रक्षक – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

बरसात की अँधेरी काली रात है। आसमान जैसे अपने आँचल से लगातार भर-भरकर पानी उड़ेल रहा है । ऐसा लग रहा है  मानो बस बादल  ही फटने की देर है । जिधर देखो सड़कों पर कीचड़, गड्ढे और अँधेरा ही अँधेरा, हाथ को हाथ सूझ नहीं रहा है दूर की तो छोड़िए पास का भी दिखाई देना और अगर दिख गया तो ये अनुमान लगाना मुश्किल पड़ रहा है कि सड़क में गड्ढा है तो कितना गहरा है या सिर्फ पानी भरा हुआ है। । कभी-कभी बिजली चमक जातीं और उसी पल शहर का वीरान रास्ता कुछ पल के लिए उजाले में नहा उठता।

आज रश्मि ऑफिस से देर से निकली। उसे आज प्रोजेक्ट की फाइनल रिपोर्ट सबमिट करनी ही थी वरना बॉस की डाँट तय थी। वह जानती है  कि इतनी रात को अकेली घर जाना आसान नहीं होगा लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं है। टैक्सी मिलना मुश्किल है और कोढ़ में खाज आज आखिरी बस भी निकल गई थी । इसलिए उसने सोचा पैदल ही घर की ओर निकल लेती हूँ ।

उसके हाथ में एक छोटा-सा बैग और सिर पर दुपट्टा है। वह घर से आज ही छाता लाना भूल गई थी।  वैसे ऐसी भी कोई विशेष बात नहीं थी , सुबह तो सूरज देवता अपनी पूरी तेजी से आकाश में विद्यमान थे परन्तु  शाम होते होते मौसम ऐसा बदला कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।  बरसात इतनी तेज़ है  कि उसके कपड़े पूरी तरह भीग चुके हैं। रश्मि यह सोचकर अपने को तसल्ली देती  है कि छाते से इतनी भयंकर बारिश में बचाव हो ही कहाँ पाता है, भला? 

बुरी तरह भीगने के कारण रश्मि काँप रही है और घर की ओर चलती चली जा रही है। चारों ओर सन्नाटा छाया  हुआ है और सिर्फ़ बारिश की बूंदों का शोर सुनाई दे रहा है जो कम होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। रश्मि बड़ी मुश्किल से सड़क के गड्ढों को ध्यान में रखकर कदम आगे बढ़ा रही है। अचानक उसका पैर एक चिकने पत्थर पर फिसल गया और वह गिरते-गिरते बची। ।

तभी दूर से उसे एक आदमी आता दिखाई दिया। उसके हाथ में एक बड़ी सी काली छतरी थी। सफ़ेद शर्ट और गहरे रंग की पैंट पहने, वह सीधा रश्मि के पास आकर रुका। 

उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी।

“इतनी रात में अकेली जा रही हो ? बरसात में बीमार पड़ जाओगी। आओ, छतरी के नीचे आ जाओ,” उसने शांत आवाज़ में कहा

रश्मि ने डरते हुए कहा,”मैं चली जाऊँगी।  आप तकलीफ ना करें।”

उस आदमी ने धीर गंभीर आवाज़ में कहा, “मुझसे डरने की ज़रूरत नहीं है।  मैं तुम्हे सकुशल घर पहुंचाकर आता हूँ। ” 

 तभी बिजली ज़ोर से कड़की और रश्मि ने उस एक क्षण मात्र में ही आदमी की तरफ देखा , उस आदमी की आँखों में अजीब-सी सच्चाई की झलक मिली।

रश्मि पहले तो हिचकी, फिर सोचा — अँधेरे और तूफ़ान में अकेले चलने से तो अच्छा है किसी के साथ जाना।

वह उसके साथ चल दी।

“कहाँ रहती हो?” उसने पूछा।

रश्मि ने अपने मोहल्ले का नाम बताया।

“अरे, ये तो मेरे रास्ते में ही है। मैं वही जाने वाला था, मैं तुम्हे घर तक छोड़ दूँगा।”

उसकी आवाज़ में ना गर्मजोशी थी ना ठंडापन — बस एक सीधी, सच्ची सरलता।

चलते-चलते उसने बातचीत शुरू की।

“जानती हो, मेरी एक बहन थी। उम्र तुम्हारी ही जितनी । बहुत हँसमुख, सपनों से भरी हुई मेरी बहन हमेशा घर में चहकती  फिरती थी । एक रात… ऐसी ही काली रात थी, जब वह घर लौट रही थी। उसे मदद की ज़रूरत थी… पर किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। और उस रात किन्ही वहशियों के हाथों उसने अपनी ज़िंदगी खो दी।”

 बताते हुए उसके शब्दों में गहरी टीस थी।

“उस दिन के बाद मैंने ठान लिया — अगर कोई लड़की अकेली मिलेगी, तो मैं उसे कभी बेसहारा नहीं छोड़ूँगा।”

रश्मि चुप रही हालाँकि उसका दिल भर आया उस आदमी की बहन के बारे में सोचकर और एक निश्चिंतता भी उसे हो गई कि ये भला आदमी है। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी पर उस आदमी की छतरी के नीचे उसे अजीब-सी सुरक्षा महसूस हो रही है। रश्मि ने अपने दिल में पहले सोचा था कि आज के ज़माने में ऐसा कौन है जो इतनी शिद्दत से किसी अजनबी की मदद करे? लेकिन उस आदमी की बातें सुनकर उसकी शंका दूर हो गई थी। 

