सबक – चंचल जैन : Moral Stories in Hindi

राधा अनंत का प्रेमपत्र हाथ में लिए बैठी रही। क्या करूं? कैसे हो गया ये सब? भावनाओंके उद्रेक में, अनंत के प्रेमजाल में फँसी, छटपटा रही थी वह। खुद ही हैरान थी, उसकी मीठी-मीठी बातों में कैसे उलझ गयी वह।

शादी का झांसा देकर वह चला गया। किसे कहे, उसके साथ उसने कैसा खेल खेला है। मन ही मन ठान लिया है उसने, सबक तो सिखाना होगा।

फेसबुक पर जाकर उस ने अनंत को प्यार भरा, चिकनी चुपड़ी बातों से सराबोर मैसेज अपनी सहेली प्रिया के नाम से लिखा।

बातें होती रही। प्रेम का नाटक चलता रहा। सुंदर, शालीन प्रस्तुति देती रही वह।

मिलने को उतावला हो रहा था वह। राधा मुखौटा धारी को बेनकाब करने को आतुर।

सुंदर सा विग खरीद लिया उसने। चाल ढाल में बदलाव किया। रंगीन गाॅगल,महीन स्कार्फ लपेटकर मिलने चली आयी। मद्धिम रोशनी मे दोनों संगीत का आनंद ले रहे थे।

वेटर से कहकर दो पेग मंगवा लिए थे।

” हमारे मिलन की खुशी में जाम हो जाये।”

“अपने हाथों से पिला दो न महबूबा मेरी।”

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कहते हुए उसने उसको बाहों में भर लिया। कितना रोमांचक अंदाज। पहले भी तो इसी मोहक अदा ने लूटा था उसे। अब तो वह ठगने आयी है।

बातों में उलझाकर खूब शराब पिला दी उसे। सारा सच उगलवाकर रेकार्ड कर लिया। थोडी ही देर में वह वहीं लुढ़क गया। उसके साथियों को घर छोडने की रीक्वेस्ट कर वह चली गयी।

अनंत धनाढ्य परिवार का इकलौता वारिस था। अति लाड़ प्यार से बिगड़ा हुआ। लेकिन उसकी माताजी रमा देवी बहुत ही अच्छी थी। दयालू और नेक। मंदिर में जब भी आती, दान धर्म खूब करती। राधा उसे मिलने मंदिर में आयी।

” नमस्ते आंटी जी। कैसी हो आप?”

” जीती रहो बेटा।”

” कैसे हो रही है पढाई?”

” आजकल मिलने नहीं आती अनंत से?”

” आंटी जी, आपसे कुछ बात करनी है।”

मंदिर में ही एकांत पाकर दोनों बैठ गयी।

उसने अपनी सारी बात यथावत सुना दी।

रमा देवी ने उसको आश्वासन दिया, अब ऐसा नहीं होगा। अब वह किसी के साथ धोखा नहीं करेगा। 

रमादेवी ने कभी उसके जीवन में घालमेल नहीं की थी। आया के भरोसे अनंत बडा हुआ था। राजसी थाट वाले परिवार में माता पिता मिलने मिलाने में ही व्यस्त रहते। हर चीज इज्जत के तराजू में तोली जाती। दिखावा, आडंबर अहं था। सजधजकर रहो। हंसते रहो, चाहे आंखों में आंसू छुपे हो।

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अब इतना रुबाब रहा नहीं, पर अकड़ बनी हुई थी।

धरातल से उपर की अधकचरी सोच विचार ने जीवन खोखला कर दिया था।

” बस आंटी जी, न तो हमें अनंत का जीवन साथी बनना है, न ही आपकी घर की बहू बनने का सपना संजोया है हमने। चाहती हूं, और किसी के साथ यह प्यार का खेल न हो।”

” बेटी, तुमने मेरी आंखे खोल दी।”

” वैसे अनंत दिल का बुरा नहीं। विश्वास रखना, गलती नहीं दोहराएगा अनंत।”

अनंत को सबसे पहले बुरे मित्रों से दूर किया गया। विशेष ध्यान देकर, संगत बदलकर उसे सुधारने का प्रयास किया गया।

आज वह अपनी कंपनी का कामकाज संभालने में रमादेवी का पूरा सहयोग करता है। पापा राजाराम जी की मृत्यु के बाद वह धीरे-धीरे संभलने लगा। 

अपने आप में व्यस्त गलत आदतें कम होने लगी। रंगीन मिजाजी कम हुई। 

कभी-कभी एकाध पेग ले लेता।

अपने अतीत को वह भूलाना चाहता था। लेकिन जब भी नशा चढता, राधा के कई

रूप उसके आसपास मंडराते। वह उसका हाथ पकडने की कोशिश करता। राधा..राधा..पुकारता रहता।

श्यामू काका उसे संभाल लेते।

आंखे नम हो जाती उनकी। वह राधा को जानते थे। चाहते थे कि बिटिया इस घर में आये। पुराने थे तो कभी कभार रमादेवी को सलाह भी दे देते थे। अनंत, छोटे साहब को बातों-बातों में कडवी बातें भी कह देते। रमादेवी भी महसूस कर रही थी, अनंत राधा को चाहता है। हद से ज्यादा प्यार करता है।

आज रमादेवी और अनंत राधा से मिलने जायेंगे। विश्वास के.साथ कि राधा अनंत की जीवन संगिनी बनेगी। मान जायेगी वह।

 

स्वरचित  मौलिक कहानी

चंचल जैन

मुंबई,  महाराष्ट्र

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