सीजन के पहले दिन कटहल की सब्जी बड़े उत्साह और मेहनत से सौम्या ने बनाया था….।
वाह क्या सब्जी बनी है कटहल की… सच में बहुत स्वादिष्ट लग रही है डाइनिंग टेबल पर बैठकर सभी कटहल की सब्जी की तारीफ कर – कर के चटकारे ले-ले कर खाये जा रहे थे….। रसोई से सौम्या ये सब सुन मन ही मन बेहद खुश हो रही थी की सब्जी के साथ साथ उसकी भी तारीफ होगी ….पर ये क्या …तारीफों के बीच में ही सासू माँ मोहिनी देवी बोल पड़ी… हाँ-हाँ वो विश्वकर्मा जी के घर के पेड़ का कटहल है वो एक अलग किस्म का कटहल है …उसकी सब्जी बहुत स्वादिष्ट बनती ही है…।
इतना सुनते ही सौम्या का सारा उत्साह फीका पड़ गया …..कभी तो सब्जी के साथ साथ बनाने वाले की भी तारीफ होती खैर……ये कोई पहली बार की बात थोड़ी ही थी… हमेशा से ही ऐसा होता था….।
यूपी की ट्रेडिशनल फैमिली भला खुद से ज्यादा किसी को समझेंगे क्या…?? वो भी सास…. बाप रे…
सास बनना तो मानो जैसे पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली हो… हर क्षेत्र में…. ज्ञान भले ही शून्य क्यों ना हो… और सौम्या की फैमिली में तो सासू माँ के हुक्म के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था….। सौम्या भी अपनी सूझबूझ और समझदारी से संयुक्त परिवार को जोड़ने की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी….।
आजकल किसी बात को लेकर सौम्या के ससुर बजरंगी जी अपने पुत्रों से नाराज चल रहे थे…. और उन्होंने घर पर दो दिनों से भोजन करना बंद कर दिया था…. हर समय सासू माँ जातीं और खाने का आग्रह करती पर ससुर जी मानने को तैयार नहीं थे….। घर का माहौल तनावपूर्ण चल रहा था ….अंततः सौम्या ने हिम्मत करके खुद बात करने की सोची…।
ये उसके लिए बड़े साहस का काम था.. क्योंकि बहू का उनके घर में स्थान नगण्य था….। फिर भी उसने धीरे से ससुर जी के समक्ष जाकर कहा …पिताजी चाय लेकर आती हूं ….बजरंगी जी द्वारा कोई जवाब न मिलने से उसकी थोड़ी हिम्मत बढ़ी… शायद बजरंगी जी ने सौम्या का मान रखते हुये उसकी बात मान ली थी….।
जैसे ही वो रसोई में आकर चाय चूल्हे पर रखने लगी …. मोहिनी देवी तुरंत आ कर दूसरे बर्नर पर चाय बना कर….बिना कुछ बोले बजरंगी जी को देकर आ गई….। उन्हें खुद को सर्वोपरि जो मानना था…..
” और जब बेटों से नाराजगी चलती है तो बहू निर्दोष होते हुये भी दोषी हो ही जाती है “….।
हल्की सी कुटिल मुस्कान के साथ सौम्या शांत हो गई और घर का वातावरण भी सामान्य हो गया… सौम्या समझ चुकी थी ससुर जी उसकी इज्जत तो बहुत करते हैं पर सासू माँ के सामने हिम्मत नहीं जुटा पाते …कुछ स्वयं के निर्णय सुनाने का…।
एक दिन घर में कुछ मेहमान आए हुए थे… काम काफी बढ़ चुका था। सौम्या साड़ी का पल्लू बगल में दबाए एक-एक काम को निपटाने के प्रयास में लगी थी… बीच-बीच में सासू माँ के निर्देशों का हाँ माँ जी…जी माँ जी… कहकर पालन भी करती जा रही थी…. !
देखो सौम्या , रसेदार सब्जी में कड़ाही भर कर पानी मत डाल देना…. इसे ऐसे बनाना…उसे ऐसे…..वगैरह-वगैरह…। परिस्थिति की नजाकत को समझते हुये सौम्या चुपचाप सहन करती जा रही थी..।
सभी मेहमानों के साथ परिवार के सदस्य भी खाने की टेबल पर खाना खाने बैठे…. जहाँ खाने के साथ-साथ खाना बनाने वाली….सौम्या की जमकर तारीफ हो रही थी…. पर सासू माँ को तो क्रेडिट सौम्या को देना ही नहीं था। बातों का सिलसिला शुरू हुआ उसी के बीच सासू माँ ने बड़े फक्र से कहा ….क्या करूँ… फुर्सत ही नहीं मिलती है …रसोई में भी सौम्या के साथ में रहना पड़ता है… अकेले बहू के बस की बात कहाँ रसोई संभालना…।
सौम्या की समझ से परे थी ये बात कि….
” सासू माँ गलती निकालने और निर्देश देने के अलावा करतीं ही क्या है रसोई में ” ??
एक बार तो उसने चुप रहना ही उचित समझा। पर जब पानी सर से ऊपर होने लगा तब सौम्या की अंतरात्मा से आवाज आई …नहीं सौम्या अच्छा मौका है आज…..सबके सामने अपने विचारों से सबको अवगत कराना…..।
जैसे ही सासू माँ ने काम का रोना शुरू किया… सौम्या ने आज अपने मन की बात घर के सभी सदस्यों और मेहमानों के समक्ष रख ही दिया…
अरे माँ जी अब आप बिल्कुल चिंता मुक्त रहिए…. रसोई की सारी जिम्मेदारी मुझे सौंप दें…. आप की ही बहू हूँ ना माँ जी… आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी …..बस आप मुझे अपने ढंग से घर और रसोई चलाने की अनुमति दें….. और निश्चित होकर अपनी जिंदगी का आनंद लें। एक बार मुझ पर विश्वास करके तो देखें माँ जी….
बच्चों मेहमानों और बजरंगी जी ने भी सौम्या का साथ देकर कहा…. बहू बिल्कुल ठीक कह रही है …आप तो अपनी लाइफ इंजॉय करो मोहिनी जी…. रसोई वसोई का चक्कर ये नौजवानों के हाथ में ही रहने दो …
और हाँ आजकल इन्हें कुछ सीखने के लिए सासू माँ की नहीं…. गूगल और यूट्यूब की जरूरत होती है।
सासू माँ सौम्या की बात सुनकर स्तब्ध थी…।
वर्षों से रसोई का मालिकाना हक कैसे बहू को सौंप दें…
उनके लिए ये इतना आसान भी नहीं था..। सासू माँ के चेहरे के भाव को पढ़ते हुए बजरंगी जी ने माहौल को सहज करते हुए मजाकिया अंदाज में कहा…. ये लो मोहिनी तुम्हें तो छुट्टी मिल गई…. बेटे मुझे भी छुट्टी दे दें….तो हम चलें हनीमून मनाने क्यों…?? और सभी ठहाके मारकर हँसने लगे…।
आज तो सौम्या अपनी बात कह कर बेहद प्रसन्न थी….।
( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी