रिश्ते बनते नहीं, बनाने पड़ते है – विमला गुगलानी

    आराधना और करिश्मा एक ही स्कूल में लगभग पिछले दस सालों से इकट्ठी नौकरी कर रही थी। दोनों में खूब पटती थी। आराधना करिशमा से थोड़ी सीनियर थी

और उम्र में सात आठ साल बड़ी थी।आराधना उसी शहर की रहने वाली थी, शादीशुदा , दो बच्चों की मां थी। करिश्मा इस शहर में शादी के बाद आई थी। शादी से पहले वो अपने शहर में टीचर थी।फिर उसे नौकरी छोड़नी पड़ी।

     शादी के कुछ महीने बाद जब उसने नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो किसी ने उसे मना नहीं किया। करिशमा काफी अमीर घर की बेटी थी। विपुल से उसकी लव कम अरेंज मैरिज थी। अपनी एक सहेली की शादी में उसकी विपुल से पहली मुलाकात हुई थी। जैसा कि शादियों में हंसी मजाक चलता रहता है तो वो सब यहां भी हुआ।

कभी रिबन काटने पर तो कभी जूते चुराने की रस्म में बहस होने पर जहां विपुल ने दूल्हें का साथ दिया तो इधर करिश्मा ने दुल्हन  पक्ष का।मन ही मन दोनों एक दूसरे को जैसे भा गए और फोन नं ले लिए। दोनों के शहरों की दूरी भी ज्यादा नहीं थी, विपुल का करिशमा के शहर आना जाना लगा रहता था कंपनी के काम से।

    दो चार मुलाकातें हुई, जात बिरादरी भी एक ही थी,  विपुल का अच्छा मध्यमवर्गीय परिवार था , एक बड़ा भाई, भाभी और उनके दो बच्चे, माता पिता सब इकटठे ही रहते थे। एक बड़ी शादी शुदा बहन भी थी जो कि उसी शहर में रहती थी।

इधर करिश्मा अमीर घर से थी, उसका  बड़ा भाई कैनेडा गया तो वहीं का होकर रह गया। शादी भी वहीं की रहने वाली भारतीय लड़की के कर ली थी।उसका आना जाना कम ही होता। करिशमा खूब नाजों में पली , कोई काम नहीं, पढ़ाई खत्म हुई  तो शौकिंया ही पब्लिक स्कूल में नौकरी करने लग गई। 

      नौकरी तो वो सिर्फ टाईमपास के लिए करती थी।शादी हो गई, करिशमा के माता पिता ने उसे कहा भी था कि भले ही विपुल का घर परिवार बहुत अच्छा है परतुं उनके मुकाबले का नहीं और घर में अकेली रहने वाली सयुंक्त परिवार में गुजारा कर लेगी। तब तो करिश्मा को लगा कि सब ठीक है, विपुल के प्यार का भूत जो सवार था। 

    करिशमा के माता पिता ने शादी में खूब खर्च किया, कपड़े, जेवर तथा साथ साथ बढ़िया गाड़ी भी दी।और करिशमा के नाम काफी धनराशी बैंक में उसके खाते में डाल दी।  विपुल का घर अच्छा बड़ा लेकिन काफी पुराना था।शादी के समय काफी मुरम्मत और पेंट वगैरह करवा दिया गया था। विपुल का कमरा पहली मंजिल पर था।

     शादी के बाद दोनों हनीमून के लिए कैनेडा गए, करिशमा के पिता ने सारा इंतजाम पहले ही करवा दिया था, भाई को मिल लिया और घूमना भी हो गया। कंपनी की तरफ से विपुल तो कई बार विदेश यात्रा कर चुका था, लेकिन करिश्मा पहली बार ही गई थी।

करिश्मा के ससुराल वाले बहुत अच्छे थे, उसकी जेठानी नौकरी नहीं करती थी। सुबह साफ सफाई और अन्य कामों के लिए दो मेड  आती लेकिन रसोई का ज्यादतर काम उसकी जेठानी रश्मी और सास माधवी ही करती। 

