रिश्तों का बंटवारा नहीं – शुभ्रा बैनर्जी 

रवि ने बड़े भाई की जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई थी।पापा नौकरी से रिटायर हो चुके थे।दो बहनें और एक छोटा भाई था। रवि की नौकरी लग गई थी, पर छोटे भाई (शशि)को नौकरी में कोई रुचि नहीं थी।एक जमीन खरीदकर उसी में मछली पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया था उसने।

रवि की शादी अपने ही गांव की लड़की से तय कर दी थी, रवि के पापा ने।कम पढ़ी लिखी, पर समझदार थी रवि की पत्नी(शोभा)।रवि के भाई और बहनों को हमेशा स्नेह ही दिया था उन्होंने।

पापा को अब अपनी बेटियों की शादी की चिंता सताने लगी।इसी के चलते रवि लड़कों की खोज में रहने लगा।

एक दिन अचानक ही शशि ने आकर भाभी से कहा”भाभी ,मैंने एक लड़की पसंद कर ली है।दोस्त की शादी में देखा है उसे।लड़की की सहेली है।मैं अगर शादी करूंगा,तो उसी से।आप कैसे भी करके पापा को मना लीजिए।”शोभा असमंजस में पड़ गई।अभी दो बेटियों की शादी हुई नहीं थी, उस पर दूसरे जाति की लड़की को ब्याहने की बात सुनकर तो पापा जी सहन नहीं कर पाएंगे।पति से ही पहले कहा”सुनिए जी, देवर जी ने लड़की पसंद कर ली है।बड़े चाव से हमसे मनुहार किए हैं।आपसे बात करने से डर रहे हैं।कुछ कीजिए ना।” 

रवि,शोभा की बात सुनकर सकते में आ गए। रीति-रिवाज मानने वाले ब्राह्मण परिवार में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ।दो बहनें भी बची हैं ब्याहने को।शशि की मति मारी गई क्या? सकुचाते हुए पापा को बता ही दिया।पापा ने सीधे शब्दों में मना कर दिया।रवि ने बहनों की शादी जल्द से जल्द करवाने का वचन देकर, छोटे भाई की शादी करवा दी।छोटी बहू शुरू से ही एकछत्र आधिपत्य जमाने की मंशा लेकर आई थी। ग्रेजुएट थी, तो जिठानी के कम पढ़े लिखे होने पर ताने कसने से भी बाज नहीं आती थी।मुंह खोलते ही दूसरों का अपमान शुरू कर देती।बड़ी बहू का अपमान होता देखकर ससुर ने जब -जब विरोध किया, छोटी बहू घर छोड़ने की धमकी देती।

इधर रवि ने दोनों बहनों के लिए योग्य घर और वर सुनिश्चित कर लिया। धूमधाम से बहनों की शादी भी कर दी।नौकरी पक्की थी,तो बैंक से लोन भी सहज ही मिल गया।पिता  भी शशि से कहते”बड़े भाई का कुछ तो सहारा बन। उसके भी तीन बाल बच्चे हैं।कब तक बीबी की मिजाजपुरसी करता रहेगा? ज्यादा नहीं तो थोड़ा ही मदद कर दिया कर।”शशि बड़े भाई की मदद करना चाहता तो था, पर पत्नी की कलह की आदत से डरता था।जितनी भी जमीनें थीं, सब उसने अपने नाम करवा ली थी जोर देकर।शशि के पास झूठ बोलने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था।पत्नी को बुलाकर कहा” बेटे के एडमिशन के लिए पैसों की जरूरत है।बड़े भैया से तो मांग नहीं सकता।उन पर पहले ही कर्ज चढ़ा हुआ है।गांव की एक जमीन बेच देते हैं।”पत्नी ने तुनककर कहा” भैया की भी तो है जमीन गांव में।तुम मांगोगे तो वो जमीन बेचकर दे देंगे।अरे उनके पास तो नौकरी है। भविष्य सुरक्षित है बच्चों का।तुम्हारे पास तो भरोसे लायक कुछ भी नहीं है।”शशि ने याद दिलाया” भैया ने रमा और प्रभा की शादी में वो जमीन बेच दी थी।तुम्हें तो पता है।तब तो तुमने मुझे कुछ भी देने नहीं दिया था।अब तो तुम्हारे बेटे के लिए पैसों की व्यवस्था करनी है।”काफी मान मनौव्वल के बाद पत्नी ने शशि को जमीन बेचने की इजाजत दे दी।कागजात पर हस्ताक्षर करते समय भी भुनभुना रही थी।जमीन बेचकर बड़े भैया को पांच लाख पकड़ाते हुए शशि ने कहा” मैं जानता हूं भैया।मैंने अपने पैरों में खुद कुल्हाड़ी मारी है।तुम्हारे ऊपर पूरी जिम्मेदारी डालकर मैं किनारे खड़ा रहा।अब मुझे थोड़ी मदद करने दो।अपने पापों का प्रायश्चित करने दो।ये पैसे बैंक में जमा कर दो।लोन कम हो जाएगा।तुम्हें मेरी कसम है।तुम्हारी बहू की वजह से इस घर में आए दिन जो कलह होतें हैं, उसके लिए मुझे माफ़ कर देना।”

रवि ने शशि को गले लगाकर कहा” पागल है क्या तू?बचपन से तूने मुझे पिता का दर्जा दिया है।तेरा मन क्या मैं नहीं जानता?अब बहू की आदत तो बदलेगी नहीं, तू क्यों मन छोटा करता है?और हां,इतने सारे पैसे कहां से लाया तू?क्या बाजार से उधार लिया है ब्याज पर?”

शशि ने सकुचाते हुए सच बता ही दिया।सच सुनकर रवि रोने लगे।बोले” पगले,कोई अपनी औलाद के नाम पर झूठ बोलता है क्या?कितनी उम्मीद से बहू ने जमीन बेची होगी,और तू वो रुपये मुझे दे रहा है। नहीं-नहीं इतना स्वार्थी नहीं हूं मैं।ये पैसे बैंक में रख।जब सच में बेटे का एडमिशन होगा,तब काम आएंगे।अगर मेरी ज़रा सी भी इज्जत करता है,तो पैसे मत दे मुझे।मैं दो साल में ही लोन पटा लूंगा।तू चिंता मत कर।बस हम भाईयों के रिश्ते में दरार ना पड़ने देना।”

शशि की पत्नी छुपकर सब सुन रही थी।अब तो कलह करने की ठोस वजह भी थी।गला फाड़कर चिल्लाने लगी।ससुर को सुनाकर कहा” देख लीजिए।इस घर में कितना प्रपंच चल रहा है।बेटे के एडमिशन की बात कहकर मुझसे जमीन के कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए।मेरा बेटा पराया हो गया।वही पैसे बड़े भाई को दिया जा रहा है।अब मैं यह अनर्थ बर्दाश्त नहीं करूंगी।आज ही अलग रहने की व्यवस्था करूंगी।अनपढ़ गंवार औरत को ये आदमी मां मानते हैं,भाई को बाप।और हम लोग इनके कोई नहीं।”सुबह से कलह होते-होते शाम हो गई।पिता जी बीमार हो गए।अगले ही दिन घर का बंटवारा कर दिया गया।अब कोई किसी का चेहरा भी देख नहीं पाएगा।पिता बड़े बेटे रवि के साथ रहने लगे।उसी दौरान गांव में बड़ी बहू(शोभा), की मां की मृत्यु हो गई।रवि पत्नी और बच्चों को लेकर उधर गांव पहुंचे,इधर छोटी बहू ने जिठानी का हर सामान हथिया लिया।सोफ़ा और फ्रिज भी नहीं छोड़ा।घर वापस आकर रवि ने सर पकड़ लिया।पत्नी को ही समझाया” तुम तो बड़ी हो, समझदार हो।छोटी जो मर्जी करें,तुम शशि के लिए और उसके बच्चों के लिए बैर मत पालना अपने मन में।ईश्वर मुझे सलामत रखे,मैं फिर तुम्हारा घर भर दूंगा।”,

कोई चारा नहीं था।दो परिवार घर के दो कोनों में रहने लगे।छोटी बहू ने कसम देकर कहा था शशि से” आज के बाद अगर उस घर वालों से बोलचाल रखी, तो मैं बच्चोंके साथ गांव चली जाऊंगी।उनकी नाली, दीवार, दरवाजा सब अलग करवा दिया है मैंने।तुम अपने नए धंधे(दूध का धंधा) में मन लगाओ।कोई जरूरत नहीं उन लोगों से बात करने की।”घर में कलह के डर से कोई भी दूसरी तरफ के लोगों से बात नहीं करते थे।पिता भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए।बहुत दिनों से खोजते-खोजते अब जाकर रवि की बड़ी बेटी (स्मृति)की शादी पक्की हुई।ईश्वर को कार्ड चढ़ाने के बाद लौटते हुए शशि मिल गया रास्ते में।रवि ने उसी के हाथों में कार्ड थमा दिया और कहा” तेरी गोद में खेली है स्मृति।तू चलेगा ना शादी में।देने की कोई बात नहीं, बस अपना आशीर्वाद देने आना।”

शादी गोरखपुर से होनी थी।शशि की पत्नी ने बच्चों को बोलकर रखा था” हम से कोई नहीं जाएगा शादी में।तुम्हारे पापा को देखती हूं,कैसे जाएंगे?अरे,जब कोई रिश्ता ही नहीं रहा,तो कैसी भतीजी,कैसा चाचा।”,

शादी के दिन सुबह से ही मेहमान आने लगे थे होटल के रूम में। रवि के बेटे ने देखा,चाचा सभी मेहमानों को कमरों में पहुंचा रहे हैं।दौड़कर लिपट गया चाचा से।चाचा ने भी जोर से पीठ में मारकर कहा” अरे!इकलौता चाचा हूं।मेरी स्मृति की शादी में भला मैं कैसे ना आता।तू जा बाकी का काम देख।शाम को छोटी बहू भी मुंह फुलाए आई।बच्चे शादी का आनंद लें रहे थे।शादी संपन्न हुई।विदाई के समय पिता से ज्यादा चाचा रो रहे थे।गोद में उठाकर कार तक पहुंचाया स्मृति को।सभी बाराती दंग थे।चाचा-भतीजी के इस निःस्वार्थ प्रेम के बंधन को देखकर।

विदाई के बाद रवि , शशि के कंधों पर सर रखकर खूब रोए। शशि ने ढांढ़स बंधाया”अरे भैया, हमारी स्मृति राज करेगी उस घर में।जिस मां की वह बेटी है, उसने अपने संस्कारों से पाला है।देखना हम सभी की इज्जत बढ़ाएगी, स्मृति अपने ससुराल में।”

दो दिन बाद सब वापस आ गए अपने घर।शशि की पत्नी ने सशंकित होकर कहा” अब क्या फिर से राम -भरत की जोड़ी जम जाएगी।शादी की बात थी, मैं मान गई।पर अब कोई प्रेम दिखाने की जरूरत नहीं है।रोई तो होंगीं तुम्हारी भाभी,सामान ना पाकर।रोते रहें।हमें उनके लिए कुछ नहीं करना।तुम बात करते अब दिखना मत मुझे उनके साथ।”

शशि ने हां कहा और बाहर निकल आया।बाहर रवि इंतजार कर रहे थे।दोनों भाई साथ मिलकर चाय की दुकान में पहुंचे।शशि ने हंसकर कहा” भैया घर में कलह के डर से बात नहीं करता तुम लोगों से।घर के बाहर तो कोई नहीं करेगा कलह।हम हमेशा ऐसे ही दूर-दूर पर साथ रहेंगे।रवि के बिना शशि की क्या पहचान”,। रवि ने कहा” और शशि के बिना रवि का क्या सम्मान?हमारे घर का बंटवारा तो हो सकता है,पर कलह के डर से रिश्तों में बंटवारा कभी नहीं होगा।चल‌ एक -एक कप चाय और।औरत की जिद और कलह ही परिवार तोड़ती है।करने दे छोटी बहू को कलह,तेरी भाभी अपने प्रेम से सारी दीवारें गिरा रेंगीं।”,

शुभ्रा बैनर्जी 

#कलह

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