स्वरा..! तुम अपनी मर्यादा में रहो। हमारे घर के रिश्तों को कभी छेड़छाड़ करने की कोशिश भी मत करना। मत भूलो..! यह घर अब तुम्हारा भी है।
“इस घर की बुनियाद प्रेम और विश्वास पर जानवी भाभी ने रखी है, जो बहुत ही मजबूत है। उसे हिलाने की कभी कोशिश भी मत करना…?”
संकेत का स्वर तेज हो गया, गुस्से में तेज कदमों से घर से बाहर चला गया।
उसे अपने बचपन का एक-एक पल याद आने लगा।
अनूप और संकेत दो भाई थे। माता- पिता का निधन बचपन में ही हो गया था। जानवी जब व्याह कर इस घर में आई थी तभी अनूप ने कहा था
“जानवी…! तुम संकेत की मांँ और भाभी दोनों ही हो। यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम उसे किस रूप में स्वीकार करती है।”
मांँ जब इस दुनिया से गई थी, तब संकेत बहुत छोटा था। कुछ समझता नहीं था। उसकी मासूमियत भरी बातों का जवाब देना बहुत मुश्किल था। अक्सर वो पूछता… भैया.! मम्मी कहांँ गई है, कब आएंगी ??
मुझे उनके बिना अच्छा नहीं लगता..! उसकी यह बातें सुनकर मन बहुत खिन्न हो जाता था।
वह मांँ के प्यार से हमेशा बंचित रहा। उसके लिए माता-पिता दोनों हम ही थे। तुम्हारे आने से आशा की एक लौ दिखाई पड़ी। मुझे पूरा यकीन है तुम्हारी ममता की छांव तले उसे मांँ की कमी भी पूरी होगी।
अनूप के ऑफिस जाने के बाद इतने बड़े घर में जानवी को संकेत का साथ बहुत अच्छा लगता था। छोटे बच्चे के साथ खिलाना,खेलना, स्कूल भेजना एवं उसमें अच्छे संस्कारों को संचालित करना, सब जानवी की जिम्मेदारी थी।
कुछ दिनों के बाद जानवी ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। घर में सबसे ज्यादा संकेत खुश था, क्योंकि अब उसे बड़े होने का आभास होने लगा था। कहता जब यह जूनियर बड़ा हो जाएगा, तब इस पर खूब धौंस जमाया करेंगे।
भाभी..! मैं इसका नाम नानू रखूंँगा। जो मेरी किसी बात को ना न कह पाये। उसकी बात सुनकर जानवी और अनूप खूब जोर हंसने लगे।
संकेत विद्यालय की सभी बातें भाभी के साथ-साझा करता था। भाभी अपने सब काम छोड़ कर उसकी बातें इत्मीनान से सुनती और सही गलत की शिक्षा देती थी।
जानवी ने कभी भी संकेत और नानू के बीच भेद नहीं किया। दोनों को एक दृष्टि से देखती थी।
संकेत की स्वरा से दोस्ती की बात सबसे पहले उसने भाभी को ही बताई थी। भाभी ने कहा किसी रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले खूब अच्छी तरह से एक दूसरे को परख लो, इसके बाद रिश्ते को आगे बढ़ाना…! क्योंकि रिश्ता आगे बढ़ जाने के बाद जब कुछ खामियां पता चलती है, तब बहुत तकलीफ होती है।
संकेत भाभी के बोलने का तात्पर्य समझ गया। वह स्वरा के साथ कई दिन तक बातचीत करता रहा। जब उसे यह पूर्णतया आभास हो गया कि स्वरा में वह सब गुण है जो एक अच्छी जीवन संगिनी के लिए चाहिए।
एक दिन संकेत ने स्वरा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, स्वरा ने भी इस विवाह के लिए हांँ कह दी। स्वरा के घर वाले इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे। जानवी स्वयं स्वरा के घर चल कर गई और उसके घर वालों को विवाह के लिए मना लिया। स्वरा के मन में अपनी होने वाली जेठानी के लिए अगाध प्रेम उमड़ आया। मन ही मन उसने प्रतिज्ञा ली कि अपनी भाभी मां को कभी भी कोई दुख नहीं पहुंचाऊंगी।
स्वरा और संकेत का विवाह खूब धूमधाम से हो गया। विदाई होने के बाद स्वरा ससुराल आई, उस समय स्वरा बहुत सकुचाई हुई थी। वह नये घर में कैसे सामंजस्य बैठाएगी.. विचारों का तूफान उसके अंदर चल रहा था।
जानवी उसके मन की बात भांप गई। स्वरा को अपने पास बैठाकर अपनेपन से बोली। यहां तुम किसी प्रकार का संकोच मत करो, यह तुम्हारा अपना घर है। स्वरा अपनापन पाकर जल्द ही सब के साथ हिल मिल गई। अनूप बोले कि हमारी बेटी नहीं थी चलो..! स्वरा के रूप में हमारे घर बेटी आ गई।
दिन यूंँ ही हंसते मुस्कुराते निकल रहे थे स्वरा ने देखा, कि संकेत हर काम भाभी से पूछ कर ही करते हैं। यह बात उसके मन में खटकने लगी…!
