सैनिक भाई का वो आखिरी खत – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

“छुटकी ! बोल न, अगर तुझे कोई लड़का पसन्द है तो  ,मैं मम्मी – पापा से बात आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश करूँगा  । अब नीलेश ने प्यार भरे मनुहार “से ज़ोर देते हुए कहा…देख दिव्या (छुटकी) फिर मत कहना भैया ने साथ नहीं दिया । “अब मेरी छुट्टियाँ कल ही खत्म होने वाली हैं । फिर चला जाऊँगा अपने कर्मक्षेत्र पर तब तू तो जानती ही है लौटना मुश्किल है “। 

अपनी बातों को रखते हुए नीलेश ने हल्की सी गुदगुदी करते हुए  बहन दिव्या के गले में बाहें डालकर कहा..”बहुत शौक है तुम्हारी शादी के लिए लड़का मैं खुद से देखूँ । दिव्या ने चिढ़कर कहा..”ग्रेजुएट तो होने दो भैया !

तभी नीलेश की मम्मी सुभद्रा जी आईं । उन्होंने बेसन के लड्डू, नमकपारे और शक्करपारे डिब्बों में भरकर नीलेश को दिखाते हुए रख दिया । नीलेश ने डिब्बा छूते हुए पूछा …”यह क्या माँ ? सब दो – दो जगह भरकर रखा है, इतना खाने के लिए दोगी तो काम कैसे करूँगा ? सुभद्रा जी ने मुस्कुराते हुए कहा..”वो जो तेरा दोस्त है न !

रघु, उसके लिए दिया है । कल जब तू बाजार गया था, तब वो बड़े प्यार से मुझे बोलने आया था..”आंटी ! मुझे भी वो सब चीजें चाहिए जो आप नीलेश को दे रहे हैं । “ले जाने दे न बेटा !

उसके पापा भी नहीं हैं मम्मी भी बीमार रहती हैं, और फिर हमारी कितनी मदद करता है । “हाँ माँ ! आपका तो वश चले तो मेरी जगह उसी के गुणगान करो, हमेशा खुश रहता है, कितने अच्छे से बातों को समझाता है, बड़े बुजुर्गों से बातें करता है । सुभद्रा जी ज़ोर से हँस दीं नीलेश की बातें सुनकर ।

दिव्या सहेलियों के साथ मंदिर के लिए निकल चुकी थी । नीलेश पापा के पास जाकर कुछ बातचीत करने के उद्देश्य से बैठा । तभी सुभद्रा जी ने कहा…”बेटा ! वहाँ जाने के बाद ज्यादा बात तो हो पाएगी नहीं , लेकिन अब दिव्या के लिए कोई लड़का देखना । अगर अच्छा वर मिल जाए तो ज्यादा उम्र तक बिठाकर रखने से क्या फायदा ?

नीलेश के पापा सूर्यप्रकाश जी ने कहा.. “तुम्हारी माँ  सही कह रही है बेटा ! मेरी स्थिति देख ही रहे हो, पैर से लाचार हूँ, पेट की अलग परेशानी है , जीवित रहते ही इस जिम्मेदारी से निश्चिंत होना चाहता हूँ । “पापा – मम्मी ! उसे शौक है पढ़ाई तो पूरी करने दीजिए ।

सुभद्रा जी और सूर्य प्रकाश जी की तीन संतानें हैं । बड़ा बेटा नीलेश आर्मी में , दुर्गेश प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगा है और बेटी दिव्या अभी ग्रेजुएशन के पहले साल में है । सूर्य प्रकाश जी एक किसान हैं लेकिन शारीरिक अपंगता के कारण वो घर में रह रहे हैं ।

दिव्या भी  थोड़ा शर्माने का अभिनय करते हुए खुशी से उछल करके भैया को गले से लगा ली।

बीमारी के इलाज के लिए उन्होंने   खेत और जमीन भी गिरवी रखे ।  

दुर्गेश ने कहा..”भैया ! मुझे क्लास अटैंड करने में परेशानी होती है , अगली बार मुझे हेड फोन चाहिए । “पापा ! आपके लिए कुछ लेना है तो बोलिए, । सबकी लिस्ट तो हो गयी । सुभद्रा जी ने कहा…

“दिव्या ने तो लंबी चौड़ी लिस्ट दी होगी तुम्हें , वो बच्ची है कुछ भी बोलती है, हर चीज पर फिजूल खर्च नहीं करना, थोड़ा सोच – समझ कर लाना । नीलेश ने मुस्कुराते हुए कहा..”मेरी छोटी बहन है वो माँ “! मुझसे नहीं तो किससे कहेगी ? किसके लिए कमा रहा हूँ, अपने परिवार के लिए ही न !

दो दिन बाद सुबह के पाँच बजे गाड़ी नीलेश  को लेने आ चुकी थी   | खूब सारे लादे हुए सामान के साथ नीलेश और रघु दरवाज़े पर खड़े थे और सहायक ने सारे सामान गाड़ी में रखवाया | दिव्या ने अपने हाथों से नीलेश और रघु को दही चीनी खिलाया और मम्मी – पापा का चरण स्पर्श करके नीलेश अपने वतन की जिम्मेदारी के लिए निकल गया ।

छः महीने बीत गए । 

सुभद्रा जी के गाँव की चाची ने घर आकर नीलेश के लिए एक पढ़ी लिखी लड़की का रिश्ता बताया । सुभद्रा जी के चेहरे पर परेशानी के भाव देखते हुए चाची ने पूछा..”क्या नीलेश की शादी अभी नहीं करना है  सुभद्रा ? लड़की बहुत सभ्य और पढ़ी लिखी है …। चाची की बात बिना पूरी हुए ही सुभद्रा जी ने बात काटते हुए कहा..

नहीं चाची ! शादी तो करना ही है, आपने जैसे बिन मांगे मोती दे दिया । नीलेश के पापा के बीमार होने की वजह से उस पर इतनी जिम्मेदारी आ गयी है कि बारी – बारी से वो उन्हें पूरा करने में लगा है । हमारा ध्यान भी नहीं गया । खैर… अब आज ही उसे फोटो भेज के राय लेकर आपको बताऊँगी ।

दिव्या ने चाची के जाने के बाद माँ से उत्साहित होते हुए कहा..”माँ ! कितनी अच्छी लग रही है होने वाली भाभी ! “चूल्हे पर सब्जी छौंकते हुए सुभद्रा जी ने कहा..”बेटा ! भैया को फोटो भेज दे फिर रात में बात करके पूछेंगे कैसी लगी ?

उत्सुकता की वजह से दिव्या ने शाम को ही फोन मिलाया तो नीलेश ने नहीं उठाया । फिर रघु का भी नम्बर डायल किया तो रघु ने भी फोन नहीं उठाया । सुभद्रा जी थोड़ी परेशान तो हो रहीं थी पर उन्हें ये परेशानी झेलने की आदत सी हो गई थी । मन में उलझन लिए हुए ही उन्होंने दिव्या से कहा…”मत इतनी जल्दी फोन कर बेटा !

वो फुर्सत में होगा तो खुद करेगा । अब रात को 9 बजे खाने के समय पर करना । दिव्या ने हाँ में सिर हिलाया और अपनी पढ़ाई में लग गई  । घड़ी की तरफ देखा तो नौ बजने में पाँच मिनट बाकी थे । फिर से दिव्या ने फोन मिलाया और फिर से जवाब नहीं मिला ।

पापा रेडियो सुन रहे थे और तभी खबर आई कि सरहद पर युद्ध छिड़ गया है । युद्ध की खबर सुनकर मम्मी – पापा और दिव्या का कलेजा मानो मुँह को आ गया   । सूर्य प्रकाश जी की साँसें तीव्र होने लगीं । दुर्गेश ने धैर्य बंधाते हुए कहा…”हिम्मत रखनी होगी हमें, घबराने से काम नहीं चलेगा । मैं रघु भैया के घर जाकर पता करता हूँ क्या बात है, शायद उधर फोन न उठाने की कोई खबर होगी ।

दरवाजे पर टकटकी लगाए दिव्या और उसकी मम्मी खड़े थे  ।  हर इक पल जैसे बोझिल सा लग रहा था ।इतना बोलते ही दुर्गेश रघु के घर पहुंच गया और वहाँ रघु की मम्मी से पूछने लगा…”आंटी ! नीलेश भैया या रघु भैया से कोई बात हुई क्या..?

रघु की मम्मी ने कहा…”फोन आया था रघु का, फिर कट गया और दुबारा नहीं लगा । सरहद पर युद्ध छिड़ने की वजह से कनेक्शन बंद है । दुर्गेश अपना सा मुँह लेकर चला आया और घर में जैसे अंजाने भय से सन्नाटा सा पसर गया । तीन दिन बाद अचानक एक अंजाने नम्बर से फोन आया तो सुभद्रा जी ने उठाया ।

किसी ने कहा…”मैं नीलेश का दोस्त सागर बोल रहा हूँ आंटी ! रात दुश्मनों से सरहद पर जो मुठभेड़ हुई उसमें नीलेश…सुभद्रा जी ने चीखते हुए घबराहट से कहा…क्या नी…नीलेश ? क्या हुआ नीलेश को ? दुर्गेश ने माँ के हाथों से फोन खींच लिया और पूछा..”कहाँ है भैया, क्या हुआ उन्हें ? सागर ने कहा…”नीलेश मुठभेड़ में मारा गया । उसके पार्थिव शरीर को घर लाने की आज शाम तैयारी है ।

उदास से घर के माहौल में मातम पसर गया । हर तरफ रुदन – क्रंदन की आवाज़ से माहौल गमगीन था । पड़ोसी भी आस – पास से आकर भीड़ लगा लिए ।

थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर गाड़ी रुकी ।  सेना के जवानों समेत रघु नीलेश का समर्पित शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ लेकर उसके आँगन आ चुका था । 

दिव्या दौड़ कर गयी और भाई को पकड़ के फफक कर रोते हुए बोल पड़ी …भैयाsssssssss”कहाँ चले गए भैया? हम सबको अकेला छोड़ दिया  । कौन मुझे पढ़ाकर नौकरी के काबिल बनाएगा । कहा था आपने एक दिन पढ़े लिखे नौकरी वाले से मेरी शादी करोगे , ये क्या हो गया भैया ! कैसे संभालूं मम्मी – पापा को ?

पता होता तो इस बार नहीं जाने देती आपको । और वो चीख – चीखकर रोने लगी । जब दिव्या शांत हुई थोड़ी तो उसने देखा पापा चुपचाप एक कोने में खुद को समेटे हुए हैं । सुभद्रा जी ने बॉडी को पकड़कर चूमना शुरू कर दिया और बोलने लगीं ..”बहुत जिम्मेदारी तुम पर लाद दिए थे हमलोग बेटा !

क्यों इस तरह मुँह मोड़ कर चले गए । हम कैसे अकेले सब बोझ ढो पाएंगे ? सबको इस तरह रोते देख दुर्गेश भी अंदर – अंदर सुबक रहा था लेकिन उसने बड़ी हिम्मत से मम्मी – पापा और बहन को संभालते हुए कहा…”मत रो आपलोग ! मैं खूब पढ़ूँगा और मुझसे जितना हो सकेगा भैया के वादों को हर सम्भव पूरा करूँगा ।

धीरे से रघु ने दिव्या के हाथों एक कागज पकड़ाते हुए कहा…”ये चिट्ठी है जो नीलेश ने तुम्हारे लिए लिखा था और मुझे कहा था इस बार वो व्यस्तता के कारण घर नहीं जा पाएगा तो छोटी को ये चिट्ठी दे देना ।

दिव्या ने सजल आँखों से चिट्ठी पढ़ना शुरू किया…

प्यारी छोटी !

बहुत सारा प्यार !

तू अपनी तरफ से जो भी पढ़ना चाहती है  उसकी तैयारी कर ।चिंता मत कर, तेरे नाम से बहुत पैसे जमा कर लिए हैं । अभी माँ को नहीं बताया ।अपने राजस्थान वाले दोस्त से तेरे लिए तेरी पसन्द की महँगी वाली बंधेज की साड़ी मंगवायाा है । ये भी अभी माँ को नहीं बताना ।  वरना ढेरों नसीहतें पैसे बचाने के लिए देंगी ।जब वो घर जाएगा तो तुझे दे देगा ।  उस साड़ी को पहन के जब तू कॉलेज के फंक्शन में जाएगी न तो एक फोटो भेजना ।

और दूसरी वाली लाल पीली साड़ी जब तू दुल्हन बनेगी तब पहनेगी ।  दुर्गेश को बोलना मन न उदास करे अगली आय में उसका हेड फोन खरीद दूँगा । पापा के लिए खादी सिल्क का कुर्ता खरीदा है , जैसा मास्टर साहब को देख कर उनका मन भाया था  । और माँ को तो उनके पसन्द से इस बार पायल दिलाऊंगा । धीरे – धीरे सब कुछ पूरा करूँगा मेरी छोटी ,! 

