नेहा और नीरज की नई नई शादी हुई थी।दोनों अपनी गृहस्थी बसाने में जुट गए।नेहा बहुत समझदार थी घर को कैसे चलाना है ये उसे अच्छे से आता था नीरज भी काफी सुलझा हुआ था उसने भी अपने मम्मी पापा को घर व्यवस्थित रूप से चलाते हुए देखा था।
नीरज नेहा को घर खर्च के लिए हर महीने निश्चित धन राशि देता था और नेहा भी बड़े सुचारू रूप से उतने पैसे में घर खर्च मैनेज करती थी।नेहा और नीरज अभी किराए के मकान में रह रहे थे..दोनों का सपना जल्द से जल्द अपना फ्लैट लेना का था इसलिए दोनों बचत पर ज्यादा ध्यान देते थे।
एक दिन नीरज के ऑफिस जाने के बाद नेहा घर के काम निबटाकर जैसे ही आराम करने के लिए लेटी तो डोर बेल बजी..नेहा सोचने लगी इस समय कौन होगा?क्योंकि अभी तक इस शहर में उसकी किसी से ज्यादा जान पहचान नहीं हुई थी बस संडे के दिन कभी कभार नीरज के ऑफिस वाले आ जाते थे।नेहा ने दरवाजा खोला तो देखा मकान मालकिन खड़ी थी जो पास में रहती थी…नेहा ने मुस्कुराकर उन्हें अंदर आने को कहा।
मकान मालकिन सोफे पे बैठते हुए बोली -“अरे..तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया?”
“नहीं..नहीं आंटी जी,इसमें डिस्टर्ब होने वाली क्या बात है?बल्कि अच्छा हुआ आप आ गईं वैसे भी मैं अकेले बोर हो रही थी।”नेहा खुश होते हुए बोली।
“मैं बड़े दिन से सोच रही थी तुम्हारे पास आने की पर बच्चों के साथ समय ही नहीं मिलता।”
कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद मकान मालकिन बोली -“अरे मैं तो भूल ही गई..तुम्हारे पास एक दो प्याज होंगे क्या ? वो बेटा स्कूल से आया तो जिद पर अड़ गया कि मैगी खानी है वो भी प्याज वाली.. मैंने देखा तो प्याज खत्म हो गए थे….मैंने उससे कहा बिना प्याज वाली बना दूं तो उसने मना कर दिया और रूठकर बैठा है।”
“हैं ना आंटी..मेरे पास बहुत सारे प्याज पड़े हैं अभी कल ही लेकर आई थी।”कहकर नेहा किचन से चार पांच प्याज ले आई और मकान मालकिन को दे दिए।
“अरे इतने सारे नहीं चाहिए बस दो देदो मेरा काम हो जाएगा।” कहकर मकान मालकिन ने दो प्याज रख लिए और बाकि के नेहा को वापिस कर दिए।पर नेहा ने प्याज वापिस नहीं लिए।
“रख लीजिए आंटी जी काम आ जाएंगे।”
“थैंक्यू नेहा..चलो फिर आती हूं।”कहकर मकान मालकिन चली गई।
नेहा को मकान मालकिन से बात करके अच्छा लगा।शाम को नीरज जब ऑफिस से आया तो उसने उसे बताया कि मकान मालकिन का स्वभाव बहुत अच्छा है तो नीरज बोला -“चलो अच्छा है तुम्हें कंपनी मिल गई..तुम्हारा भी जब दिल करे तो उनके पास चली जाया करना।”
नेहा रोज सोचती कि आज वो मकान मालकिन के पास जाएगी..पर मकान मालकिन उसे मौका ही नहीं देती..क्योंकि वो खुद ही रोज कभी कुछ..तो कभी कुछ मांगने के बहाने से उसके घर आ जाती थी।
