रौशन घर, अंधियारा मन – सविता गोयल

अरे वाह, बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है क्या बना रही हो श्रीमती जी?? घर में घुसते हीं रसोई से आती देसी घी की खुशबू सूंघते हुए मनोहर जी बोले।

अजी देसी घी के लड्डू बना रही हूँ। राज को तो बहुत पसंद हैं मेरे हाथ के लड्डू। इस बार दिवाली पर जब राज बहू के साथ आएगा तो उसके साथ डाल भी दूंगी। वहाँ विदेश में कोई क्या जाने देसी घी के लड्डुओं का स्वाद।

अच्छा!! तुम्हारी बात हुई क्या राज से?? उसने कहा कि वो आ रहा है?? मनोहर जी ने उत्साहित होते हुए सुषमा जी से पूछा।

नहीं. आज तो नहीं हुई. लेकिन उसने कहा था ना कि दिवाली पर हीं आने की सोंचेगा. अब दो साल से ऊपर होने को आया है उन्हें विदेश गए उनका भी तो मन करता होगा ना यहाँ आने का। 

सुषमा जी की बातें सुनकर मनोहर जी चुप रह गए लेकिन मन ही मन आशंकित थे कि कहीं सुषमा जी की उम्मीद इस बार भी टूट ना जाए..। शादी के बाद सिर्फ एक बार वो बस घूमने के तौर पर अपने देश आए थे। उसके बाद पिछले दो सालों से उन्होंने एक बार भी आने की कोशिश नहीं की ।

आखिर कितने दिन हो गए राज का फोन भी नहीं आया था। जब कुछ दिनों पहले सुषमा की जिद्द पर मनोहर जी ने फोन मिलाया तो राज ने सिर्फ ये कहकर फोन रख दिया कि अभी मैं बिजी हूँ बाद में बात करूँगा।  लेकिन दोबारा फोन भी नहीं आया।

वैसे ही जब कभी भी सुषमा जी या मनोहर जी फोन पर बात करते और आने के बारे में पूछते तो राज बात को टाल देता।

हां एक बार उसने कहा था कि इस दिपावली पर वो आने की कोशिश करेगा। उसी बात को सच मानकर सुषमा बेटे बहू के आने की बाट जोह रही थीं।

दिवाली के दो- तीन दिन पहले से सुषमा जी बार बार राज और बहू को फोन लगा रही थीं। कई देर बाद राज ने फोन उठाया तो सुषमा जी ने पूछा बेटा तुम कब तक आओगे??

मां . इस बार हम नहीं आ पाएंगे। बहुत काम है यहां।  उधर से जवाब आया।

सुषमा जी आगे कुछ पूछ ही नहीं पाईं। उनका दिल भर आया था। आंखों से आंसू टपकने हीं वाले थे कि पीछे मनोहर जी की आहट सुनकर उन्होंने खुद को संभाल लिया।

जी, वो बहुत काम है राज को अभी। इतनी बड़ी पोस्ट पर है तो जिम्मेदारी भी तो ज्यादा है ना। इस बार नहीं आ पाएगा तो क्या हुआ अगली बार वो जरूर आएंगे।

मनोहर जी समझ रहे थे कि वो उन्हें नहीं बल्कि खुद को बहलाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने बिना कुछ बोले ही सुषमा जी को अपने कंधों से लगा लिया। सुषमा जी की आंखों में ठहरे हुए आंसू अब अनवरत बह रहे थे।

मनोहर जी अपनी पत्नी की भावनाओं को समझ रहे थे। वो खुद भी तो कहां खुश थे। हर माता-पिता की तरह उन्हें भी तो अपने बेटे से यही उम्मीद थी कि जीवन के इस पड़ाव पर अपने पूरे परिवार के साथ वो भी एक खुशहाल जीवन जीएंगे। लेकिन जब उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद राज ने विदेश में नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो वो उसे रोक नहीं पाए।

फिर शादी भी वहीं और नौकरी भी वहीं। पैसे कमाने की होड़ में इंसान रिश्तों की परवाह करना भी भूल जाता है लेकिन माता पिता कहां अपने बच्चों को भूल पाते हैं.।

मनोहर जी बोझिल माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए बोले ,राज नहीं आ रहा तो कोई बात नहीं .. दिवाली तो आ रही है ना। चलो आज बाज़ार चलते हैं। दिये और पूजा का सामान भी तो लाना है। और हां  मुझे लगता है कि अब तुम सच में तुम बूढ़ी हो गई हो।

मनोहर जी ने छेड़ते हुए कहा तो सुषमा जी ने आंखें चौड़ी करते हुए कहा ,    बूढे होंगे आप ..,,

अच्छा तो तुम जो पहले हमेशा दिवाली पर मूंग दाल का हलवा बनाती थी वो अब क्यों नहीं बनाती !!

सुषमा जी हौले से मुस्कुरा दीं। दिवाली के दिन दोनों ने पूजा की और दिये भी जलाए।  लेकिन उनके मन का अंधेरे को दिये की रौशनी भी दूर नहीं कर पा रही थी। सुषमा जी अनमने मन से बोलीं ,अजी, वो लड्डू कौन खाएगा???

 मनोहर जी उसी वक्त बाहर गए। थोड़ी देर बाद हाथ में दो थैले में पटाखे और फूलझड़ियां लेकर वापस आए और बोले ,चलो बाहर चलते हैं। तुम्हारे लड्डुओं को खिलाने का भी इंतजाम हो  जाएगा।,,

सुषमा जी ने आश्चर्य पूछा जी कहां??

सुषमा जी को लेकर वो पास के अनाथआश्रम में ले गए। वहां के बच्चों में जब दोनों ने पटाखे और मिठाई बांटी तो उनके चेहरे की खुशी देखकर उनकी सारी मायूसी दूर हो गई।  आज सही मायने में उन्होंने उन मासूम बच्चों के चेहरे पर चमक लाकर दिवाली मनाई। दोनों खुश और संतुष्ट थे।

सविता गोयल

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