और…एक जरुरी बात ! तूने बोला था तेरे दिल मे कोई नहीं है लेकिन मेरा जो दोस्त है न रघु वो और उसके मम्मी – पापा तुम्हें बहुत पसंद करते हैं । पर उसकी हिम्मत नहीं होती कहने की । इस बार जब आना हुआ तो घर मे तुम दोनों के रिश्ते की बात करूँगा । 

भैया का इंतज़ार करना, सबसे मिलकर रहना और माँ पापा के साथ प्यार से रहना । 

तुम्हारा भैया

नीलेश

दिव्या ने बक्सा खोला और बंधेज साड़ी को सीने से लगाकर फिर रोने लगी । नीलेश के कपड़े देख – देखकर मम्मी – पापा सब स्तब्ध थे । कुछ देर बाद..रघु की मम्मी आईं और सबको सांत्वना देने की कोशिश करते हुए सुभद्रा जी से बोलने लगीं..”बहन जी ! सैनिक की माएँ हैं हम । हमें कठोर होकर सोचना पड़ेगा । ईश्वर की इच्छा के आगे किसी का कोई ज़ोर नहीं । भाग्य में उसका साथ बस इतना ही था लेकिन इतने कम समय मे वो सबके लिए कुछ न कुछ देकर गया । कितनी चिंताएं खत्म कर गया । 

एक महीने बीतने के बाद..धीरे धीरे थोड़ा दिन सामान्य होने लगे । रघु मम्मी के साथ दिव्या के घर आया और रघु की मम्मी ने कहा..बहन जी ! जैसा कि आपने नीलेश की चिट्ठी में पढ़ा होगा, मेरे बेटे को दिव्या बहुत पसंद है । हम उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं  । “पढ़ा था बहन जी ! सुभद्रा जी ने आहत मन से कहा तो दिव्या की रुलाई फूट पड़ी अपने पढ़ने और नौकरी करने के सपने को लेकर । रघु ने दिव्या के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

.”तुन्हें बहुत पसंद करता हूँ दिव्या ! अगर तुम ये सोच रही हो कि मेरे से शादी के बाद तुम पढ़ नहीं पाओगी तो बिल्कुल  गलत हो । तुम्हारे शौक के बारे में नीलेश ने अच्छे से बताया था । मुझे खुशी होगी अगर मेरी जीवन की डोर तुम संग बंधेगी । हर खुशी दूँगा और पढ़ाकर तुम्हारा स्वप्न पूरा करूँगा । “और हां आंटी जी ! जो पैसे नीलेश ने रखे हैं वो हम दुर्गेश की पढ़ाई में लगाएँगे । मुझे कोई दहेज नहीं चाहिए ।

दिव्या के मुख मंडल पर कभी रघु के लिए आभार तो कभी प्यार के भाव आ जा रहे थे । दुर्गेश से आखिरकार स्वप्न का बांध टूट गया । रघु के गले लगकर वह फफक कर रोया । रघु ने भी दिव्या और नीलेश को अपने बाहों में भर के प्यार से पीठ थपथपाया । दोनों को ज्यादा भावुक देखकर रघु बोला..”बहुत हुआ रोना ! अब सब चुप हो जाओ । अगली छुट्टी में आऊँगा तो शादी होगी । 

एक साल बाद..

शादी की धूमधाम से तैयारियाँ हुईं   । एक महीने की छुट्टी पर रघु आया था । भैया की दी हुई लाल साड़ी में दिव्या बहुत प्यारी लग रही थी । उसे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था बिन ढूंढें उसकी तकलीफ समझने वाला कोई इस कदर मिलेगा । 

बारात आयी, वरमाला के बाद दिव्या ने सात फेरे लिए और बंध गयी शादी के खुबसूरत बंधन में ।

मंडप से सीधा जाकर वह भैया के तस्वीर के आगे साड़ी दिखाकर बहुत रोयी और नए जीवन की नई शुरुआत के लिए रघु और दिव्या ने आशीर्वाद लिया । मुस्कराती हुई रघु की तस्वीर देखकर लग रहा था मानो कह रहा हो..”मेरा सपना पूरा हुआ, मेरी दी हुई साड़ी पहनकर तुम बहुत खुश और प्यारी लग रही हो ।

माँ – पापा के आशिर्वाद लेकर और दुर्गेश के गले मिलकर दिव्या चल दी रघु संग इक दुनिया बसाने ।

 

मौलिक, स्वरचित

(अर्चना सिंह)

#आँसू बन गए मोती

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