शुरू शुरू में तो नेहा को बुरा नहीं लगा पर अब अपनी मकान मालकिन की रोज़ कुछ न कुछ माँगकर ले जाने की आदत से वो बहुत परेशान होने लगी। माँगने का सफ़र जो दो प्याज से शुरू हुआ था…वो साग-सब्जियाँ,तेल-घी, नमक-मसाले,नमकीन-बिस्किट,फल,आटा इत्यादि की सीमाएं लाँघता हुआ एक चुटकी हींग पर भी आकर थमने का नाम नहीं ले रहा था।
अब तो मकान मालकिन गाहेबगाहे कभी भी आ धमकती और खुद ही फ्रिज और अलमारियाँ खोलकर जो चाहिए होता निकाल कर ले जाती और लिहाज़ में आकर नेहा बस एक मूक-दर्शक की भाँति खड़ी-खड़ी उसे अपलक देखती रह जाती क्योंकि उसके मन में ये डर था, कि अगर कुछ देने से मना किया तो मकान मालकिन उन्हें घर खाली करने को ना कह दे..बड़ी मुश्किल से ये घर मिला था।और शायद इसी बात का फायदा मकान मालकिन उठा रही थी।
नेहा की रसोई के बजट की दीवारें धीरे -धीरे खोखली होकर चरमराने लगी थीं। जब पानी सिर के ऊपर हो गया तो उसने नीरज को सारी बातें बताई और इस समस्या का हल निकालने के लिए बोला।
“चलो,देखता हूं कैसे इस समस्या से निपटा जाए?तुम ज्यादा परेशान ना हो।”नीरज ने नेहा को दिलासा देते हुए कहा।
एक दिन नीरज चहकते हुए नेहा से बोला -“मिल गया..मिल गया।”
“क्या मिल गया नीरज?और तुम इतने खुश क्यों हो रहे हो?”
“अरे आइडिया मिल गया।”
“कैसा आइडिया?”
” वही कि रसोई का बिगड़ता हुआ बजट कैसे संभाले…मतलब मकान मालकिन को कैसे सबक सिखाएं?”
“सच..क्या सोचा तुमने?”नेहा उत्सुकता से बोली।
“देखो,तुम मुझे बस मकान मालकिन द्वारा ले जाए गए सामान की लिस्ट बनाकर दे दो बाकि मैं सब देख लूंगा।”
नेहा को जो जो याद आया उसने उसकी लिस्ट बनाकर नीरज को सौंप दी।महीने के अंत में जब किराया देने का समय आया तो नीरज ने उस लिस्ट में सभी चीजों के दाम लिखकर किराए में से वह राशि काट दी और बकाया रकम मकान मालिकन को पकड़ा दी और उसे लिस्ट भी थमा दी।
मकान मालकिन चुप रही कुछ बोली नहीं और किराया अपने पति देव को पकड़ा दिया।मकान मालिक जो इन सब बातों से अनभिज्ञ थे,नीरज से बोले -“भई,इस बार किराया इतना कम क्यों दिया?किस बात के पैसे काटे?”
“अंकल जी..आंटी जी रोज कुछ न कुछ हमारे घर से मांगकर ले जाती थीं..मेरी पत्नी बेचारी इनका लिहाज करके कुछ बोलती नहीं थी…हमारे रसोई का बजट बिगड़ने लगा तो बस उसकी भरपाई करने के लिए हमें ये कठोर कदम उठाना पड़ा।समान की लिस्ट आंटी के पास है..आप देख सकते हैं।” नीरज तंज कसते हुए बोला।
मकान मालिक ने गुस्से से अपनी पत्नी को देखा…उसकी नजरें शर्म से झुक गईं।
घर आकर नीरज ने सारा किस्सा सुनाया तो नेहा खुशी से उछलते हुए बोली -“येस्सस्स…ये हुई ना बात ! अब आंटी भूल से भी हमारे घर नहीं आएंगी..और हमारे रसोई का बजट भी नहीं बिगड़ेगा।”
वो दिन और आज का दिन… मकान मालकिन की सामान माॅंगकर ले जाने की आदत छूट गई और नेहा ने राहत की साॅंस ली।
दोस्तों कुछ लोग सामने वाले की मजबूरी का गलत फायदा उठाते हैं।ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिए कठोर कदम उठाना पड़ता है।
कमलेश आहूजा