आज रिया की बहन के नए घर का गृह प्रवेश था। बड़े भैया , भाभी, माँ सबलोग इकठ्ठा हुए थे। रिया के और दो भैया भी पहुंच गए थे। पूजा के बाद बैठ कर सब बातें कर रहे थे। अचानक बात चली सुरेखा भाभी की। रिया के ताऊजी की बड़ी बहु हैं सुरेखा भाभी। थोड़ी वहमी और थोड़ी अजीब लोगो की नजरो में।
सबको वो घमंडी और असंवेदनशील लगती हैं पर रिया को हमेशा लगता कि सिर्फ इसलिए कि कोई समाज के सारे नियम ना माने, उसे अजीब और घमंडी कहना अनुचित है। आज भी जब रिया की भाभी ने कहा कि सुरेखा भाभी मतलबी हैं
तो रिया झट से बोल पड़ी “क्यों आपलोग उनकी बुराई करते हैं? अरे जरुरी थोड़े है कि सबलोग हमारे हिसाब से चलें। अब सुरेखा भाभी को ज़िन्दगी अपनी शर्तो पे जीना पसंद है तो आप और मैं कौन होते हैं उनको रोकने वाले या उनपे तानाकशी करने वाले?”
ये सुनकर रिया की भाभी बोली “हाँ हाँ ननद जी अभी आपको उनकी सच्चाई पता नहीं इसलिए इतना समर्थन कर रही हैं आप। आपको तो गाँव से निकले १८ साल हो गए पर हम देखते हैं न उन्हें रोज तो हमें पता है कि वो कैसी है और वैसे भी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना और दुसरो को नीचे समझना दो अलग अलग बातें हैं और सुरेखा भाभी दुसरो को अपने से हमेशा नीचे समझती हैं और यही बात हमें नापसंद है।”
“अच्छा अच्छा ठीक है छोडो न दूसरे की बात पे हमलोग क्यों बहस करने लगे” रिया के भैया बोले।
बात वही ख़तम हो गई और दूसरे दिन रिया ने सबसे विदा ली और अपने घर वापस आ गई। भैया और भाभी भी एक दिन बाद गाँव के लिए निकल गए। रिया को वापस आये बस एक हफ्ता ही हुआ था कि अचानक शाम को घर से कॉल आई कि भैया नहीं रहे।
रिया को समझ नहीं आया कि क्या बोले और क्या करे ! एक हफ्ते पहले ही तो मिलकर आई थी सबसे और भैया ने कहा था कि जल्दी ही फिर मिलते हैं सबलोग पर ऐसे आखिरी विदाई के लिए मिलना होगा ये तो सपने में भी नहीं सोचा था। रिया के पति ने आनन् फानन में उसकी टिकट्स करवाई और रात की फ्लाइट से रिया निकल गई। पति ने कहा कि वो भी जल्दी ही आने की कोशिश करेंगे पर अभी तो तुम्हारा पहुंचना ज्यादा जरुरी है।
जिस भाई को एक हफ्ते पहले माँ का सबसे प्यारा बेटा कहकर सब चिढ़ा रहे थे वो भाई आज माँ के सामने निर्जीव पड़ा था। ये देख कर रिया का कलेजा मुँह को आ गया पर कहते हैं न कि जाने वाले चले जाते हैं और पीछे जो रहते हैं उनको सारे नियम धर्म निभाने ही पड़ते हैं। खैर दाह संस्कार का काम हो गया और अब बाकी के नियम पूजा पाठ सब होने थे। तीसरे दिन की पूजा के बाद अब घर पर ही खाना बनने लगा था।
अब तक तो अड़ोस पड़ोस वालों ने सारा खाना पीना सम्हाला हुआ था। यही तो ख़ूबसूरती है छोटे शहरों और गाँव की। दुःख की घडी में लोग साथ खड़े होते हैं। खैर अब घर पे रिश्तेदार परिवार सभी के होने से खाने पीने की व्यवस्था भी करनी ही थी। बाकी सब की हालत देखते हुए रिया ने ही जिम्मेदारी उठाई और सबसे पहले एक खाना बनाने वाले को बुलवाया।
