रिश्तों की मर्यादा – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

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कल एक विवाह समारोह में विदिशा को कमलाक्ष मिल गया। पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि उसने कमलाक्ष को करीब दस साल बाद देखा था। कमलाक्ष उसका दूर का रिश्तेदार था। 

कमलाक्ष की शादी में वह भी गई थी। फिर उसने किसी से खबर सुनी कि शादी के तीन महीने बाद कमलाक्ष घर छोड़कर चला गया। साथ में एक पत्र लिखकर रख गया कि वह हमेशा के लिये घर छोड़कर जा रहा है और अब कभी वापस नहीं आयेगा।

उसने यह भी लिखा कि उसकी पत्नी चारु की शादी उसके छोटे भाई नीरव से कर दी जाये। पत्र के साथ उसने तलाक के कागजात भी हस्ताक्षर करके रख दिये थे।

कुछ दिन तक तो सबने कमलाक्ष को ढूंढने का काफी प्रयत्न किया लेकिन जब कमलाक्ष का कोई पता नहीं चला तो अदालत द्वारा कमलाक्ष के हस्ताक्षरित  तलाक के कागजातों के आधार पर कमलाक्ष और चारु का तलाक हो गया। कमलाक्ष की इच्छानुसार चारु  और नीरव की शादी भी हो गई और दस साल में वे दो बच्चों के माता पिता बन गये।

माता पिता के न रहने के बाद तो सभी लोग कमलाक्ष को भूलने भी लगे थे लेकिन किसी पारिवारिक समारोह मे चारु और नीरव को देखकर एक स्वाभाविक प्रश्न अवश्य उठता था कि आखिर तीन महीने में ऐसा क्या हो गया कि कमलाक्ष घर छोड़कर तो गया ही साथ ही तलाक के कागजात भी हस्ताक्षर करके रख गया और चारु की शादी नीरव से करने के लिये कह गया।

आज जब उसने कमलाक्ष को देखा तो सब कुछ भूलकर उसके पास आ गई – मुझे पहचाना कमल?”

” हॉ बुआ।” कमलाक्ष ने झुककर विदिशा के पैर छुये – ” आप यहॉ? इस शहर में?”

” हॉ, तुम तो जानते ही हो कि तुम्हारे फूफा जी की नौकरी ही ऐसी है कि हम हर तीन वर्ष में खानाबदोश की तरह भटकते रहते हैं।” विदिशा के साथ कमलाक्ष भी हॅस पड़ा।

” बच्चे?”

” बच्चे अब काफी बड़े हो गये हैं। दोनों पढ़ने के लिये अलग-अलग शहरों में चले गये हैं। घर में सिर्फ हम दोनों ही रह गये हैं।” फिर विदिशा ने कमलाक्ष से पूॅछा – ” तुम यहॉ कैसे?”

” बहुत बातें हैं बुआ, यहॉ पर की नहीं जा सकतीं। मेरे घर आइये, ढेर सारी बातें करेंगे। बहुत दिन बाद कोई अपना मिला है।”

” अब तो मैं तीन साल इसी शहर में हूॅ तो अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर तुम आना। मैं खाना बनवाकर रखूॅगी। “

” बीबी – बच्चे तो हैं ही नहीं बुआ, कहिये तो मैं आ जाऊॅ?”

” शादी क्यों नहीं की?” विदिशा चौंकी।

” क्या बताऊॅ बुआ, रिश्तों पर से विश्वास उठ गया है।” विदिशा भी बहुत कुछ पूॅछना चाहती थी लेकिन सचमुच इस विवाह समारोह की भीड़ में बातें करना संभव नहीं था। पति भी कमलाक्ष को पहचान गये, हालांकि दस साल का लम्बा समय बीत गया था लेकिन कमलाक्ष में विशेष परिवर्तन नहीं आया था। दोनों ने एक दूसरे के नम्बर लिये और अलग हो गये।

