रिश्तों की मर्यादा – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

“भाभी, सुबह के पांच बज गए, उठो महारानी और चाय बनाओ” -ननद रत्ना अपनी भाभी रमा को जगाने आयी थी।

इधर भाभी रमा अपनी दोनों ननदों से बुरी तरह से परेशान थी।इसी शहर में ब्याही दोनों ननदें जब-तब आ जाती और दस दिन पड़ी रहती,क्या मजाल किसी काम को हाथ लगा दे।मगर आज रमा गुस्से में थी सो पलटकर बोली -क्यों खुद चाय तक नहीं बना सकती?

आज रमा का जबाब चुभ गया।

हमलोग मैके आराम करने आतीं हैं,काम करने नहीं -वह बात काटते बोली।

रमा ने कड़वे स्वर में कहा -कामचोरी करने और हराम का खाने मैके आ जाती हो,बस पड़े रहना जानती हो।

अब रत्ना गुस्से में अपनी मां के पास पहुंच गयी। मां भी झट गुस्से में भरी बहू के पास आयी और जैसे ही कुछ बोलना चाही कि रमा ने जबाव दिया -आपके इसी शह से हमारा घर कंगाल है।सारा कुछ उठाकर दे दिया और अब नखरे झेलो। रोज रोज दोनों मुंह उठाकर चली आती है।

अब सास समझ गई,बूढी आंखें पलभर में मांजरा भांप लेती है। कहीं बेटा और बहू अलग रहने लगे तो मेरा-

चल बेटा,अपन दोनों चाय बना लेते हैं,क्या हो जायगा?-कहती बेटी को लेकर किचन में चली गयी। मगर बेटी भाभी का यह रूप पचा नहीं पा रही थी।

आने दो भाई को,इसकी अच्छी खासी मरम्मत करा देनी है।-वह हाथ पैर पटकते हुए बोली।

इधर रमा का बुरा हाल था।उसका पति महेश पान की दुकान चलाता है। सुबह छः बजे से रात के दस बजे तक काम में लगा रहता है तब मुश्किल से दस पंद्रह हजार कमा पाता है।पढ़ा बी ए पास है मगर कहीं नौकरी नहीं लगी तो मजबूरी में पांच साल से यह काम कर रहा है।उसी की दोनों बहनें हैं -रत्ना बड़ी और माया छोटी।इसके पिता दोनों बहनो का विवाह कराकर और यह वन बी एच के फ्लैट लेकर गुजरे थे।इसी शहर में पास में ससुराल है सो दोनों जब तब आ धमकती है। यहां लेटी रहेगी और हुकुम चलाती रहेगी। यहां पूरा आराम और मुफ्त की सुविधा जो मिलती है। मां की दोनों बेटियां हैं सो क्या करें?

कल रात भी इसी बात को लेकर महेश से रमा का झगड़ा हुआ था। महेश भी बहन के इस आदत से परेशान था।कारण मां अपनी बेटी पर प्यार और पैसा दोनों लुटाती जो इसके बजट से बाहर था।

सो आज दोपहर में महेश जैसे ही घर के अंदर घुसा कि दोनों ने चिल्लाना शुरू कर दिया।वे बुरा भला कहने लगी।’क्यों हम बहनों का मैके आना खलता है,हम मां से मिलने नहीं आ सकती?’-वे चीखती बोली।

“मैके आने का क्या मतलब है यहीं पड़ी रहो,उधर तुम्हारे सास ससुर परेशान रहें,कभी कभार,तीज त्यौहार,मौके कुमौके आना ठीक है मगर बगल में ससुराल है दस रूपए टैम्पो को देकर आ गये।एक काम नहीं करना, सिर्फ पैसे खर्च कराना, एक काम को हाथ नहीं लगाना।वह तुम्हारी भाभी है कोई नौकरानी नहीं?-

अब तो पासा पलट गया था, कहां वह शिकायत करने चली थी कहां उसी की औकात भाई ने दिखा दी।अब तो दोनों को दिन में तारे नज़र आने लगे। रिश्ते का मतलब समझ में आ गया।

‘बाप मरते ही भाई पराया हो गया।”-दोनों रोती कहने लगी।

भाई नहीं पराया है,इतना अच्छा ससुराल है, कर्ज लेकर शादी की, मगर तुमने कभी  हमारी मदद की,–बस हर महीने दो बार ,कभी तीन बार आ धमकते हो। यहां पड़े रहना, एक काम को   

हाथ नहीं लगाना। तुम्हारी भाभी भी किसी की बेटी है,यदि वह तुम्हारी तरह मैके में पड़ी रहे तो मां का कल्याण हो जाएगा।

समझ गई, तुम्हें भी पसंद नहीं है हमारा आना।-वे दोनों चीखती बोली।

सो जो समझो, आज तुम भी किसी की बहू हो। यहां मुफ़्त की रोटी तोड़ती हो उधर माॅ बाबूजी कचे पके खाते हैं। मुझे मिले थे तो रो रहे थे।

तुम्हें रिश्तों का मान चाहिए तो #रिश्तों की मर्यादा रखनी होगी।

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

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