रती और मीता दोनो बहने थी दोनो बहनो में बड़ा प्यार था साथ खाना पीना सोना घूमना किसी और की तो जगह ही नहीं थी।
समय बिता दोनो बहने सयानी हो गई दोनो के रिश्ते की बात चली रती की शादी अपने शहर से दूर हुई
और मीता की एक घंटे की दूरी पर दोनो बहने बहुत खुश थी।पर जैसे जैसे समय गुजारा रती को मीता से ईर्ष्या होने लगी ।
मीता हसमुख थी तो उसके दोस्त सहेलियां भी थे उसके बच्चे भी आगे बढ़ रहे थै यह बात रती को पसंद नही आती थी
वो जब तब मीता को ताने देती पर मीता यह सोच चुप हो जाती की बहन है कोई बात नही पर जब मीता की दूसरी बार डिलीवरी हुई
तब मीता और रती की माता जी का देहांत हो गया था तब मीता अकेली थी उसने रती को इतना बुलाया पर वह नही
आई ऊपर से रती और मीता की दूर की चाची जब मीता का जापआ करने आ गई तब वह और भी नाराज हो गई
अब वो जब देखो मीता को कुछ न कुछ सुनाती मीता ने रती को मनाने और समझाने की बहुत कोशिश की पर सब बेकार मीता रती के घर भी मनाने गई
पर वहा भी रती ने उसका अपमान ही किया अब मीता भी पीछे हटने लगी उसके पति गुस्सा करते पर वो छुप कर कभी कभी रती को फोन कर लाती ।
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अब रती मीता को अपने घर बुलाती पर मीता अपना अपमान याद आते ही बहाना बना देती आज बहनों में बोल चाल है
पर जो अपमान रती ने मीता का किया वो दरार हमेशा के लिए है मीता जब रती को देखती हैं उसे अपना अपमान याद आता है
पर क्या करे बहन है पर रती आज भी किसी न किसी बात पर उसे कुछ न कुछ सुनाती रहती हैं
और फिर चाहती हैं कि मैं जब बुलाया करो ये दौड़ कर आ जाए ।दोस्तो रिश्ते बड़े प्यारे होते है निभाने के लिए कुछ भूलना भी पड़ता है
पर यह अहसास दोनो तरफ से होना चाहिए रिश्ते प्यार के भूखे है नाकी दिखावे और चीज के
स्वरचित कहानी
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खुशी