करीब एक हफ्ते बाद कमलाक्ष का फोन आया कि वह रविवार की शाम को आना चाहता है। पति बाहर थे, पहले तो मन किया कि मना कर दे लेकिन पति ने समझाया कि अरे, घर का ही तो बच्चा है। आने दो, हो सकता है कि मेरे सामने उतनी सहजता से बात न कर पाये। विदिशा मान गई।

कमलाक्ष आया और जब उसे पता चला कि उसके फूफा जी बाहर गये हैं तो उसके चेहरे पर हल्की सी खुशी की लहर दौड़ गई।

चाय नाश्ते के बाद विदिशा ने ही पूॅछा- ” कमल, सच बताओ। तुमने यह सब क्यों किया? तीन महीने के अन्दर तुमने अपनी नई नवेली दुल्हन को तलाक देकर नीरव से विवाह को कह दिया और अभी तक शादी भी नहीं की?”

कमलाक्ष एक फीकी हॅस पड़ा – ” सारे जवाब दूॅगा बुआ। सबसे पहले आपके आखिरी सवाल का जवाब दे रहा हूॅ। क्या करूॅ, रिश्तों की मर्यादा को टूटते हुये देखने के बाद विवाह जैसे पवित्र सम्बन्ध से विश्वास उठ गया।”

कमलाक्ष सब बताता चला गया। चारु से विवाह हुआ तो वह बहुत खुश था। आगामी भविष्य के तमाम सपने ऑखों में साकार रूप लेने लगे।

धीरे धीरे कमलाक्ष ने अनुभव किया कि चारु जितना नीरव के साथ सहज रहती है, उतना उसके साथ नहीं रहती है। चारु और नीरव के मध्य होने वाले परिहास, एक दूसरे के स्पर्श को घर वाले देवर भाभी के मध्य का एक स्वाभाविक सम्बन्ध समझ रहे थे लेकिन कमलाक्ष इस सबको सहज रूप में नहीं ले पा रहा था।

उसने चारु से भी कहा – ” चारु, तुम मेरे साथ खुश नहीं हो क्या?” 

” ऐसा आपको क्यों लगता है? क्या मुझसे कोई गलती हो गई है? किसी ने कुछ कहा है क्या? क्या मैं अपने देवर से भी हॅस बोल नहीं सकती? आप मुझ पर और अपने भाई पर शक कर रहे हैं?” चारु रोने लगी।

कमलाक्ष को लगा कि शायद उसने ही अपने पुरुषोचित ईर्ष्या के कारण इस प्यारे सम्बन्ध को समझने में भूल कर दी है लेकिन उसका मन अपने और नीरव के साथ चारु के व्यवहार की बराबर तुलना करता। वह हर समय इन दोनों की गतिविधियों पर नजर रखने लगा।

यहॉ तक कि अंतरंग क्षणों में जब नव विवाहित पति पत्नी एक दूसरे में डूब जाते हैं, उसे चारु का कोई सहयोग न मिलता। वह उसे मना तो नहीं करती लेकिन तटस्थ अवश्य रहती जैसे कोई फर्ज पूरा कर रही हो।

उसने देखा कि परिहास के क्षणों में सबकी नजर बचाकर वे दोनों एक दूसरे के संवेदनशील अंगों का भी स्पर्श करके मुस्करा उठते। 

कमलाक्ष किसी से कुछ कह नहीं पा रहा था।‌ मम्मी पापा को क्या मालुम कि उनके सामने ही चारु और नीरव रिश्तों की मर्यादा तोड़ रहे हैं।

नीरव के कालेज से आने पर चारु ऐसे दौड़ कर जाती जैसे अभी तक अंगारों पर बैठी थी। कमलाक्ष के सभी काम अभी भी मम्मी करती थीं। जबकि चारु नीरव का हर कार्य बहुत खुशी और तल्लीनता से करती।

एक दो बार मम्मी ने कहा भी – ” मैंने बहुत दिन किया, अब कमल के काम तुम किया करो।‌ उसका ख्याल रखना तुम्हारा कर्तव्य है।”

