“ अभी तक लौटी नहीं बाजा़र से दोनों बहनें, शाम होने को आई, सुबह से निकली हुई है, लगता है सारा बाजार ही खरीद लेगीं ”तुलसी के स्वर में चिंता झलक रही थी।
“ मांजी, बस आती ही होगीं, रास्ते में हैं। अब शादी ब्याह के सारे काम लक्षिता और पुणया को ही तो करने है। बाहर के काम तो नरेन कर ही रहे हैं।
आजकल तो फिर भी कितना आराम है, होटल बुक करो और दो तीन दिन के लिए वही शिफ्ट हो जाओ।हल्दी, मैंहदी, संगीत के ईलावा सब वही हो जाता है, बस नकद नारायण होना चाहिए, ”रचना ने कहा।
तभी दोनों बहनों ने दोनों हाथों में बड़े बड़े लिफाफे पकड़े हुए प्रवेश किया। पीछे से ड्राईवर भी सामान उठा कर चला आ रहा था। दोनों को देखकर रचना जोर जोर से हंसने लगी क्योंकि दोनों के बालों पर बड़े बड़े क्लिप और चेहरे पर भी कुछ लगा हुआ था।
मां को हंसता देख पुणया बोली” अरे माम, शापिंग के बाद हम पार्लर में चली गई, लिपापोती उतारने का काम वहां होता तो डेढ़ घंटा और लग जाता।ये काम घर पर ही हो जाएगा और हम थक भी बहुत गए थे।
थोड़ा आराम कर लें, फिर आपको शापिंग दिखाते है, और हां प्लीज रमा के हाथों गर्मागर्म काफी और कुछ स्नैकस हमारे कमरे में ही भिजवा दो। “ लव यू माम, लव यू दादी “ और दोनों सारा सामान वहीं छोड़कर कमरे में चली गई।
तुलसी और रचना के चेहरे पर मुस्कराहट फैल गई। बच्चों को खुश देखकर हर मां, बाप , परिवार सब खुश हो जाते हैं। लक्षिता और पुणया दोनों बहने थी और अगले हफ्तो लक्षिता की शादी पराग से होने वाली थी, दोनों की लव कम अरेंज मैरिज थी। पुणया लक्षिता से चार साल छोटी थी। नरेन और रचना ने अपनी दोनों बेटियों को खूब लाड प्यार दिया, पढ़ाया लिखाया और सबसे बड़ी बात अच्छे सस्कारं दिए।
दोनों नौकरी करती थी, घर से पूरी आजादी थी लेकिन उन्होंने कभी उसका नाजायज फायदा नहीं उठाया। पराग और वो दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे। दोनों एक दूसरे को पंसद करने लगे तो भी लक्षिता ने कहा कि वो अपनी मां बाप की इजाजत से ही शादी करेगी। पराग उनकी बिरादरी का नहीं था, इसलिए उसे डर था कि कहीं मां बाप मन न कर दे और दादी तुलसी की उन्हें ज्यादा चिंता थी क्योंकि वो पुराने विचारों की थी।
नरेन और रचना को सब ठीक लगा तो उन्होंने तुलसी को भी राजी कर लिया।
निशचित तिथि पर सब कार्य सम्पनं हुए। पुणया और उसकी सहेलियों ने खूब मस्ती की। उधर पराग के दोस्त भी कहां कम थे। कभी रिबन कटाई तो कभीजूता छुपाने की रस्म, गानों का दौर चला तो सभी की खूब खिंचाई हुई और जयमाला के समय तो जो माहौल बना , हंसी के ऐसे फुहारे छूटे कि सबको पेट पकड़ना पड़ा।
पुणया और पराग की ज्यादा बातें नहीं हुई थी लेकिन उसे अपने इकलौते जीजाजी का मजाकिया स्वभाव पंसद आया।कितना भी हंसी मजाक हो बिदाई के समय माहौल संजीदा हो ही जाता है। पुणया जब बहन के गले लग कर रोने लगी तो पराग ने धीरे से उसके कान में कहा,” कहो तो तुम्हें भी साथ ले चलें” और पुणया रोते रोते मुस्करा दी।
पग फेरे की रस्म भी हो गई। वैसे तो सब ठीक था लेकिन पुणया को पराग का बर्ताव कुछ ठीक नहीं लगा। भगवान की और से लड़कियों में एक ऐसी सिक्थं सैंस होती है
जिससे उन्हें किसी मर्द के छूने तो क्या देखने भर से ही उसकी नियत का पता चल जाता है। लेकिन पुणया ने यह सोच कर अनदेखा कर दिया कि यह उसका वहम है और शादी ब्याह में हंसी मजाक तो चलता ही रहता है।
पराग और लक्षिता जब भी आते घर में रौनक आ जाती। लेकिन पुणया को उसे बहाने से छूना, अजीब से मजाक करना ,
उससे अकेले में मिलने की कोशिश में रहना, बिल्कुल मुंह के पास आकर बात करना, हाथ पकड़ लेना,और भी बहुत सी हरकतें जो कि लक्षिता क्या किसी भी संस्कारी चरित्रवान लड़की को पंसद नहीं आएगी।
लक्षिता, पराग की शादी की वर्षगांठ पर सब पराग के घर गए। लक्षिता मां बनने वाली थी तो ज्यादा काम नहीं कर पाती थी।
पुणया ने रसोई का काम संभालने की जिम्मेवारी ली। लक्षिता की शादीशुदा ननद भी साथ ही थी। वो भी बच्चों के कारण लगातार काम नहीं कर पा रही थी, वैसे तो नौकर थे, सामान भी बाहर से मंगवाया लेकिन फिर भी कितने ही काम होते है। पराग की मां भी ज्यादा नहीं कर पाती थी।
सब ड्राईंगरूम में बैठे थे तो पुणया चाय बनाने चली गई। तभी पराग ने पीछे से आकर उसकी कमर में हाथ डालकर बाल सुलझाने की बेहूदा हरकत शुरू कर दी। पुणया ने उसे पीछे धकेलते हुए हाथ में पकड़ा चिमटा लहराते हुए कह,” ये क्या बदतमीजी है”।
“ अरे क्या हो गया साली साहिबा, जरा सा छू लिया तो, वैसे भी साली को तो आधी घर वाली कहा जाता है”। “दूर हटिए, नहीं तो अभी शोर मचा कर सबको इकट्ठा कर लूंगी, मुझे तो पहले दिन से ही आपकी हरकतें अच्छी नहीं लगती थी,
रिशतों की मर्यादा होती है और हर रिशते की अपनी एक खूबसूरती होती है, एक दायरा होता है, एक सीमा होती है, अगर कोई इसे लांघने की कोशिश करें तो वो सही नहीं”
कुछ रूक कर पुणया फिर बोली,” प्लीज जीजू, आगे से कोई ऐसी हरकत न हो, इसी में आपकी भलाई है वरना——
और अपनी बात अधूरी छोड़कर , आंखों सो अंगारे बरसाती पुणया रसोई से बाहर हो गई।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- रिश्तों की मर्यादा