एक साज़िश के तहत अजय को फंसाया गया था।वो अपनी सफाई में लड़ते – लड़ते हार चुका था क्योंकि कोई भी मानने को तैयार ही नहीं था कि अजय ने कुछ नहीं किया था।
अजय जिस आफिस में काम करता था वहां चमचों का ही बोलबाला था। इमानदार होना ही उसके लिए मुसीबत बन गई थी क्योंकि उसने अपने बड़े अधिकारी को मना कर दिया था कि वो गलत कांर्टेक्ट पर साइन नहीं करेगा।बस यहीं से उसकी जंग अपने ही सहयोगियों से शुरू हो गई थी। चंद पैसों के लालच में गांव वालों की सुविधाओं को कटौती करना उसे मंजूर नहीं था।
पहले तो उसका तबादला किया गया उसको वहां से हटाया गया था। बड़ी मुश्किल हुई थी बच्चों की पढ़ाई लिखाई स्कूल सब कुछ संभालना मुश्किल हो रहा था लेकिन पत्नी गौरी ने बहुत साथ निभाया था। ईमानदारी की सजा इंसान अकेले नहीं भुगतता उसके परिवार को भी कीमत चुकानी पड़ती है। गौरी ने फैसला लिया था कि वो इसी शहर में रह कर बच्चों के इस साल की पढ़ाई कराएगी।
समस्या यहां तक कहां रुकती है क्योंकि एक से पीछा छूटा तो दूसरा तैयार था। यहां ऑफिस में अजय के ईमानदारी की खबर पहुंच चुकी थी पहले से। अजय अपना काम करता और किसी में दखलअंदाजी नहीं करता क्योंकि बच्चों का भी ख्याल था उसके मन-मस्तिष्क में की अभी तो नजदीक तबादला हुआ है कहीं दूर फेंक दिया गया तो मुश्किल होगी।
एक दिन उसके मेज पर एक फाइल आई जिसको देख कर वो हैरान हो गया था।उस स्कीम में बुजुर्ग लोगों को मिलने वाली सुविधाओं को ही लेकर गलत किया जा रहा था। उसे बहुत दुख हुआ कि सरकार इतनी सारी सुविधाएं देती है जनता के लिए जो फाइलों तक ही सीमित रह जाती हैं।आम आदमी को जानकारी भी नहीं होती है की उन सुविधाओं का उसे कैसे फायदा मिलेगा।
रामलाल जो बड़े साहब का चपरासी था उसने आकर अजय को कहा कि,” बड़े साहब ने आपको अपने केबिन में बुलाया है सर”। अच्छा,” मैं आता हूं रामलाल” कह कर वो बड़े साहब के कमरे में गया।
सर!” मैं आ सकता हूं अंदर…”
हां!” आओ अजय… कैसा लग रहा है यहां काम करके?”
शर्मा सर ने फाइल पर सिग्नेचर करते हुए कहा और इशारा किया सामने कुर्सी पर बैठने की ओर।
“धन्यवाद सर…काम कर रहा हूं अपना। आपने मुझे बुलाया था सर कुछ जरूरी काम है क्या?” अजय ने बड़े अदब से बातचीत को आगे बढ़ाया।
अजय!” मैं कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर जा रहा हूं तो,ये कुछ जरूरी फाइल है तुम सिग्नेचर कर दो वरना काम फंस जाएगा।”
जी सर!” मैं पढ़ लेता हूं और तब सिग्नेचर कर दूंगा।”
अरे!,” मुझ पर भरोसा नहीं है क्या? इस ऑफिस में मैं तब से काम कर रहा हूं जब तुमने काम शुरू भी नहीं किया था और हां जल्दी से करो। मुझे एक मीटिंग में भी जाना है।”
बड़े साहब ने बड़े तरीके से बातचीत किया और अजय को ना तो समय दिया सोचने समझने का और ना ही पूछने का।
अजय का मन तो नहीं था इस तरह साइन करने का पर उसके पास कोई चारा नहीं था और उसने साइन किए और अपनी मेज पर आ गया।आज उसका मन बहुत बेचैन था कि उसका कोई निर्णय गलत ना हो लेकिन उसको समझ में नहीं आ रहा था की वो किससे पूछे।
समय निकलता गया। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था।गौरी भी बच्चों के साथ यहां आ गई थी। एक दिन समाचारपत्र में एक खबर छपी थी जिसमें लिखा था कि बहुत बड़ा घोटाले बाज, जिसने गरीबों की जेब में सेंध लगाई और काली कमाई से अपने घर को भरा।
गौरी भाग कर आई थी बताने की उस जालसाजी मामले में अजय का भी नाम है। अजय घबरा गया कि उसने तो कभी कोई ऐसा काम किया ही नहीं था। जल्दी – जल्दी ऑफिस पहुंचा तो उसकी मेज पर एक लेटर रखा था जिसमें उसको सस्पेंड कर दिया गया था।
वो भाग कर शर्मा सर के कमरे में गया तो शर्मा सर का तो व्यवहार ही पलट गया था कि,” तुम तो बड़ा इमानदारी का नकाब पहन कर रहते थे।कितना गिर गए हो?”
सर!” मैंने ऐसी कोई भी फाइल पर सिग्नेचर नहीं किया था” अजय घबराया हुआ था।
” ये देखो… तुम्हारे सिग्नेचर ही हैं ना?
“हां जी मेरे ही हैं, लेकिन ये तो आपने मुझसे करवाया था और मैंने बहुत जिद्द भी किया था कि सर मैं पढ़ कर करूंगा। आपने मेरी बात सुनी ही नहीं थी सर।”
” फालतू बात नहीं करो…. मैं तो छुट्टी पर था जब तुमने सिग्नेचर किया था।”
अजय को समझते देर नहीं लगी थी की एक सोची समझी साजिश के चलते उसे फंसाया गया था।
अजय को सस्पेंड कर दिया गया था साल भर के लिए। इमानदारी की सजा मिली थी उसे। उसने भी फैसला लिया था कि वो लड़ेगा इसके खिलाफ क्यों कि एक बार अगर दाग लग गया आपके चरित्र पर तो कभी नहीं छूटता।
रामलाल चपरासी बहुत दुखी हुआ था क्योंकि अजय उसकी हमेशा सहायता करता था। रामलाल ने उसे आकर कहा था कि,” सर मेरा नाम नहीं लीजिएगा लेकिन मैं आपको बचाने में मदद करूंगा क्योंकि आप जैसे ईमानदार व्यक्ति को सजा मिली है और जो गुनाहगार है वो खुला घूम रहा है।”
रामलाल की मदद से अजय को कुछ सबूत मिले थे जिससे उसने कोर्ट में पेश किया था। अजय की इमानदारी की गवाही उसके साथ काम करने वालों ने भी दिया था।सजा गुनाहगार शर्मा जी को मिली थी और अजय की इमानदारी की तारीफ करते हुए पुनः सम्मान के साथ नौकरी वापस मिल गई थी।
देर है पर अंधेर नहीं।ये सच है कि सौ गुनाहगार को भले ही सजा ना मिले पर एक इमानदार को कभी भी सजा नहीं मिलनी चाहिए।आज इमानदारी की जीत हुई थी और बेईमानी को मुंह की खानी पड़ी थी। शर्मा सर जानते थे कि अजय कभी भी ऐसा नहीं करेगा तो उसको जाल में फंसाते हुए, मौका ना देकर जल्दी बाजी में साइन करवाया था।
अजय को भी सबक मिल गया था कि कभी भी किसी पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए।अंत में जीत सच्चाई और ईमानदारी की हुई थी।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी