“रिश्तों की मर्यादा ” – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

 सुबह सुबह भैया का फोन आया “पापा नहीं रहे “।किसी तरह परिवार को बोल कर जल्दी से निकल गई वेदिका ।महज ससुराल से तीन किलोमीटर दूर के फासले पर ही तो सबलोग ।पर शादी होकर ससुराल गई तो वहीं की होकर रह गई थी वह।विदा होते समय माँ ने आँचल मे दूब अक्षत के साथ नसीहतों का पुलिंदा थमा दिया था

“रिश्तों की मर्यादा का खयाल रखना बेटा “और फिर वह जी जान से रिश्ते निभाते निभाते अपनो को ही भूल गयी ।लेकिन भूली भी कहाँ थी।ससुराल वालों ने शुरू में ही कह दिया था कि दो नाव पर पैर न रखें वर्ना गिर जाओगी ।

जहां पली बढ़ी उसे भूल जाना आसान था क्या?  लेकिन रिश्ते निभाना जरूरी हो गया था ।सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था ।इधर कुछ दिनों से पापा की तबियत खराब रहने लगी थी ।बीमारी का तो पता ही नहीं चला लेकिन वह बहुत कमजोर हो गये थे।

बीच बीच में जाकर वह मिल लेती थी।कितने खुश होते थे पापा ।”अभी रूकोगी ना”?पापा का सवाल उसे बेचैन कर देता।कैसे कहे वह कि शाम को ही लौट जाने के लिए कहा गया है ।शाम की चाय तुम्हारे हाथ से ही पीना है ।ससुर जी का आज्ञा  नहीं मानने का सवाल ही नहीं उठता ।

भैया भाभी माँ पापा का बहुत खयाल रखते ।वेदिका को लगता यहसब तो ठीक है पर क्या बेटी का कोई फर्ज नहीं बनता माँ बाप की सेवा करने का ।थक गयी है वह रिश्तो की मर्यादा निभाते निभाते ।कल ही शाम को बोली थी माँ से “पापा को फोन के पास बिठा कर रखना,

बात करूंगी “लेकिन पता नहीं कैसे वह भूल गयी इस बात को ।और फिर सासूमा के साथ बाजार भी तो चली गई थी ।पापा कितना इन्तजार करते हुए बैठे होंगे ।तब लैंड लाइन फोन ही था घर में ।और आज सुबह भैया का फोन आया ।घर पहुँची तो पापा जमीन पर पड़े हुए थे ।

घर में बहुत लोगों का आना जाना शुरू हो गया था ।भीड़ में से ही किसी ने माँ के माथे पर एक लोटा पानी डाल दिया ।सारा सिन्दूर धुल कर माथे पर बिखर गया था ।कितना प्यार करते थे पापा मुझे ।आखों से आँसू बहते रहे।बचपन से लेकर बहुत सारी यादें सामने आने लगी ।

पापा का अग्नी संस्कार हो गया ।नहाने धोने का रिवाज चलने लगा ।माँ का सूना माथा अजीब लग रहा था ।कितनी सुन्दर लगती थी वह ।गोरी तो बहुत थी और सिन्दूर की लाली,माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी उनकी सुन्दरता मे चार चाँद लगा देती।

माँ भी सबदिन अच्छा से रहती ।गर्मी के दिनों में शाम को नहा धो कर,कलफ इस्तरी किया हुआ साड़ी पहन कर घूमने निकलती तो गजब लगती ।आ गई तो कमसे कम तेरहवीं तक तो रुकना जरूरी था।ससुराल से बार बार बुलावा आ जाता “अभी तो बैठ कर बिताना है तो चली आती

“लेकिन वेदिका ने इसबार ठान लिया था कि अभी नहीं जायेगी ।पापा की अस्थि विसर्जन के लिए पटना जाना था।उनकी इच्छा थी कि गंगा मे मिल जायेंगे ।वेदिका भी जिद कर बैठी थी जाने के लिए ।कभी तो पापा की सेवा नहीं कर पायी अब अंतिम जल तो उनके नाम से जरूर देगी।भैया ले भी गये ।

भाभी ने ही जोर दिया था उनको ।सबकुछ अच्छे से हो गया ।तेरहवीं बीत गयी सब लोग,नाते रिश्ते लौट गये ।वेदिका भी चार दिन के बाद ही लौट गई ।माँ ने ही समझाया “बेटा ,पापा तो अब लौटेंगे नहीं,तुम अपनी घर गृहस्थी देखो”बेमन से लौटी थी वह।एक साल बीत गया ।

वेदिका का हरिद्वार जाने का प्रोग्राम बना ।कभी गई नहीं थी तो जाने का मन बहुत था।पति के साथ उनके कुछ दोस्त भी गये ।शान्ति कुन्ज में ठहरने का इन्तजाम था।बहुत अच्छा लगा था उसे वहां ।एकदम शांत वातावरण ।सबकुछ एक लयबद्धता के साथ ।

सुबह नहा-धोकर हवन करने बैठ गयी थी वह ।फिर किसी ने सुझाव दिया कि अपनो के लिए श्रद्धा और श्राद्ध पक्ष चल रहा है तो आपको भी मन हो तो कर सकते हैं ।यही तो चाहती थी वह ।पापा के लिए करेगी वह ।पहले तो बहुत घबराहट महसूस करती रही कैसे करेगी,पास में पैसे भी नहीं,पति से कहते हुए डर रही थी कहीं नाराज न हो जाएं पैसे के नाम पर ।

लेकिन मालूम हुआ कि यहाँ किसी बात के पैसे नहीं लिए जाते ।बहुत खुश हो गई थी वेदिका ।फिर सबकुछ अच्छा से संपन्न हो गया ।बेटी का भी तो फर्ज बनता है अपने माता पिता के लिए ।कहाँ लिखा है कि सिर्फ बेटा ही सबकुछ करे।हरिद्वार में बहुत अच्छा लगा उसे ।

आठ दिन रहकर घर लौट आई वेदिका ।पापा की याद दिल मे लिए ।पापा से बहुत लगाव था ।लेकिन बहुत टूट चुकी है वह अन्दर ही अन्दर रिश्ते की मर्यादा निभाते ।अब और नहीं ।थोड़ा अपने लिए भी जी लेगी।

ससुराल में बहुत बंधन रहा ।लेकिन पति का साथ और सहयोग भी मिला ।जीवन मृत्यु किसी के हाथ में नहीं है पापा तो हमेशा हमारे पास हैं वेदिका ।पति ने बहुत समझाया ।माँ ने भी कभी गलत सलाह नहीं दिया ।रिश्ते तो निभाना जरूरी हो जाता है ।

लेकिन अपना वजूद मिटा कर नहीं ।चुप चाप बैठी थी तभी पतिदेव ने चाय की फरमाइश कर दी” वेदिका जरा गरमागरम चाय तो बना दो तबतक मै सामने दुकान से समोसे ले आता हूँ “खुश रहना चाहिए यही सोच कर चाय बनाने चल दी वेदिका ।

उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।मौलिक ।

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