चेहरा सब कुछ व्यक्त कर देता है,सरोज के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।वो अपना दर्द किसी के सामने जाहिर नहीं करना चाहती थी,फिर भी ना जाने क्यों उसके चेहरे पे एक उदासी सी छा गई।वो बीच फंक्शन में से उठकर अपने रूम में आ गई।
दरअसल सरोज अपने बेटे रोमिल के साथ नन्द के लड़के की शादी में आई हुई थी।मन तो नहीं था उसका क्योंकि पति को गुजरे अभी कुछ महीने ही हुए थे।पर ससुराल में पहली शादी थी और नन्द ने भी जोर देकर कहा था,भैया नहीं हैं तो आपको आना ही पड़ेगा।
आपके सिवा मायके में मेरा है ही कौन?सब काम आपको ही संभालना है।बस इसलिए अपना गम भुलाकर सरोज चली आई नन्द की खुशियों में शामिल होने के लिए।उसे लगा था,कि चलो बेटे को भी शादी में जाकर अच्छा लगेगा वहाँ सबसे मिलेगा तो उसका मन भी हल्का होगा।
पर यहाँ आकर देखा तो उसकी नन्द रानी के तेवर ही बदले हुए थे।वो बस अपने ससुराल वालों की खातिरदारी में लगी हुई थी,भाभी भतीजे से तो बात करने की भी उसे फुर्सत नहीं थी।सबके ठहरने का इंतजाम होटल में किया था।
एक बार सरोज को उसका रूम बताकर नन्द दुबारा उसके रूम में नहीं आई और ना ही उसके पति वा बच्चे आए।वो बच्चे जो कभी मामी मामी करते नहीं थकते थे..अब उन्हें मामी के होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
आज संगीत का कार्यक्रम था।एक हॉल में सभी एकत्रित हुए।कार्यक्रम के लिए स्टेज बनाया गया था।लड़की वाले भी आए हुए थे।साथ में लड़की को भी लेकर आए थे
सरोज की नन्द ने लड़की वालों को अपने ससुराल वालों से मिलवाया पर सरोज से नहीं मिलवाया।नन्द का ये व्यवहार देखकर सरोज अंदर तक टूट गई।उसे याद आ गए वो दिन जब उसके पति थे तो उसकी नन्द परिवार की शादियों में कैसे
आगे बढ़कर सबसे उसका परिचय करवाती थी-“ये मेरे बड़े भाई भाभी हैं।भैया बड़ी कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट हैं।” और आज भाभी से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि अब वो ऑफिसर भाई तो रहा नहीं।
संगीत का कार्यक्रम शुरू हो गया।सरोज की नन्द लड़कीवालों और ससुराल वालों के साथ खूब डाँस मस्ती कर रही थी।एक बार को भी उसने सरोज या उसके बेटे को स्टेज पर आने के लिए नहीं कहा।सरोज बहुत दुखी थी।पर ऊपर से यही जाहिर कर रही थी,
कि वो खुश है।पर कहते हैं ना कितना भी छुपा लो चेहरा सब व्यक्त कर देता है।उसकी चेहरे की खुशी उदासी में बदल गई।इससे पहले की उसका चेहरा कोई भाँप ले,वो उठकर अपने रूम में चली गई।
कुछ ही देर में रोमिल सरोज को ढूंढता हुआ रूम में आ गया और बोला-“अरे माँ,सब लोग बाहर डाँस कर रहें हैं और आप कमरे में अकेली बैठी हो?क्या बात है?
“कुछ नहीं बेटा,बस आज तेरे पापा की याद आ गई।तेरी बुआ ने लड़की वालों का सबसे परिचय कराया और हमें ऐसे छोड़ दिया जैसे हम उनके कुछ लगते ही नहीं।उन्होंने प्यार से सब बच्चों को नाचने के लिए कहा पर तेरे से ना बात करी ना ही नाचने को कहा।
आज पापा होते तो क्या तब भी बुआ ऐसे करतीं हमारे साथ?”सरोज की आँखों में आँसू आ गए।
रोमिल सरोज के आँसू पोंछते हुए बोला-“माँ,मुझे तो बिल्कुल बुरा नहीं लगा क्योंकि जब बच्चों के पास माँ का प्यार हो तो उन्हें अतिरिक्त मिठास की जरूरत नहीं होती।आप चिंता नहीं करो
मैं भी पापा की तरह बड़ा ऑफिसर बनूँगा।फिर यही सब लोग हमारा सम्मान करेंगे।” बेटे की बात सुनकर सरोज के चेहरे पर आशा की मुस्कान खिल उठी।उसने प्यार से बेटे को गले लगा लिया।
शादी का दिन था।दूल्हा दुल्हन स्टेज पर बैठे थे।उनके पास सरोज की नन्द और उसके पति खड़े थे।सभी लोग स्टेज पर जाकर दूल्हा दुल्हन को शगुन दे रहे थे और उनके साथ फोटो खिंचवा रहे थे।सरोज भी स्टेज पर गई और नन्द के बहु बेटे को लिफाफा पकड़ाया
तो नन्द ने उनके हाथ से लिफाफा ले लिया और अपने पर्स में डालते हुए बोली-“अरे भाभी इसकी क्या जरूरत थी?”सरोज कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा दी।शादी सम्पन्न हो गई सभी रिश्तेदार अपने अपने घर जा रहे थे तो सरोज ने सबको मुस्कुराकर विदा किया और साथ में रास्ते के लिए खाने
का समान भी दिया।सरोज को तो ना रास्ते के लिए खाने का समान दिया ना ही उसे होटल के बाहर तक छोड़ने आई।बस उसके कमरे में आकर औपचारिकता निभा दी।एक बार को भी नहीं कहा,भाभी आप थोड़े दिन और रुक जाते या फिर आना..
सरोज भी दिल में रिश्तों की कसक लेकर अपने घर के लिए रवाना हो गई।रस्तेभर वो यही सोचती रही, कि सुख के तो सभी साथी होते हैं पर अपनों की पहचान तो दुख में होती है…कौन कितना अपना है या पराया?
सच कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो पूरा जीवन बदलकर रख देते हैं।पर कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जिनके जुड़ने का अफसोस जीवनभर होता है।ऐसे ही रिश्तों की कसक सारा जीवन सालती रहती है।
कमलेश आहूजा
#अपनों की पहचान