सच्चा बंधन – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“मम्मी,घर से दूर रहकर एक नई बात समझ में आई है मुझे।पूछो क्या?”

रागिनी की बेटी (रिया)ने पूछा।रागिनी ने भी उत्सुकता से कहा”क्या बात ?बता ना।”

“मां,बहन को उसकी रक्षा का वचन देकर  कलाई पर राखी बंधवाने का चलन सदियों पुराना है।देखो ना,जिनके भाई नहीं होते,वो लड़कियां तो असुरक्षित रह जातीं हैं।कोई उनकी रक्षा का वचन क्यों लेगा?तब हर लड़की को ग्लानि होती होगी कि उसका भाई क्यों नहीं है?”

रागिनी बेटी की मनोदशा समझ कर घबरा गई और कहा”ये बातें तू क्यों कर रही है रिया?तेरा तो बड़ा भाई है ना।”

“हां मम्मी!मेरा तो भाई है।यहां हॉस्टल में बहुत सारी लड़कियां हैं,जिनके भाई नहीं हैं।कल उन्हीं से बात हो रही थी।मुझे बहुत बुरा लगा।क्या दोस्त बनकर किसी की रक्षा का वचन नहीं लिया जा सकता?”

रागिनी को गर्व हुआ रिया पर।बचपन से सभी कहते थे,बुआ पर गई है,मौसी पर गई है।उसके पापा तो कहते थे कि उन पर गई है।आज रागिनी को असलियत समझ आ गई कि मां की कोख में नौ महीने रहकर ,बच्चे में मां की सोच ना पनपे ऐसा हो ही नहीं सकता।ख़ुद भी तो ऐसी ही क्रांतिकारी विचारों वाली थी।सबसे अलग सोच वाली।हमेशा दूसरों को अहमियत दी थी उसने।कभी किसी के प्रति दुराग्रह नहीं रखा।इस बात का परिवार वाले मजाक भी बनाते थे।समय के साथ रागिनी का दृष्टिकोण ही उसकी पहचान बन गया था।उसकी अपनी बेटी भी पापा के साथ मिलकर खूब चिढ़ाया करती थी कि जब लोग छल करेंगे तुम्हारे साथ ,तब तुम्हें अपनी सहजता भारी लगेगी। यद्यपि ऐसा कभी हुआ नहीं।

आज वही बेटी घर से दूर रहकर रक्षाबंधन का महत्व समझा रही थी। रागिनी को चुप देखकर रिया बोली “मम्मी,सुन रही हो ना!कुछ बोलो ना।मैं क्या पूछ रहीं हूं समझ गई ना?”

रागिनी ने हंसकर कहा”हां-हां,समझ गई।हर रिश्ते में एक वचन होता है,वो  मित्रता का भी है।जिसे मन से मित्र मानो,सुख-दुख में उसके साथ खड़े रहना ही वचन है। आर्थिक रूप से भले किसी की सहायता ना कर पाओ, मानसिक सहारा तो दे ही सकतें हैं।जिसे अपना मानो,उसके लिए सदा अच्छा और शुभ सोचना ही वचन है,बंधन है।”

रिया ने कहा”बस-बस मम्मी,मैं समझ गई।अब एक बात और बता रहीं हूं। हॉस्टल में मेरी एक सहेली और बन गई है।मैं,दीदी और श्रेया तीनों एक दूसरे को राखी बांधेंगे।साथ में यह वचन भी लेंगे कि हमेशा मन से साथ रहेंगे।ठीक है ना।राखी के एक दिन पहले ही राखी मनाकर घर आ जाऊंगी मैं।दो दिन की छुट्टी होगी।रखती हूं अब।कल बात करूंगी।”रागिनी का मन गदगद हो गया।सोचने लगी कि हम हमेशा इस पीढ़ी के प्रति कितनी नकारात्मक सोच रखते हैं?आजकल के बच्चे रिश्तों को मान नहीं देते।आजकल के बच्चे जीवन के प्रति गंभीर नहीं हैं। स्वार्थी हैं आज की पीढ़ी।कितना गलत सोचतें हैं हम। आधुनिकता में संस्कार की मिलावट खरा सोना बना देती है।आज एक नितांत नई सीख बेटी ने दे दी।यह तो कभी सोचा भी नहीं था रागिनी ने। सुख-दुख में साथ रहने का वचन, मित्र की कलाई पर मौली बांध कर लेना पवित्र संकल्प है।

हॉस्टल से निकलकर आज रिया नौकरी कर रही है।रूम मेट सीनियर(जिसे दीदी कहती थी रिया),और रिया एक ही शहर में नौकरी कर रहे थे।दोनों का क्षेत्र अलग था,पर शहर एक।कमरा एक।प्रेम एक।विचार एक।आठ साल पहले कलाई पर बांधी हुई मौली का सिलसिला आज भी गतिमान है।साथ रहकर कब दोनों बहन बन गईं एक दूसरे की,पता ही नहीं चला।कब रिया से दो साल बड़ी सीनियर उसकी मां बन गई ,पता ही नहीं चला।दूसरे शहर में घर से दूर कभी एक ,दूसरे का बड़ा भाई बन जाती,और कभी एक छोटी बहन बनकर लाड़ लड़ाती।इस प्रेम के रिश्ते को किसी प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं।अब यह जो तीसरी सहेली (राखी वाली)श्रेया थी,उसके परिवार में एक के बाद एक दुर्घटना होती रही।पिता चल बसे।एक बहन चल बसी।मां को गंभीर बीमारी हुई।इन दुख के दिनों में अगर कुछ संबल था तो तीनों सहेलियों का परस्पर वार्तालाप।श्रेया को मानसिक तौर से  मजबूत बनाए रखा रिया और दीदी ने।तीनों ने हर राखी में एक दूसरे को राखी भेजना नहीं भूली।

इस साल राखी में रिया को आना था घर।साथ में दीदी(तृप्ति)भी आने वाली थी अपने घर।एक सप्ताह की छुट्टी लेकर आने की योजना थी।उसी दौरान तृप्ति का जन्मदिन भी है।तो तय यह हुआ था कि तृप्ति और उसका भाई,और रिया और उसका भाई मिलकर महाकाल के दर्शन करने जाएंगे।

टिकट कभी हुआ नहीं था कंफर्म,तभी रिया का फोन आया रोज़ की तरह”मम्मी,क्या कर रही हो?”बेटी की आवाज में पीड़ा का भान मां को हो ही जाता है। चिंतित होकर पूछा”क्या हुआ रिया?तबीयत तो ठीक है ना!तेरी आवाज़ ठीक नहीं लग रही।”

उधर से रोते हुए बोलने लगी रिया”मम्मी,श्रेया की तबीयत बहुत खराब है।छह अभी तक घुटना मुड़ नहीं पा रहा।उसकी आवाज में बहुत निराशा लगी आज बात करने पर।मैं उसका जन्म समय और स्थान भेजूं क्या?शास्त्री जी को दिखवा दोगी?कुछ उपाय तो बताएंगे ना वो!”

श्रेया के बारे में जानकारी थी रागिनी को,बात भी हुई थी कुछ दिनों पहले।छह महीने पहले छोटा सी दुर्घटना हो गई थी। जयपुर में नौकरी कर रही थी।स्कूटी में ही थी जब किसी ने ठोकर मारी दी थी।हड्डी तो नहीं टूटी थी,पर लिगामेंट रप्चर हो गया था। ऑपरेशन के बाद घर वाले लेकर आए थे उसे अपने साथ।गलत फिजियोथेरेपी की वजह से दर्द फिर बढ़ गया था।वापस फिर ऑपरेशन करना पड़ा।तब से अब तक (लगभग महीने भर से)भयानक दर्द से गुजर रही थी वह।

पता नहीं रिया के मन में क्या बात थी कि उसने शास्त्री जी से बात करने को कहा।रागिनी ने वैसा ही किया ,तब पता चला कि उसकी  गृह दशा अच्छी नहीं चल रही। आधुनिक समय में कुंडली और गृह दशा के बारे में सोचना और बात करना अंधविश्वास माना जा सकता है।अपने पिता की लंबी बीमारी में ,शास्त्री जी(पंडित )द्वारा निर्धारित पूजा का महत्व समझा था उसने।तब से अपार श्रद्धा थी उन पर।

शास्त्री जी के बताए हुए पूजा विधान श्रेया के घर वालों को तो बताया ही रिया ने,साथ ही स्वयं भी दीदी के साथ मिलकर घृष्णेश्वर मंदिर में पूजा की व्यवस्था करवाई उसने।रागिनी से हर बार यही पूछती”ठीक हो जाएगी ना मम्मी,श्रेया?दादा से भी पूछो ना,उसकी बात सच होती है।ठीक हो जाएगी ना वो?”,

