आज रानी खूब खुश थी कारण अपने श्वसुर को नौकर बना रखा था। अकेला बेटा इसका पति है सो जैसा चाहेगी वही करेगी,मगर दांव उल्टा पड़ गया।
रानी का पति जवाहर एक दफ्तर में बाबू था और रानी उसके सामने श्वसुर से अच्छा व्यवहार करती थी और जाते ही-
अबे बुढ ऊं, झाड़ू ठीक से लगा जैसे व्यंग्य वाण चलाती थी।
सो रोज की तरह आज भी-आज बुढ ऊं जैसे ही कपड़े पहनकर बाहर निकले की रानी ने टोक दिया।
चल झाड़ू लगा,जूठे बर्तन भी धो दें फिर जाना।
मगर आज वे बिना बताए चले गये और दस मिनट में इसके मम्मी पापा आ गये।
अब क्या करें,वह सकपका गई।
झट उनका स्वागत किया, बर्तन सिंक में पड़े,पानी देने के लिए ग्लास तक सही नहीं,कारण वह बूढ़े को सताने के लिए ज्यादा से ज्यादा बर्तन जूठा करती थी मगर आज–
यह क्या है,रानी-मां ने कहा तो पापा झट बोले -यह सारा काम इसका श्वसुर करता है।आज वह जरूरी काम से बाहर निकल गये तो महारानी बुदबुदा रही है।
नहीं पापा-वह आगे नहीं बोल पायी।
तब तक दफ्तर से जवाहर भी आ गया। फिर एक घंटे बाद मुस्कुराते हुए बुढ ऊं भी आ गये।
पापा -बेटा बोला तो ये बोल उठे-तुझे सबूत चाहिए थे न सो देख ,किचन में बर्तन का ढेर, कहीं भी झाड़ू नहीं लगा।पूरा कमरा कचरे से भरा है।
वो तो मैं -यह समझ नहीं पा रही थी कि क्या बोले।
पापा आप -हां बेटा यह सारी ड्यूटी हमारी है।बहू बस मुझे रोटी तब देगी जब मैं यह काम करूंगा।इतना कहते मोबाइल की रिकार्डिंग दिखा दिया।
अब तो -सभी चुप रह गये।
बेटा जवाहर ,बीबी तुम्हारी,मेरे शरीर में इतनी जान नहीं है कि सारा काम करूं सो तुम अलग व्यवस्था जमा लो। तुम जब चाहो मिलने आना मगर मुझे बहू नहीं चाहिए।ये कभी मेरे घर नहीं आयेगी।मेरी जायदाद या मुझसे मतलब नहीं होगा।
बस पापा अभी टंटा खत्म करते हैं,
(कथा मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)
कुल शब्द -कम से कम 300
#दिनांक-20-7-2025
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।
#राज खोलना