सहारे की आड़ में साजिश – कमलेश राणा  : Moral Stories in Hindi

जानकी तू कितनी सेवा करती है मेरी.. ऐसा लगता है कि उस जन्म के पुण्यों का फल है तू वरना आज के जमाने में तो बिना मतलब के बेटियां भी नहीं पूछतीं.. बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं तेरे मां – बाप ने.. भगवान की कृपा से तू दूधों नहाए पूतों फले।

जानकी की सास उसे रोज सुबह – शाम यही आशीर्वाद देती थी पर न जाने क्यों भगवान उनकी बात नहीं सुन रहा था। धीरे – धीरे उम्र बढ़ रही थी और साथ ही उनकी चिंता भी बढ़ती जा रही थी।

कभी – कभी जानकी अपने पति से किसी को गोद लेने के बारे में बात करती तो वह हमेशा यह कह कर टाल देते कि क्या औलाद का होना इतना जरूरी है कि उसके लिए दूसरे के बच्चे को अपनाया जाए?? क्या गारंटी है कि वह हमें अपना ही लेगा?? कई घटनाएं ऐसी भी सुनने में आती हैं कि बड़े हो कर वो सारी जायदाद ले कर रफू चक्कर हो जाते हैं और उनके पालनहार कौड़ियों के मोहताज हो कर रह जाते हैं। मैं जान बूझ कर यह फंदा गले में डालने के लिए कतई तैयार नहीं हूं।

आजकल देख तो रही हो तुम कि जिनकी सगी औलादें हैं वो हमसे भी ज्यादा परेशान हैं। उनके घर में रोज कभी बंटवारे को लेकर तो कभी पक्षपात को लेकर हंगामा मचा रहता है। यह देखकर तो लगता है कि हम बहुत सुखी हैं। 

न भविष्य के लिए जोड़ने की चिंता और न संतान के तानों की परवाह। जानती हो जानकी आजकल के बच्चे जो मां – बाप ने उनके लिए किया उसके शुक्रगुजार नहीं होते बल्कि जो वो नहीं कर पाए उसके लिए शिकायत जरूर करते हैं।

मैं हूं न तुम्हारे लिए मैं पलकों पर बिठा कर रखूंगा हमेशा तुम्हें फिर क्यों इतनी चिंता करती हो तुम।

पर कहते हैं न कि समय हमेशा एक सा नहीं रहता। आज उसे पलकों पर बिठा कर रखने वाले को लोग चार कंधों पर लेकर चले जा रहे थे और उसकी करुण पुकार का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। 

वह एकदम टूट गई थी बिल्कुल खामोश..अब घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता। उस सन्नाटे को केवल सिसकियों की आवाज ही तोड़ती जो कभी सास की होतीं तो कभी बहू की।

बुढ़ापे में संतान का अपने सामने चले जाना सबसे ज्यादा कष्टकारी होता है। इस दुःख से उन्होंने खटिया पकड़ ली। 

एक दिन वह जानकी से बोलीं.. बेटा मुझे तेरी बहुत चिंता है मेरे बाद तेरा क्या होगा। अब मुझे नहीं लगता कि मैं अधिक दिन जी पाऊंगी। मेरी सेवा के लिए तो तुमने जी – जान लगा दी पर तुम्हारी सेवा कौन करेगा? अभी तो तुम्हें जरूरत नहीं है पर जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब हाथ – पैर काम नहीं करते तब किसी के सहारे की जरूरत होती है। मेरे सामने तुम किसी को अपना लो तो मैं भी तसल्ली से मर सकूंगी।

जानकी भी इन दिनों इसी उलझन से गुजर रही थी कि ऐसा कौन है जो उसकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा। वह काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि कभी उसके भतीजे, कभी भांजे तो कभी पड़ोसियों के बेटे अचानक ही उससे ज्यादा अपनापन जताने लगे थे।

उसने सास से कहा – मां आप ही रास्ता दिखाइए कि मैं किसको अपनाऊं क्योंकि आपको दुनियांदारी की समझ मुझसे ज्यादा है।

वैसे तो बेटा जिनसे खून का रिश्ता होता है उन्हें कहीं न कहीं हम से जुड़ाव रहता है। वो दो ही हो सकते हैं- भतीजा जिसमें तुम्हारे खून का अंश है और भांजा जिसमें हमारे परिवार का अंश है। अब तुम्हारी मर्जी है जिसको तुम चुनो।

इनमें से जानकी ने भांजे सलिल को अपनाने का फैसला किया क्योंकि वह उसके पति की बहन का बेटा था इस रिश्ते से उसे लगा वह उन्हें ज्यादा अपना समझेगा।

