रिश्तों मे बढ़ती दूरियां – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

मेरी शादी को १० साल हो गए थे  | हर साल कोई भी तीज त्यौहार हो मायके से मेरे लिए सब कुछ आता था |कई बार मैं फोन करके अपने भाई भाभी या मां को बोल देती कि, आपने जो साड़ी भेजा उसका रंग मुझे अच्छा नही लगा | या आपने मेरे पसंद की मिठाई क्यों नही भेजी | बेटी का ड्रेस बहुत ही ओल्ड फैशन वाला आपने भेज दिया था | आप लोग भी पता नही क्या देख के सब कुछ खरीदते है | चलो जाने दो मां अगली बार कुछ अच्छा भेजना |

मां ने फोन किया | घर कब आओगी? आ जाओ बहुत दिन हो गए आई नही तुम | मैने बोला आती हु मां , बच्चो की परिक्षा खतम हो जाय फिर बच्चो को ले के आती हूं  | और हा सुनो मां इस बार खाना सब मेरी पसंद का बनवाना | मैं आने से पहले बता दूंगी की क्या क्या बनाना है |

मैं मायके गई | सब खुश थे  ,| मेरे बताए अनुसार खाना भी बना था |आते टाइम मां ने बोला इस बार दिवाली पे क्या भेजना है | ये भी बता देना | मैने बोला ठीक है बता दूंगी | तुरंत ही भाई ने बोला , अरे नही रहने दो मां इस बार दीदी को  कुछ भेजने की जरूरत नही है | मैने हस के बोला क्यों नही है ?  बोलो बोलो? मैं तो खूब भारी साड़ी लूंगी | 

भाई ने बोला दीदी आप बता देना कितने में आपकी साड़ी आएगी मैं आपको पैसे दे दूंगा | क्यों की आपको तो कुछ भी दो ,पसंद आता ही नही है |

भाई की बाते सुन मेरी हसी गायब हो गई बोला ठीक है, जैसा तुमको ठीक लगे | बोल के मैं वहां से निकल गई |

आज दिवाली थी | मेरे घर से कोई आया नही मन बहुत दुखी हो रहा था |कुछ अच्छा नही लग  रहा था | फोन के घंटी बजी मैंने झट से उठाया | भाई तुम अभी तक आए नही मैं इंतजार कर रही हु सुबह से | 

भाई ने बोला नही दीदी बहुत काम है दिवाली का | इस बार आ नही पाऊंगा | दीदी आपको मैने ये बताने के लिए कॉल किया था कि ,आप के अकाउंट में मैने पैसे डाल दिए है |आप  को जो भी दिवाली के लिए लेना होगा , आप  अपनी पसंद का   ले लेना | ठीक है दीदी | फिर बाद मैं कॉल करता हु | हैप्पी दिवाली दीदी |

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मानो अब मेरी दिवाली हैप्पी कहा होने वाली थी | मैने अपनी छोटी छोटी गलतियों के कारण अपने रिश्तों में दूरियां बढ़ा ली थी। 

अब कोई भी तीज त्यौहार हो ,मेरे मायके से  कोई नही आता था | 

रिश्तो में प्यार बना रहे ,इसके लिए बहुत जरूरी है, की आप अपने रिश्तों का सम्मान करे | न की उनके द्वारा मिलने वाले समान का | जो भी मिले प्यार से स्वीकार करे | 

 

रंजीता पाण्डेय

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