सुबह सुबह आराधना जी का बड़बड़ाना शुरू हो गया था। छह बज गया अभी तक बहू रानी के उठने का समय ही नहीं हुआ है। एक हम थी सुबह चार बजे ही नहा धोकर तैयार हो सासु माँ को प्रणाम करने चली जाती थी और एक हमारी बहुरिया है जिन्हे सुबह छह बजे तक कुछ होश ही नहीं है।
आराधना जी की आवाज सुनकर उनकी बहू स्वर्णा झटपट उठकर बाथरूम मे भागी और जैसे तैसे आधे घंटे मे तैयार होकर बाहर निकली। जनवरी का महीना था ठंड जोरो पर थी इसलिए बेचारी की नींद सुबह खुलने मे देर हो जाती थी और प्रतिदिन उसकी सास इस बात के लिए उसे खूब सुनाती थी।
स्वर्णा समझ ही नहीं पाती थी कि सुबह चार बजे क्यों उठना है जब कि घर के सभी सदस्य सुबह आठ बजे सोकर उठते थे। सासु माँ भी सुबह आकर उसके कमरा के सामने चिल्लाती और यह जानकर की स्वर्णा उठ गई फिर जाकर सो जाती। वह बेचारी नहा धोकर डाइनिंग रूम मे आकर बैठ जाती
और सबके उठने का इंतजार करती। सुबह उठने के बाद चाय पीने का मन करता पर वह चाय भी नहीं पी सकती थी क्योंकि उसकी सास इस बात के लिए भी गुस्सा हो जाती। एक दिन उसने चाय बनाकर पी लिया था तो उसकी सास नें गुस्साते हुए कहा “ऐसी बहुरिया तो हमने आज तक नहीं देखी जो सुबह उठे और खाने पीने लगे। अभी घर के किसी सदस्य नें कुछ खाया पीया नहीं और इन्होने अपने लिए चाय बनाई
और पीने लगी।”उसके बाद स्वर्णा की कभी हिम्मत ही नहीं हुई की चाय बनाकर पिए। स्वर्णा के विवाह को अभी एक माह ही हुआ था। इसलिए वह समझ नहीं पाती थी कि उसे क्या करना है क्योंकि उसके घर का माहौल ओर यहाँ के माहौल मे जमीन आसमान का फर्क था।
उसके यहाँ उसकी भाभी सुबह उठती तो पहले चाय बनाती तब तक घर के सभी सदस्य जग जाते फिर सभी चाय पीते और उसके बाद भाभी नहा धोकर रसोई मे जाती और नाश्ता बनाती उसके पहले ही माँ सब्जी काटना धोना या आटा गुंथ देने जैसे काम करके रख देती
जिससे भाभी बस झटपट नाश्ता तैयार करती और सभी को देती। नाश्ता करने के बाद पापा और भैया ऑफिस चले जाते और स्वर्णा भी कॉलेज चली जाती। जब तक भाभी नाश्ता बनाती तब तक माँ भी पूजा पाठ करके भाभी की मदद के लिए रसोई मे आ जाती और सबके जाने के बाद दोनों सास बहू साथ मे ही नाश्ता करती और फिर दोपहर के खाने की तैयारी करती। स्वर्णा अभी कॉलेज मे ही पढ़ रही थी कि उसका रिश्ता आ गया था
इसलिए उसे रसोई के काम अभी कायदे से नहीं आते थे और उसके ससुराल मे इसकी जरूरत भी नहीं थी। यहाँ खाना बनाने से लेकर हरेक काम के लिए नौकर थे,फिर भी पता नहीं सासु माँ को सुबह सुबह स्वर्णा को उठाकर जाने क्या मज़ा मिलता था।
एक दिन सुबह सासु माँ के बहुत बोलने पर स्वर्णा नहीं उठी क्योंकि सुबह उठकर नहाने के कारण शायद उसे ठंड लग गई थी और उसे बुखार हो गया था। पुरे बदन मे दर्द हो रहा था।जब सासु माँ को उसके उठने की आहट नहीं मिली तो वे थोड़ा तेज आवाज मे गुस्सा होकर सुनाने लगी जिसे सुनकर स्वर्णा के पति की नींद टूट गई। उसे समझ नहीं आया कि माँ इतनी सुबह सुबह और तेज तेज आवाज मे उसके दरवाज़े के पास आकर क्या कह रही है।
वह किसी अनहोनी की आशंका से घबराते हुए बाहर निकला तो सुना माँ चिल्ला कर कह रही थी कि आजकल की लड़कियों के तो आँखो मे पानी ही नहीं रहा। घर के बड़े बुजुर्ग जग गए है और वे मज़े से सो रही है। क्या हुआ माँ किसे बोल रही हो। और यह देर से जगने का सम्मान से क्या लेना देना। अब मै समझा स्वर्णा इतनी सुबह क्यों जग जाती है
तुमने ही कहा है। मै जब भी पूछता हूँ तो कहती है कि मुझे सुबह जगने की आदत है। कल मै उसे डाँट रहा था कि सुबह जगने के कारण तुम्हे बुखार हो गया। तुम्हारे शौक के कारण मै रात को परेशान हो रहा हूँ और अब घर के लोग भी परेशान होंगे। पर उसने आप सब को जगाने से मना कर दिया और बुखार की गोली खाकर सो गई। पर अब समझ आया कि यह सब किया धरा आपका है। मै बेकार ही स्वर्णा को डांट रहा था।माँ बेटे की आवाज सुनकर स्वर्णा के ससुर और देवर भी जग गए।
सारी बातो को जानने के बाद सभी नें उसकी सास को समझाया, बहू यदि आपकी बात मान रही है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह आपसे डरती है। इसलिए उससे उतना ही उलझें जितना की वह सह सके। यदि उसने पलट कर आपको जबाब देना शुरू कर दिया तो फिर तुम यह कहती ही रह जाओगी की आजकल की बहूओ के आँखो का पानी ढल गया है,सास को उल्टा जबाब देती है पर तब कोई कुछ नहीं कर पाएगा।
मुहावरा —आँखो का पानी ढलना
लतिका