मित्रता के बंधन की यह मजबूत धागा किसी चमत्कार से कम नहीं था।और आज रिया अपने भाई से पूछ रही थी कि वह राखी में श्रेया के पास चली जाए क्या?यहां घर आने के बदले।रागिनी को तब और संतोष हुआ ,जब बेटे ने पिता की तरह उसे 

“हां,बोनू।तुम दोनों उसके पास हो आओ।अकेली है वह अभी।तुम्हारे जाने से मनोबल बढ़ेगा उसका। फिजियोथेरेपी के साथ घर का खाना भी मिलेगा(पौष्टिक),तो जल्दी सुधार होगा।मैं इस बार तेरी भेजी राखी बांध लूंगा।इस बार तेरा श्रेया के पास होना जरूरी है।”

टिकट भी कंफर्म हो गया।सुबह दो बजे की फ्लाइट है। जयपुर पंहुचते ही दोनों सहेलियां श्रेया के डॉक्टर से मिलीं।श्रेया को अपने साथ ले जाकर फिजियो करवा रहीं हैं।कल शायद खाटूश्यामजी के मंदिर भी जाएंगी,व्हील चेयर पर बैठाकर श्रेया को।अबकी बार रक्षाबंधन का पावन त्योहार श्रेया के पास ही मनाया जाएगा।उसके परिवार के लोग राखी के बाद ही आ पाएंगें।बच्चों के इस निर्णय से रागिनी को कितना संतोष और सुख मिला ,बता नहीं सकती वह किसी को।रिया ने बताया”मम्मी,अभी श्रेया का फिजियो अच्छे से हो रहा है।पूरा मुड़ने लगा है घुटना अब। बहुत सकारात्मक सोच आ गई है उसमें।कह रही थी जल्दी ठीक होना है।फिर आंटी (रागिनी)को लेकर आएंगी अपने पास जयपुर घुमाने।

फिजियो तो काफी समय से ही चल रहा था,पर अपने मित्रों का सानिध्य उसे बल दे रहा था।मन से जल्दी स्वस्थ होने की चेतना जागी थी श्रेया में।उसका यह परिवर्तन,शरीर में दिख रहा था।घुटने का संतुलन बनने लगा था।रिया ने बताया रागिनी से”हम लोग सात दिनों तक रहेंगे यहां।इस बीच डॉक्टर से बात करके नया कोई निर्णय लेना पड़ेगा।अकेले तो बहुत मुश्किल हो जाएगी।उसकी दीदी तुमसे बात करना चाहती हैं।तुम सही -सही बात बताना जो शास्त्री जी ने करने को कहा है।अब हम लोग पास के ढाबे में ले जा रहें हैं श्रेया को ।वहीं खाना खाएंगे।श्रेया ठीक होगी जरूर होगी।

राखी भी हम पुणे से ही ले आए थे।मौली यहीं खरीद देंगें।श्रेया को एक चुनरी साड़ी देना था तुम्हें।मैंने डांट दिया है।जब अच्छी हो जाएगी पूरी तरह से,तब खरीदना।अब रखती हूं मम्मी।कल‌ बात करूंगी ना।”,

रागिनी को अपना कद बौना लगने लगा बेटी के सामने।हम तो इतना अपने परिवार वालों के लिए भी नहीं‌ सोच पाते।यहां ये दोस्त ,अपना सारा सामर्थ्य लगा देना चाहतें हैं जिससे वो जल्दी ठीक हो जाए।

सच ही कहते हैं,ये बंधन‌ सिर्फ कच्चे धागों का नहीं।इन धागों में‌ होता है विश्वास,भरोसा,इंसानियत और सबसे बड़ा एक अनकहा वचन ,जो बुरे वक्त में साथ रहना।भले कुछ ही सुधार हो रहा होगा,पर तीनों साथ में हंस-रोकर एक दूसरे की हिम्मत बंधाती हैं ।कोई किसी ने ना कम,ना कोई ज्यादा।हर बंधन से मजबूत है यह प्रेम और‌ समर्पण का बंधन।

अब जयपुर में लगभग दस सालों के बाद तीनों सहेलियों की राखी मनेगी।तीनों एक दूसरे की बहन भी,और‌‌ भाई

भी।यही है असली बंधन।सच्चा बंधन।

 शुभ्रा बैनर्जी 

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