” सुधा तैयार हो जाओ हमें फोटो खिंचवाने चलना है !” ऑफिस से आते ही जयेश जी पत्नी से बोले ।
” पर फोटो क्यो खिंचवानी है मेरी ?” सुधा आश्चर्य से बोली।
” अरे भाग्यवान रिटायरमेंट का फॉर्म भरना है उसमे हम दोनो की फोटो लगेगी !” जयेश जी बोले।
” ओह्ह हां आपकी रिटायरमेंट का समय नज़दीक है मैं तो भूल ही गई थी !” सुधा उदास होते हुए बोली।
” इसमे उदास होने वाली बात क्या है भला सब एक ना एक दिन रिटायर होते ही है ?” जयेश मुस्कुरा कर बोले।
” हम्म हां होते है पर उसके बाद जिंदगी पहले सी नही रहती । कमाई पहले सी नही रहती तो वो आत्मविश्वास नही होता ,ना उमंग होती है इंसान खुद को बूढा समझने लगता है !” सुधा बस इतना बोली पर वो चिंतित इस बात से भी थी कि जयेश साठ साल के हो रहे और वो भी अटठावन की मतलब जीवन की संध्या बेला आ ही गई समझो ।
” अरे श्रीमती जी बूढ़े होंगे मेरे दुश्मन और रिटायरमेंट तो एक सुखद पड़ाव है जिंदगी का ।जो काम हम अपनी नौकरी मे नही कर पाये , जो लम्हे पीछे छूट गये उन्हे दुबारा से जियेंगे हम और आपकी शिकायत जो रही हमेशा आपको समय ना देने की उसे भी तो दूर करना है । रही कमाई की बात तो कम पैसो मे भी खुशहाल जिंदगी जी जा सकती है । चलिए अब मुस्कुराइए और तैयार हो जाइये वैसे अभी हम इतनी जल्दी मरने वाले नही इसलिए चिंता मत करो !” जयेश मुस्कुरा कर बोले तो सुधा झेंप सी गई कैसे पढ़ लेते है ये मन की बाते ?
खैर दोनो फोटो खिंचवा आये । कुछ महीनो बाद जयेश के रिटायरमेंट का दिन भी आ गया । उन्होंने जो पैसे उन्हे मिले उससे कोई बड़ी पार्टी करने की जगह बैंक मे ही रहने दिये हालाँकि उनके दोनो बच्चे रिटायरमेंट के समय आये थे और एक बड़ी पार्टी करना चाहते थे पर जयेश जानते थे उन्हे जीवन की संध्या बेला मे इस पैसे का बहुत सहारा होगा। इसलिए उन्होंने बस घर के लोगो के साथ एक छोटी सी पार्टी की और बाकी पैसे बैंक मे ही रहने दिये । दोनो बच्चे कुछ दिन रुक चले गये अपने अपने घर अब घर मे बचे सुधा और जयेश।
” भाग्यवान ऐसा लग रहा रिटायर क्या हुए हम तो बिल्कुल खाली हो गये !” एक दिन चाय पीते हुए जयेश बोले।
” मुझे भी अब ऐसा लगता है पहले आपकी नौकरी के कारण सुबह के कामो की जल्दी होती थी अब तो आराम आराम से करने पर भी ऐसा लगता बहुत जल्दी निमट गया !” सुधा बोली।
” कुछ करना पड़ेगा वरना ये बुढ़ापा शरीर जाम कर देगा !” जयेश कुछ सोचते हुए बोले।
” अमन ( बेटा ) से बात कीजिये ना हम उसके पास रहने चलते है वहाँ पोते पोती साथ मन भी लग जाया करेगा और उनके साथ खेल कर शरीर भी चलता रहेगा !” सुधा बोली।
” सुधा उसे अपने पास बुलाना होता तो खुद कहता बिन बुलाये उसके यहाँ मेहमान बन अपनी और तुम्हारी बेइज्जती कराने से अच्छा हम यही कुछ सोचेंगे !” जयेश बोले उनकी बात सुन सुधा मायूस तो हुई पर उसे भी समझ आ गया कि जो इंसान सारी जिंदगी आत्मसम्मान के साथ जिया है वो किसी के आगे कमजोर नही पड़ेगा।
पर सुधा खुद को समझा नही पा रही थी उसे लग रहा था अब जिंदगी मानो रुक सी जाएगी उसे तो लगा था रिटायरमेंट के बाद बच्चो के साथ जिंदगी हँसते खेलते गुजर जाएगी पर ऐसा कुछ नही हुआ। सुधा उदास रहने लगी जबकि जयेश अब उसके साथ ही सारा वक्त बिता सकते है ये उसे नही दिख रहा था ना जाने वो कैसे पूर्वाग्रह से ग्रसित थी।
” सुधा क्या बात है तुम मेरे घर रहने से खुश नही हो क्या ? यार सारी जिंदगी नौकरी और बच्चो की परवरिश मे बिता दी अब सुकून के दिन आये है तो जाने तुम्हे क्या हो गया है !” एक दिन जयेश झुंझला कर बोला।
” जयेश जी हम लोग जीवन की संध्या बेला मे है ऐसे मे अगर हमें कुछ हो जाता है कोई हारी बीमारी या कुछ तो हमारा ध्यान कौन रखेगा ?” चिंतित सुधा बोली।
” अब तक कौन रख रहा था ?? बोलो …अब तक भी तो हम दोनो ही थे ना तो अब क्या हुआ ऐसा !” जयेश ने पूछा।
” अब हम जीवन की संध्या बेला मे है साठ पार हो गये धीरे धीरे अशक्त होते जा रहे है और इस उम्र मे बीमारियां भी लग जाती है ऐसे मे अगर कुछ अनर्थ हो जायेगा तो …बस इसलिए मैं चाहती थी हम बच्चो के साथ रहे अब !” सुधा बोली।
” सुधा जबसे मैं रिटायर हुआ हूँ तबसे तुमने तो मुझे अशक्त ही समझ लिया छह महीने पहले सब ठीक था तुम भी हंसी खुशी रहती थी अब ना जाने क्यो तुम खुद को और मुझे भी बूढा लाचार समझने लगी हो । सुधा रिटायरमेंट जिंदगी का अंत नही होता बल्कि शुरुआत होती है एक नई जिंदगी की । अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए हम अपने शौक , एक दूसरे के सानिध्य को दरकिनार सा कर देते है अब समय है एक दूसरे के साथ से अपने शौक जीवंत रखने का ना कि यूँ चिंतित होने का ।” जयेश बोले।
” मैं मानती हूँ जयेश आप अब मेरे साथ अपना पूरा वक्त बिताते है मैं इससे खुश भी हूँ पर मुझे चिंता इस बात की है कि कल को मुझे कुछ हो जाता है तो आपका ध्यान कौन रखेगा !” सुधा ने अपनी चिंता जाहिर की।
” ओह्हो ये कैसी कैसी बाते सोचने लगती हो तुम। होने को तो मुझे भी कुछ हो सकता है तुमसे दो साल बड़ा हूँ मैं । पर इस डर मे क्या जीना भूल जाये । अरे अब वक्त है अपने शौक पूरे करने का और दुनिया को और अपने बच्चो को दिखाने का कि अशक्त नही है हम । देखो तुम्हे बहुत शौक था ना गरीब बच्चो को पढ़ाने का और मुझे बागवानी का पर तुम घर परिवार और मैं नौकरी के कारण अपने शौक पूरे नही कर सका । तो अब हम एक दूसरे का साथ देते हुए अपने शौक भी पूरे करेंगे !” जयेश ने उसे समझाया ।
” पर कैसे ??” सुधा ने पूछा।
” देखो हमारे पास अब थोड़ा बहुत पैसा भी है जो सिर्फ हमारा है बच्चे अपना कमा रहे खुद तो हम उस पैसे का सही इस्तेमाल करेंगे !” जयेश बोले। सुधा ने आगे कुछ पूछना चाहा पर जयेश ने चुप करा दिया और उन्हे चाय बनाने को कहा। खुद कॉपी पेन ले कुछ करने लगे ।
अगले दिन जयेश सुबह ही तैयार हो घर से निकल गये सुधा ने पूछा भी पर कुछ बताया नही । दोपहर बाद घर के बाहर आवाजे हुई तो सुधा बाहर आई ।
बाहर एक ट्रक खड़ा था जिसमे बहुत से पौधे थे जयेश उन पौधो को उतरवा कर करीने से रख रहे थे । सब पौधे उतर गये इतने एक रिक्शे वाला एक बोर्ड लेके आया ।
वो बोर्ड जैसे ही उतरा सुधा देखती रह गई उस पर लिखा था ” सुधा कोचिंग सेंटर ( निशुल्क )”
और नीचे लिखा था ” कृपया गरीब बच्चे ही सम्पर्क करे हम उनकी पढ़ाई से सम्बन्धित हर मदद करेंगे !
वो बोर्ड देख सुधा के चेहरे पर चमक आ गई ।
सब पौधे रखवा कर जयेश ने बोर्ड भी लगवा दिया । फिर खुद से पौधे लगाने लगा उसे इतने जोश से काम करते देख सुधा भी उसकी मदद करने लगी। कुछ घंटे के परिश्रम के बाद सारे पौधे लग गये । दोनो थक कर घर के भीतर आये और नहा धोकर खाना खाया आज दोनो थक गये थे पर अंदर से खुशी सी महसूस कर रहे थे । जयेश ने कोचिंग के पर्चे बनवा आस पास बंटवा दिये । शुरु मे कोई बच्चा नही आया सुधा को हल्की निराशा भी हुई पर वो जयेश के साथ रोज पेड़ पौधो की देखभाल मे लग जाती जिससे दोनो को अच्छा भी लगता और थकने के कारण दोनो को भूख भी अच्छी लगती और नींद भी अच्छी आती।
” आंटी क्या आप मुझे पढ़ाओगी ?” एक दिन घर के दरवाजे पर एक प्यारी सी लड़की स्कूल ड्रेस मे नज़र आई जो अपनी मीठी आवाज़ मे उससे पूछ रही थी ।
” बिल्कुल पढ़ाउंगी बेटा .. कौन से स्कूल मे पढ़ती हो तुम ?” सुधा ने पूछा।
” पास के सरकारी स्कूल मे पर मुझे वहाँ ज्यादा समझ नही आता आई बाबा से कोचिंग को बोला तो वो बोलते है पैसे नही इतने …मैं रोज आपका बोर्ड देखती हूँ आज हिम्मत कर आ गई !” वो लड़की जो 12-13 साल की होगी बोली।
” ठीक है तुम कल अपनी आई को लेके आ जाना !” सुधा बोली ।
वो लड़की खुश हो चली गई अगले दिन वो अपनी आई को साथ लाई और उनसे बात कर सुधा ने उसे पढ़ाना शुरु कर दिया । एक से दो दो से चार बच्चे होते चले गये । अब ना सुधा के पास ना जयेश के पास इतना समय था कि वो अपने बच्चो को याद कर उदास होते । दोनो मिलकर पहले पेड़ पौधो की देखभाल करते फिर खा पीकर आराम कर बच्चो को भी साथ पढ़ाते इससे दोनो एक दूसरे के साथ रहते अपने शौक पूरे कर रहे थे । कुछ समय बाद उन्होंने अपने घर का ऊपरी हिस्सा किराये पर चढ़ा दिया जिससे वो गरीब बच्चो की थोड़ी मदद भी कर दिया करते थे ।
आज जयेश जी के बाग़ मे ढेरो फल और फूल मुस्कुराते है और सुधा जी ढेरो नन्हे फूलों के चेहरे पर मुस्कान लाती है अब ना उन्हे बुढ़ापे की चिंता ना बच्चो के साथ ना रहने का मलाल अब वो लोग जिंदगी की दूसरी पारी खुशी खुशी जी रहे है वो भी अपने आत्मसम्मान के साथ अपनी मर्जी से ।
लेखिका : संगीता अग्रवाल