रिश्तों की मर्यादा – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

“देखो शुभी यह क्या है मेरे पास!” ,शुभी का पति शुभम मुस्कुराते हुए कमरे में आया।

उसे मुस्कुराते हुए देखकर शुभी ताजुब में पड़ गई “ऐसा क्या हो सकता है?” वह सब काम छोड़कर उसके पीछे पीछे गई “क्या है दिखाओ?”

“नहीं ऐसे नहीं शुभम ने अपने हाथ पीछे कर लिया।

“ नहीं मुझे दिखाओ वह हाथ बढ़ाकर पकड़ना चाह रही थी कि आखिर शुभम क्या छुपा रहा है मगर शुभम उसे पकड़ने नहीं दे रहा था ।

उसने अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिये और शुभी लपक कर उसके हाथ पकड़ने लगी। तो उसने उसे अपने दोनों बाजुओं में कसकर पकड़ लिया और उसे गोल-गोल घुमाने लगा और फिर उसके माथे पर प्यार भरा चुंबन जड़ दिया ।

“मुझे बुद्धू बना रहे थे ना !शुभी शरमाते हुए बोली ।

“नहीं, जिस चीज का तुम्हें इंतजार था वही है!” उसने अपना हाथ आगे किया। उसमें दो हवाई टिकट थे। वह भी उसके पसंदीदा गोवा ट्रिप के ।

शादी के समय जब शुभम ने उससे  पूछा था कि कहां घूमने जाना चाहती हो तो शुभी ने यही कहा था” मुझे गोवा जाना है। मुझे गोवा देखने का बहुत शौक है। बचपन से गोवा नाम से मुझे क्रश रहा है ।”

तभी से शुभम इसके लिए तैयार था मगर शादी के बाद यह सब संभव नहीं लग रहा था क्योंकि उसका घर बड़ा था और घर पर सारे रिश्तेदार मौजूद थे ।बुआ, चाचा ,ताई मौसी और अन्य रिश्तेदार भी। इन सब के बीच वह शुभी को घुमाने ले जाता तो लोग क्या सोचते।

यह सोचकर उसने शुभी से कहा थोड़े दिन रुक जाते हैं जब सारे रिश्तेदार चले जाएंगे उसके बाद मैं ऑफिस से छुट्टी ले लूंगा और फिर तुम्हें घुमाने ले जाऊंगा।

मगर यह दिन आ नहीं रहा था ।शादी के कारण उसने काफी छुट्टी ले रखी थी इसलिए फिर उसे छुट्टी मिलना पॉसिबल नहीं था।

लगभग 6 महीने बाद शुभम ने अपनी पत्नी को सरप्राइज देते हुए गोवा का टिकट करवा लिया था।

अपने हाथ में टिकट लेकर उलटते पलटते देखकर शुभी की आंखों में आंसू आ गए ।

वह अपने पति से लिपट कर बोली “आप कितना ख्याल रखते हो ना मेरा!”

“ तुम ही तो मेरा कितना ख्याल रखती हो और मेरे पूरे परिवार का ।लगता ही नहीं कि तुम इस परिवार के लिए अनजान हो। सब लोग तुम्हारी कितनी तारीफ करते हैं। पापा तो बोल रहे थे शुभी के कारण दादी की उम्र बढ़ गई है ।वह उन्हें चाय से लेकर रामायण तक सुनाती है और वह बड़ी दुआएं देती रहती हैं ।”

शुभी की आंखों में आंसू आ गए  पर वह मुस्कुराते हुए बोली”शादी के समय मेरे पापा और मम्मी दोनों ने मुझसे कहा था शुभी रिश्तों के मर्यादा का सम्मान करना ।जो तुम्हें प्यार और सम्मान दे, तुम बदले में उन्हें प्यार और सम्मान जरूर देना।इन सबके बदले में आप तो है ही मुझे प्यार करने वाले। मुझे और क्या चाहिए ।”

