रिटायरमेंट औरतों के नसीब में कहां?

सोनाली! मम्मी पापा! आज तीर्थ से लौट रहे हैं, तो खाना जल्दी बना लेना, ताकि वह आकर नहा धोकर खाना खाकर, आराम कर सके। मयंक ने अपनी पत्नी सोनाली से कहा..

सोनाली:  तीर्थ से ही लौट रहे हैं ना? कोई जंग जीत कर नहीं? आप तो ऐसे बोल रहे हैं, जैसे मैं तो पूरे दिन बस खाली ही बैठी रहती हूं! मेरे घर के काम तीर्थ यात्रा से कई ज्यादा थकाने वाले होते हैं, उसको तो हमेशा नजरअंदाज कर दिया आपने?

मयंक: यह कैसी बात कर रही हो तुम सोनाली? मम्मी पापा की उम्र देखो और अपनी? तुम उनकी तुलना खुद से कर रही हो? इस उम्र में थोड़ा चलना भी पहाड़ चढ़ने जैसा होता है, वह तो तीर्थ यात्रा करके लौट रहे हैं, तो सोचो कितनी थकान होगी?

सोनाली:  आप यह मत भूलिए, मम्मी पापा गांव में रहते हैं, जहां वह चूल्हा चौका से लेकर खेती-बाड़ी तक खुद करते हैं। तब क्या वह नहीं थकते? यहां मुझे देखकर थक जाते हैं, आप है ना? ज़रा कम बोलिए, माता-पिता के साथ-साथ ज़रा अपनी पत्नी का भी ध्यान रख लिया कीजिए।

मयंक:  यह तुम आजकल की बहूओ की यही समस्या है, मिलजुल कर तो रहना जानती ही नहीं, बस जब देखो तेरा मेरा ही करती रहती हो। देखो मुझे तुमसे अभी बहस करने का कोई इरादा नहीं है। जैसा बोला है वैसा कर लो और नहीं तो, मैं खुद ही कर लूंगा। पर पहले मम्मी पापा को स्टेशन से लेकर आता हूं।

मयंक अपने माता-पिता को स्टेशन से लेकर आता है, और घर आकर देखता है सोनाली ने बस खिचड़ी बनाई है। उसके साथ खाने के लिए और कुछ भी नहीं, मयंक ने अपने माता-पिता से कहा आप लोग नहा लो, मैं सोनाली से कहता हूं कि खाना पड़ोस दे। खाकर फिर आराम करना हमारे कमरे में, वहां ऐ सी है तो चैन की नींद होगी।

शोभा जी (मयंक की मां): ना बाबा ना! इस बुढ़ापे में हमें ऐ सी की हवा रास ना आएगी। बेकार में बीमार पड़ जाएंगे तो तुम्हारी ही परेशानी बढ़ेगी। हम तो दूसरे वाले कमरे में ही सो लेंगे। यह कहकर वे लोग नहाने चले गए। इधर मयंक गुस्से में सोनाली के पास जाकर कहता है, यह क्या सुनली? तुमने बस खिचड़ी ही बनाई? अरे कम से कम उसके साथ खाने के लिए पापड़ ही सेक लेती या दही ही मंगवा लेती, मैं जा रहा हूं दही लाने, अगर उनकी जगह तुम्हारे माता-पिता होते तभी क्या तुम ऐसे ही पेश आती?

सोनाली:  मेरे सर में काफी दर्द है, यह तो आपको बहाना ही लगेगा अभी! पापड़ घर में ही पड़े हैं, मम्मी जी भी तो सेक सकती है ना? इतना भी भारी काम नहीं है, पर नहीं यह करने से उनके रिटायरमेंट के आराम में खलल जो पड़ जाएगी, तो फिर बचत कौन है? आप? सेक लो आप खुद ही, और मेरे माता-पिता होते तो से क्या मतलब है आपका? उन्होंने मेरे लिए बचपन से बहुत कुछ किया है, आपके पिता ने आपके लिए किया, मेरे माता-पिता को मेरी तकलीफ बहाना नहीं लगता और आपके माता-पिता को आपकी परवाह है, तो आप करो उनकी सेवा पानी, मेरी भी तबीयत है जिसका ध्यान मुझे ही रखना है, क्योंकि मेरी शादी तो श्रवण कुमार से हुई है। मयंक और कुछ नहीं कहता और गुस्से में वहां से चला गया। जब वह रसोई में गया तो देखा, उसकी मम्मी आलू काट रही है, जिसे देखकर मयंक कहता है, यह क्या कर रहीं हैं मम्मी? खाना बना हुआ है, बस पापड़ सेकना है, वह मैं सेक देता हूं, आप जाकर बैठिए, सोनाली के सिर में दर्द है, पर उसने खिचड़ी बनाई है।