“अगर मन में किसी प्रकार की आशंका ने जन्म ले लिया तो वह उस घर की खुशहाली को धीरे-धीरे निगल लेगा।”
लगभग छः महीने के बाद स्वरा बुझी- बुझी सी रहने लगी। एक दिन जानवी ने स्वरा से पूछा- क्या बात है स्वरा..! तुम कुछ परेशान सी रहती हो। कोई दिक्कत है तो बताओ..!
स्वरा बात को टालते हुए बोली कुछ नहीं, ठीक हूंँ। जानवी भी उसके पीछे पड़ गई, अगर सब कुछ ठीक है तो तुम इतनी परेशान सी क्यों लग रही हो..! नानू भी कह रहा था चाची पहले की तरह अब मेरे साथ नहीं खेलती है।
संकेत को बोलती हूँ कुछ दिन के लिए तुम्हें मांँ के घर से घुमा लाये।
“आपके बोलने से ही क्यूंँ, मेरे बोलने से क्या नहीं जायेंगे..?”
स्वरा के बात करने के अन्दाज से जानवी को कुछ खटक सा गया, लेकिन वह कुछ नहीं बोली।
स्वरा..! आज तुम्हारी मनपसंद खीर बनायी है, खाकर बताओ कैसी बनी है..? जानवी ने नानू और स्वरा को खीर की कटोरी थमाते हुए कहा।
आप भी ले लीजिए भाभी..!
अभी नहीं..! ऑफिस से तुम्हारे भैया और संकेत आते ही होंगे उनको खिलाकर मैं भी खा लूंँगी।
भाभी आप संकेत की चिंता न करें। अब तो मैं आ गई हूंँ न..!
लेकिन स्वरा, संकेत और तुम्हारे भैया को बिना खिलाए मुझे खाने की आदत नहीं है। यह मेरी शुरू से ही आदत रही है। स्वरा अंदर ही अंदर चिढ़ गई।
एक दिन संकेत मूवी के टिकट लेकर आया और स्वरा से बोला चलो मूवी देख कर आते हैं। और हां नानू को भी तैयार होने के लिए बोल देना। तीनों मूवी देखने जायेंगे, और बाहर खाना खाकर आएंगे। कहते हुए वह तैयार होने लगा। स्वरा ने उसकी जेब में तीन टिकट देखें, उसमें से उसने एक टिकट निकाल कर फाड़ दिया।
संकेत ने अपनी जेब से टिकट निकालते हुए स्वरा से कहा यह टिकट अपने पास रखो..! लेकिन जैसे ही देखा उसमें दो ही टिकट थे।
मैंने तो तीन टिकट लिए थे, दो कैसे हो सकते हैं..! स्वरा बोली कोई बात नहीं, नानू को फिर कभी साथ ले जाएंगे।
चाचा, चाची मूवी देखने जाने लगे, तो नानू भी साथ जाने के लिए मचलने लगा। ठीक है नानू..! तुम तैयार हो जाओ, तुम्हारा वहां जाकर टिकट ले लेंगे।
“स्वरा आपे से बाहर हो गई। बोली- तुम मांँ, बेटे अकेले में मुझे कुछ पल जीने दोगे या हमेशा साथ चिपके रहोगे..!”
उसकी बात सुनकर संकेत एकदम सन्न रह गया। बोला कैसी बातें कर रही हो..!अगर नानू साथ जाता है तो उसमें बुराई क्या है..? लेकिन स्वरा अड़ गई। अगर यह जाएगा तो मैं नहीं जाऊंगी। और इसी बात को लेकर दोनों के मध्य तू तू – मैं मैं हो गई और मूवी का प्रोग्राम रद्द करना पड़ा।
जानवी ने आकर बीच बचाव किया और कहा संकेत तुम स्वरा को लेकर बाहर जाओ…! नानू फिर कभी साथ चला जाएगा। भाभी यह संकेत को साथ ले जाने के कारण भड़क रही है।
कोई बात नहीं संकेत…! वह दूसरे परिवार से आई है हमारे परिवार के साथ तालमेल बैठने में थोड़ा समय लगेगा। तुम चिंता न करो सब ठीक हो जाएगा।
जानवी ने समझदारी दिखाते हुए कहा कोई बात नहीं, आज इसका ट्यूशन है और परीक्षाएं भी होने वाली हैं। इस कारण स्वरा ने मना किया होगा।
तुम दोनों जाओ…! कभी-कभी अकेले में वक्त गुजारना बहुत जरूरी होता है।
संकेत तुरंत बोल पड़ा। भाभी मैं भी तो तुम दोनों के साथ सब जगह जाता था। तब तुमने तो कभी ऐसा नहीं सोचा था। मेरी बात अलग है। और दोनों को समझा बुझाकर मूवी देखने के लिए भेज दिया।
घर में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था, लेकिन जानवी घर को किसी भी रूप में घर बिखरने नहीं देना चाहती थी।
एक दिन वह संकेत से बोली- कि स्वरा को लेकर उसकी मनपसंद जगह कुछ दिन के लिए घूमा कर ले आओ..! संकेत और स्वरा दोनों नैनीताल के लिए निकल गए।
नैनीताल में आठ दस दिन गुजारे। जब वापस आ रहे थे तभी एक गाड़ी के टकराकर उनका एक्सीडेंट हो गया। संकेत बाल- बाल बच गया लेकिन स्वरा के पैर की हड्डी टूट गई। स्वरा ने तुरंत अपने मायके फोन किया कि आप लोग आ जाइए लेकिन स्वरा की मां ने आने में अपनी असमर्थता दिखाई।
अनूप और जानवी को जैसे ही सूचना मिली तुरंत दोनों नैनीताल पहुंच गए। गाड़ी रिज़र्व करके स्वरा और संकेत को वापिस ले आए।
पैर की हड्डी टूट जाने के कारण स्वरा के पैर का ऑपरेशन होना था, उस समय ब्लड की आवश्यकता हुई। स्वरा का ब्लड ग्रुप, ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं था। अनूप, संकेत सबने अपना ब्लड देने की इच्छा जाहिर की लेकिन उनका ब्लड ग्रुप मैच नहीं कर रहा था।
जानवी का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और जानवी ने अपना ब्लड दे दिया। ऑपरेशन सफल रहा स्वरा के मायके वाले उसे देखने आए। वह अपनी मांँ से मायके जाने की जिद करने लगी। मुझे अपने साथ ले चलो..!
मांँ बोली घर पर हजार काम है और काम करने वाली मैं अकेली हूंँ। तुम्हारे भैया,भाभी नौकरी कर रहे हैं उन्हें भी समय नहीं है। इसलिए तुम्हें साथ ले जाने में मैं अक्षम हूंँ। तुम्हारी जेठानी तो तन मन से तुम्हारी देखभाल कर रही है फिर तुम्हें यहां दिक्कत क्या है..?
मांँ की बात सुनकर स्वरा सकते में आ गई। अपनी मांँ होकर भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी से मुंँह मोड़ लिया। जानवी भाभी उसका कितना ख्याल रखती है और बहुत प्यार करती है, फिर क्यों मेरे मन में उनके प्रति नकारात्मक भाव आए।
“हे भगवान..! मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है क्या..? उसका दिल ग्लानि से भर गया। जानवी भाभी ने मुझे माँ, सास, ननंद, जेठानी सभी का प्यार दिया। और मेरे मन में उनके प्रति…. ।” सोचकर उसकी आंखों में लगातार पश्चाताप के अश्रु बह रहे थे।
तब तक जानवी आ गई। वह स्वरा के आंसू पोछते हुए बोली क्या हुआ स्वरा…?
भाभी…! कहते हुए जोर-जोर से उनसे लिपटकर रोने लगी। मैंने कितनी बार गलतियां की, लेकिन तुमने मुझे हमेशा संभलने का मौका दिया। लेकिन …..! स्वरा हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए बोली, मुझे माफ कर दो भाभी…!
तब तक संकेत आ गया।
“स्वरा..! अपना कहने के लिए तो दुनिया में बड़ी भीड़ है, लेकिन अपनापन और दुख में हमारा जो साथ निभाए वही अपने होते हैं।”
अब तो तुम अच्छी तरह से रिश्तों की मर्यादा को समझ चुकी होगी।
हां, संकेत तुमने मुझे कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन मैं समझ नहीं पाई, तुम भी मुझे माफ कर दो।
तुम ठीक कहते थे कि हमारे घर की नींव बहुत मजबूत है। इसे कोई हिला नहीं सकता है। कभी-कभी कुछ गलतफहमियां आ जाती है उन्हें दूर कर आगे बढ़ना ही समझदारी है।
-सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
लेखिका
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल