मालिनी जी भोग के लिए लड्डू बना रही थी तभी उनकी बेटी का फोन आया। उनके फ़ोन उठाते ही उधर से आवाज आई माँ भाभी कहाँ है? मालिनी जी ने पूछा क्यों पूछ रही हो? वो क्या है न माँ मै कब से भाभी को फ़ोन लगा रही हूँ पर उन्होंने उठाया ही नहीं इसीलिए पूछ रही थी। अच्छा छोड़ो उस बात को आप क्या कर रही हो। मालिनी जी ने कहा भगवान का भोग बना रही थी।
वैसे भाभी से क्या काम है उसे क्यों फ़ोन कर रही थी? क्यों क्या मै भाभी को फ़ोन नहीं कर सकती? बात करने का मन किया तो फ़ोन कर ली तुनकते हुए उनकी बेटी ने कहा। फिर से मालिनी जी ने कहा बात करने के लिए तो फ़ोन की नहीं होंगी कुछ काम होगा तुम्हे उससे।मै तुम्हे अच्छे से जानती हूँ माँ हूँ
तुम्हारी,मालिनी जी की बात सुनकर उनकी बेटी गुस्सा हो गई और बोली मै फोन रखती हूँ आपसे तो कुछ भी बोलना बेकार है आप तो बस अपनी बहु को ही अच्छा समझती है और कोई तो आपको अपनी बहु के सामने दिखाई ही नहीं देता। अपनी बेटी को भी आप उनके सामने कुछ नहीं समझती है। एक मेरी सास है जो बस बेटी -बेटी ही करती रहती है।मै तो कुछ हूँ ही नहीं।अच्छा है मायके मे माँ को अपनी बहु अच्छी लगती है और ससुराल मे सास को अपनी बेटी।
पता नहीं मेरा स्थान कहाँ है? यह सुनकर मालिनी जी ने बेटी से कहा ” दोनों जगह तुम्हारा स्थान है मायके मे बेटी के रूप मे और ससुराल मे बहु के रूप मे। लेकिन तुम यह समझती नहीं हो कि रिश्ते ज़ेवर, कपड़ा या जमीन जायदाद नहीं है जो कोई माँ बाप खरीद कर बच्चो को दें देंगे। कुछ रिश्ते बनाने पड़ते हैअपने स्वभाव से, गुण से और व्यवहार से जैसे तुम्हारी भाभी ने बनाए है।
तुम कहती हो कि आपको अपनी बहु के अच्छाई के आगे कुछ दिखाई नहीं देता है।यह सही है मुझे दिखाई भी नहीं देता। जो मेरे लिए मेरी बहु ने किया है वह किसी ने भी नहीं किया है। मै तुम्हे तुम्हारे पापा या तुम्हारे भाई को दोष नहीं दें रही हूँ परन्तु जो तुम लोगो ने नहीं सोचा वह मेरी बहु ने मेरे लिए सोचा।
तुमलोगो ने सदा मुझे काम करते ही देखा लेकिन यह कभी भी नहीं सोचा कि मेरी भी कुछ सीमाएं है मेरी भी उम्र बढ़ रही है अब मै उतना काम नहीं कर सकती परन्तु तुम्हे तो अपने काम से मतलब था। तुम्हारी नजर मे तो माँ सुपर वूमन है जो सुबह चार बजे उठे और रात ग्यारह बजे सोए और बीच मे तुम्हारी सभी फरमाईसो को पूरा करती रहे।
लेकिन मेरी बहु ने मुझे समझा मेरी इक्छाओ का सम्मान किया जबसे आई है मुझे कुछ भी काम नहीं करने देती है परन्तु कोई भी काम मुझसे पूछे बगैर भी नहीं करती है। मेरे सम्मान के लिए सारी तैयारी करने के बाद आकर बोलती है माँ आप देख लीजिए मैंने सारी तैयारी कर दी है कुछ कमी तो नहीं है?
मै आपके जैसा तो नहीं कर सकती परन्तु अच्छे से करने की कोशिस की है। तू ही बता तेरी भाभी को क्या बनाना नहीं आता है फिर भी जब भी उत्सव होगा तो कहेगी माँ भगवान के भोग का लड्डू तो बस आप ही बना दीजिए आप के जैसा तो मै बना ही नहीं पाती हूँ।आपके हाथ लगाते ही जैसे स्वाद ही बदल जाता है।अब बता ऐसी बहु होंगी तो सास को कोई और दिखाई देगा? बेटी तुम घर की बेटी हो तुम्हे सभी प्यार करते है पर तुम्हारी भाभी घर मे नई आई है
उससे तुम्हारा खून का रिश्ता नहीं है इसलिए तुम्हे इस रिश्ते को बनाना होगा उसने तो तुम्हे अपनाया है पर तुमने उसे नहीं अपनाया है।जरूरत होने पर ही तुम भाभी को याद करती हो।भाभी से हमेशा प्यार से रहोगी तो तुम्हारा स्थान यहाँ हमेशा एक बेटी के रूप मे बना रहेगा। बेटा कितना भी अच्छा क्यों नहीं हो यदि बहू अच्छी नहीं होंगी तो सास ससुर के लिए बुढ़ापा काटना बहुत ही मुश्किल होगा।
बहू ही घर की धुरी होती है। वही होती है जो पुरे परिवार को जोड़ कर रखती है।बात सिर्फ शारीरिक ही नहीं होती है बुढ़ापे मे बुजुर्ग का मानसिक ख्याल रखना भी जरूरी होता है। सोचो यदि दो बहूए हो और आपस मे लड़ती रहे तो सास ससुर का जीना मुहाल हो जायेगा की नहीं ।बहू ननद का ख्याल नहीं रखती है
तब भी माँ बाप टूट जाते है।उन्हें लगता है कि हमारे बाद हमारी बेटी का मायका छुट्ट जाएगा।बहुए जब जब ननद का सम्मान करती है तब तब वे परोक्ष रूप से सास ससुर का ही ख्याल रखती है। हर परिस्थिति मे घर मे सुख शांति बनाकर सास ससुर का ख्याल रखती है।कोई कितना भी अपनी बेटी को प्यार करे पर बेटियां मेहमान की तरह ही आती है यह बात सब को पता है बहूए ही सास ससुर की सेवा करती है। तो तु ही बता मै क्यों नहीं तुम्हारी भाभी की प्रसंसा करू?
अपनी भाभी की तरह तुम भी अपनी सास का दुख दर्द समझोगी, उन्हें सम्मान दोगी तो तुम्हारी सास भी कहेंगी कि मुझे अपनी बहु की अच्छाइयो के आगे कुछ दिखाई नहीं देता।बेटियां दो चार दिन के लिए आती है बहुए ही बुढ़ापे का सहारा होती है।इसलिए सास ससुर की सेवा करना तुम्हारा फर्ज है।बेटा जिस घर के बुजुर्ग खुश रहते है उस घर मे ही सुख समृद्धि आती है।
आप सही कह रही हो।माँ आपने सही सोचा भी था मै भाभी से यह कहने के लिए ही फ़ोन कि थी कि थोड़े भोग के लड्डू और सोहन हलवा मेरे यहाँ के लिए भी बना कर भिजवा देना। परन्तु जब जरूरत नहीं है अब मै भी जा रही हूँ अपनी सासु माँ से पूछकर बनाने। देखना माँ अब मेरी सासु माँ भी बेटी बेटी की जगह अब बहू बहू कहेगी।
वाक्य — बुढ़ापे का सहारा ना बेटा, ना बेटी बल्कि बहू होती है
लतिका पल्लवी