“माँ मुझे प्लाट खरीदने के लिये पैसे कम पड़ रहे, पापा से तो मांगने पर वे देंगे नहीं, आप ही कुछ मदद कर दो, मैं आपका ये पैसा जल्दी ही वापस कर दूंगा “बड़े बेटे तुषार ने माँ नंदा देवी से गुहार लगाई तो माँ का दिल पसीज गया,उन्होंने अपनी बचत के पैसे, जो छोटी बेटी के गहने बनवाने के लिये इकठ्ठा कर रही थी, दे दिया.।
“माँ मैं जल्दी ही आपके पैसे लौटा दूंगा “माँ के हाथ पकड़ तुषार बोला
“अभी तुम अपना प्लाट खरीद लो, इन पैसों को लौटाने के बजाय तुम, टिल्लू के लिये सोने के कंगन बनवा देना, आखिर धीरे -धीरे इकठ्ठा करुँगी तभी तो समय पर सब हो पायेगा, तुम्हारे पापा से कब से कह रही हूँ पर वे टाल जाते है “
“आप निश्चित रहो माँ, मैं अपनी तरफ से और लगा कर टिल्लू उर्फ़ तूलिका के लिये सात तोले का सोने के भारी कंगन बनवा दूंगा,आखिर बड़ा भाई हूँ उसका, हमारी जिम्मेदारी है वो “
माँ नंदा देवी हर्षित हो उठी, तुषार के पापा तो बेवजह अपने बेटे से नाराज रहते है, कितना सोच रहा है छोटी बहन के लिये।
“क्यों टिल्लू तुम्हारे लिये डायमंड के कँगन बनवा दूँ “
पास बैठी दस वर्षीय तूलिका जिसे प्यार से सब टिल्लू कहते,डायमंड के कंगन की बात सुन मुस्कुरा उठी,
” न तुषार कँगन तो सोने के ही बनवाना, शादी में सोना ही दिया जाता है “
“ठीक है माँ, जैसी तुम्हारी इच्छा “कह तुषार ने कंधे उचका दिये,
तुषार की पत्नी माँ-बेटे का वार्तालाप सुन रही थी, अंदर आने पर तुषार पर बरस पड़ी,
“बड़ा बहन पर प्यार आ रहा जो सात तोले का कँगन बनवा रहे है, बनवाना है तो अपनी बेटी के लिये बनवा कर रख दो “
“तुम भी बातों में आ जाती हो, अरे माँ को ऐसे ही कह दिया, मैं कौन सा कँगन बनवाने जा रहा हूँ, बोलने में क्या जाता है,”कह तुषार व्यंग से हँस दिया।
“पर टिल्लू की शादी के समय कैसे सम्भालोगे”
“अरे माँ को पटाना बहुत आसान है, मुँह बना कर कह दूंगा ला रहा था, ट्रेन में चोरी हो गया, पापा भले न माने लेकिन माँ मान जायेगी, आखिर उसका बड़ा बेटा हूँ मैं “
तुषार की ये बात किसी काम से अंदर आये उसके पिता ने सुन लिया
नंदा देवी से जब शंकर जी ने पूछा, “तुमने कँगन बनवाने के लिये तुषार को पैसे दिये “
नंदा देवी पति के क्रोध से वाकिफ थी, उन्होंने मना कर दिया तब शंकर जी ने तुषार और उसकी पत्नी की बातें कह सुनाई,
लेकिन सरल ह्रदया नंदा देवी बेटे पर अविश्वास नहीं कर पाई,।
अगले दिन तुषार अपना परिवार के साथ पोस्टिंग वाले शहर चला गया….,
तुषार, नंदा देवी और शंकर जी का बड़ा बेटा था, उनके चार बच्चे थे दो लड़के, दो लड़कियाँ…, तुषार के बाद की लड़की की शादी शंकर जी कर चुके थे, एक बेटा और सबसे छोटी टिल्लू बाकी थी.
कुछ वर्ष पश्चात तुषार के छोटे भाई तनय की भी शादी हो गई, शादी के समय नंदा देवी ने तुषार को फिर कँगनों की याद दिलाई ,तुषार उस समय भी,”चिंता मत करो माँ पूरे सात तोले का कँगन बनवाऊंगा “कह नंदा देवी को बरग़ला लेता…….।
सब बच्चे व्यवस्थित हो चुके थे, सिर्फ टिल्लू की जिम्मेदारी बाकी थी, शंकर जी के रिटायरमेंट का समय नजदीक आ रहा था, वे चिंतित थे, टिल्लू ग्रेजुएशन कर रही थी, तभी शंकर जी को किसी ने राहुल के बारे में बताया, शंकर जी मृदुल और उसके माता -पिता से मिले, मृदुल उन्हें भा गया, सबकी सहमति से उन्होंने टिल्लू का रिश्ता तय कर दिया, दो महीने बाद शादी की तिथि पक्की हो गई।
शंकर जी को चिंता थी, इतनी जल्दी तैयारी कैसे हो पायेगी, नंदा देवी ने अपने बचे गहने और अपनी बचत के सारे पैसे टिल्लू की शादी में निकाल दिये, हार, झुमका आदि गहने आ गये, कँगन खरीदने की बारी आई तो नंदा देवी ने पति को रोक दिया,
“कँगन तुषार ला रहा “
“तुषार पर विश्वास मत करो, लगे हाथ कँगन भी ले लो “
पर नंदा देवी निश्चित थी, कँगन तो तुषार ले ही आयेगा।
शादी के एक दिन पहले तुषार आया, नंदा देवी ने आशा से उसकी ओर देखा, उनके कुछ बोलने से पहले ही तुषार की पत्नी ने रोना शुरु कर दिया
पूछने पर पता चला ट्रेन में किसी ने उनके गहने वाली अटैची उठा ली,
” टिल्लू के कँगन… “बड़ी मुश्किल से नंदा देवी बोली
“माँ, हमारे गहनों के साथ टिल्लू के वो सात तोले का सोने का कँगन भी चला गया, कितनी मुसीबत से इन्होने टिल्लू के लिये बनवाया था…”नकली आँसू बहाते बहू को बेटे की तरफ आंख मारते देख नंदा देवी सब समझ गई, उन्हें मूर्ख बनाया गया, फिर भी उन्हें यकींन नहीं हो रहा था उनका ही बेटा उन्हें धोखा देगा.
सारे गहने पहने टिल्लू बहुत सुंदर लग रही थी नंदा देवी की नजर टिल्लू के हाथों पर पड़ी तो चिंतातुर हो बोली,बिना कँगनों के , अब बिदाई कैसे होगी।”
सोने के कँगन अब इतनी जल्दी कैसे बनेगें, टिल्लू सबसे छोटी होने से नंदा जी और शंकर जी की ज्यादा लाड़ली थी, नंदा जी ने अपने कँगन टिल्लू को पहनाये तो वे पुराने लग रहे थे, घर के लोग परेशान थे, तभी छोटी बहू ने अपने सोने के भारी कँगन उतार टिल्लू को पहना दिये.
नंदा देवी के आँसू बहने लगे, कैसी विडंबना, दोनों पुत्र उसके कोख से जन्म लिये लेकिन व्यवहार में दोनों ही अलग है,बड़े बेटे और बड़ी बहू जितने स्वार्थी,वहीं छोटे बेटे और बहू ने आगे बढ़ घर की इज्जत संभाली।
नंदा देवी छोटी बहू को मना करती रही पर छोटी बहू ने कहा, माँ टिल्लू मेरी भी बहन है और घर की इज्जत संभालना हम सब का काम है…।
टिल्लू की विदाई पर नंदा देवी बहुत रोई, जहाँ टिल्लू को अच्छा घर -वर मिलने की खुशी थी, तो वहीं अपने जायें पुत्र के धोखे की कसक भी थी , एक माँ सारे बच्चों को एक सामान प्यार करती है वहीं कुछ बच्चे अपने स्वार्थ में अपने माँ-बाप को भी नहीं छोड़ते…,.
परवरिश तो समान थी, फिर स्वाभाव में ये अंतर क्यों था नंदा देवी समझ नहीं पाई., दादा -दादी के लाड़ -प्यार में बिगड़ा तुषार सिर्फ अपना स्वार्थ देखता था ,पत्नी भी उसी तरह स्वार्थी आई, अतः तुषार के सुधरने की गुंजाइश नहीं बची….।
टिल्लू ब्याह कर चली गई, लेकिन सोने के उन कंगनों की कहानी, परिवार में बहुत दिनों तक याद की जाती थी, कुछ पैसों के लोभ में रिश्तों को खो देना, बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि पैसे तो आने -जाने वाली चीज है जबकि रिश्ते अमूल्य है…।
शंकर जी ने अपनी वसीयत में तुषार को कोई हिस्सा नहीं दिया।
समय पलटा .. तुषार के बेटे भी उसी की तरह निकले, तब तुषार को समझ में आया जो बोया जाता वहीं फल भी मिलता है, पर अब पछताने से बीता समय तो लौटने से रहा।
पैसा फिर कमाया जा सकता लेकिन रिश्ता टूटने के बाद जुड़ भी जायें तो गांठ पड़ ही जाती, अतः अपनों को धोखा न दें,।
—-संगीता त्रिपाठी
#सोने के कँगन