ही दिव्यांश को भी रुला देती है।
कल तो उसने उसे गिरा दिया। उसके आने से पहले तो बहुत खुश थी। समझ नहीं आ रहा उसे हो क्या गया है?”
“ओह, तो यह बात है? लगता है, अपना प्यार बँटने से उसे ईर्ष्या होने लगी है। इसी कारण अपनी कुंठा या तो बातों से या नन्हे दिव्यांश पर निकालने लगी है, और कुछ तो वह कर नहीं सकती।”
“ईर्ष्या और नन्हे-से बच्चे से। फिर दिव्यांश तो उसका छोटा भाई है।”
हम बड़े भी तो जब कोई दूसरे की प्रशंसा करता है या हमारी जगह लेने की कोशिश करता है, तो जलन से भर जाते हैं। उसे नुकसान पहुँचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। दिव्या तो अभी छोटी बच्ची है।”
“तो क्या करूंँ? कैसे उसे समझाऊँ!”
यह बता,दिव्यांश के होने के बाद दिव्या किधर सोती है?”
“वह अब दादा-दादी के साथ सोती है। पलंग पर अब कैसे सो पाएगी।”
“और उसे पहले जैसे अभी भी समय देती है या नहीं।” गोद में लेती है या नहीं।” नित्या ने पूछा।
मनीषा चुप रही। उसे चुप देख नित्या ने कहा, “समझ गई, यहीं तो तू गलती कर रही है।”
“क्या मतलब?”
“दिव्या के व्यवहार में परिवर्तन का कारण मुझे समझ आ गया। उसे लगने लगा है, अब तुम उसे नहीं दिव्यांश को ज्यादा प्यार करती हो। अपनी कुंठा वह दिव्यांश को तंग करके निकाल रही है। तेरी सास हो या पड़ोसी सब दिव्यांश के साथ ही खेलना चाहते होंगे। यह स्वाभाविक भी है, घर में जब नन्हा मेहमान आता है तो सबके आकर्षण का केंद्र वही होता है।”
“पर इस समस्या का क्या हल हो सकता है?”
तू अपने कमरे में पति के लिए एक बिस्तर और डलवा ले, या उन्हें अलग कमरे में सोने को भेज। दिव्यांश के साथ दिव्या को भी सुला। अपनी जगह फिर से पाकर वह खुश हो जाएगी।”
“क्या कह रही है नित्या। क्या सच में यह करने से दिव्या बदल जाएगी। उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाएगा।”
“सच्ची-मुच्ची। अब चलती हूँ। बातों में समय का पता ही नहीं चला।”
“मेरी समस्या का हल निकालने के लिए शुक्रिया दोस्त।”
“धत पगली, दोस्ती में माफी और धन्यवाद का कोई स्थान नहीं, कहकर नित्या चली गई।
नित्या के जाने के बाद मनीषा सोचने लगी, एक माँ होकर भी मैं दिव्या के मन में क्या चल रहा है, समझ नहीं पाई। नित्या ने सही कहा, जब हम बड़े किसी को आगे बढ़ते देख या किसी की प्रशंसा सुन ईर्ष्या से भर जाते हैं तो वह छोटी-सी बच्ची इससे कैसे बच पाती।
नित्या की सलाह का सुपरिणाम शीघ्र ही दिव्या के व्यवहार में परिवर्तन से नजर आ गया। अब वह पहले जैसी खुश रहने लगी।
भाई दिव्यांश के साथ अधिक से अधिक समय बिताने लगी।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)