रिश्तों का गणित – सरोज माहेश्वरी 

         रोज़ाना की तरह रवि ने अपने ऑफिस में प्रवेश किया और अपने सभी सहकर्मियों से हाय हैलो करता हुआ अपनी टेबल तक आ गया। आज उसके सहकर्मी अजय का जो कि उसका मित्र भी है, चेहरा थोड़ा सा मुरझाया हुआ था जबकि हमेशा दिलकश मुस्कान के साथ खिला रहता है।वह उसकी उदासी का कारण समझ नहीं पाया। बाद में कारण जानने की सोचकर अपने काम में लग गया। लंच टाइम में रवि अजय को लेकर कैंटीन में चला गया और दोनों कोने की एक टेबल पर बैठ गए।

        “क्या बात है दोस्त, आज चेहरे की उदासी छुप नहीं रही है?” रवि ने सपाट शब्दों में पूछ लिया।

         “अब तुमसे क्या छुपाऊं दोस्त। मेरी छोटी बहन नेहा का रिश्ता नहीं हो पा रहा है। 5-7 लड़के वाले देखने आ गए पर बात हमारे शादी के बजट को लेकर अटक जाती है। लड़के वाले दहेज तो नहीं मांगते पर शादी भव्य रूप से चाहते हैं। समझ में नहीं आ रहा कि कैसे सामंजस्य बैठाएं।” अजय ने अपनी उदासी का कारण उजागर कर दिया।

         ” बस,इतनी छोटे सी बात। अरे, जब संयोग होगा तब अपने आप हो जाएगा। डोंट वरी, चलो इस बात को अपने दिमाग से निकालो और मस्त वाली चाय पीओ।”रवि की बात से अजय की उदासी जाती रही और दोनों दोस्त हंसते बतियाते पुनः अपने काम पर लौट आए।

           शाम को रवि अपने घर आया तो उसके लिए एक सरप्राइज़ था। उसके माता पिता गांव से आए हुए थे। अचानक उनको आया देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। आपसी शिष्टाचार के बाद मां ने उसे प्यार भरा उलाहना देते हुए कहा कि घर का क्या हाल बना रखा है। शादी कर ले जो घर संभालने वाली आ जाए।

            तभी पिताजी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले, “तीन -चार बढ़िया रिश्ते आए हुए हैं तेरे लिए। इनमें से एक को फ़ाइनल कर दे या फिर तेरे मन में कुछ ओर चल रहा है तो बता दे। हमें तो कोई एतराज़ नहीं है।”

          ” ऐसी कोई बात नहीं है पापा” रवि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा।

          ” अब तो ना कहने का कोई कारण ही नहीं है। तेरे पास अच्छी जॉब है, तीन कमरों का फ्लैट है, गांव में भी ज़मीन जायदाद है। सब तेरा ही तो है।”मां ने कहा।

         ” मां , मुझे यह सब क्यों बता रही हो, लड़की वालों को बताना।” रवि ने हंसते हुए कहा।

        रात को खाना खाने के बाद वे तीनों शादी ब्याह की चर्चा में मशगूल हो गए। बातों ही बातों में आजकल के विवाहों में होने वाले अनाप शनाप खर्चों पर बात चल पड़ी। इसी दौरान रवि ने अपने दोस्त अजय की परेशानी बताई।

          थोड़ी देर तक पिताजी ने कुछ सोचा फिर बोले कि लड़की कैसी है।

          ” अच्छी है। पढ़ीलिखी है, सुन्दर है, मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करती है। परिवार भी अच्छा है, अपनी तरह ही मध्यमवर्गीय है।”रवि ने बताया।

          “तेरे लिए बात चलाएं क्या”

        रवि के लिए यह अप्रत्याशित था। उसने इस कोण से कभी सोचा ही न था।

         ” मुझे थोड़ा समय दीजिए फिर मैं आपको बताता हूं।” बातचीत का सिलसिला खत्म कर सभी सोने चले गए।

         रवि ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर इस निर्णय पर पहुंचा कि एक बार अजय को टटोलकर जाने कि उनके परिवार को कैसा लड़का चाहिए।

         अगले दिन फिर दोनों की मुलाकात कैंटीन में हुई। रवि ने बातों ही बातों में पूछ लिया कि नेहा को कैसा लड़का चाहिए।

         अजय ने हल्की सी मुस्कान के साथ बताया कि नेहा की तो कोई खास पसंद नहीं है पर हम सब चाहते हैं कि लड़का या तो कोई बड़ा व्यवसायी हो या फिर अच्छे पैकेज वाली जॉब करता हो। खुद का स्वतंत्र मकान हो। परिवार का समाज में रुतबा हो।

          रवि अवाक होकर अजय का मुंह ताकने लगा। अब उसे समझ में आ गया था कि बात क्यों नहीं बन पा रही है। शुक्र है वह शर्मिन्दा होने से बच गया।

                     ( समाप्त)।                                      

                                             सरोज माहेश्वरी 

                                                     जयपुर।

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