एक और समस्या थी बर्तन साफ़ करने की। पड़ोस की एक भाभी ने बताया कि रुक्मा को बुला लो वो कर देगी। रुक्मा को तब देखा था जब वो छोटी सी थी अब तो उसके बाल बच्चे भी थे। खैर रुक्मा को बुलाया और आकर उसने सारे काम करने की हामी भी भर दी।
बस उसकी एक शर्त थी कि वो एक घर में चौका बर्तन करती है तो बस दिन में दो या तीन घंटे के लिए जाएगी और वहाँ से काम करके आ जाएगी। किसी को भी इस बात से ऐतराज़ नहीं था क्युकी वह रुक्मा का नियमित काम था। यहाँ तो बस १०-१५ दिन की बात थी। और काम करती भी तो सुरेखा भाभी के घर पर। परिवार ही है वो तो।
अचानक रिया की छोटी भाभी ने कहा कि दीदी मुझे लगता नहीं कि सुरेखा भाभी इसे यहाँ आकर काम करने देंगी।
रिया थोड़ा झल्ला सी गई ” ओफ्फो भाभी ऐसे वक़्त में भी आपलोग दूसरे की बुराई करने लग गए। सुरेखा भाभी अपना परिवार ही तो हैं ऐसे मौके पे उनको पता है कि सहयोग करना चाहिए।”
छोटी भाभी ने भी थोड़ी सख्त आवाज में जवाब दिया -“अच्छा परिवार की हैं तो आज तीन दिन हो गए भाई साहब को गुजरे ये परिवार वाली कहाँ हैं? मुझे तो दिखी नहीं यहाँ पे।”
उनकी बात से रिया को भी ध्यान आया कि एक बार भी सुरेखा भाभी आई नहीं। हालाँकि ताऊ जी पिताजी के बुआ के लड़के थे पर पिताजी ने हमेशा उन्हें सगा भाई समझा और घर के बच्चे भी उन्हें सगे ताऊजी जैसा ही सम्मान देते थे। रिया के पिता के गुजरने के ६ साल बाद एक साल के अंतराल में ताऊजी और ताईजी दोनों दुनिया से चले गए थे
और उनके निधन के समय भी रिया के मायके का सारा परिवार वहाँ था और अमूमन यदि किसी घर में मौत हो जाए तो उस घर के बेटा बहु लोग १५ दिनों तक बाहर वालों के यहाँ नहीं जाते पर ताऊजी बाहर वाले थोड़े ही थे इसलिए उनके यहाँ से कोई भी रिया के घर आता तो किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। ये सुरेखा भाभी तो रात में यहाँ आ जाती थी
क्युकी उनको डर लगता था कभी कभी अपने घर में और फिर….. “रिया रिया कहाँ खो गई?” अचानक माँ की आवाज से रिया का ध्यान भंग हुआ। उफ़ कहाँ से कहाँ पहुंच गए थे मेरे ख्यालो के घोड़े। कितनी बेसिर पैर की बातें सोच बैठी मैं इतनी सी देर में रिया ने अपने सिर पर खुद से ही हलकी सी चपत लगाते हुए मन ही मन में कहा
खैर रुक्मा तब तक चली गई थी कुछ घंटे बाद आने का बोल कर। घर में बाकी लोग भी अपने अपने काम में लग गए। खाना बनाने वाले को सारे निर्देश देकर रिया थोड़ी देर सुस्ताने चली गई।
थकान की वजह से रिया को नींद आ गई और किसी ने उसे उठाया भी नहीं क्युकी सबको पता था कि वो सुबह से काम में लगी थी। जब तक रिया सो कर उठी ४ बज गए थे और बाहर सभी चाय पी रहे थे। छोटी भाभी और दीदी बर्तन साफ़ करने में लगी हुई थी। ये देखकर रिया को बड़ी हैरानी हुई और वो बोली -“अरे जब खुद ही काम करना था तो कामवाली क्यों बुलवाई है? अब वो क्या करेगी आकर?”
थोड़े तल्ख़ आवाज में भाभी ने जवाब दिया -“नहीं आई है कामवाली। चार बज गए हैं और रात के खाने का भी देखना है। रसोइया बर्तन खोज रहा है तो धोना तो पड़ेगा ही न। मैंने कहा था किसी और को देख लो पर यहाँ तो सबको रुक्मा के नाम की माला जपनी थी। आप यहाँ नहीं रहती पर ये बाकी लोग तो जानते हैं न कि रुक्मा सुरेखा भाभी के यहाँ जाती है और वहां जाने के बाद उसका आना असंभव है। “
रिया ने बिना कोई जवाब दिए मदद करवाना शुरू किया और काम ख़त्म होने के बाद अपनी सहेली की माँ को फ़ोन लगाया। थोड़ी देर बाद एक और कामवाली का बंदोबस्त हो गया जो दूसरे दिन सुबह से आने भी लगी।
दो दिन बाद रिया घर के बाहर खड़ी थी तभी उसे रुक्मा आती दिखाई दी। आवाज दे कर बुलाया उसे। थोड़ी झिझकती हुई रुक्मा आई।
“नहीं काम करना था साफ़ बोल देती रुक्मा, ये क्या वाहियात हरकत थी कि बाद में आने का बोल कर गायब हो गई। अरे हम तुझे मजबूर थोड़े ही कर रहे थे काम करने को। तूने खुद हामी भरी थी न और पैसे भी कोई कम नहीं दे रहे थे काम के तो फिर ऐसे क्यों किया तूने? इस घर के लोगों ने हमेशा तुमलोगो की मदद ही करी है और आज जब इनपे दुःख की घडी आई तो तुम अपना स्वार्थ ऐसे दिखा रही हो!! शर्म आनी चाहिए।” रिया खुद पे काबू नहीं रख पाई और अंदर की भड़ास निकाल दी।
“वो दीदी दरअसल यहाँ तो सिर्फ कुछ दिनों का काम ही है न और इसके लिए अपना नियमित काम नहीं छोड़ पाई मैं” रुक्मा ने नजर नीची करके बोला।
किसने कहा था नियमित काम छोड़ने? यही बात हुई थी न कि रोज दो घंटे सुबह और एक घंटा शाम में जाओगी वहाँ काम करने तो फिर परेशानी क्या थी? रिया को अब भी कुछ समझ नहीं आ रहा था।
“वो सुरेखा भाभी ने कहा कि उनके घर काम करना है तो मैं किसी ऐसे घर में नहीं जा सकती जहां मौत हुई है। और अगर मैं जाउंगी तो फिर हर बार मुझे नहाना होगा भाभी के घर में घुसने के पहले। आप ही सोचिये कि एक बार सुबह यहाँ आउंगी नहा कर क्युकी मैं पूजा करके निकलती हूँ घर से और फिर यहाँ से सुरेखा भाभी के घर जाने के पहले अपने घर जाकर नहाउंगी फिर शाम में यहाँ से अपने घर जाकर नहाकर तब सुरेखा भाभी के यहाँ जाउंगी।
तीन बार नहाना और तीन बार अपने घर जाना आना करना कितना मुश्किल हो जाता मेरे लिए। दो बच्चे हैं मेरे उनका खाना पीना, उन्हें स्कूल भेजना, स्कूल से वापस लाने जाना और फिर घर पर भी तो कितने काम होते हैं ना। बस इसलिए मैं वापस नहीं आई। सुरेखा भाभी ने साफ़ साफ़ कहा था कि उनके घर से यहाँ सीधे मत आना और अच्छा होगा कि उनके घर जाओ ही मत।”
तुमने कहा था कि हमारे घर पे आ रही है? अरे परिवार वाले हैं हमसब। उनको लगा होगा कि तू कहीं और जा रही है। रिया के चेहरे पर अब भी हैरानी और अविश्वास साफ़ झलक रहा था रुक्मा की बात सुनकर।
दीदी ये कोई दिल्ली बम्बई नहीं है। छोटा सा गाँव है अपना यहाँ तो किसी को ऐसी ग़लतफ़हमी नहीं होती। और आपने ही तो कहा न कि वो परिवार वाले हैं तो उनको तो पता ही है न कि आपके घर में क्या हुआ है। रुक्मा के जवाब ने रिया की सारी हैरानी दूर कर दी। सही तो कह रही है रुक्मा कि सुरेखा भाभी को पता ही है सबकुछ और इसलिए उन्होंने कामवाली को आने नहीं दिया। खुद तो वो आज ५ दिन बीत जाने पर भी नहीं आई थी।
घर के अंदर आकर वो अपना सिर पकड़ कर बैठ गई। ऐसे लोग भी होते हैं जिनको सिर्फ अपने बारे में पड़ी होती है। ये भैया जिन्होंने ताऊजी के परिवार को हमेशा मान सम्मान दिया उनके गुजरने पर उस परिवार की बड़ी बहु मिलने तक नहीं आई। जिस परिवार को हमने कभी पराया समझा ही नहीं, उनके लिए हम अछूत हो गए
क्युकी हमारे घर पर मौत हुई है। अरे एक दिन सबको जाना है दुनिया से। दुःख की घडी में एक दूसरे का साथ देना, सहयोग करना यही तो मानवता है। और अगर उनको नहीं भी आना था तो ना आती पर कामवाली को इस तरह बोलना क्या सही था? और कौन सा हमारे घर के सदस्य उनके यहाँ जा रहे थे। कैसी मानसिकता है ये?