शुभम बहुत प्यार और स्नेह से अपनी पत्नी की तरफ देखने लगा।

दो दिन बाद दोनों के गोवा जाने के लिए फ्लाइट थी।

रात में शुभी बड़े शौक से बैठकर अपने एक-एक कपड़े पैक कर रही थी। वह शुभम को दिखा भी रही थी कि मैं यह पहनूंगी वह पहनूंगी। बड़े शौक से उसने अपना बैक पैक कर लिया था बस अब जाने की देर थी।

दूसरे दिन उसके दादा ससुर ने शुभी से कहा “मुझे आज शुभी के हाथों के पकौड़े खाने हैं।”

‘दादाजी अभी बनाती हूं। फिर बड़े शौक से पकौड़े बनाकर दादाजी को खिलाने लगी। खाना-वाना खाने के बाद जब दोनों कमरे में सोने चले गए।

तभी बाहर शोर होने लगा।

“क्या हुआ वे दोनों बाहर भागते हुए आए। पता चला शुभम के दादा जी को लूज मोशन होने लगा था। और वह पैर फिसलने से गिर गए थे।

उनके पैर से खून निकलने लगा था और कमर पर भी बहुत चोट आई थी।

यह देखकर उनकी दादी बेहोश हो गई थी । वह हाइ बीपी की मरीज थीं।

दोनों को अस्पताल ले जाना पड़ा।

दादा जी की माइनर फ्रैक्चर हो गया था और दादी का ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ा हुआ थ। 

शुभम ने शुभी की ओर देखा लेकिन वह खामोश खड़ी थी ।दूसरे दिन सुबह ही दोनों को निकालना था और आज ये हादसा हो गया था ।उसे जाना ठीक नहीं लग रहा था। 

घर आने के बाद शुभी ने शुभम से कहा “टिकट वापस कर दो शुभम ।हम बाद में चले जाएंगे। अभी जाना ठीक नहीं है। हमारे रिश्ते को यह शोभा नहीं देता। हमें यह शोभा नहीं देता।”

“यह तो तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो शुभी।दादाजी और दादी दोनों ही बीमार हैं ।इस समय हमें घूमने में  मन भी नहीं लगेगा और नहीं अच्छा लगेगा। और नहीं यह हमारे लिए अच्छा होगा।इसलिए हम कभी चले जाएंगे।”

“अरे मैं तो ऐसे ही बोल दी थी कि मुझे गोवा घूमना है।फिर कभी चले जाएंगे ।

तभी झिझकते हुए शुभम की मां और पापा दोनों वहां जाकर बोले “बेटा तुम दोनों आराम से निकल जाओ कोई दिक्कत नहीं होगी।”

“ नहीं पापा अच्छा नहीं लगेगा। दादा-दादी दोनों अस्पताल में और हम दोनों घूमने जाएं यह शोभा नहीं देगा।

रिश्तो की मर्यादा यह नहीं कहती है ।इस समय हमें दादा दादी के साथ रहना चाहिए। दोनों हम दोनों को बहुत प्यार करते हैं।”

“हां पापा शुभी ठीक कह रही है ‌घूमनाफिरना तो चलता ही रहता है। इस समय हमें यही रहना चाहिए और शुभी के सेवा से दादा दादी दोनों ठीक हो जाएंगे।”

शुभम की बात सुनकर माता-पिता दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

संस्कार  पढ़ाया नहीं जाता वह तो अपने आप आते हैं। उनका बच्चा कितना संस्कार है और बहू तो और भी ज्यादा गुणी और संस्कारी है।वह तो दूसरे घर से आई है फिर भी कितना सोचती है हमारे घर के बारे में।

 शुभम की मां ने शुभी को गले लगा लिया और कहा”जुगजग जीयो मेरी प्यारी बिटिया।।

अब जल्दी से अदरक वाली चाय बना लो और तुम और शुभम अस्पताल ले जाओ। तुम्हारे दादा दादी दोनों इंतजार कर रहे होंगे।”

“जी मां मैं अभी बनाती हूं और साथ में दादाजी के मनपसंद पकौड़े भी बना लेती हूं।” शुभी मुस्कुराते हुए कमरे से निकल कर रसोई की ओर चल पड़ी।

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# रिश्तों की मर्यादा 

साप्ताहिक विषय रिश्तों की मर्यादा कू लिए मेरी रचना पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां हेतु।

लेखिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

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