रीता की समझदारी – रेनू अग्रवाल :

रीता किचन में काम कर रही थी, तभी उसकी ननद गीता का फोन आया। फोन उठाते ही गीता की रोती हुई आवाज आई, “भाभी, अब और नहीं सहा जाता… मेरी ज़िंदगी तो नरक बन गई है।”

रीता को आश्चर्य नहीं हुआ। गीता की ये शिकायतें अब रोजमर्रा की बात बन गई थीं। उसने शांत स्वर में कहा, “थोड़ा रुको, मैं नाश्ता बना लूं फिर तुमसे बात करती हूं।”

काम करते हुए रीता सोचने लगी—जब वह इस घर में आई थी, गीता बहुत छोटी थी। रीता ने मां की तरह पाला, उसकी शादी की जिम्मेदारी भी उठाई। गीता स्वभाव से भावुक और फिल्मी दुनिया में खोई रहने वाली थी। रीता ने सोचा था शादी के बाद उसमें समझदारी आ जाएगी, लेकिन कुछ समय बाद ही गीता और उसके पति के बीच रोज के झगड़े शुरू हो गए।

रीता जानती थी कि “एक हाथ से ताली नहीं बजती”, गलती दोनों की है। पर दोनों ही केवल एक-दूसरे को दोष देते रहे, अपनी गलतियों पर कभी नजर नहीं डाली।

उस दिन रीता ने ठान लिया। अब कुछ करना ही पड़ेगा इनके  रिश्तों को सुधारने के लिए उसने गीता से कहा, “अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारे पति की ही सब गलती है, तो आ जाओ, तलाक ले लो। छह महीने मेरे पास रहो। अगर उसके बिना रह सको, तभी कोई फैसला लेना।”

गीता और उसके पति दोनों इस बात से हिल गए। उन्होंने पहली बार आत्ममंथन किया और रिश्ते को समझने की कोशिश की।

धीरे-धीरे दोनों का रिश्ता सुधर गया। रीता की समझदारी और कहे गए शब्दों ने एक बिखरते परिवार को संभाल लिया।

 (ताली एक हाथ से नहीं बजती)

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