“बस दीदी अब ज्यादा मत सोचो”-ये छोटी भाभी की आवाज थी जो सामने चाय का प्याला लिए खड़ी थी। रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए भाभी बोली “ज्यादा मत परेशान होवो आप। हमें पता है कि आपको सुरेखा भाभी हमेशा से सही लगती हैं इसलिए आज आपको ज्यादा बुरा लगा है उनका ये रूप देख कर परन्तु यही उनकी सच्चाई है।
वो हमें सामने देख कर सीधे मुँह बात तक नहीं करती और देखिये न आज ५ दिन हो गए भाई साहब को गए हुए पर उन्होंने आना तो दूर फ़ोन तक करके बात नहीं की जेठानी जी से। छोडो ये सब और आप चाय पी लो। आज की दुनिया में सगे भाई बहन ही परिवार होते हैं और कई जगह तो वो भी नहीं मानते एक दूसरे को तो फिर यहाँ तो सगे भी नहीं हैं।
पिताजी ने निभाया रिश्ता और उनकी सीख की वजह से हमने भी निभाया पर अगर सामने वाला चाहता ही नहीं रिश्ता रखना तो हमें क्या पड़ी है, भाड़ में जाएं ऐसे रिश्तेदार। ताऊ जी ताई जी के जाने के बाद से ये रिश्ता ख़त्म सा ही हो गया है अब तो।
चलो चाय पीयो आप फिर रसोइये को बताते हैं रात के खाने में क्या बनेगा।” कहती हुई भाभी ने चाय का प्याला रिया के हाथो में पकड़ाया और चली गई।
रिया अंदर ही अंदर गुस्से में उबल रही थी। उसका मन कर रहा था कि जाकर पूछे सुरेखा भाभी को कि इतनी मतलबी और वाहियात सोच लाती कहाँ से हैं आप? सारा गाँव आपकी बुराई करता रहता था पर मैंने हमेशा आपको एक सच्ची इंसान समझा पर अब लगता है
कि शायद लोग सही कहते थे कि ये अपने वहम और छुआ छूत की आदत को रिश्ते इंसानियत से ऊपर रखती हैं। और भी बहुत कुछ कहने का मन था पर ना तो ये मौक़ा था ना ही अब रिया को सुरेखा के बारे में कुछ भी सोच कर अपना मन खराब करना था। चाय के घूँट भरते हुए वो रसोई की तरफ चल पड़ी।
तो दोस्तों आप मिले हैं कभी ऐसी वहमी औरत से? क्या सुरेखा की रुक्मा के सामने रखी गई शर्त वाकई में स्वच्छता की आदत है या सिर्फ मन का वहम? क्या किसी की मौत होने पर उसके घर जाकर संवेदना व्यक्त करना नहीं चाहिए?
खैर सुरेखा को तो कोई बदल नहीं सकता पर हमें थोड़ी इंसानियत हमेशा अंदर जीवित रखनी चाहिए। उम्मीद है आपलोगो को कहानी पसंद आएगी।
लेखिका : जया शर्मा
#रिश्तों की मर्यादा