कमरे में हल्का अंधेरा था।
बाहर बारिश की बूँदें,
खिड़की पर थिरक रही थीं —
जैसे हर बूँद पूछ रही हो,
“क्या आज फिर कोई रिश्ता भीगने वाला है?”
नैना ने आरव को देखा —
उसकी पीठ अब भी मुड़ी हुई थी,
जैसे उसने बात नहीं सुनी हो।
लेकिन नैना जानती थी —
आरव सब सुन रहा है,
बस अपने ‘सही’ होने के कवच में छुपा है।
“अगर मैंने कुछ कह दिया… तो माफ़ कर दो,”
नैना की आवाज़ जैसे बारिश के बीच एक धीमी फिसलती सी बूँद हो।
आरव चुप।
उसकी उंगलियाँ मोबाइल स्क्रीन पर थीं,
लेकिन आँखें…
कहीं और।
“मैंने तो बस इतना चाहा था कि हम दोनों एक-दूसरे से ऊपर न हों।”
नैना ने टेबल पर रखी उनकी पुरानी तस्वीर की ओर देखा —
जहाँ आरव मुस्करा रहा था
और नैना उसके कंधे पर सिर टिका कर हँसी को छुपा रही थी।
☔
“तुम हर बार माफ़ी क्यों माँग लेती हो?”
आरव की आवाज़ में पहली बार शब्द निकले।
“क्योंकि मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती।”
नैना का उत्तर सरल था,
लेकिन उसमें एक गहराई थी —
जो आरव के अहंकार से टकरा कर चुपचाप लौट गई।
“कभी तुम्हारा भी तो मन करता होगा कि मैं झुकूँ…”
“कई बार,”
नैना मुस्कराई,
“लेकिन रिश्तों की मर्यादा मुझे ये सिखाती है कि रिश्ता बच जाए, तो झुकना बड़ा नहीं होता।”
आरव ने उसकी ओर देखा —
एक क्षण को जैसे उसके भीतर कुछ पिघला…
फिर… ठंडा हो गया।
“तुम हमेशा बात को भावनाओं में बहा देती हो,”
उसने कहा।
रात हो चुकी थी।
नैना चुपचाप उठी।
आरव ने उसे जाते नहीं देखा,
या शायद देख लिया… लेकिन देखना नहीं चाहा।
टीवी की आवाज़ तेज़ कर ली।
बारिश अब थम चुकी थी,
लेकिन
एक रिश्ता भीग चुका था — फिर से।
सुबह की पहली चाय नैना ने बनाई थी।
कप वही दो थे,
जैसे हर रोज़ —
लेकिन आज की चाय में
एक चुटकी चुप्पी ज़्यादा थी।
आरव उठा, चाय पी,
फिर दरवाज़े की ओर बढ़ा।
पीछे देखा — नैना अब भी वही बैठी थी,
सिर नीचा, लेकिन चेहरा शांत।
आरव रुका…
शब्द गले में अटक गए।
नैना ने धीरे से कहा —
“आज अगर तुम माफ़ कर दो…
तो मैं फिर से माफ़ी माँग लूँगी।
पर कभी सोचो —
क्या ये हमेशा सिर्फ़ प्रेम का कर्तव्य है?
रिश्तों की मर्यादा —
सिर्फ एक की नहीं होती, आरव।”
आरव चुपचाप चला गया।
नैना ने खिड़की से बाहर देखा —
धूप निकली थी,
लेकिन उसकी चमक में
प्रेम का कोई गर्माहट नहीं थी।
—
“प्रेम झुकता रहा,
अहंकार अड़ा रहा —
और बीच में,
मर्यादा टूटी नहीं…
बस…
थक कर बैठ गई।”
लेखिका : दीपा माथुर