रिश्तों की मर्यादा – रेनू अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

चंदा की शादी को कुछ ही महीने हुए थे। वह एक शांत, सरल और सलीके से रहने वाली लड़की थी। अपने नए घर में उसने खुद को ढालने की पूरी कोशिश की। परिवार बड़ा नहीं था — सिर्फ उसके सास-ससुर थे, लेकिन उसकी सास का देहांत हो चुका था, और अब घर में सिर्फ उसके बूढ़े ससुर और उसका पति रहते थे। उसका पति नौकरी के कारण दिनभर घर से बाहर रहता था और अधिकतर समय चंदा को अकेले घर में रहना पड़ता था।

शादी के शुरुआती दिनों में सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे चंदा को अजीब-अजीब बातें महसूस होने लगीं। जब भी वह अपने कमरे में अकेली होती, उसे लगता कि कोई उसके कमरे के आसपास चुपचाप घूम रहा है, जैसे कोई ताक-झांक कर रहा हो। पहले-पहल उसने इसे भ्रम समझा और सोचा कि शायद उसकी मां होतीं तो वह उनसे कहती, मगर यहां किससे कहती? उसने मन में यह सोचकर बात को टाल दिया कि शायद यह उसका वहम है या घर में बिल्ली आदि घूम जाती होगी।

लेकिन समय के साथ यह एहसास और मजबूत होता गया। उसे बार-बार लगता कि कोई कमरे के दरवाज़े के पास खड़ा है, कोई झांक रहा है। कुछ बार तो उसे हल्की सी परछाईं भी दिखी, मगर जैसे ही वह बाहर निकलती, कोई नहीं होता। वह बहुत असहज महसूस करने लगी। उसे डर भी लगने लगा लेकिन वह खुद को दिलासा देती रही।

एक दिन उसने ठान लिया कि वह सच का सामना करेगी। उसने दरवाज़े के पीछे छुपकर निगरानी शुरू की। कुछ ही देर में उसने देखा कि उसके ससुर चुपचाप उसके कमरे की ओर आए, और हल्के से दरवाज़ा खोलकर अंदर झांकने की कोशिश करने लगे। यह देखकर चंदा दंग रह गई। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। वह स्तब्ध रह गई — यह उसके अपने ससुर थे, जिनका सम्मान वह पिता के समान करती थी!

उसका दिल टूट गया। जिन पर भरोसा किया, जिन्होंने उसे बेटी कहकर अपनाया, वही इस तरह की हरकत कर सकते हैं — यह उसने सोचा भी नहीं था। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने खुद को संभाला। उसने यह बात अपने पति को बताने की ठानी।

जब रात को उसका पति घर आया, उसने सब कुछ धीरे से बताया — बिना किसी आरोप या शोर के। लेकिन पति की प्रतिक्रिया ने उसे और भी तोड़ दिया। उसका पति चिल्लाने लगा, बोला, “पापा ऐसा कभी नहीं कर सकते। तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है। तुम मेरे परिवार पर शक कर रही हो!” चंदा को बहुत बुरा लगा। वह उम्मीद कर रही थी कि उसका पति उसकी बात समझेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

अब वह बहुत ही असमंजस में थी। एक तरफ वह एक डरावनी सच्चाई से जूझ रही थी, और दूसरी तरफ उसका पति ही उसकी बात मानने को तैयार नहीं था। वह सोचने लगी कि क्या करे — चुप रहे, या फिर किसी और से बात करे? लेकिन वह जानती थी कि अगर उसने यह बात बाहर बताई तो परिवार की इज्जत खराब हो सकती है। फिर भी, यह स्थिति और नहीं झेली जा सकती थी।

अगले दिन उसने हिम्मत जुटाई और अपने ससुर से आमने-सामने बात की। उसने शांत स्वर में कहा,

“पापा, क्या बात है? आप बार-बार मेरे कमरे के पास क्यों आते हैं? आप मुझे बेटी कहते हैं, तो क्या आपको अच्छा लगता है कि आपकी बेटी डरे?”

यह सुनकर उसके ससुर एकदम चौंक गए। वे कुछ पल चुप रहे, फिर उनकी आंखें झुक गईं। उन्हें समझ आ गया कि बहू को सब पता चल चुका है। शर्म से उनका चेहरा लाल हो गया। वह बोले कुछ नहीं, बस सिर झुकाए चुपचाप चले गए।

उस दिन के बाद उन्होंने अपनी हरकतें पूरी तरह सुधार लीं। वे अब बहू से सच में बेटी जैसा व्यवहार करने लगे। उन्होंने खुद को संयमित कर लिया। चंदा ने भी अपने पति से फिर इस बारे में कुछ नहीं कहा। उसे लगा कि अगर गलत को सुधार दिया जाए तो परिवार टूटने से बच सकता है।

इस तरह एक घर टूटने से बच गया। चंदा ने समझदारी और धैर्य से स्थिति को संभाला और रिश्ते की मर्यादा में रहकर अपने आत्म सम्मान की रक्षा की। यह कहानी सिखाती है की घर को जोड़कर रखने के लिए परिवार के हर एक सदस्य को हमेशा अपनी मर्यादा याद रखनी चाहिए। जब कोई उस मर्यादा को तोड़ता है तो वो सिर्फ अपने घर को नहीं तोड़ता साथ मे वो एक मर्यादित रिश्ते पे भी दाग लगाता है।

नमस्कार

रेनू अग्रवाल

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