शोभा जी:   बेटा! तेरे पापा कर रहे हैं ना आराम? मुझे पता है सिर्फ खिचड़ी इस घर में किसी के भी गले से नहीं उतरती, इसलिए सब की पसंद की आलू की सब्जी बना रही हूं। बहू को भी आराम की ज़रूरत है, पूरे घर के काम अकेले करती है, ऐसे में भी खिचड़ी बना दिया यही बहुत है। यह सब्जी उसे भी काफी पसंद है, तो सोचा मैं ही बना देती हूं, उसे आराम करने दे।

मयंक:   मम्मी! तीर्थ यात्रा पर सिर्फ पापा ही गए थे क्या? आप भी तो गई थी। तो आराम की ज़रूरत सिर्फ पापा को ही नहीं है, आपको भी है और आप आते ही सबकी पसंद नापसंद में लग गई। उम्र तो आपकी भी रिटायरमेंट लेने की हो गई है ना?

शोभा जी हंसते हुए:  पगले! औरतों का भी रिटायरमेंट होता है क्या? जब तक उसके हाथ-पांव सलामत है, वह रिटायरमेंट ले ही नहीं सकती। यह उन्होंने भी मान लिया है। साल के 365 दिन, हफ्ते के सातों दिन और दिन के 24 घंटे, उन्हें अपनी जिम्मेदारियां याद दिलाई जाती है। यहां तक के जब वह प्रसव पीड़ा से गुज़र कर, मौत से लड़कर एक नए जीवन को दुनिया में लाती है, तब भी उससे आराम की उम्मीद नहीं, बल्कि बच्चे की देखभाल

 दूध पिलाने की ज़िम्मेदारी की उम्मीद की जाती है। पुरुषों को तो एक उम्र के बाद कम से आराम मिल जाता है, पर क्या तुम बता सकते हो औरतो का वह उम्र?  बेटा, अभी तुम जिस बात के लिए सोनाली पर नाराज हो रहे थे, क्या वह जायज था? कभी तुमने उसे कहा है कि तुम थक गई हो, आराम कर लो, तुम्हें तो दफ्तर से दो दिन की छुट्टी मिलती है, पर उसका कोई छुट्टी का दिन है क्या? कभी तुमने उससे कहा कि आज खाना मैं बना देता हूं, तुम बस फरमाइश करो? तो क्यों ना वह खुद को सारे रिश्तों से दूर कर ले? जब उसे सब अकेले ही करना है, तो परिवार का सुख वह क्या जाने भला? जो सुख उसके माता-पिता ने उसे दिया है तो वह बिना बोले ही उनके लिए करेगी, इसलिए उसके माता-पिता के साथ किसी और की तुलना करना तो बिल्कुल ही बेकार है, देखो बेटा, हम यहां नहीं रहते तो उसका हमारे साथ ज्यादा जुड़ाव नहीं होगा, वह जो भी कह रही है कहीं ना कहीं तुम्हारे ही बर्ताव का प्रभाव है, तो उसे समझो, जिस तरह रिटायरमेंट में लोग सुकून चाहते हैं, उसी तरह अभी सुनहरा पल जिसे तुम दोनों बैठकर अपने बुढ़ापे में याद कर सको, संजोने का समय है, बस काम करके ही गुजारा कर लेना जिंदगी नहीं होती। इसे भरपूर जीना भी पड़ता है। अभी बच्चे नहीं है तो एक ज़िम्मेदारी कम है, फिर बच्चों की ज़िम्मेदारी आ गई तो यह पल वापस नहीं मिलेंगे। समझा? अब जा और बहू से कह आकर खा ले और उसके बाद उसका सर भी दबा देना। 

मयंक यह सब सुनकर भावुक हो गया और फिर अपनी मां से कहा, मम्मी! आपको तो कभी नहीं देखा पापा के साथ समय बिताते? जहां तक मुझे याद आ रहा है, आप लोग किसी रिश्तेदारों की शादी पर भी साथ नहीं जाते थे, क्योंकि दादी जी और दादी अकेले कैसे रहते? यह तीर्थ यात्रा ही है जो आप दोनों अकेले गए, फिर तब अपने पापा से एक बार भी यह सब क्यों नहीं कहा?

