रिश्ते की गर्माहट -शिव कुमारी शुक्ला

सुबह ऑफिस जाते बेटे को टिफिन पकड़ाते हुए मम्मी विमला जी ने कहा बेटा नीरज मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है यदि तुम दे देते तो मैं भी अपना काम कर लेती।

क्या मम्मी कितने रुपयों की जरूरत है आपको।

यही कोई पंद्रह हजार।

क्या पंद्रह हजार। इतने रुपयों का आप क्या करेंगी।ऐसी कौन-सी आवश्यकता आपको आ गई। घर में सबकुछ तो है।

वो क्या है न बेटा तेरी सरला मौसी की बेटी की शादी है सो उसे देने के लिए तोहफा खरीदना है और कुछ हाथ में भी  चाहिए नेगाचार व्यवहार करने के लिए।

मम्मी इतना मंहगा गिफ्ट दूसरों को कौन देता है जो आप पंद्रह हजार खर्चने के लिए तैयार हैं।

क्या कहा दूसरों के लिए। अरे सरला मौसी कब से दूसरी हो गईं। तो क्या अब मुझे तुझसे सीखना पड़ेगा कि किसको क्या देना है और कितने का देना है।

नहीं मम्मी मेरा वो मतलब नहीं था।सरला मौसी कौन-सी हमारी सगी हैं जो उन्हें इतना मंहगा गिफ्ट दिया जाए।

वो कबसे दूसरी हो गईं। पिछले चालीस साल से हमारे उस परिवार से संबंध हैं। हमेशा वह परिवार सुख -दुख में कंधे से कंधा मिलाकर हमारे साथ खडा रहा और तू कह रहा है कि दूसरे को इतना मंहगा गिफ्ट देने की क्या जरूरत हो गई। अरे उनकी बेटी राशि हमारे घर में ही तुम लोगों के साथ खेल कूद कर बड़ी हुई है वह मेरी बेटी जैसी है। और तू भूल गया कि बचपन में तू आधा समय तो सरला मौसी के घर में ही बिताता था, वहीं खाना, खेलना,सो जाना। सब तो तू वहीं करता था। कैसे मौसी -मौसी करके उनके आगे पीछे घूमता रहता था,सब भूल गया। अभी पांच साल पहले उन्होंने तेरी पत्नी को मुंह दिखाई में कितना मंहगा सच्चे मोती का हैदराबादी सेट और मंहगी सी साड़ी दी थी जो तेरी पत्नी बड़े चाव से पहनती है, और आज जब देने की बात आई तो वह दूसरी हो गई। अरे उतना ही दूंगी तो क्या दिया कुछ तो ज्यादा दूंगी।

मम्मी जरुरी तो नहीं यदि उन्होंने मंहगा गिफ्ट दिया है तो हम भी उतना ही दें।

क्यों उतना ही क्यों कुछ तो ज्यादा देंगे। तेरी आंखों पर तो खुदगर्जी और पैसों की पट्टी बंधी है जो तुझे सिर्फ अपने और अपनी पत्नी पर खर्च करना ही अच्छा लगता है बाकी के दुनियादारी के संबंध तेरी नज़र में अब बेकार हो गये। किन्तु मैं अभी इतनी स्वार्थी नहीं हुई हूं कि किसी का किया भूल जाऊं। फिर तुझे परेशानी क्या है मैं अपने पैसे मांग रही हूं तुमसे तो कुछ करने को नहीं कह रही। क्या मुझे अपने पैसे किस पर, कहां, कितने खर्च करने हैं इसका हक भी नहीं रहा। अभी हम इतने असहाय नहीं हुए  हैं।

यह सुनते ही नीरज गुस्से से तमतमाता हुआ टिफिन टेबल पर रख कमरे में गया और पासबुक , चेकबुक,ए टी एम कार्ड लाकर टेबल पर जोर से पटकते हुए बोला लो सम्हालो अपने पेपर्स और जो करना है करो। यदि कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो फिर मुझसे कुछ मत कहना।जितने निकालने हैं निकालो और जिसे जितने देने हैं देओ कह टिफिन उठा चल दिया।

