राजू के पैदा होते ही उसकी मां गुजर गई थी और जब वो 7 साल का था, उसके पिता भी गुजर गए थे। दादी थी नही, इसलिए दादा ने जैसे तैसे बड़ा किया। 15 साल की उम्र में दादा भी साथ छोड़ गए। पेट भरने के लिए उसने पढ़ाई छोड़ दी और एक स्कूटर रिपेयर की दुकान पर काम करने लगा। मेहनत
ओर समय के साथ साथ वो अच्छा मेकेनिक बन गया और आज अपनी अलग दुकान चला रहा है। शादी के कुछ ही महीनों बाद उसकी पत्नी राधा ने अपनी खुद की दुकान खोलने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया जिससे उसकी मेहनत और हुनर किसी ओर की जेब में न जाएं।
इस काम के लिए उसने अपना सोना चांदी सब दे दिया ओर राजू ने गहने बेच कर अपनी खुद की एक दुकान उसी बाजार में शुरू कर दी। लोग उसे ओर उसके काम से वाकिफ थे, इसलिए बिना किसी
परेशानी के धंधा चल निकला। इसी के साथ एक खुश खबरी ओर आ गई, की राजू बाप बनने वाला हैं। समय बीता और आशा ने एक प्यारी सी लड़की को जन्म दिया। आशा ओर राजू बहुत खुश थे और बेटी का नाम खुशी रखा।
खुशी पैदा होने के कुछ सालों बाद न जाने आशा को क्या हो गया कि वो अक्सर बीमार रहने लगी ओर दिन ब दिन कमजोर होती गई। बहुत इलाज कराने के बाद भी उसकी सेहत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। खुशी मां के हर छोटे बड़े काम में हाथ बटाती ओर समय से पहले ही समझदार हो गई। खुशी
जब 10 – 11 साल की थी, एक दिन अचानक आशा की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई ओर हस्पताल में 2 -3 दिन के इलाज के दौरान ही वो खुशी ओर राजू को अकेला छोड़ कर सदा के लिए चली गई।
पत्नी के गुजर जाने के बाद राजू को खुशी की बहुत चिन्ता होने लगी, वो अच्छी तरह जनता था कि बिन मां बाप के बच्चों की क्या दशा होती हैं। राजू ने दूसरी शादी करने का फैसला किया ओर कुछ ही महीनों बाद कोयल नाम की लड़की से शादी कर ली। कुछ दिन तो सब ठीक रहा, फिर सौतेली मां ने
अपने रंग दिखाने शुरु कर दिए ओर खुशी से घर के सारे काम करवाने लगी। कोमल की मां ओर भाई भी आए दिन वहीं पड़े रहते और कोमल को सौतेली बेटी के खिलाफ भड़काते रहते। खुशी सब समझती थी पर कुछ नहीं बोलती थीं बस मुस्कुरा कर काम करती रहतीं। कुछ समय बाद राजू को
पता चला की कोयल मां बनने वाली हैं तो वो बहुत खुश हुआ। परन्तु उसकी ये खुशी ज्यादा दिन नहीं रहीं, क्योंकि एक दिन कोयल बाथरूम में गिर गई ओर उसका मिस कैरेज हो गया। ज्यादा ब्लीडिंग होने की वजह से खून ओर पेसो की जरूरत पड़ गई। ऐसे वक्त में कोमल की मां ओर भाई दोनों कोई
सहारा न देकर गांव चले गए परन्तु खुशी ने मां की बहुत सेवा की और उसे पूरा आराम दिया। जैसे मां बच्चों को पालती / डांटती हैं, वैसे ही खुशी अपनी मां को पाल रही थीं। राजू अब देख समझ रहा था और एक दिन खुशी को बोला, कोमल तुम्हारे साथ कितनी ज्यादती करती हैं फ़िर भी तुम उसकी सेवा
में कोई कमी नहीं छोड़ रही हो। खुशी पापा से बोली, मां मुझे बेटी माने या न माने पर मैंने उन्हें मां समझा है। मैं किस्मत वाली हूं क्योंकि बहुत से बच्चे तो ऐसे भी होते हैं जिन्होंने मां बाप को कभी देखा ही नहीं। कोमल लेटी हुई बाप बेटी की सब बाते सुन रही थी और उसके बाद अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई और उठकर खुशी को गले लगा लिया ओर बोली, बेटी, मुझे माफ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी
ग़लती हो गई। तुम्हारी बातों ने मेरी आँखें खोल दी ओर मुझे अपनो को पहचान करवा दी। अपने वो नहीं होते जिनसे खून का रिश्ता होता हैं बल्कि वो होते हैं जो दिल से बनाए ओर निभाए जाते हैं। आज के बाद तू मेरी बेटी बनकर रहेगी ओर मैं गर्व से सबको बताऊंगी कि मैं खुशी की मां हूं। उस दिन के बाद से राजू, कोमल और उनकी इकलौती बेटी खुशी, मिलजुल कर प्यार से रहते हैं।
साप्ताहिक विषय – अपनो की पहचान
कहानी – रिश्ता।
लेखक
Mohindra Singh
(एम पी सिंह)
स्वरचित, अप्रकाशित