        अब करिश्मा ने तो कभी कुछ काम  किया ही नहीं था। कहां अपने घर में वो तीन लोग और यहां आठ जन। दो महीने तो सब ठीक रहा , फिर उसने अपने कमरे में अपनी पंसद का रंग, पर्दे , पेटिंगस , बाथ रूम वगैरह अपने मन मुताबक करवाया।किसी ने कुछ नहीं कहा।

वो नीचे कम ही आती, कभी कभी रसोई में चाय वगैरह बना लेती। अकेली रहने वाली के लिए सयुंक्त परिवार में एडजस्ट करना आसान नहीं होता। 

       जेठ के दोनों बेटे चार साल का धैर्य और छः साल का ऋषि  जब भी दिल करता उसके कमरे में आ धमकते। उसका टीवी बहुत बड़ा और नया था।

बाथरूम भी आधुनिक ढ़ग का तो बच्चे कई बार  वहीं नहाते, टी वी देखते ।उन्को किसी तरह सहन करती तो महीने में एक दो बार या दिन त्यौहार पर ननद भी अपने दोनों बच्चों और परिवार सहित मायके आती। चार बच्चे खूब धमाचौकड़ी मचाते।

     करिशमा के लिए ये सब सहन करना मुशकिल था। घर वालों ने उसे कभी कुछ काम नहीं कहा, उसका मन होता तो खाने की टेबल वगैरह लगाने में मदद कर देती। कई बार तो वो अपना खाना ऊपर ही मंगवा लेती।विपुल से अलग होने के लिए भी नहीं कह सकती थी

क्योकिं विपुल ने शादी से पहले ही ये क्लीयर कर दिया था कि वो परिवार के साथ ही रहेगा।  तभी उसके मन में नौकरी का विचार आया कि चलो कुछ समय तो घर से बाहर निकलने का मौका  मिलेगा।

     उसके ससुर की अच्छी जान पहचान थी, तुरंत नौकरी मिल गई। तभी आराधना से दोस्ती हुई। दो साल बाद बेटी आशिमा का जन्म हुआ, तो घर में खुशिंया छा गई, क्योंकि पहली पोती थी। चार महीने की आशिमा को सास के हवाले कर वो आराम से नौकरी पर चली जाती। तीन साल की जब वो हुई तो उसे प्ले स्कूल में डाल दिया।

      करिशमा मुंह से तो कुछ न कहती लेकिन उसकी हरकते कोई कब तक सहता।अब जब बच्ची सारा दिन घर वाले संभालते तो कुछ काम का फर्ज तो करिशमा का भी बनता। शुरू से ही वो घंमड में रहती। घर में दो गाड़िया कुछ पुरानी थी,किसी ने बाहर जाना होता तो  विपुल कहता कि उसकी ( दहेज वाली) गाड़ी ले जाओ।

घर में कोई फर्क था ही नहीं।लेकिन करिशमा मुँह बना लेती। उसकी जेठानी, सास, ननद की बहुत बनती थी। एक दूसरे की साड़िया , जेवर भी पहन लेते लेकिन करिशमा कभी मिक्स नहीं हुई। पहले पहल तो सबने कोशिश की लेकिन अब सब समझ गए। 

      करिशमा के स्वभाव को देखते हुए कुछ महीने पहले उसकी रसोई अलग कर दी गई थी। अब वो उपर अपना अलग ही रहती। फिर जन्म हुआ अशुंल का। करिशमा की तबियत उसके जन्म से पहले बहुत खराब रही। फुल टाईम मेड थी, पंरतु काम भी तो कितने होते है। दो चार दिन उसकी मां रह गई, कुछ दिन वो मायके रह आई लेकिन कब तक।

      बिना बुलाए कोई उसके घर नहीं आता था। ननद भी नीचे होकर ही चली जाती। हां, आशिमा बच्ची थी, उसे सब प्यार करते लेकिन संभालना उसे ही पड़ता। बिना कुछ कहे सबने मुंह फेर लिया था। अशुंल छः महीने का हो गया।

खर्चे बढ़ चुके थे, और उसकी सैलरी भी काफी अच्छी थी। फिर से नौकरी ज्वाईन करें तो अशुंल को कौन संभाले। किस मुंह से सास, जेठानी को कहे, आशिमा कैसे पल गई उसे पता ही नहीं चला था।