 शोभा जी:   तब नहीं कहा, तभी तो आज बहू की जगह खुद को महसूस कर पा रही हूं! अब तो न जाने भगवान का बुलावा कब आ जाए? इसलिए सोचा कुछ पल रिटायरमेंट के दिनों का ही बना लूं, क्योंकि इसके पहले के पल तो कुछ बना नहीं, पर तुम ऐसी गलती कभी मत करना। क्योंकि तीर्थ यात्रा और हनीमून एक जैसा नहीं होता। यह कहकर शोभा जी मयंक तरफ देखती है और फिर दोनों एक साथ जोर से हंसने लगते हैं, फिर मयंक कहता है ठीक है मम्मी! मैं सोनाली को बुलाकर लाता हूं, यह कहकर जैसे ही मयंक पीछे मुड़ता है, वह देखता है सोनाली पीछे ही खड़ी है उसे देखकर मयंक कहता है, अच्छा हुआ जो तुम आ गई, मैं तुम्हें ही बुलाने जा रहा था।

सोनाली:   क्यों बुलाने आ रहे थे आप? कहां ले जाना है तीर्थ यात्रा या हनीमून?

शोभा जी सोनाली के इस बात से मयंक की तरफ देखने लगी, तभी सोनाली आकर उनके गले लग कर कहती है, मम्मी! आपसे मैं कभी ज्यादा जुड़ी नहीं, पर आज आपकी बातें सुनकर मेरा अंतर मन सास शब्द को पूजने को कह रहा है, हमेशा से सुना था की सास कभी मां नहीं बन सकती, पर सास अगर आप जैसी हो तो, मां से ज्यादा अपनापन महसूस करा सकती है, मैं तो हैरान हूं कि, ना तो कभी मैंने आपसे बैठकर ज्यादा देर तक बात की, ना ही आपकी कभी कोई बात सुनी। पर आपने कैसे मेरे मन को पढ़ लिया? जो मेरे मन को दिन रात मेरे साथ रहने के बाद भी, कभी मेरे पति नहीं पढ़ पाए, वह अपने कैसे जान लिया? मम्मी मुझे अब से आपके साए में ही रहना है, आप लोग क्या हमेशा यही नहीं रह सकते?

शोभा जी:  बहू! यह मैंने भी सहा है, देखा है, तभी तुम्हारे भाव को समझ पाई। पर एक सलाह तुम्हें भी दूंगी, ज़रूरी नहीं की कोई आराम करने को तुम्हें बोले, तभी तुम आराम करो। जब मन करे आराम करने का, कर लिया करो। बाकी सारी चीज़े ताख पर रख दो, क्योंकि यह घर के काम और परिवार की जिम्मेदारियां ना तो तब खत्म हुए थे और ना कभी होंगे, तो एक चीज़ गांठ बांध लो, “अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता” और यहां जनता यह तुम्हारा पति भी हो सकता है, शोभा जी के इस बात से वहां हंसी की लहर दौड़ गई।

दोस्तों, इस कहानी के माध्यम से मैं यह पूछना चाहती हूं, कि रिटायरमेंट पर हक सिर्फ क्या पुरुषों का ही होता है? क्या औरत की उम्र नहीं बढ़ती? या घर गृहस्ती के काम को काम में गीना ही नहीं जाता? या सिर्फ पैसे कमाना ही काम है? पर लोग यह क्यों भूल जाते हैं अगर पुरुष पैसे कमाने बाहर चैन से जा पा रहा, उसकी वजह वह औरत है जो उसके घर परिवार को बखूबी संभाल रही है। अगर पुरुष काम से आए तो उसे बना बनाया खाना मिलता है कीम पर जाने से पहले उसे बना हुआ नाश्ता मिलता है, पर औरत अगर काम करने बाहर जाए, तो उसे यह सब करके जाना पड़ता है और आकर भी करना होता है।  बाहर काम करके पुरुष कहता है, मुझे पैसे कमाने की मशीन समझ लिया है क्या? पर यह कौन समझेगा की मशीन तो औरत भी नहीं? बुढ़ापा तो उसे भी आता है और रिटायरमेंट की ज़रूरत उसे भी है।  

धन्यवाद 

रोनिता कुंडू 

#रिटायरमेंट

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