चारु हॅसकर मम्मी के गले में बांहें डाल देती – ” आपके बेटे को आपके हाथों की आदत पड़ी है। उन्हें मेरा किया काम पसंद नहीं आयेगा। मैं पूरा घर सम्हाल लूॅगी, आप अपने लाड़ले बेटे को सम्हाल लीजिये।” मम्मी भी हॅस कर चुप रह गईं।

फिर आया वह मनहूस दिन, जब कमलाक्ष ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लिया। कमलाक्ष ने एल० एल० बी० करके सीनियर एडवोकेट मिस्टर आनन्द मुखर्जी के साथ नया नया काम शुरू किया था। उस दिन सुबह से उसके सिर में दर्द था तो उसने आनन्द मुखर्जी को बताया कि वह घर जा रहा है। 

सुनकर मिस्टर मुखर्जी ठहाका मारकर हॅस पड़े – ” कमल, हम भी कभी जवान थे। नई शादी में ये सिरदर्द, तबियत खराब के बहाने खूब जानता हूॅ। जाओ, इस असमय में तुम्हें देखकर मेरी बहू खुश हो जायेगी।”

कमलाक्ष मुस्करा दिया। काफी देर खटखटाने के बाद नीरव दरवाजा खोलने आया तो कमलाक्ष को देखकर चौंक गया -” भइया, आप?”

कमलाक्ष बिना कुछ बोले अपने कमरे की ओर बढ़ गया। कमरे में अस्त-व्यस्त हालत में चारु ऑखें बन्द किये लेटी थी। पैरों की आहट सुनकर बिना ऑखें खोले ही बोली – 

” कौन था नीरव जो हमारे सुख में व्यवधान डालने आ गया था। बाहर से ही भगा दिया ना।”

प्रत्युत्तर में नीरव का कोई जवाब न सुनकर धीरे से ऑखें खोली तो कमलाक्ष को खड़े देखकर हतप्रभ रह गई। हड़बड़ाकर उठी तो कुछ कपड़े फर्श पर गिर गये। जल्दी से अपने जमीन पर पड़े कपड़े उठाकर चारु दूसरे कमरे में भाग गई।

कमलाक्ष के पलंग की चादर अपनी कहानी स्वयं सुना रही थी। वह सिर पकड़कर कुर्सी पर बैठ गया। अपने पलंग पर बैठते हुये उसे घिन सी आ रही थी। 

थोड़ी देर में ही मम्मी पड़ोस से आ गईं और कमलाक्ष की लाल ऑखें और उतरा चेहरा देखकर परेशान हो गईं।

उसका मन कर रहा था कि वह चीख चीखकर सबको नीरव और चारु की असलियत बता दे कि किस तरह इन दोनों ने रिश्तों की मर्यादा तार तार कर दी है लेकिन यह भी जानता था कि उसकी दिल की मरीज मम्मी यह सदमा सहन नहीं कर पायेंगी। 

चोरी पकड़ी जाने के कारण चारु और नीरव उसके सामने पड़ने से कतरा रहे थे। कमलाक्ष आकर मम्मी की गोद में सिर रखकर लेट गया, उसकी ऑखों से ऑसू बह निकले – ” बहुत दर्द है क्या बेटा? पापा से दवा मंगवा देती हूॅ, खाना खाकर दवा खा लो और अपने कमरे में जाकर सो जाओ।”

“‌ खाना खाने का बिल्कुल मन नहीं है। सोते समय अपने हाथ से एक गिलास दूध गर्म करके दे देना।” 

फिर उसने पूॅछा – ” आज आपके कमरे में लेट जाऊॅ मम्मी?”