विमला जी उसके इस तरह के व्यवहार से सकते में आ गईं उनकी आंखों में नमी तैर आई। उनके पति दिनेश जी भी वहीं बैठे मूकदर्शक बने सब देख सुन रहे थे।बेटे के व्यवहार ने उन्हें भी आहत कर दिया।विमला जी ने पेपर्स उठाये और दोनों अपने कमरे में आ गए। दोनों मौन, निस्तब्ध , निशब्द बैठे थे। उम्र के इस पड़ाव पर अपने बेटे द्वारा ऐसे व्यवहार की अपेक्षा उन्हें नहीं थी। तभी बहूं प्रीति की आवाज आई मम्मी जी मैं निकल रही हूं आप दरवाजा बंद कर लें। अपने आंसू पोंछते विमला जी गईं और दरवाजा बंद कर फिर कमरे में आकर गुमसुम सी बैठ गईं।

दोनों के दिमाग में एक रील चलचित्र की भांति चल रही थी। जिस बेटे को उंगली पकड़कर चलना सिखाया,जो अभी नौकरी लगने से पहले छोटे छोटे खर्चो के लिए उन पर आश्रित था और वे खुशी खुशी उसकी हर इच्छा पूरी करते थे वही बेटा आज मां को आंख दिखा कर चला गया वो भी अपने ही पैसे मांगने पर। पिछले पांच महीनों से यही सिलसिला चल रह है कि वह पेंशन निकाल कर तो लाता किन्तु उन्हें कभी तीन तो कभी चार हजार ही देता। इतने में उनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं कारण शाम को फल और सब्जियां दिनेश जी इन्हीं पैसों से लाते फिर उनके पास हाथ खर्च, अपनी दवाइयों के लिए पैसे बचते ही नहीं। उन्होंने उससे कहा भी बेटा पैसा ज्यादा निकाला  करो क्योंकि कम पड़ जाते हैं तो बोला घर में सबकुछ तो है आप लोगों को और क्या चाहिए जो पैसों की जरूरत रहती है।वे मन मारकर रह जाते आज अपने ही पैसों को खर्चने का उन्हें अधिकार नहीं था। आने जाने की परेशानी से बचने के लिए उन्होंने बेटे पर विश्वास करके उसे अपने सारे बैंक के कागजात सौंप दिए थे किन्तु बेटे ने उन्हें पाई पाई के लिए मोहताज कर दिया।

फिर खामोशी तोड़ते हुए दिनेश जी बोले विमला हम अभी इतने भी असहाय नहीं हुए हैं कि अपना काम न कर सकें,चलो उठो आंसू पोंछ लो और अच्छी सी चाय बनाओ नाश्ता करो। दवाई भी लेना है। फिर मेरे साथ बैंक चलो तुम्हें जितना पैसा चाहिए मैं निकाल कर देता हूं। उन्होंने ए टी एम कार्ड से पैसे निकालना सुरक्षित नहीं समझा वे सीधे बैंक गए और उन्होंने विमला जी को पर्ची भरना, कहां देना, पैसे कैसे निकालना सब समझा दिया। ऐसा नहीं था कि बिमला जी पढ़ी लिखी नही थीं किन्तु उन्होंने कभी उन्हें कुछ करने ही नहीं दिया।तुम क्या करोगी बैंक जाकर मैं ले आता हूं। उन्होंने नहीं सोचा था कि एक वक्त ऐसा भी आयेगा जब वे भी निशक्त हो जाएंगे या आपत्तीकाल में पत्नी को भी यह सब करना  आना चाहिए।वही पुरुषोचित दम्भ मैं सब कर लूंगा तुम केवल नौकरी करो और घर सम्हालो। बिमला जी ने कई बार कोशिश की कि बैंक जाकर पैसे ले आएं या जमा कर आएं किन्तु वे कभी नहीं जाने देते।जब कभी आवश्यकता होती तो उन्हें अपने साथ ले जाते और एक जगह बैठा देते और सारी कार्यवाही स्वयं कर बस उनसे साइन करा लेते। ज्यादा कहने पर गुस्सा करते मैं कर तो रहा हूं तुम्हें बीच में बोलने की क्या आवश्यकता है आखिर में उन्होंने कहना छोड़ दिया और घर में शांति बनाए रखने हेतु चुप हो गईं ।