करीब पंद्रह मिनट चलते-चलते वे मोहल्ले के पास पहुँचे। सड़क पर पानी भर गया था। आदमी हर बार उसे गड्ढों से बचाकर निकालता।

गली के मोड़ पर पहुँचकर उसने कहा—“बस, अब घर पास है। आगे मैं चली जाऊँगी। आपका बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी मदद की।

वह बोला,”ठीक है, अपना ध्यान रखना।”

एकदम से रश्मि पलटी और उसने उस आदमी से कहा,” क्या आप एक कप चाय पीना चाहेंगे।  मेरे माता-पिता भी आपका शुक्रिया कहना चाहेंगे। ”

आदमी मुस्कुराया—“नहीं अब मैं चलता हूँ। और हाँ, किसी भी रात डर लगे… तो मुझे याद करना, मैं पास ही रहूँगा।”

रश्मि ने अचरज से उसकी ओर देखा फिर वह आगे बढ़ गई। पीछे मुड़कर देखा तो आदमी वहाँ खड़ा उसे ही देख रहा था।   रश्मि घर की तरफ बढ़ चली और पुन: उसने पीछे पलटकर देखा तो ऐसा लगा मानो वो आदमी जैसे बरसात और अँधेरे में घुलता जा रहा हो।

घर पर माँ पापा रश्मि के लिए चिंतित दरवाजे पर ही खड़े हुए थे।  रश्मि को देखकर उनकी जान में जान आई।  दरअसल उसके पापा की तबियत ख़राब चल रही है इस कारण वह घर से निकल नहीं पाए।  

रश्मि ने घरवालों को सारी बात बताई तो वे दोनों चौंक गए।

“इतनी रात को अजनबी के साथ चली आई? शुक्र कर कि सही सलामत घर पहुँच गई,” माँ ने डाँटते हुए कहा।

पिता चुपचाप उसकी बात सुन रहे थे। फिर बोले—“कैसा था वो आदमी? उसका नाम पूछा?”

“नहीं… बस इतना बताया उन्होंने कि उनकी एक बहन थी, जिसके साथ एक काली रात में हादसा हो गया था। इसीलिए वे लड़कियों की मदद करते हैं। ” रश्मि ने जवाब दिया।

पिता अचानक उठे और अलमारी से एक पुराना फोटो एलबम निकाल लाए। उसमें उनके गाँव की कुछ पुरानी तस्वीरें थीं।

“क्या यही था?” उन्होंने तस्वीर दिखाते हुए पूछा।

रश्मि का दिल धक् से रह गया।

“हाँ… यही तो थे वो ! बिल्कुल यही चेहरा… यही मुस्कान।”

पिता की आँखें भर आईं। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा—“बिटिया, ये रणजीत है… मेरे बचपन का दोस्त। करीब दस साल पहले बरसात की एक रात ड्यूटी से लौटते समय नदी पार करते हुए डूब गया था। उसकी बहन की मौत उसी से पहले… काली अँधेरी रात में हुई थी। रणजीत मेरे गाँव से है और इसी मोहल्ले के आगे जाकर दूसरा मोहल्ला है उसी में रहता था। एक कारखाने में काम करता था। ”

रश्मि के पूरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।

उस दिन से रश्मि के भीतर एक विश्वास जन्मा। वह समझ गई कि दुनिया में कुछ रिश्ते खून से नहीं, आत्मा से जुड़ते हैं। बरसात की उस रात छतरी पकड़े रणजीत ने सिर्फ उसे घर नहीं पहुँचाया, बल्कि उसकी सोच भी बदल दी।

वह अकसर सोचती—“अगर रणजीत चाचा अपनी बहन को बचा ना सके , तो क्या उनकी आत्मा अब हर लड़की में अपनी बहन का चेहरा ढूँढती है? शायद इसीलिए वह हर काली अँधेरी रात में किसी की मदद करने चले आते हैं।”

धीरे-धीरे रश्मि ने मोहल्ले के बुज़ुर्गों से सुना कि और भी कई लड़कियाँ, औरतें बरसात और अँधेरी रात में छतरी वाले आदमी की मदद पा चुकी थीं। बहुतों  ने उसे धन्यवाद कहने की कोशिश की, घर बुलाया पर वह मुस्कुरा कर भीड़ में ग़ायब हो जाता था।

लोग उसे अब “छतरी वाला भाई” / “छतरी वाले चाचा “कहने लगे।

कुछ सालों बाद भी, जब जब काली अँधेरी रात होती, रश्मि अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखती। वह मन ही मन कहती—

“अब डरने की ज़रूरत नहीं… रक्षक रणजीत चाचा आसपास ही होंगे।”

धन्यवाद 

-प्रियंका सक्सेना ‘जयपुरी’

(मौलिक व स्वरचित)

डिस्क्लेमर: यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है। इस कहानी की कथावस्तु, पात्र व घटनाएं लेखिका की कल्पना मात्र है। यह कहानी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देती है, केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है।

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कहानी का शीर्षक – रक्षक

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