रोहित ,आज बहुत गुस्से में था, उसे अपना बहुत ही अपमान लग रहा था। घर आते ही उसने, अपना सामान पटका, और चिल्लाते हुए बोला -अब मैं यह सब बर्दाश्त नहीं करूंगा,बर्दाश्त करने की भी हद होती है।
उसकी पत्नी नीता, कमरे में आई और उसने पूछा -क्या हुआ ?
गुस्से से रोहित बोला -जब देखो, पापा! मेरी बेइज्जती करते रहते हैं, अब मैं और बर्दाश्त नहीं करूंगा आज तो उन्होंने हद ही पार कर दी, इतने लोगों के सामने और मेरे क्लाइंट के सामने मेरी बेइज्जती कर दी।
रोहित की आवाज सुनकर, उसकी मां भी वहीं आ गई थी, और उन्होंने पूछा -क्या हुआ ?
मम्मी !अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता, आप पापा को समझा लीजिए , माना कि वह बहुत सालों से व्यापार कर रहे हैं किंतु मैं भी तो पढ़ा -लिखा हूं , मैं भी अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता हूं किंतु जब देखो ! वह मेरे हर कार्य में” टांग अड़ाते रहते हैं।”
नहीं बेटा ! ऐसा नहीं है, तेरे पापा तो चाहते हैं,तू उनसे भी, अच्छा व्यापारी बने इसीलिए वह तुझे समझाते और टोकते रहते हैं, ताकि तू कहीं जोश में, कुछ हानि न कर बैठे।
जब कुछ करूंगा नहीं,तो सीखूंगा कैसे ?मैं इस व्यापार को उनसे भी आगे ले जाना चाहता हूँ ,उनके इस तरह बार -बार टोकने से कैसे आगे बढूँगा ? अब आपसे कह दिया है, कि इस तरह अपना अपमान बर्दाश्त नहीं करूंगा, आप उन्हें समझा लीजिए और आज जो उन्होंने किया है, उसके लिए तो उन्हें मुझसे माफी मांगनी होगी।
यह आप क्या कह रहे हैं ? नीता आश्चर्य से बोली -अब पापा आपसे माफ़ी मांगेंगे,बड़े तो डांटते और समझाते ही रहते हैं।
तुम चुप रहो !बड़े हैं ,तो क्या गलती नहीं कर सकते ? आज उन्होंने मेरे पार्टनर के सामने मुझे नीचा दिखाया है ,वो क्या सोचेगा ?जब इसके पिता को ही, इस पर विश्वास नहीं है ,तो वो मुझ पर कैसे विश्वास कर लेगा ?यदि पापा का इसी तरह चलता रहा, तो मैं, कभी उन्नति नहीं कर पाऊंगा, न ही व्यापार सीख पाऊंगा। अब मुझे उनके साथ कोई व्यापार नहीं करना है , मैं अपना अलग व्यापार करूंगा।
यह तू क्या कह रहा है ? तेरे पापा ने इस व्यापार में अपना जीवन खपा दिया, किसके लिए ? कि कल को मेरा बेटा बड़ा होकर इसे संभालेगा, और तू इस तरह की बातें कर रहा है, जब उन्हें पता चलेगा तो उन्हें कितना दुख पहुंचेगा ?
मम्मी सही कह रही हैं , पापा जी, चाहते हैं -कि आप उनकी छत्रछाया में रहकर उनसे कुछ सीखें क्योंकि वह बहुत पुराने व्यापारी हैं उन्हें व्यापार का अनुभव है।
वे तो उसी पुराने ढ़र्रे पर अपना व्यापार चला रहे हैं, मैं अपने तरीके से इसे आगे बढ़ाना चाहता हूं।
चंद्र प्रकाश जी ने बेटे की बातें सुन लीं , उन्हें बहुत दुख हुआ उन्हें लगा, शायद उन्होंने बेटे के साथ कुछ ज्यादा ही ज़्यादती कर दी अचानक कि उनके सीने में दर्द होने लगा और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। उनकी हालत देखकर, सभी परेशान हो उठे थे।
अब रोहित को लग रहा था -‘शायद मैंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया, मुझे इतना सब नहीं कहना चाहिए था।’ तब अपने पिता से क्षमा याचना की और बोला -पापा जी !मैंने जो कुछ भी कहा गुस्से में कह दिया था ,मुझे भी अपनी शिक्षा पर अहंकार था ,मैं ,अपने दम पर कुछ करना चाहता था।
तुम सही कह रहे हो ,मुझे भी समझना चाहिए, अब तुम बड़े हो गए हो ,इस तरह किसी के भी सामने मेरा तुम्हें डांटना उचित नहीं था ,मुझे अपने अनुभव पर भरोसा था ,मैं नहीं चाहता था कि बरसों से जमाये हमारे इस व्यापार को कोई हानि पहुंचे ,तुम्हें अपने अनुभवों द्वारा आगे बढ़ाना चाहता था किन्तु मुझे तुम पर भी भरोसा करना चाहिए था।मुझे माफ कर दो ! मेरे बेटे !
नहीं, पापा !मैं ही उन बातों को मान -अपमान की बात बना बैठा ,मुझे भी तो सोचना चाहिए था कि आप जो भी सोचेंगे, मेरे भले के लिए तो करेंगे। आपने जीवनभर हमारे लिए अपने परिश्रम और त्याग से इस व्यापार को आगे बढ़ाया।
उनकी बातें सुनकर ,एक का अनुभव ,दूसरे का जोश, नई सोच के साथ इस व्यापार को अब आगे बढ़ाना ,चन्द्रप्रकाश जी की पत्नी बोली।
उनकी बातें सुनकर दोनों हंस पड़े और बोले -जी मालकिन !
✍🏻लक्ष्मी त्यागी