वे पैसे निकाल लाए । दूसरे दिन बाजार गयेऔर एक अंगूठी खरीद लाए साथ ही अपने लिए आवश्यक सामान भी ले आए और शादी में जाने की तैयारी कर ली। शादी में केवल गिफ्ट से ही काम नहीं चलता और कुछ व्यवहार,नेगाचार करने के लिए भी कुछ रुपए हाथ में होना चाहिए।

उन्होंने बेटे बहू से कुछ नहीं कहा। खाते में से अच्छी खासी रकम निकाली गई थी जो बेटे बहू ने अपने शौक पूरे करने के लिए खर्च की थी।

आखिर पांचवें दिन बेटे ने पूछा मम्मी रुपए निकाल लाईं क्या।

हां बेटा निकाल लाईं गिफ्ट भी ले आए, टिकिट भी बुक करवा दिए अब केवल जाना भर है।

पर मम्मी टिकट मैं करवा देता आप कहां परेशान हुए।

नहीं बेटा अभी हम इतने भी असहाय नहीं हुए हैं कि ये सब काम न कर सकें।वो तो हमे तुम पर अटूट विश्वास था कि तुम इस उम्र में हमारी मदद करोगे सो तुम्हें सब सौंप दिया था और हम कम्फर्ट ज़ोन में आ गए थे किन्तु हमें पता ही नहीं था कि अब हमारा बेटा बड़ा हो गया है और हमें हमारे ही पैसों को खर्च करने के लिए उसका मुंह ताकना पड़ेगा और उसकी मर्जी का मोहताज होना पड़ेगा। अच्छा रहा बेटा जो समय रहते तुम्हारा यह रुप भी देख लिया।

तभी फोन की घंटी बज उठी उधर से सरला जी बोल रहीं थीं दीदी कब आ रही हो सबको आना है और मेरा गोलू कहां है उससे बात कराओ।

बिमला जी ने फोन नीरज की ओर बढ़ा दिया हलो मौसी।

बेटा गोलू तुम सबको आना है। प्रीति को भी लाना और आकर अपनी बहन की शादी में मौसाजी का हाथ बंटाओ।

तभी राशि बोलती है भैया अपनी इस छोटी बहन को भूल गए कहते थे न कि इसे जल्दी ससुराल भेज देंगे बहुत नखरे दिखाती है वो समय अब आ गया अपनी बहन को डोली में बिठा कर विदा करने का। जल्दी आ जाओ भैया कुछ समय फिर साथ बिता लें।

फोन रख कर नीरज सोचने लगा कि जिन रिश्तों पर उसकी नजर में समय की धूल जम गईं थी वे रिश्ते धूल हटने पर उतने ही चमकदार हैं उनमें अभी भी उतनी ही गर्माहट है वह कैसे इतना स्वार्थी हो गया था।

मम्मी-पापा मुझे क्षमा कर दो जिन रिश्तों को मैं गैर समझने लगा था वो तो आज भी अपने हैं। चलो सब चलते हैं मौसी एवं मौसाजी की मदद करने एवं अपनी राशि को विदा करने। मम्मी कुछ और भी लाना हो बता दें मैं और प्रीति जाकर ले आएंगे। पहले टिकट बुक करवा दूं।

इस तरह फोन पर आत्मीयता भरे शब्दों ने 

पल भर में मन में छाए कोहरे को तितर-बितर कर दिया ।

शिव कुमारी शुक्ला 

21-12-25

स्व रचित एवं अप्रकाशित 

जोधपुर राजस्थान 

बिषय—–अभी हम इतने भी असहाय नहीं हुए हैं

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