” कितना भी बड़ा हो जाये, तकलीफ में बच्चे को मॉ ही याद आती है।” चारु एक दो बार कमरे में आई तो कमलाक्ष ने ऑखें बन्द कर ली ताकि उसे चारु का चेहरा न देखना पड़े। 

पूरी रात सोचने के बाद उसने एक निर्णय लिया और बिना कुछ खाये पिये घर से निकल गया। मम्मी ने बहुत रोका – 

” तबियत ठीक नहीं है तो इतने सुबह बाहर जाने की क्या जरूरत है। चुपचाप आराम करो।”

” जरूरी काम है मम्मी, इसलिये जा रहा हूॅ।” मम्मी की अनुभवी ऑखों ने यह तो देख लिया कि बहू और बेटे के बीच में कोई तनाव है लेकिन इस भयंकर घटना की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।

उन्हें लगा कि पति-पत्नी के बीच की कोई सामान्य बात होगी, दोनों मिलकर खुद ही सुलझा लेंगे।

कमलाक्ष घर आया तो उसके चेहरे का तनाव काफी कम था क्योंकि वह एक उचित निर्णय ले चुका था जिससे रिश्तों की मर्यादा बनी रहे। परिवार की इज्जत, माता-पिता का सम्मान वैसा ही रहेगा, सारा इल्जाम उस पर आ जायेगा। लोग जो कुछ कहेंगे उसे कहेंगे।

उस रात भी कमलाक्ष मम्मी के कमरे में सोया और सुबह जब सब लोग सोकर उठे तो सबको आश्चर्य चकित करता कमलाक्ष का पत्र उसके पलंग पर रखा था।

” आप ही बताइये बुआ, क्या करता मैं? क्या सब कुछ जानकर भी चुप रहता और रिश्तों की मर्यादा के लिये चारु को दोनों भाइयों की भोग्या बनी रहने देता? हमारे परिवार में छोटे भाई की पत्नी को बेटी और बहन का स्थान दिया जाता है।

जो लड़की मेरे भाई की अंकशायिनी बन चुकी थी, उसे अपनी पत्नी कैसे स्वीकार करता? वह तो बेटी समान छोटी बहू हो गई थी परिवार और रिश्तों की मर्यादा के लिये मुझे यही कदम सही लगा। क्या अब भी आपको लगता है कि मैंने गलत निर्णय लिया था?”

” तुम्हारे मम्मी पापा  जीवन भर तुम्हारे वापस लौटने की आस लगाये रहे, कम से कम एक बार उनसे तो कहा होता।”

” नहीं बुआ, सब कुछ जानकर मम्मी पापा कभी चारु को अपनी बहू स्वीकार न करते, उसे घर से निकाल देते और उसकी जिन्दगी बरबाद हो जाती। मेरे इस तरह जाने के कारण सबने मुझे दोषी और चारु को बेचारी मान लिया। चारु ने भले ही मेरे साथ विश्वासघात किया था लेकिन मैंने उसे बहुत प्यार किया था।”

” जब तुमने सब कुछ सोच समझकर किया था तो अपनी जिन्दगी क्यों बरबाद की? तुमने अपना घर क्यों नहीं बसाया?”

” अपने ही घर में रिश्तों का ऐसा वीभत्स रूप देखा कि अब विवाह जैसे रिश्ते से पूरी तरह विश्वास उठ गया है। “

विदिशा समझ नहीं पा रही थी कि वह कमलाक्ष से क्या कहे? उसको क्या कहकर समझाये?

तभी कमलाक्ष बोल पड़ा – ” एक प्रार्थना है बुआ।”

” बोलो, बेटा।”

” आज मैंने पहली बार किसी को अपने घर छोड़ने का कारण बताया है। आज मैं अपने आप को बहुत हल्का अनुभव कर रहा हूॅ लेकिन आप किसी को कभी कुछ मत बताइयेगा, फूफा जी को भी नहीं। अब तो मम्मी पापा भी नहीं हैं। दोनों खुश रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है।”

कमलाक्ष उठकर खड़ा हो गया – ” अब चलूॅगा बुआ।”

” खाना तो खाकर जाओ।”

” आज मुझसे खाया नहीं जायेगा, फिर किसी दिन आ जाऊॅगा।”

विदिशा से कुछ कहते नहीं बना। वह जाते हुये कमलाक्ष को देखती रह गई।

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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