        हर समय सज धज कर रहने वाली करिशमा तो बिल्कुल ही पहचान में न आती।घर में कुछ कुछ समेटती बाकी मेड के हवाले, आशिमा को स्कूल विपुल छोड़ता तो अंशुल को क्रैच में छोडना पड़ता। घर में अकेली मेड के साथ बेटे को छोड़ना उसे गंवारा नहीं था। आशिमा का स्कूल टाईम कम था, बाद में वो भी डे केयर में रहती।

करिशमा को स्कूल से निकलते निकलते अढ़ाई तीन बज जाते, वापसी पर दोनों बच्चों को गाड़ी में लेकर आती।आराधना सब समझती, उसने शुरू से करिशमा को काफी समझाया, लेकिन वो अपनी अकड़ में ही रहती, लेकिन अब हालात बदल चुके थे।

    करिशमा को समय का पता ही न चलता, कभी नाखूनों में आटा फंसा दिखता तो कभी दुपट्टा मैंचिग नहीं। कई बार तो कानों में कुछ पहना ही न होता। उसकी हालत आराधना से छुपी नहीं थी। जब उनकी नई नई दोस्ती हुई थी, तब वो आपस में सब बातें कर लेती थी।

आराधना समझ गई थी कि करिशमा दिल की बुरी नहीं,लेकिन वो अलग परिवेश में पली तो उसमें अंहकार था, जबकि रिश्तों को बनाए रखने के लिए त्याग और अपनेपन की जरूरत होती है। 

     साथ ही साथ कभी माफ कर दो तो कभी मांग लो । ज्यादा भागदौड़ करने से दो महीने में ही वो बहुत थकी रहती और क्रैच में रहने से अशुंल भी बीमार रहने लगा। एक रात तो उसको बुखार और उल्टियां लग गई। घबरा कर विपुल ने मां को बुलाया।

थोड़े घरेलू नुस्खों से वो कुछ ठीक हुआ तो डाक्टर के पास ले गए। तीन चार दिन लग गए ठीक होने में, तब तक वो नीचे गैस्ट रूम में ही रहे, क्योंकि विपुल की मां के लिए सीढ़ीया चढ़ना मुश्किल था। 

      अंशुल ठीक हुआ तो करिशमा बीमार हो गई। जेठानी और सास ने ही सब संभाला, अशुंल के साथ साथ आशिमा की भी देखभाल की। ननद भी दो तीन बार हो गई थी।आराधना भी दो बार आ चुकी थी। बिना कुछ कहे ही वो करिशमा के दिल का हाल जान चुकी थी।

अब करिश्मा की समझ में आ गया था कि रिश्ते कैसे बनाए जाते है, अंहकार नहीं चलता , सबको एक दूसरे की जरूरत होती है। पद्रंह दिन के बाद जब करिश्मा स्कूल जाने लगी तो क्रैच के लिए अंशुल को भी तैयार करने लगी तो जेठानी ने मना कर दिया, सास ने भी कहा, जाओ तुम काम पर , अशुंल हमारे पास रहेगा।

    करिशमा की आंखों से आंसू बह निकले, मुँह से कुछ न बोली लेकिन वो सास के पैरों में झुक गई, जेठानी का हाथ पकड़ते हुए बोली,” मुझे माफ करना दीदी, न जाने मैं किस झूठे अंहकार में रही”

    जाओ, जाओ, पहले ही स्कूल को देर हो रही है और हां विपुल, आशिमा भी डे केयर में नहीं रहेगी, छुट्टी के बाद उसका भी सीधा घर आने का इंतजाम कर देना।अपनी पुरानी सजी धजी करिशमा को देखकर आराधना भी खुश थी। 

 और अब घर में  रसोईयां तो दो थी पर दिल एक हो गए। 

दोस्तों कहने को तो  रिश्ते होते है, लेकिन टिकते तभी हैं जब उनहें बना कर रखा जाए।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- रिश्ते अंहकार से नहीं, त्याग और माफी से टिकते हैं।

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