और एक दिन सलिल अपनी पत्नी और प्यारे – प्यारे दो बच्चों को ले कर आ गया। बच्चों की शरारतों और किलकारियों से आंगन महक उठा। आज जानकी को दिल से महसूस हो रहा था कि जीवन में रौनक अपने बच्चों और फिर उनके बच्चों से ही होती है।

बहू रितिका उसके आगे – पीछे सेवा करती घूमती और जब बच्चे दादी – दादी कह कर गले में बांहे डालकर झूल जाते तो वह निहाल हो जाती। उसने जो ममता का झरना अपने दिल में दबा रखा था उसे बह जाने की खुली छूट दे दी। जीवन एक बार फिर तरंगित हो चला था।

सलिल के आने से उसका भतीजा निराश हो गया था क्योंकि अभी तक उसे लगता था कि उसकी बुआ अपनी प्रॉपर्टी उसे ही देंगी पर फिर भी उसने आशा का दामन नहीं छोड़ा और जब – तब आ कर सलिल के खिलाफ उनके कान भरने लगा।

हालांकि जानकी सब समझती थी कि सबकी निगाहें उसकी प्रॉपर्टी पर हैं उसकी परवाह के लिए ये सारे जतन नहीं है इसलिए वह उन बातों पर ध्यान नहीं देती थी लेकिन सलिल के मन में हमेशा यह खटका लगा रहता था कि कहीं मामी का मन न बदल जाए इसलिए वह हमेशा चौकन्ना रहता और उनसे मिलने आने वाले हर इंसान पर नज़र रखता।

एक दिन उससे रहा नहीं गया और उसने अपने मन की बात उगल ही दी.. मामी आप मेरे नाम प्रॉपर्टी कब कर रही हैं। जब तक आप ऐसा नहीं करेंगी तब तक लोग आपको बरगलाते रहेंगे और मैं भी तनावमुक्त जीवन नहीं जी पाऊंगा। क्या पता आप भी किसी दिन नानी की तरह रात में सोती ही रह जाएं। फिर कई दावेदार खड़े हो जाएंगे इससे अच्छा है आप जीते जी यह काम कर दें।

उसकी बात सुन जानकी सिहर उठी उसकी बातों से #साजिश की बू आ रही थी। उसके शब्दों में छिपी धमकी को भी वह बखूबी समझ रही थी फिर भी हिम्मत बटोर कर उसने कहा.. ऐसी भी क्या जल्दी है?? वह तो एक दिन करना ही है और अभी मैं कहां भागी जा रही हूं।

लेकिन मुझे जल्दी है.. कहता हुआ वह पैर पटकता हुआ वहां से चला गया।

उसका यह रूप देखकर अब जानकी को डर लगने लगा था। एक दिन जब वह सो कर उठी तो उसके दोनों हाथों में नीली स्याही लगी हुई थी।

रितिका देख तो मेरे हाथों में यह स्याही किसने लगाई है।

रितिका हंसते हुए बोली.. ये बच्चे भी न बड़े शैतान हो गए हैं। सारे दिन स्केच पेन से चित्रकारी करते रहते हैं न तो आज उन्होंने आपके हाथों को ही रंग दिया।

जानकी भी हंसने लगी पर इसके कुछ दिन बाद सलिल और रीतिका दोनों का व्यवहार बदलने लगा। जब भी वह किसी काम की कहती तो सलिल कह देता.. मामी वह सारे दिन थक जाती है थोड़ा काम आप भी कर लिया करो। अब रितिका भी काम से जी चुराने लगी थी।

एक दिन जानकी को बुखार आया तो सलिल ने दवाई भी नहीं लाकर दी। तब जानकी बिफर पड़ी.. सलिल मैंने तुम्हें सहारे के लिए अपने पास रखा था। अगर तुम्हें ऐसे ही रहना है तो तुम जा सकते हो यहां से। अच्छा किया जो मैंने प्रॉपर्टी तुम्हारे नाम नहीं की वरना न जाने क्या करते तुम।

किस प्रॉपर्टी की बात कर रही हैं मामी आप वह तो आप पहले ही मेरे नाम कर चुकी हैं। उस दिन आपके हाथों पर जो स्याही लगी थी वह वही स्याही थी जिससे आपने प्रॉपर्टी के दस्तावेज पर अंगूठा लगाया था। हमने रात में आपके खाने में नींद की गोली मिला दी थीं जिससे आपको कुछ पता नहीं चला और पूरे हाथ भी इसीलिए रंग दिए थे ताकि आपको शक न हो।

सलिल तुम्हें भगवान कभी माफ नहीं करेगा तुमने सहारे की आड़ में #साजिश को अंजाम दे कर मुझे छला है तुम कभी सुखी नहीं रहोगे.. कहते हुए जानकी की गर्दन एक ओर लुढ़क गई।

#साजिश 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

Leave a Comment

error: Content is protected !!