———————दरवाजे पर डोर बेल बजी। भावना जी ने जब दरवाजा खोला तो सामने निधि खड़ी थी। नमस्ते भाभी! कैसी हो? भावना जी घृणामिश्रित निगाहों से निधि को देखकर बोली , ठीक हूं! भावना जी मुड़कर अंदर गई तो पीछे-पीछे निधि भी अंदर ही आ गई। चारों और सन्नाटा पसरा हुआ था। निधि ने अपना सामान वहीं रखा और कमरे में सोफे पर आकर बैठ गई।
भावना जी एकदम चुप थी दरवाजा बंद करने के बाद लंगड़ाते कदमों से वह निधि के लिए रसोई से पानी लेकर आईं और सामने रख दिया। भाभी आप यहां पर बिल्कुल अकेली रहती हो? रोहन को अमेरिका से क्यों नहीं बुलवा लेती? नौकरी तो वह यहां भी कर लेगा ? निधि ने शायद अकारण ही बात करने के लिए यह बात भावना जी से कही थी।
रोहन के पिता वसीयत में कोई जायदाद नहीं छोड़ गए हैं उसके लिए इसलिए अगर जीना है तो कमाना तो उसे पड़ेगा ही ना? भावना जी की आवाज में तेजी थी। भाभी मुझे माफ कर दो, निधि की आवाज अब रुआंसी हो चली थी।
निधि भावना जी के स्वर्गीय पति वर्मा जी की बड़ी बहन थी। वर्मा जी का 4 कमरों का बहुत बड़ा फ्लैट मुंबई में था लेकिन वर्मा जी की दिल्ली सरकार में हेड क्लर्क की नौकरी लगने के कारण उन्हें दिल्ली आना पड़ा और वही उन्होंने अपनी सहकर्मी भावना जी से अपने परिवार की सहमति लेकर विवाह भी कर लिया था। वर्मा जी के पिता मुंबई में बैंक मैनेजर थे।
अपनी बेटी निधि का विवाह तो उन्होंने पहले ही कर दिया था। निधि के ससुराल में संयुक्त परिवार था। निधि का ससुराल उनके मायके से थोड़ी ही दूर पर था।निधि के दोनों बेटे मायके में ही पैदा हुए थे। इधर दिल्ली में भावना जी के भी रोहन और श्वेता के पैदा होने के बाद वर्मा जी मुंबई में अब जल्दी-जल्दी नहीं जा पाते थे।
वर्मा जी के पिता की रिटायरमेंट के बाद भावना जी और वर्मा जी ने उन्हें अपने पास दिल्ली में लाना चाहा परंतु उन्होंने दिल्ली आने से साफ इनकार कर दिया। समय के साथ उनके माता-पिता को , बीपी ,शुगर अस्थमा भी बीमारी हो गया था और एक दिन दिन जब वर्मा जी के पिताजी को हार्ट अटैक आया और कुछ स्टंट डाले गए ।
अधिक छुट्टियां ना होने के कारण वह अपने माता पिता को बीमारी की हालत में मुंबई नहीं छोड़ना चाहते थे परंतु वह दोनों दिल्ली जाना नहीं चाहते थे तो वर्मा जी ने अपनी बड़ी बहन निधि से माता पिता के पास रहने की प्रार्थना की तो निधि ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह माता पिता जी के पास अपने परिवार के साथ रहकर उनकी सेवा केवल इस शर्त पर करेगी
कि उनके भाई वर्मा जी अपना हिस्सा छोड़ कर इस घर को निधि के नाम कर दें। वर्मा जी खुद तो मुंबई शिफ्ट नहीं हो सकते थे इसलिए उन्होंने निधि की ही बात मान कर उस घर से अपना हिस्सा कानूनी तौर से निधि के नाम कर दिया।
उससे अगली गर्मियों की छुट्टियों में जब वह सपरिवार मुंबई गए तो उनका कमरा निधि ने अपना बना लिया था और बाकि कमरे अपने दोनों बच्चों के। किसी तरह से ड्राइंग रूम में ही भावना जी और वर्मा जी ने अपने परिवार के साथ मुंबई में अवांछित मेहमान के जैसे एक सप्ताह काटा।
अम्मा बाबूजी भी यह सब देख कर चुप ही थे शायद यह उनकी मजबूरी ही होगी क्योंकि अब उन्हें निधि के साथ ही रहना था। दुखी मन से वर्मा जी दिल्ली तो लौट आए लेकिन उसके बाद दोनों ने कभी भी निधि से बात नहीं करी।
वर्मा जी के माता और पिता की मृत्यु के समय भी जब यह दोनों गए तो उन्होंने अपना इंतजाम घर के पास के एक होटल में किया था।
अपनी रिटायरमेंट के बाद वर्मा जी अक्सर उदास और चुप ही रहते थे। रोहन विदेश चला गया था और श्वेता अपने ससुराल। भावना जी को भी गठिया की बीमारी ने घेर लिया था। बेटी श्वेता कभी मिलने आ जाती थी।
एक दिन अचानक ही रात को वर्मा जी सोए तो सुबह उठ ही ना पाए। अमेरिका से उनका बेटा रोहन भी आया था । हालांकि रोहन तो वापिस जाना ही नहीं चाहता था लेकिन भावना जी ने से समझाया कि जिस प्रोजेक्ट पर गए हो वह पूरा करके ही अमेरिका से आना उनका ख्याल बेटी श्वेता रख लेगी। हालांकि कुछ समय बाद तो श्वेता भी अपने ससुराल चली गई थी।
रिटायरमेंट के बाद सोसाइटी के जिस फ्लैट में वह रहती थी उसके बाहर खड़ा गार्ड उनके लिए दूध और घर का सामान ले आता था और उस गार्ड की पत्नी भावना जी के घर का काम कर देती थी।आज निधि को अपने घर में देखकर भावना जी को बेहद गुस्सा आ रहा था लेकिन इससे पहले कि वह कुछ बोलती कि तभी निधि बोली।
भाभी, भैया की मृत्यु के समय मुझे चिकनगुनिया हो रहा था ,इसलिए नहीं आ पाई। तभी रूआंसी सी आवाज में उसने फिर से भावना जी से कहा कि भाभी मुझे माफ कर दो। भाभी अगर आपने मुझे माफ किया तो भैया भी मुझे माफ कर देंगे। मैंने उनका घर तो अपने नाम करा लिया था लेकिन जैसे मेरे संस्कार मेरे बच्चों ने देखें उन्होंने भी वैसा ही करा।
मेरे पति की मृत्यु के बाद मेरे दोनों बेटों ने कोर्ट मैरिज कर ली और इनकी सारी जमा पूंजी आधी आधी बांट ली । मेरी बीमारी में भी सेवा करने की बजाय मुझ पर घर अपने नाम कराने के लिए दबाव डालते थे। दोनों मिलकर नानी के और मेरे गहने भी छीनना चाहते थे।
इनके जाने के बाद बच्चों के व्यवहार से मुझे हर पल भैया की याद आती थी मेरे एक बार कहने पर ही उन्होंने अम्मा बाबूजी के लिए अपना घर भी मेरे नाम लिख दिया। भैया सबको बहुत प्यार करते थे।निधि फूट-फूटकर रो दी।
अगर मैंने अपने भैया के साथ ऐसा छल ना किया होता, रिश्तो की मर्यादा निभाई होती तो मैं आज इतनी अकेली कभी नहीं होती भाभी!!! उसके बाद निधि ने अपने बैग में से अम्मा के बहुत से गहने निकाल कर कहा भाभी इन पर सिर्फ आपका ही अधिकार है यह आपकी सासू मां के गहने हैं ।
अगर आप चाहो तो मैं घर को भी आपके नाम पर कर दूंगी। अब निधि और भावना जी दोनों ही फूट-फूटकर रो रहीं थीं। निधि बोली भाभी मैं बच्चों को बिना बताए फ्लाइट लेकर दिल्ली आ गई। अब मैं वहां कभी नहीं जाऊंगी। आप चाहो तो मुझे यहां से भी निकाल सकती हो मैं————।
भावना जी ने निधि को शांत होने के लिए कहा और बोली हमें किसी चीज की कोई जरूरत नहीं है। श्वेता अपने घर में खुश है और रोहन जब आएगा तब देखेंगे। नहीं भाभी, यह गहने तो मैं अब वापिस नहीं लूंगी और ना ही अब मैं उस घर में जाऊंगी। यह सब बातें बाद में कर लेंगे, भावना जी ने रोती हुई निधि को चुप रहने को कहा।
वह बोली यह घर तुम्हारे भाई का ही है, तुम जब तक चाहो यहां रह सकती हो। हम एक से दो भले। ऐसा कह कर भावना जी सामने रखी वर्मा जी की फोटो को देखा ——वर्मा जी भीऔ तो अपने परिवार से बहुत प्यार करते थे । ऐसा ही कुछ सोचते हुए भावना जी निधि के लिए चाय बनाने को उठ पड़ी।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा
रिश्तों की मर्यादा के अन्तर्गत लिखी गई कहानी।