सास को बहू की तकलीफ़ नहीं दिखती है। – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

अयी महारानी ऊठो,सुबह के आठ बज गये, क्यों चाय नहीं देनी-सास राधा अपनी बहू माया को ताने मारकर जगा रही थी।

माया दस साल पहले व्याह कर इस घर में आयी थी ,सास के व्यवहार से तंग आ गयी थी।खांसकर जुबान से आग उगलती थी।

आज मेरी तबियत ठीक नहीं है -वह धीमे स्वर में बोली।

क्या कहा?तू नहीं करेगी ,तेरे होते हुए -सास गुस्से में बोलने लगी।

कहा न ,आज मेरी तबियत ज्यादा खराब है-यह संयत लेकिन कड़े स्वर में बोली।

अरे छोड़ दें न,यह श्वसुर दीनदयाल की आवाज थी।

आज तुम ही बना लो-श्वसुर समझाते बोले।

बहू के होते हुए मैं या मेरी बेटी नहीं काम करने वाली,इसका मरा बाप भी—वाक्य अधूरा रहा कि गाल पर एक बज गया।

क्यों एक बार में समझ नहीं आता-अब तो बुढ़िया यानि राधा भागी।उधर तीनों बेटियां भी क्या हुआ मां -कहती पास आ गयी।

आज बहू की तबियत खराब है,चल चाय बना।

हमलोग मैके काम करने थोड़े न आयी हैं -तीनो हंसती बोली।

कोई नहीं,काम के डर से महारानी बीमार का नाटक कर रही है,जाती हूं,गाल पर एक -कहती वह भाभी के कमरे में गयी और जैसे ही कंबल हटाया –

चटाक चटाक -थपाडे गुंजने लगे और फिर बेल्ट बरसने लगे।मार मारकर ठीक कर दिया।

बाप रे करती भागी। मां बचाओ,भाभी मार डालेगी-कहती भागी।अब तो सभी सन्न थी।बहू का ऐसा रूप किसी ने नहीं देखा था।

चलो चाय नाश्ता आज हमलोग बनाते हैं -तीनो मार के भय से सन्न थी। चुपचाप चाय बना और उसे भी दे आयी।

अब दोपहर का खाना भी सास ने बनाया,यदि तुम सही से व्यवहार करती तो ऐसा दिन नहीं देखना पड़ता।

आने दें रतीश को,इसकी सही मरम्मत न करायी तो मेरा नाम राधा नहीं?-

कुछ मत बोल,उसी की शह पर सब हो रहा है।इधर तीनों बेटियां बदले रूप देखते ही शाम तक ससुराल चली गई।

शाम तक रतीश आया,यह नमक मिर्ची लगाकर बोली मगर दांव उल्टा पड़ गया।

मां के बजाय बीबी का पक्ष लेते बोला-मां आप बहू को इंसान नहीं समझते , खुद तो बोझ बनी हो,ऊपर से तीनों बहनें यहीं रहती है। हराम का खाती है, एक ग्लास पानी तक–

अरे मेरा खून मेरे खिलाफ —

हां मां,अब तेरी बहू तेरे साथ नहीं रहेगी। तुम#सास लोगों को बहू की तकलीफ़ नहीं दिखती।चाहे बीमार हो या कुछ भी-बस यहीं काम करेगी और गाली भी–

हमलोग अलग रहने जा रहे हैं।

मकान नहीं दूंगी -सास बोली।

मत दे,यह मकान हमारा है,मैंने बहू के नाम से खरीदा है।सो आप सोचो-कहता वह कमरे में चला गया और सामन पैक करने लगा।

अब तो राधा को बात समझ में आ गयी‌।

बुढ़ापे में मकान खोजना,खाना बनाना सब काम कैसे होगा।

तुरंत अपने पति के साथ कमरे में आयी-तुम लोग मत जाओ, मुझे समझ में आ गया है।अब से कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।

देय वाक्य-#सास को बहू की तकलीफ़ नहीं दिखती है।

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)

(शब्द संख्या -कम से कम 500)

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

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